जीवनदायिनी मिट्टी

10 Apr 2018
0 mins read
सतह के नीचे मिट्टी की बनावट
सतह के नीचे मिट्टी की बनावट


हमारी प्राकृतिक संपदाओं में मिट्टी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। फसलें, जंगल, घास, झाड़ियाँ सभी मिट्टी में उपजती हैं। किसी पौधे को उखाड़ कर देखो, उसकी जड़ें कैसे मिट्टी में फैली हुई हैं। यही जड़ें मिट्टी से पौधे के लिये भोजन व पानी पहुँचाती हैं। बड़े पेड़ों की जड़ें कितनी मोटी होती हैं और कितनी दूर-दूर तक फैली रहती हैं।

सतह से नीचे मिट्टी की बनावट

मिट्टी कैसे बनती है?


क्या तुमने कभी सोचा कि मिट्टी आती कहाँ से है? पृथ्वी की सतह कई प्रकार की चट्टानों से बनी है। ये चट्टानें धीरे-धीरे टूटती रहती हैं। चट्टानों के टूटने से छोटे पत्थर और कंकड़ बनते हैं और टूटते-टूटते वे अंत में बालू और मिट्टी में बदल जाते हैं।

तुम आस-पास की पहाड़ी ढलान को देखो। तुम्हें वहाँ चट्टानों के टूटे-फूटे टुकड़े, कंकड़, मोटी बालू आदि बिछी मिलेगी। ये वहाँ की चट्टानों से टूटी हैं। चट्टानों के ऊपर बिछे इसी भुरभुरे पदार्थ को हम मिट्टी कहते हैं।

चट्टानों के टूटने फूटने से बनने के कारण ही मिट्टी में वे सभी तत्व होते हैं जो इन चट्टानों में होते हैं। जैसे कि अगर हम सीहोर जिले के गाँवों की मिट्टियाँ देखें तो वे काले रंग की बारीक कणों वाली दिखाई देती हैं। सीहोर जिले में मिट्टी लावा चट्टान के टूटने-फूटने से बनी है। यह चट्टान काले रंग की है। लेकिन यदि तुम टीकमगढ़ जिले में जाओ तो वहाँ मोटे कणों की मिट्टी मिलती है, जिसमें बालू अधिक होती है। इसका रंग भी लाल होता है। यह मिट्टी बालू वाली लाल चट्टान से बनी है जो टीकमगढ़ में मिलती है।

तुमने कभी आस-पास की मिट्टी खुदती देखी हो, तो क्या ध्यान दिया कि खोदते-खोदते अलग-अलग तरह की मिट्टी निकलने लगती है।

धरातल और मिट्टी सतह के ठीक नीचे गाढ़े रंग की मिट्टी की परत होती है। यह परत जितनी मोटी होती है मिट्टी उतनी ही उपजाऊ होती है। इस परत में घास, पत्तियां आदि का सड़ा भाग होता है। इससे मिट्टी उपजाऊ होती है। इसे ही अंग्रेज़ी में ह्यूमस कहते हैं। मिट्टी की इसी ऊपरी परत में पेड़-पौधों की जड़ें फैलती हैं। इसी से पेड़-पौधों को पोषण मिलता है। अगर तुम एक चम्मच मिट्टी को एक गिलास पानी मे घोलोगे तो पाओगे कि मिट्टी का कुछ हिस्सा गिलास के नीचे बैठ जाएगा और कुछ भाग पानी के ऊपर तैरेगा। तैरने वाला यही भाग ह्यूमस है।

ऊपरी परत के नीचे मिट्टी की दूसरी परत होती है, इसका रंग हल्का होता है, यह कठोर भी होती जाती है। मिट्टी की इस परत के नीचे चट्टानों के छोटे-छोटे टुकड़ों की परत है। ये टुकड़े नीचे की कठोर चट्टानों के टूटने से बने हैं और इन्हीं के बारीक होने पर मिट्टी बनती है। इन्हें ‘जनक चट्टान’ कहा जाता है। इनसे मिट्टी बनने में लम्बा समय लगता है।

 

 

धरातल की बनावट और मिट्टी


जिन चट्टानों की टूट-फूट से मिट्टी बनती है वह मिट्टी वहीं, उसी इलाके में हमेशा नहीं रहती। नदी-नालों का पानी उसे बहा ले जाता है और अन्य भागों में बिछा देता है। इसीलिये तुम्हारे यहाँ जो मिट्टी है, वो सिर्फ तुम्हारे यहाँ की चट्टानों के टूटने से ही नहीं बनी। दूसरे क्षेत्रों की मिट्टी नदी नालों में बहकर भी यहाँ आई होगी और बिछी होगी। यही कारण है कि नदियों की घाटियों में मिट्टी की मोटी तह मिलती है, जबकि ढलवां धरती और पहाड़ पर मिट्टी की तह अधिक मोटी नहीं होती।

अगर हम किसी गाँव के चारों ओर की मिट्टियों को देखें तो पाते हैं कि ये अलग-अलग प्रकार की हैं। हम एक गाँव में गए। गाँव से कुछ दूर नदी है और हमने नदी के किनारे की मिट्टी उठाकर देखी तो वह भुरभुरी लगी। इसमें चिकनी मिट्टी के साथ बारीक बालू भी मिली है। किसान इसे गाद या पन मिट्टी कहते हैं। वे बताते हैं कि बरसात में पानी के साथ यह मिट्टी बहकर आती है और परत के रूप में जमा होती रहती है। इसका मतलब है कि नदी किनारे की मिट्टी कहीं और से आई है। कितनी अच्छी फसल खड़ी है इस पर।

आओ चलें, गाँव की दूसरी ओर पहाड़ी पर। यह क्या, यहाँ तो चट्टानों के बड़े-छोटे टुकड़े बिखरे पड़े हैं। इन्हीं के बीच-बीच में थोड़ी मिट्टी भी है। मोटी रेत और बजरी अधिक है। यहाँ की महीन मिट्टी बरसाती पानी के साथ बह गई। यहाँ मिट्टी बहुत कम गहरी है। खेत में कुछ ठूठ खड़े हैं, लगता है बरसात में ज्वार जैसी कुछ फसलें यहाँ पैदा की गई थीं। अब तो यहाँ बंजर सा है। किसानों का कहना है कि यहाँ हर साल खेती नहीं हो पाती क्योंकि यह मिट्टी उपजाऊ नहीं है। कुछ समय परती रखने के बाद ही इस पर खेती की जाती है, वह भी मोटे अनाजों की बरसात के बाद उसमें नमी नहीं रुकती। तुम्हें याद होगा कि पहाड़ का गाँव पाहवाड़ी में इसी तरह की मिट्टी थी।

गाँव के समतल भाग में कुछ और दृश्य है। यहाँ पहाड़ी मिट्टी की भांति न तो बजरीवाली मिट्टी है और न नदी की भुरभुरी बलुई मिट्टी। यहाँ बारीक कणों वाली चिकनी मिट्टी है। उसमें गेहूँ जैसी फसलें होती हैं जिनको उपजाऊ मिट्टी चाहिए। इसमें ह्यूमस की मात्रा भी अधिक है।

सभी मिट्टियाँ इन्हीं पदार्थों के मिश्रण से बनती हैं। किसी मिट्टी में एक चीज़ की मात्रा अधिक होती है तो किसी में दूसरी चीज की। इन पदार्थों की मात्रा के आधार पर मिट्टी का नामकरण किया जाता है जैसे बालू की अधिकता वाली बलुआ मिट्टी कहलाती है। अत्यन्त महीन कणों वाली चिकनी मिट्टी तथा मध्यम और महीन कणों वाली भुरभुरी गाद मिट्टी होती है। बालू, चिकनी और गाद की बराबर मात्रा होने पर दोमट मिट्टी होती है।

 

 

 

 

मिट्टी में पानी का सोखना


बलुई मिट्टी शीघ्र ही पानी सोख लेती है। दूसरी ओर चिकनी मिट्टी बहुत देर में पानी सोखती है। ऐसा क्यों? यह इसलिये कि बड़े कण होने के कारण रेतीली मिट्टी पोली सी होती है, जिससे पानी डालते ही नीचे चला जाता है। इसी कारण रेतीली मिट्टी में फसलों के लिये पानी की कमी रहती है। इस पर खेती वर्षाऋतु अथवा सिंचाई की मदद से होती है।

इसके विपरीत चिकनी मिट्टी के कण महीन होते हैं। उनके मिलने पर बहुत बारीक छिद्र बनते हैं और उनसे पानी की रिसन धीरे-धीरे होती है। अतः पानी धीरे-धीरे मिट्टी में रिसता है। परन्तु चिकनी मिट्टी एक बार गीली होने पर लम्बे समय तक गीली बनी रहती है। इसलिये यदि सिंचाई न भी हो तो फसल हो जाती है। यह मिट्टी गीली होने पर फैलती है और सूखने पर सिकुड़ने के कारण इसमें दरारें पड़ जाती हैं। यह मिट्टी सूखने पर बहुत कठोर भी हो जाती है। इस कारण जब तक बारिश का पानी चिकनी मिट्टी पर न गिर जाए, उस पर हल चलाना कठिन होता है लेकिन काली मिट्टी ज़्यादा गीली होने पर चिपकती भी है जिसके कारण इसमें वर्षाऋतु में खेती करना कठिन होता है। काली चिकनी मिट्टी में खेती वर्षाऋतु के बाद की जाती है।

भुरभुरी गाद मिट्टी पानी सोख कर फैलती नहीं है और न ही चिपकती है। यह पानी को देर तक रखती है। इस कारण यह खेती के लिये काफी अच्छी समझी जाती है और इस पर खरीफ और रबी दोनों ऋतुओं में खेती की जाती है। इसमें चावल, गेहूँ, गन्ना आदि सभी फसलें पैदा होती हैं।

 

 

 

 

मिट्टी का कटाव


वर्षा के बाद उन खेतों को ध्यान से देखो जिनमें फसल नहीं है। पानी के बहने से छोटी-छोटी नालियाँ बन गई हैं। बताओ ये क्यों बन गई? इनकी मिट्टी कहाँ गई? कभी नदियों के किनारों को भी देखो, वहाँ भी पानी के बहने से ऐसी नालियाँ बन गई हैं। मिट्टी का ऐसा कटाव खेतों को बहुत नुकसान पहुँचाता है।

 

 

 

 

मिट्टी के कटाव को रोकने के उपाय


कहीं मिट्टी कटी हो तो उसे ध्यान से देखो कैसे घास, पौधों, पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधे हुए हैं। यदि पेड़-पौधे नहीं हों तो मिट्टी कैसे बंधेगी? पानी आया और मिट्टी बह गई। इसीलिये जहाँ छोटी-छोटी नालियाँ बन गई हैं, वहाँ पेड़-पौधे लगाए जाते हैं।

तुमने इंडोनेशिया के बारे में पढ़ा था कि वहाँ सीढ़ीनुमा खेत बनाते हैं जिससे पानी के साथ मिट्टी बह न जाये। मिट्टी के कटाव को रोकने का यह अच्छा तरीका है। लेकिन यह तरीका तो खेतीहर भूमि में ही अपनाया जा सकता है जैसे बांध बनाकर पानी को इकट्ठा कर लिया जाता है वैसे ही यदि ढलवां खेतों में भी पानी को रोकने का उपाय कर लिया जाए तो ये नालियाँ भी नहीं बनेंगी, उनसे मिट्टी नहीं बहेगी और मिट्टी पानी भी सोख लेगी। कई बार खेतों की निचली ढलानों की मेढ़े ऊँची कर के लोग बांध जैसा बनाते हैं। पठार के गाँव बालमपुर में तुमने ऐसे बांध और छोटे तालाब देखे थे।

 

 

 

 

अभ्यास के प्रश्न


1. मिट्टी कैसे बनती है?
2. सीहोर जिले की मिट्टी काले रंग की और टीकमगढ़ जिले की लाल रंग की मिट्टी क्यों है?
3. मिट्टी की ऊपरी तह गहरे रंग की क्यों हो जाती है?
4. मिट्टी एक जगह से दूसरी जगह कैसे पहुँच जाती है?
5. पहाड़ी ढलान पर मिट्टी में कंकड़, पत्थर अधिक क्यों होते हैं?
6. नदी की घाटी में गहरी और उपजाऊ मिट्टी क्यों मिलती है?
7. सतह से गहराई में जाने पर मिट्टी में कौन सी तीन तहें मिलती हैं? चित्र बनाकर बताओ ।
8. बलुई मिट्टी में पानी शीघ्र रिस जाता है, चिकनी मिट्टी में ऐसा क्यों नहीं होता?
9. सतह पर जब वनस्पति अधिक होती है तो मिट्टी का कटाव कम होता है, ऐसा क्यों?
10. ह्यूमस तथा जनक चट्टान किसे कहते हैं, समझाओ।

 

 

 

 

 

 

 

एक छोटा-सा प्रयोग करके देखो। दो खोखों में मिट्टी भर दो। एक में ऊपर से घास-फूस ढक दो। खोखों को हल्की ढाल पर रखो या टेढ़ा करके रखो। पेड़ों में पानी देने वाले हजारे से कुछ ऊपर से दोनों खोखों पर पानी डालो। कौन से खोखे में मिट्टी का कटाव अधिक हुआ? इसका क्या कारण हो सकता है?

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading