जी डी सर तुमको न भूल पाएँगे

16 Oct 2018
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स्वामी सानंद
स्वामी सानंद


बीते गुरूवार को 86 वर्षीय डॉक्टर जी.डी. अग्रवाल का देहावसान हो गया जिसकी वजह उनकी बढ़ती उम्र नहीं थी। वजह, 111 दिनों के अनशन के बाद हृदय गति का रुक जाना था। पर सवाल यह है कि वे अनशन क्यों कर रहे थे? हम इस मुद्दे कुछ समय बाद चर्चा करेगें।

मैं उन्हें जी.डी. अग्रवाल सर के रूप में जनता हूँ। वह व्यक्ति जिसने मुझे पर्यावरण विज्ञान की अवधारणा और उसकी कार्य प्रणाली से अवगत कराया। जी.डी. सर का जन्म दिल्ली के निकट एक छोटे से शहर कांधला में हुआ था। उनका पालन-पोषण उनकी चाची ने किया था। उन्होंने अपना करियर सिंचाई अभियन्ता के रूप में शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने बर्कले विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि ली और आईआईटी कानपुर में पर्यावरण अभियांत्रिकी के शिक्षक बन गए। वे कुछ समय के लिये केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण परिषद से भी जुड़े रहे। वे इसके प्रथम सदस्य सचिव थे।

आईआईटी कानपुर से सेवानिवृत होने के बाद उन्होंने चित्रकूट को अपना घर बना लिया और महात्मा गाँधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में उन्होंने मानद वक्ता के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। एक शिक्षक के रूप में वे कई छात्रों के लिये एक पर्यवेक्षक और अनुभवी परामर्शदाता रहे।

मैं जी.डी. सर से पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट (पीएसआई) में मिला जो देहरादून स्थित एक स्वैच्छिक संस्था है। हमारी पहली मुलाकात थोड़ी कष्टदायी थी। वे उस समय वहाँ सलाहकार के पद पर थे और मेरे लिये नौकरी का वह पहला मौका था। मैं कुछ रिसर्च के निचोड़ प्रस्तुत कर रहा था और कुछ वाक्यों को रखने के बाद उसमें असफल हो गया। जी.डी. सर मुझसे कई तरह के व्यावहारिक सवाल पूछ रहे थे जिनका मेरे पास कोई जवाब नहीं था। इसी बीच मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी मेरी रक्षा हेतु सामने आए और उन्होंने मेरे बदले उनके सवालों का उत्तर देकर मुझे बचाया।

इस वाकये के बाद मैं उनसे अक्सर मिलने लगा। कभी अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र के नक्शे तो कभी पानी और हवा के प्रदूषण सम्बन्धी किये गए अध्ययनों पर चर्चा करने के सम्बन्ध में। इस तरह मैं मुखर होने के साथ ही आत्मविश्वास से भर गया। हमारे सम्बन्ध तब और भी प्रगाढ़ हो गए जब हम केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना से सम्बन्धित सम्भाव्यता अध्ययन पर काम कर रहे थे। वे इस अध्ययन का पर्यवेक्षण कर रहे थे और मैं तमाम प्रोजेक्ट लीडर्स में से एक था। हम दोनों ने काफी वक्त एक-दूसरे के साथ बिताया और तब मुझे ज्ञात हुआ कि उनके पास कठोर व्यक्तित्व के साथ ही बहुत कोमल हृदय भी है। मैं उनका कायल हो गया और उन्हें भी मुझसे लगाव हो गया।

वर्ष 2006 में जी.डी. सर, मैं और पीएसआई के कुछ अन्य साथियों ने उत्तराखण्ड की यात्रा के दौरान पाया कि गंगा नदी का एक हिस्सा सूख गया था। जल विद्युत परियोजनाएँ नदी को तबाह कर रही थीं और उसे तालाबनुमा संरचना के माध्यम से सुरंग से जोड़ा जा रहा था। जिस गंगा को हम जानते थे उसका हरण कर लिया गया था। जी.डी. सर यह देखकर काफी बेचैन हो उठे थे। वे एक धर्मनिष्ठ हिन्दू थे। नदी की दुर्दशा ने उनके श्रद्धा भाव को झकझोरने के साथ ही उनकी वैज्ञानिक आत्मा को भी हिला दिया था। काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने कुछ महीनों के बाद गंगा के लिये उपवास रखने की घोषणा कर दी। उन्होंने जल विद्युत परियोजनाओं को तत्काल रद्द करने के साथ ही गंगोत्री से उत्तरकाशी तक के नदी के प्रवाह को न छेड़े जाने की भी माँग की।

मैं उनके उपवास करने से काफी खुश नहीं था। मुझे याद है कि इस मुद्दे पर उनसे मेरी लम्बी बहस हुई थी। लेकिन इस बहस का उनपर लेशमात्र भी असर नहीं हुआ। उनका विश्वास था कि गंगा हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत की आत्मा है जिसकी स्वच्छता को बरकरार रखना आवश्यक है। इसके लिये वे उपवास को ही वह रास्ता मानते थे जिसके माध्यम से आमजन के साथ ही सरकार को भी जागृत किया जा सकता था। मैं उनके स्वास्थ्य के बारे में चिन्तित था लेकिन वे इससे बिलकुल बेपरवाह थे। उनके इस विश्वास ने मौत के खौफ को समाप्त कर दिया था।

इस समय तक वे सन्यासी बन चुके थे और स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के नाम से पहचाने जाने लगे थे। उन्होंने गंगा के लिये चार बार उपवास किया जिसने पिछली यूपीए सरकार को कुछ कदम उठाने पर मजबूर किया लेकिन वे काफी नहीं थे। बेसिन प्राधिकार का गठन किया गया और जल विद्युत परियोजनाओं के लिये अस्थाई स्थगन आदेश जारी किया गया। जी.डी. सर इन वादों पर मान गए लेकिन बाद में ये वादे झुठला दिए गए। उनका उपवास चलता रहा। बारह साल और चार उपवासों के बाद जी.डी. सर ने अपना अन्तिम अनशन 22 जून, 2018 को शुरू किया। उन्होंने सरकार के समक्ष निम्न माँगों को रखा-

1. संसद में बिल लाया जाए जिसमें गंगा को संरक्षित करने के साथ ही उसकी रक्षा का प्रावधान हो
2. गंगा और उसकी सहायक नदियों के ऊपरी प्रवाह क्षेत्र में निर्माणाधीन सभी जल विद्युत परियोजनाओं को बन्द किया जाए
3. गंगा के मुख्य प्रवाह क्षेत्र में सभी खनन गतिविधियों को बन्द कर दिया जाए
4. एक ऐसी स्वायत्त बॉडी बनाई जाए जिसमें गंगा को सुरक्षित और संरक्षित करने में सक्षम लोग शामिल हों

जी.डी. अग्रवाल सर ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि जब तक संसद द्वारा इस सम्बन्ध में बिल नहीं पास कर दिया जाता तब तक सभी जल विद्युत परियोजनाओं के साथ ही नेशनल शिपिंग वाटरवेज पर रोक लगा दिया जाए। उन्होंने प्रधानमंत्री को तीन पत्र लिखे लेकिन किसी का जवाब नहीं मिला। इस तरह परिस्थिति बदतर होती चली गई।

10 अक्टूबर, 2018 से उन्होंने पानी का भी त्याग कर दिया। उनको जबरन मातृ सदन, हरिद्वार से एम्स, ऋषिकेश ले जाया गया। जब पुलिस के लोग उन्हें ले जाने आए तो उन्होंने उनकी खिलाफत भी की लेकिन वे उन्हें रोक नहीं पाए। 111 दिन के उपवास के बाद गुरुवार को 1:11 बजे दोपहर में उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका देहावसान हो गया।

जी.डी. सर की मृत्यु गंगा को बचाने के लिये हुई। एक नदी के लिये प्राण त्यागना हममें से कई लोगों के लिये अटपटा होगा लेकिन उनके लिये ऐसा नहीं था। वे विश्वासी व्यक्ति थे। वे दृढ़ता के साथ विश्वास करते थे कि गंगा उनकी माँ है।

उन्हें त्याग की शक्ति में भी पूर्ण विश्वास था। ठीक इसके उलट मुझे अविश्वास था। दरअसल, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और विश्वास की शक्ति के मुद्दे को लेकर मेरी उनसे बहस भी हो जाती थी। उनकी मृत्यु ने मुझे हिला कर रख दिया।

विश्वास ने ही मुझे इस घोर निराशा और उदासीनता के दौर के बीच से निकाला है। मैंने भी विश्वास करना शुरू कर दिया है कि जी.डी. सर का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। समय बदलेगा और गंगा बंधन मुक्त होकर बहेगी।

 

 

 

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