जीवन, सम्पत्ति और संरचनाओं का संरक्षण

3 Mar 2015
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राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एनडीएमए) के उपाध्यक्ष जनरल एन.सी. विज, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम सेवानिवृत्त के साथ योजना की बातचीत के अंश

एनडीएमए अपने मिशन में सही ढंग से आगे बढ़ रहा है। योजना आयोग भी आपदा प्रबन्धन की आवश्यकताओं पर विचार कर रहा है। भारत में आपदा प्रबन्धन का लक्ष्य आपदाओं को झेलने की क्षमता का विकास कर लोगों के जीवन, सम्पत्ति और देश की आर्थिक संरचना का संरक्षण करना है।प्रश्न : कहते हैं कि भारत में आपदा प्रबन्धन के प्रति नजरिये में आया बदलाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा है। नया दृष्टिकोण पहले के दृष्टिकोण से किन अर्थों में भिन्न है?

उत्तरः जी हाँ, राष्ट्रीय स्तर पर पूर्व के राहत केन्द्रित अनुक्रिया के स्थान पर अब बचाव, शमन और तैयारी करने वाली दृष्टिकोण का प्रस्ताव है। इन प्रयासों का उद्देश्य विकास के लाभों को संरक्षित करने के साथ-साथ जीवन, आजीविका और सम्पत्ति के ह्रास को कम से कम करना है। उपर्युक्त दृष्टिकोण को कार्यान्वित करने के लिए भारत सरकार ने 2005 में आपदा प्रबन्धन अधिनियम बनाया है जिसके अन्तर्गत शीर्ष स्तर पर प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण का गठन किया गया है। प्राधिकरण में उपाध्यक्ष के अलावा 8 अन्य सदस्य भी शामिल हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था राज्य और जिला स्तरों पर भी की गई है, जहाँ मुख्यमन्त्रियों और जिला उपायुक्तों को सम्बन्धित संगठनों का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है। अस्तित्व में आने के बाद से ही एनडीएमए प्रोएक्विट (आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेने की) रणनीति पर अमल करने के लिए बचाव, तैयारी, क्षमता विकास और जनजागृति के लिए काम कर रहा है।

प्रश्न : वे कौन से क्षेत्र अथवा कारक हैं जिन पर भारत को आपदा प्रबन्धन से सम्बन्धित अपनी तैयारियों और प्रबन्धन को सुदृढ़ बनाने के लिए काम करना है?

उत्तर : वे पहलू जिन पर अतिरिक्त ध्यान देने की जरूरत है अथवा जिन पर पहले ही कार्य शुरू हो चुका है, इस प्रकार हैं :

1. बचाव और तैयारी की संस्कृति को प्रोत्साहन देना।
2. प्रौद्योगिकी और पारम्परिक ज्ञान पर आधारित शमन उपायों का प्रोत्साहन।
3. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर विशेषज्ञ अनुक्रिया सामर्थ्य क्षमता का विकास।
4. आपदा प्रबन्धन को विकास प्रक्रिया की मुख्यधारा से जोड़ना।
5. नियामक वातावरण और उसका पालन करने वाली व्यवस्था की स्थापना में सहायता के लिए संस्थागत और तकनीकी वैधानिक ढाँचे की स्थापना।

प्रश्न : आपदा प्रबन्धन में चिन्ता के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?

उत्तर : अमेरिका जैसे देशों की तुलना में जहाँ 1979 में राष्ट्रपति कार्टर के कार्यकाल में ही औपचारिक व्यवस्था की जा चुकी थी, भारत में आपदा प्रबन्धन की व्यवस्था हाल ही में शुरू हुई है। कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्र जिन पर हमारे देश में प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देने की जरू़रत है, वे ये हैं :

1. तकनीकी-वैधानिक व्यवस्था को लागू करना ताकि हमारे सभी शहरों और कस्बों का विकास आपदा प्रतिस्कन्दन विशेषताओं और शमन तथा अनुक्रिया व्यवस्थाओं को पूरा करने वाली सुनियोजित योजनाओं के अनुसार हो सके।
2. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर शमन परियोजनाएँ, विशेषकर भूकम्प, बाढ़ और भूस्खलनों के लिए ताकि इन आपदाओं के लिए संरचनात्मक और क्षमता निर्माण के प्रबन्ध किए जा सकें।
3. रासायनिक, जीव वैज्ञानिक, विकिरण चिकित्सा और नाभिकीय आपात स्थितियों के साथ-साथ औद्योगिक आपदाओं के क्षेत्र में भी अच्छी तैयारी की जरू़रत है।
4. अच्छी अनुक्रिया क्षमता के निर्माण के लिए हमें राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल की 10 बटालियनों का गठन करना होगा। राज्यों के स्तर पर भी इसी बल के समकक्ष न्यूनतम एक-एक बटालियन की आवश्यकता है।
5. सामुदायिक स्तर पर आपदा प्रबन्धन क्षमता के विस्तार के लिए नागरिक सुरक्षा का पुनर्गठन।
6. समुदाय आधारित आपदा प्रबन्धन भी एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है।

प्रश्न : आगामी वर्ष में आपदाओं — प्राकृतिक और मानव निर्मित — दोनों के प्रति भारत की संवेदनशीलता का आप किस प्रकार आकलन करते हैं?

उत्तर : तमाम प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के प्रति भारत की संवेदनशीलता की आपेक्षिक सीमा अलग-अलग है। देश के भू-भाग का 58.6 प्रतिशत हिस्सा हल्के से लेकर अति तीव्रता वाले भूकम्प की सम्भावना वाला है। 4 करोड़ हेक्टेयर (भूमि का 12 प्रतिशत) बाढ़ और नदियों द्वारा कटाव के खतरों से भरा है। 7,516 कि.मी. लम्बे समुद्र तटीय क्षेत्र में से करीब 5,700 कि.मी. चक्रवात और सुनामियों की सम्भावना वाला है, कृषि योग्य भूमि का 68 प्रतिशत सूखे की सम्भावना वाला है तो पर्वतीय क्षेत्रों में भू-स्खलन और हिम स्खलन का खतरा बना रहता है। हाल के वर्षों में रासायनिक, जैविक, विकिरण चिकित्सा सम्बन्धी और नाभिकीय आपात स्थितियों के साथ-साथ मानव निर्मित आपदाओं का खतरा भी कई गुना बढ़ गया है।

जनसंख्यात्मक और सामाजिक, आर्थिक स्थितियाँ अनियोजित शहरीकरण, क्षरण, जलवायु परिवर्तन , भू वैज्ञानिक खतरों और महामारियों से जुड़े परिवर्तनों से बढ़े जोखिमों के कारण भारत में आपदाओं का खतरा और भी व्यापक हो गया है। स्पष्ट है कि इन सबके अवदान से ऐसी स्थिति बनती है कि ये आपदाएँ भारत की अर्थव्यवस्था, उसकी जनसंख्या और सतत विकास के लिए गम्भीर खतरा बन गई हैं। तथापि अग्रवर्ती रणनीति के तहत आगे जाकर जो उपाय किए जा रहे हैं, उनके फलीभूत होने पर हम काफी हद तक इन चुनौतियों का सामना करने लगें।

प्रश्न : वर्तमान में एनडीएमए किन प्रमुख परियोजनाओं पर काम कर रहा है?

उत्तर : एनडीएमए ने अपने गठन के बाद से ही विभिन्न मोर्चों पर राष्ट्रीय विजन (दूरगामी योजना) को मूर्त रूप देने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। वर्तमान में किए जा रहे कुछ महत्वपूर्ण प्रयास इस प्रकार हैं :

केन्द्रीय मन्त्रियों और राज्यों की सुविधा के लिए दिशा-निर्देश : एनडीएमए ने योजनाओं के निर्माण की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में दिशा-निर्देशों की तैयारी के लिए पहल की है। इन दिशा-निर्देशों को एक समावेशी और सहभागी पद्धति से तैयार किया गया है। भूकम्प, चक्रवात, बाढ़, जैविक आपदाओं, रासायनिक (औद्योगिक) आपदाओं नाभिकीय और विकिरण चिकित्सा आपात स्थितियों, उपचार सम्बन्धी तैयारियों और वृहद दुर्घटना (हताहत) प्रबन्धन से जुड़े दिशा-निर्देश व राज्यों की योजनाओं को जारी कर दिया गया है। भू-स्खलन, रासायनिक (आतंकवादी) आपदाओं, सामाजिक-मनोवैज्ञानिक और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल, सुनामी, शहरी क्षेत्रों में बाढ़ और अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर इस वर्ष के अन्त तक दिशा-निर्देश जारी कर दिए जाएँगे।

शमन परियोजनाएँ : एनडीएमए ने प्राथमिकता के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर पाँच शमन परियोजनाएँ शुरू की है। चक्रवाती खतरा प्रबन्धन परियोजना विश्व बैंक की सहायता से शीघ्र ही शुरू की जाएगी। पहले चरण में पाँच राज्यों में और बाद में 13 राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में यह परियोजना लागू की जाएगी। भूकम्पीय खतरा शमन, राष्ट्रीय आपदा सूचना और संचार नेटवर्क तथा राष्ट्रीय शमन आरक्षी बल पर परियोजनाओं पर काम चल रहा है और विस्तृत परियोजना रिपोर्टों को अन्तिम रूप दिया जा रहा है। विद्यालय सुरक्षा परियोजना को सरकार से मंजूरी की प्रतीक्षा है। मिलते ही इसे जारी कर दिया जाएगा।

जागरुकता अभियान : भूकम्प, बाढ़ और चक्रवातों पर जागृति और तैयारी अभियान इलेक्रॉुकनिक और प्रिण्ट मीडिया में चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा, राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल (एनडीआरएफ) ने विभिन्न आपदाओं, विशेषकर बाढ़ों के बारे में, सामुदायिक तैयारियों का अभ्यास कराने का काम हाथ में लिया है। पिछले वर्ष विभिन्न राज्यों में बाढ़-रोधी उपायों में लोगों को प्रशिक्षित करने के लिये एनडीआरएफ की 60 टीमें तैनात की गईं थीं।

प्रदर्शन अभ्यास : एनडीएमए राज्य और जिला अधिकारियों की भागीदारी में विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न प्रकार के मानव निर्मित और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के उपायों का प्रदर्शन अभ्यास करा रहा है। अब तक 27 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में 55 प्रदर्शन अभ्यास आयोजित कराए जा चुके हैं। आगामी वर्ष में इसी प्रकार के 100 अभ्यास कराने की योजना बनाई गई है। इस ग्रीष्म ऋतु में स्कूली छात्रों से भी ये अभ्यास कराने की नयी पहल शुरू की गई है। यह बहुत उपयोगी अभ्यास सिद्ध हो रहा है। आगामी शिक्षा सत्र में इसी तरह के अनके अभ्यासों की योजना बनाई जा रही है।

विश्वविद्यालयों में अनिवार्य प्रशिक्षण के रूप में आपदा प्रबन्धन : इस महत्वपूर्ण विषय को विश्वविद्यालय में शुरू कर एक नयी पहल की गई है। वहाँ सभी स्नातक पाठ्यक्रमों में एक स्प्ताह का सम्पुटित (कैप्सूल) अभ्यास अनिवार्य कर दिया गया है। इस प्रकार विश्वविद्यालय में प्रति वर्ष लगभग 2.15 लाख विद्याथियों को प्रशिक्षण दिया जा सकेगा। देश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी इसी तरह के कार्यक्रम शुरू करने के लिए काम चल रहा है।

प्रश्न : आपदा प्रबन्धन के नये दृष्टिकोण के अन्तर्गत नागरिक सुरक्षा (सिविल डिफेंस) की क्या भूमिका रहने वाली है?

उत्तर : इस तथ्य को महसूस करते हुए कि आपदा प्रबन्धन में नागरिक सुरक्षा उपयोगी साबित हुई है, भारत सरकार ने आपदा प्रबन्धन में नागरिक सुरक्षा की सेवाओं के उपयोग को मंजूरी देते हुए आदेश जारी किया है। तदनुसार, नागरिक सुरक्षा का संगठन अब जिलों में स्थित होगा जबकि पहले यह कुछ शहरों में ही सीमित होता था। नागरिक सुरक्षा का लाभ यह है कि यह एक सामुदायिक संगठन है और किसी भी आपदा की स्थिति में सर्वप्रथम मदद करने वालों के रूप में यह पूरे समुदाय को ही तैयार करता है। यह संगठन समाज में जागरुकता और तैयारी से सम्बन्धित गतिविधियों की जानकारी देने में भी सहायता करेगा।

उपर्युक्त सन्दर्भ में, नागरिक सुरक्षा के स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण काफी महत्वपूर्ण विषय हो गया है। एक व्यापक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार किया जा चुका है और शीघ्र ही इसे जारी कर दिया जाएगा। योजना आयोग ने इस वर्ष के लिए एक अरब रुपये निर्धारित किए हैं। प्रशिक्षण का एक विशाल कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है।

प्रश्न : राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल विशेषकर नाभिकीय, रासायनिक और जैविक आपदाओं से निपटने वाली बटालियनों के प्रशिक्षण तथा क्षमता विकास की क्या योजनाएँ हैं?

उत्तर : वर्तमान में राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल में आठ बटालियनें हैं जो देश के विभिन्न भागों में स्थित हैं। आवश्यकता को देखते हुए दो और बटालियनों के गठन के बारे में सहमति दे दी गई है। इन आठ बटालियनों में से चार को रासायनिक, जैविक विकिरण चिकित्सा और नाभिकीय आयात (सीबीआरएन) स्थितियों से निपटने का दायित्व सौंपा गया है। इन सभी आठ बटालियनों के लिए प्रशिक्षण का व्यापक कार्यक्रम तैयार किया गया है। इन सभी बटालियनों को ध्वस्त मकानों में तलाशी और बचाव, सबसे पहले इलाज की कार्रवाई, हेलीकॉप्टरों से बचाव कार्य और पानी में बचाव का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सीबीआरएन के लिए निर्दिष्ट बटालियनों के प्रशिक्षण के लिए देश-विदेश के अनेक संस्थानों का चयन किया गया है। इन बटालियनों के उपयोग के साजो-सामान और उपकरणों की सूची को अन्तिम रूप दे दिया गया है और उन्हें इस वर्ष सितम्बर तक पूर्णतया सुसज्जित कर दिया जाएगा। बाद में, सभी दस बटालियनों को सीबीआरएन आपात स्थितियों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा।

प्रश्न : क्या साइबर आतंकवाद से निपटने की भी कोई कार्य योजना तैयार की गई है?

उत्तर : साइबर आतंकवाद हमारे दायित्व और क्षेत्राधिकार से परे है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय इस मामले को देखता है। जनजागृति और आम लोगों को ‘क्या करें क्या न करें’ के बारे में बताना आपदा प्रबन्धन योजना का महत्वपूर्ण अंग होता है।

प्रश्न : आपके विचार में भारत के सन्दर्भ में इसे किस प्रकार बेहतर ढंग से हासिल किया जा सकता है?

उत्तर : जागरुकता फैलाना अनुवर्ती रणनीति के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। एनडीएमए ने इस पहलू पर भी गौर किया है। और जो कदम उठाए हैं, उनमें से कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्रम इस पक्रार हैं :

(क) भूकम्प, चक्रवात और बाढों पर केन्द्रित प्रचार अभियान इलेक्ट्रॉनिक और प्रिण्ट मीडिया पर शुरू किया जा चुका है।
(ख) दिशा-निर्देशों की प्रमुख बातों को राष्ट्रीय और स्थानीय प्रेस में जारी किया जा रहा है।
(ग) राज्य और जिला स्तर पर विभिन्न आपदाओं के बारे में कार्यशाला में और मैदानी प्रदर्शन के रूप में 58 अभ्यास कराए जा चुके हैं। वर्ष 2009-10 में ऐसे 100 और अभ्यासों की योजना है।
(घ) एनडीआरएफ की टीमें सामुदायिक स्तर पर क्षमता विकास और प्रशिक्षण के लिए विभिन्न जिलों में भेजी जा रही हैं।
(च) जिन अन्य गतिविधियों की योजना बनाई गई है, उनमें वृत्त चित्रों और टीवी विज्ञापनों का निर्माण एवं पोस्टरों और पर्चों का प्रकाशन शामिल है।

प्रश्न : आपदाओं के प्रभावी प्रबन्धन में आड़े आने वाली वे कौन–सी बाधाएँ हैं जिनका भारत को सामना करना पड़ता है?

उत्तर : आपदा प्रबन्धन हमारे देश में अपेक्षाकृत एक नयी पहल है। अधिकांश विकसित देश इस दिशा में हमसे 30-40 वर्ष आगे हैं। परन्तु अब चूंकि रास्ते की पहचान कर ली गई है और रणनीति भी तैयार कर ली गई है, राष्ट्रीय और राज्यों के स्तर पर आपदा प्रबन्धन अधिकारियों के सशक्तीकरण की आवश्यकता शेष रह गई है। अब केवल राजनीतिक स्तर पर एनडीएमए की नीतियों और कार्यक्रमों को गम्भीर रूप से आगे बढ़ाने की जरूरत है ताकि कार्य अपेक्षित गति से आगे बढ़ सके। गति बहुत महत्वपूर्ण है ताकि हम खोए हुए समय की भरपाई कर सकें।

प्रश्न: भविष्य के लिए हमारी क्या आशाएँ हैं?

उत्तर : शुरुआत हो चुकी है, एनडीएमए अपने मिशन में सही ढंग से आगे बढ़ रहा है। योजना आयोग भी आपदा प्रबन्धन की आवश्यकताओं पर विचार कर रहा है। भारत में आपदा प्रबन्धन का लक्ष्य आपदाओं को झेलने की क्षमता का विकास कर लोगों के जीवन, सम्पत्ति और देश की आर्थिक संरचना का संरक्षण करना है। यह एक लम्बी यात्रा है। परन्तु सभी राज्यों के सहयोग से हम शीघ्र ही उन देशों के बीच खड़े होंगे जो इस तरह की आपदाओं के लिये सदैव तैयार रहते हैं।

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