जड़धार एक आदर्श गाँव है

16 Dec 2014
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जड़धार में जंगल बचाने, पानी-मिट्टी का संरक्षण, परम्परागत खेती और देशी बीज बचाने का अनूठा काम हुआ है और आज भी जारी है। इसके अलावा, पशुओं से प्रेम, गोबर गैस जैसे स्थानीय ऊर्जा के स्रोत, हाथ से काम करने की परम्परा ऐसे काम हैं, जो एक आदर्श गाँव की जरूरत है। इस गाँव में पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, पत्रकार भारत डोगरा, पर्यावरणविद् आशीष कोठारी, वन्दना शिवा जैसे अनेक जाने-माने लोग आ चुके हैं। जड़धार एक प्रेरणादायक गाँव है, जो अनुकरणीय भी है।

पिछले दिनों मुझे उत्तराखण्ड के टिहरी गढ़वाल के जड़धार गाँव में जाने का मौका मिला। यहाँ मैं तीन दिन रहा। यहाँ जो कुछ मैंने देखा, उससे एक आदर्श गाँव की तस्वीर उभरती है।

मैं दिल्ली से 4 नवम्बर की रात बस में बैठा। हरिद्वार पहुँचा। वहाँ से ऋषिकेष और फिर वहाँ से नागणी। ऋषिकेष से नागणी का रास्ता पहाड़ी था। बस ऊपर चढ़ती जा रही थी। पहाड़ और जंगल पीछते छूटते जा रहे थे। छोटे-छोटे बस स्टाप फिल्म की रील की तरह निकलते जा रहे थे। बस की खिड़की से जो ठण्डी हवा आ रही थी, वो कंपकपा देने वाली थी, इसलिए मैंने रूमाल से कान ढँक लिए थे।

सड़क किनारे ढाबेनुमा होटल बने हुए थे। सड़क किनारे हैण्डपम्प भी दिखाई दिए। पुरुष गरम कपड़े पहने हुए थे और सिर पर गरम टोपी। महिलाएँ सिर पर रूमाल बाँधे हुए थीं। उन्हें देखकर अच्छा लगा, क्योंकि मेरे लिए यह दृश्य आम नहीं था। हमारे इलाके में महिलाएँ घूँघट करती हैं।

एक बस स्टाप पर रूई धुननेवाला यन्त्र लेकर दो आदमी चढे़। उस यन्त्र को यहाँ खनोई कहते हैं। यह यन्त्र मैंने बचपन में देखा था। बाद में रूई धुनाई की मशीन के बाद यह दिखाई नहीं दिए।

यह गाँव हेंवल नदी के किनारे बसा है। गाँव में मकान दूर-दूर बसे हैं। कुछ पहाड़ी पर तो कुछ तराई में। पहाड़ी पर बसे घर दूर-दूर हैं, इसका कारण समतल जमीन का नहीं होना है। जहाँ पर कुछ समतल जमीन मिली, वहीं पर घर बनाकर रहने लगे। तराई में घनी आबादी है।

सीढ़ीदार खेत, खेतों में सरसों के पीले फूल, राजमा की रंग-बिरंगी फसलें, हरी- भरी पहाड़ियाँ देखते ही बन रही थीं। आँखों में ऐसे सौंदर्य को हमेशा बसा लेने की चाह और जानने का कौतूहल बना रहा।

जड़धार गाँव में विजय जड़धारी के घर रुका। उन्होंने अपने नाम के साथ गाँव का नाम भी जोड़ लिया है। वे चिपको आन्दोलन के कार्यकर्ता रहे हैं। इसके साथ खनन् विरोधी आन्दोलन, शराब विरोधी आन्दोलन के सहभागी रहे हैं और बीज बचाओ आन्दोलन की मुहिम चला रहे हैं।

उनका घर नागणी गाँव के ऊपर पहाड़ी पर है। मैं ऋषिकेश से नागणी पहुँचा, वहाँ से वह पहाड़ी, जहाँ जड़धारी जी का निवास स्थान है, 5 किलोमीटर दूर होगी। वहाँ तक जीपें चलती हैं, पर उनके घर से कुछ देर पहले ही सड़क मुड़ जाती है। आधा किलोमीटर ऊँची चढ़ाई चढ़के उनके घर पहुँचते हैं।

पहाड़ी पर बसा उनका घर पक्का है, पर उनकी रसोई झोपड़ी में है। उनकी भैंसें बाहर बँधती हैं। उनका देशी बीजों के रखरखाव से सम्बन्धित सभी काम आँगन में होते हैं। बीजों की सफाई, छँटाई और पैकिंग सब यही होता है। उनके घर भैंसें है। घर में दूध, दही और घी होता है। रसोई बनाने के गोबर गैस भी है। ठण्ड में चूल्हे पर भी खाना पकता है जिससे आग की गरमी से ठण्ड पास नहीं आती। स्नान के लिए गर्म पानी सहज उपलब्ध हो जाता है।

बांज के जंगल से बारह महीनों पानी आता है। इस पानी को पहाड़ से इनके घर तक पहुँचने में न बिजली की जरूरत और न ही डीजल मोटर की। इससे न ध्वनि प्रदूषण होता है और न ही किसी और तरह से पर्यावरण का नुकसान। बस परम्परागत जलस्त्रोत से पाइप लाइन डाली गई है, गुरुत्व बल से पानी लुढ़कता चला आता है। मैं इस जंगल को देखने गया जहाँ मैं हुकुमसिंह चौकीदार से मिला, जो बरसों से जंगल की रखवाली करता है।

तराई में हेंवल नदी बड़े-बड़े पत्थरों के बीच से चमकती हुई बहती है। नदी इठलाती कूदती पहाड़ों के बीच अपना सौन्दर्य बिखेरते चलती है। हेंवल सरकण्डा से निकलती है और आगे चलते हुए गंगा में समाहित हो जाती है। हेंवल नदी के इलाके को यहाँ लोग हेंवलघाटी कहते हैं।

सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में उत्तराखण्ड का यह क्षेत्र देश-दुनिया में इसलिए मशहूर हो गया जब यहाँ के लोग जंगल को कटने से बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गए। सरकार के ठेकेदार यहाँ जंगल की लकड़ी काटने आए थे। इस अनूठे आन्दोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।

विजय जड़धारी चिपको आन्दोलन के प्रमुख कार्यकर्ताओं में एक थे। इसके बाद उन्होंने जड़धार गाँव का जंगल बचाने का जतन किया जिससे आज परम्परागत पानी के स्रोत सदानीरा हैं और इससे पूरे गाँव को बारह महीने पानी मिल रहा है। जंगल बचाने का यह अनूठा काम 30 बरसों से किया जा रहा है।

मैं 5 नवम्बर को जड़धार पहुँचा था। आँगन में राजमा के अच्छे बीजों को छाँटने के काम में जड़धारी जी की लड़कियाँ लगी हुई थी। उनकी चार लड़कियाँ हैं, जिसमें से दो दीपिका और गीता कॉलेज में पढ़ रही हैं। विनीता घर पर रहती हैं और एक लड़की की शादी हो गई है। लेकिन ये तीनों लड़कियाँ चारा लाने के लिए तीन-तीन, चार-चार किलोमीटर जाती हैं, वहाँ से सिर पर घास लाती हैं, फिर कॉलेज जाती हैं। उनकी कड़ी मेहनत देखकर श्रद्धा से मन भर गया।

उनका बड़ा बेटा विपिन है, वह भी घर के खेती के काम के साथ बीज बचाओ आन्दोलन के काम में मदद करता है। जड़धारी जी पत्नी भी इस काम में पूरा साथ देती हैं।

वे कहते हैं कि वे चाहते तो अपने बच्चों को बाहर पढ़ने भेज सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। गाँव और खेती के संस्कार दिए। गाँव की संस्कृति और वैकल्पिक जीवन पद्धति के लिए उनका त्याग एक प्रेरणादायक काम के रूप में देखा जाना चाहिए।

वे बारहनाजा की मिश्रित खेती करते हैं। बारहनाजा का अर्थ है बारह अनाज। किन्तु इसमें अनाज ही नहीं, दलहन, तिलहन, शाक भाजी, मसाले व रेशा आदि भी शामिल हैं। बारहनाजा में 12 फसलें हों, यह जरूरी नहीं। इसमें 20 फसलें भी हो सकती हैं।

उनके घर पूरी तरह अपने खेतों में उगाए गए अनाज से भोजन बनता है। झंगोरा का भात, बाजरा की घी चुपड़ी रोटी, राजमा, मीठा करेले की सब्जी का स्वाद ही अलग था। तीन दिन पूरी तरह जैविक भोजन हमेशा याद रहेगा। ठण्ड में गुनगुनी धूप की तपन महसूस होगी, जब हमारे आज के भागमभाग वाली जीवनशैली से ऊब होगी।

जड़धारी बताते हैं कि यहाँ हर से कोई-न-कोई एक नौकरी में है। लेकिन इससे खेती के प्रति लोगों का मोह कम नहीं हुआ। जो लोग घर में हैं, वे मेहनत से पीछे नहीं हटते। वे मुझे जड़धार की बिन्दु देवी के घर ले गए। इस परिवार का पूरा ध्यान अपनी परंपरागत खेती पर है। वे बारहनाजा की खेती करते हैं।

हालांकि बिन्दु देवी का लड़का कनाडा में पहले होटल व्यवसाय से जुड़ा। बाद में किसी फैक्ट्री में काम कर रहा है। अच्छा पैसा भी कमाता है। पिछले साल उसकी शादी हुई है। बहू यहीं की है। और अभी जड़धार में है। वह पढ़ी-लिखी है। पर मोबाइल को घर रखकर घास काटने जाती है। खेतों में मेहनत करती है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जड़धार में जंगल बचाने, पानी-मिट्टी का संरक्षण, परम्परागत खेती और देशी बीज बचाने का अनूठा काम हुआ है और आज भी जारी है। इसके अलावा, पशुओं से प्रेम, गोबर गैस जैसे स्थानीय ऊर्जा के स्रोत, हाथ से काम करने की परम्परा ऐसे काम हैं, जो एक आदर्श गाँव की जरूरत है। इस गाँव में पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, पत्रकार भारत डोगरा, पर्यावरणविद् आशीष कोठारी, वन्दना शिवा जैसे अनेक जाने-माने लोग आ चुके हैं। जड़धार एक प्रेरणादायक गाँव है, जो अनुकरणीय भी है।

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