जीवन के लिए नदियां, नदियों के लिए जीवन

कार्यक्रम में गंगा की परिकल्पना एक ऐसी स्वस्थ नदी प्रणाली के रूप में की गई है, जो जैवविविधता से संपन्न हो और समुदायों, उद्यमों तथा प्रकृति को दीर्घ काल तक जल की आपूर्ति सुनिश्चित कर सके। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के ‘जीवन के लिए नदियां, नदियों के लिए जीवन’ कार्यक्रम में गंगा की परिकल्पना एक ऐसी स्वस्थ नदी प्रणाली के रूप में की गई है, जो जैवविविधता से संपन्न हो और समुदायों तथा उद्यमों को दीर्घकाल तक जल संसाधन सुनिश्चित कर सके। इस पहल को एचएसबीसी वॉटर प्रोग्राम (एचडब्ल्यूपी) का पंचवर्षीय सहयोग प्राप्त है।

एचडब्ल्यूपी का लक्ष्य वर्ष 2012-2017 के दौरान, जल प्रबंधन तथा उसका संरक्षण एवं उससे संबंधित शिक्षा का एक साक्त संयोग तैयार करना है ताकि एक वित्तीय संगठन द्वारा अभूतपूर्व जल कार्यक्रम सुनिश्चित किया जा सके।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया इसके तहत अपने लिविंग गंगा प्रोग्राम (एलजीपी) के अंतर्गत 2007-2012 से मिली सीख को आगे बढ़ाएगा। एलजीपी में जलवायु परिवर्तन के मद्देनज़र सतत जल संसाधन एवं ऊर्जा प्रबंधन के लिए कुछ आते नवोन्मेषी मार्गों एवं प्रक्रियाओं का विकास कर उन्हें विधिसम्मत बनाते हुए उनका कार्यान्वयन किया गया है। इनमें पर्यावरणीय प्रवाह, जल एवं ऊर्जा पदचिन्हों के आंकलन, उद्योगों के साथ कार्य,बायोरीमीडियेशन का उपयोग करते हुए नगरों में प्रदूषण की रोकथाम, सूंस कार्ययोजना निर्माण में सहभागिता, घड़ियालों की पुनः प्रस्तुति और जलवायु संकट आंकलन तथा पर्यावरण प्रणाली पर आधारित जलवायु अनुकूलन हेतु पद्धति निर्माण जैसे महत्वपूर्ण कार्य शामिल हैं। इसके अलावा डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की गंगा सूंस संरक्षण कार्य के परिणामस्वरूप पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार ने नदी सूंस कार्य योजना 2010-20 विकसित की। एलजीपी का ध्यान मुख्यतः गंगा के ऊपरी कछार के आर-पार फैले गंगोत्री से कानपुर तक के गंगा के 800 किलोमीटर के महत्वपूर्ण क्षेत्र पर था।

‘जीवन के लिए नदियां और नदियों के लिए जीवन’ प्रोग्राम के अंतर्गत एलजीपी से मिली सीख का क्रियान्वयन और इस कछार प्रबंधन संरचना का गंगा की एक प्रमुख सहायक रामगंगा नदी में उपयोग करना प्रस्तावित है। जल संसाधन प्रबंधन से संबंधित मुद्दों से उपजी कुछ जटिल और अंतर्निहित चुनौतियों के मामले में रामगंगा नदीगंगा की एक प्रतिमूर्ति है।

रामगंगा - एक अवलोकन


रामगंगा 2 करोड़ की एक विशाल आबादी वाले कछार से होती हुई बहती है जिसमें ज्यादातर लोग किसान हैं। इसनदी की कालागढ़ से गंगा में मिलने तक 300 किमी की धारा बुरी तरह प्रदूषित है तथा इसमें अपर्याप्त प्रवाह है।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के जलवायु संकट आंकलन से पता चलता है कि एक विशाल जनसंख्या पर भूजल के दोहन का बुरा प्रभाव पड़ा है और उसे साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन के लिए एक अतिरिक्त संकट का सामना करना पड़ रहा है।

रामगंगा विभिन्न गतिविधियों और विकास का एक छोटा प्रतीकात्मक संसार स्वरूप है। पहले से ही कम हो चले जल संसाधनों पर बढ़ते शहरीकरण का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। इस कछारीय क्षेत्र के नगर पूरी तरह से भूजल पर निर्भर हैं जिससे कि भूजल के स्तर में तेजी से गिरावट आई है। रामपुर, काशीपुर, रामनगर और मुरादाबाद के औद्योगिक-पीतल निर्माताओं, कागज एवं लुगदी उत्पादक कंपनियों, चीनी मिलों एवं मद्य उत्पादन इकाईयों के कारण जल प्रदूषण में असहनीय वृद्धि हो गई है। साथ ही साथ इस नदी के किनारे बसे शहरों का मलजल अंततः नदी में ही गिरता है।

रामगंगा की ऊपरी धारा, कालागढ़ बांध के जलभंडारण की वजह से उत्पन्न अप्रवाही जल (बैकवॉटर/स्तिया) से कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के एक बड़े क्षेत्र को जल मिलता है। इस बांध की निचली धारा सकरी है लेकिन यह महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील जैवविविधता (महसीर, घड़ियाल, ऊदबिलाव तथा अन्य जीव) से समृद्ध है, जिसका संरक्षण आवश्यक है।

ऐसे में, यह कहना गलत नहीं होगा कि, रामगंगा के कछारीय क्षेत्र की स्थिति में सुधार से गंगा नदी का प्रत्यक्ष सुधार हो सकता है।

‘जीवन के लिए नदियां, नदियों के लिए जीवन’- कार्यक्रम की मुख्य बातें


डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की इस योजना के अंतर्गत रामगंगा के 300 किलोमीटर (कालागढ़ डैम से कन्नौज) और गंगा के 900 किलोमीटर (बिजनौर से वाराणसी तक) के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए एलपीजी की कुछ मुख्य पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने की है।

कार्यक्रम के चार स्तंभ इस प्रकार हैं।

सतत जल प्रबंधन


1. रामगंगा में पर्यावरणीय प्रवाह के संचालन की दिशा में कार्य करना।
2. पर्यावरणीय प्रवाह के संबंध में नीतिगत कार्य प्रारंभ करने के लिए प्रयास करना।
3. गंगा एवं रामगंगा कछार में सिंचाई के लिए जल के विवेकपूर्ण आवंटन हेतु नहर पोषित खेती में जल के समुचित उपयोग पर किसानों के साथ कार्य करना।

प्राकृतिक वास एवं जैवविविधता संरक्षण


1. गंगा एवं रामगंगा की 300 किमी. की धारा (जो कि 6 जिलों से होकर गुजरती है) में स्थानीय एवं संकटग्रस्त 7 जीवों (सूंस, घड़ियाल, ऊदबिलाव, महसीर, (मछली) और कछुओं की 3 प्रजातियों) की संख्या एवं उनके प्राकृतिक वासों में सुधार करना।
2. बिजनौर से वाराणसी तक, गंगा के 900 की धारा में सूंस का वह विशालतम क्षेत्र है जिसकी निगरानी की जा रही है।

जलवायु परिवर्तन अनुकूलन


1. उत्तर प्रदेश राज्य के लिए जलवायु अनुकूलन हेतु एक प्रणाली का विकास करना ताकि जलवायु परिवर्तन संबंधी संकटों में कमी और गंगा एवं इसकी सहायक नदियों के तलीय प्रवाह (बेस फ्लो) में सुधार हो सके।
2. 40 गांवों के 15,000 किसानों को सक्षम बनाना ताकि वे सतत कृषि एवं भूजल प्रबंधन को अपनाएं।

वाटर स्टीवार्डशिप


1. गंगा कछार के नगरों (कम से कम एक नगर) और छोटे तथा मध्यम उद्यमों (तीन कार्य क्षेत्रों से संबंधित) को सहयोग ताकि उन्हें उत्तम जल प्रबंधन संसाधनों का संरक्षण, मार्जक पदार्थ उत्पादन स्थाई उपयोग, हरित वित्तीयन व्यवस्था (वह व्यवस्था जो पर्यावरण के अनुकूलन प्रबंधन के तरीकों को बढ़ावा देती है), सहभागियों का संयुक्त प्रयास एवं नीतिगत आदान-प्रदान अपनाकर जल संसाधन संबंधित संकटों को दूर करने में सहायता कर सके।
2. समुदाय आधारित एक ‘नदी स्वास्थ्य आंकलन’ संलेख का निर्माण, गंगा और रामगंगा के स्वास्थ्य पर निगरानी रखने और उससे संबद्ध रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु 10 से 15 बहु-भागीदार समूहों/नीति मंचों का सक्रियता से विकास करना।

पता :


172-बी, लोधी स्टेट, नई दिल्ली-110003
फोन : 011-43036290
फैक्स : 011-41504779
वेबसाइट : www.wwfindia.org

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