जल संरक्षण से आई खुशहाली, आत्मनिर्भर बना गांव

8 Jul 2020
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जल संरक्षण से आई खुशहाली, आत्मनिर्भर बना गांव
जल संरक्षण से आई खुशहाली, आत्मनिर्भर बना गांव

देश-दुनिया में जिस तरह से जल संकट गहरा रहा है, ऐसे में जल संरक्षण और वर्षाजल संग्रहण वक्त की सबसे बड़ी जरूरत बन गया है। इस जरूरत को पूरा करना केवल किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि देश के हर नागरिक के लिए जरूरी है, लेकिन सिंचाई में उपयोग होने के कारण किसान को पानी की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है। भारत भूजल दोहन का लगभग 90 प्रतिशत सिंचाई के लिए ही उपयोग करता है, लेकिन जिस तरह जल संकट गहराता जा रहा है, इससे शहरों में लोगों को बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज होना पड़ता है, तो वहीं ग्रामीण इलाकों में जल संकट के कारण किसानों के सामने समस्या खड़ी हो जाती है। देश के कई इलाकों के किसान सिंचाई के लिए बारिश पर ही निर्भर हैं, लेकिन अच्छी बारिश न होने पर उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में कई किसान खेती ही छोड़ते जा रहे हैं। कई जगह जमीन ही बंजर हो रही है, लेकिन छत्तीसगढ़ के छिंदभर्री के किसानों ने हालातों से हार नहीं मानी और जल संरक्षण की मिसाल पेश की है। जिससे न केवल फसल का उत्पादन अधिक हुआ, बल्कि पलायन को रोकने में भी मदद मिली हे। 

जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर नगरी ब्लॉक के सुदूर वनांचल में ग्राम छिंदभर्री है। यहां विभिन्न जाति के 85 परिवार बसे हुए हैं, जो दस साल पहले सूखे से जूझ रहे थे। रोजगार के लिए दूसरे प्रदेश पलायन कर रहे थे, लेकिन मनरेगा योजना की मदद से ग्रामीण मजदूर व किसानों ने मिलकर जल संरक्षण के लिए गांव में अपने खेतों व बाड़ियों में जगह-जगह डबरी का निर्माण किया। बारिश का पानी यहां रुका, जिससे गांव के भूजल स्तर में सुधार आया और आज पूरा गांव आत्मनिर्भर हो गया है। प्रत्येक मनरेगा मजदूर व किसानों के पास डबरी है, जिस पर खेती-किसानी, फलदार पौधे लगाकर रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। नई दुनिया में प्रकाशित खबर के मुताबिक गांव के किसान पहार सिंह, बिशेश्वर नागवंशी, विनोद कुमार और सोहन मंडावी को बताया कि यहां जल, जंगल और जमीन पर मनरेगा योजना से काम किया गया। गांव में 280 डबरी तैयार है। यह डबरी खेतों और बंजर जमीन के पास बनाई गई है, जिसमें बारिश होते पानी रुक जाता है और डबरियां लबालब भर जाती हैं। अधिकांश डबरी में पानी भरने से गांव के भूजल स्तर में सुधार हुआ है। गांव में बोर खनन करने पर पानी भी निकलने लगा। अब तक 17 से 18 बोर चलते हैं। गांव में पहले 200 एकड़ पर किसान व मजदूर खेती करते थे, लेकिन आज डबरी बनने से 600 एकड़ पर खेती हो रही है। 400 एकड़ बंजर जमीन पर भी फल, मक्का व सब्जी की खेती करते हैं। यहां आम की फसल पूरी तरह सफल है। गांव में 1500 आम के पेड़ हैं। प्रत्येक किसानों के पास औसत 40 से 50 पेड़ हैं, जिससे अच्छी आमदनी होती है। पहले वे धान कटाई व अन्य कार्यों के लिए दूसरे जिले व प्रदेश पलायन करते थे, लेकिन आज डबरी ने ग्रामीणों को आत्म निर्भर बना दिया है।

देश-प्रदेश के लिए बना मॉडल

जिला मनरेगा शाखा के एपीओ धरम सिंह ने बताया कि एक गांव में अब तक मनरेगा योजना से 10 करोड़ खर्च किया जा चुका है। यहां 70 से 80 हजार रुपये की लागत से 280 डबरी मनरेगा योजना के लिए स्वीकृत किया गया। ग्रामीणों की मदद से आज यह गांव मॉडल बन गया है। यहां पशुपालन, सब्जी खेती, आम फल, मक्का की खेती होती है। यहां का आम धमतरी व रूद्री में बिकने के लिए आता है। सीजन में हजारों रुपये की कमाई होती है। यह गांव पहाड़ के ऊपर बसा हुआ है। बारिश होने पर पहले पानी पूरा माड़मसिल्ली बांध में नीचे आ जाता था, लेकिन डबरी बनने के बाद पानी रुकने से यहां के ग्रामीणों ने जल संरक्षण कर गांव के बंजर जमीन को उपजाऊ बना दिया। आज पूरा गांव खेती-किसानी व कई धंधों/कार्यों के माध्यम से आत्मनिर्भर हो गया है। इस गांव में हुए विकास को देखने के लिए देश की टीम व कई प्रदेशों समेत छत्तीसगढ़ के कई जिलों की टीम देखने पहुंच गए हैं। यहां का अनुसरण अधिकारी अपने क्षेत्र के गांवों में कर रहे हैं, ताकि वहां के ग्रामीण भी आत्मनिर्भर बन सके।


 

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