जल और सफाई बुनियादी जरूरतें - सुबिजॉय दत्ता

13 Feb 2009
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“जल और सफाई आदमी की बुनियादी जरूरतें हैं। विकास के इस दौर में, बढ़ती जनसंख्या के लिए भारत के सभी गावों, शहरों में सेहत पर बुरा असर डालने वाले सभी कारणों से बचने के लिए टिकाऊ पानी और सफाई व्यवस्था होनी जरूरी है।“

 

-सुबिजॉय दत्ता


सुबिजॉय इन्वायरमेंट इंजीनियर हैं जो 1980 से ही भारत और अमेरिका में ‘सोलिड वेस्ट और पानी’ के मुद्दे पर काम कर रहें हैं। एक साफ-सुथरी यमुना के लक्ष्य को पाने के लिए उन्होंने सन् 2000 में मेरीलैंड में “यमुना फाउण्डेशन फॉर ब्लू वॉटर” की शुरुआत की। सुबिजॉय भारत में सिलचर के अलावा अमेरिकी के क्रॉफ्टन, मेरीलैंड में भी काफी सक्रिय हैं। सिलचर (असम) में उन्होंने रामाकृष्णा डिस्पेंसरी को खड़ा करने में काफी मदद की, यह डिस्पेंसरी असम में गरीबों की सेवा कर रही है। यमुना की सफाई के स्वैच्छिक काम के लिए उन्हें अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पदक देकर सम्मानित भी किया गया। इंडिया वाटर पोर्टल के लिए सुबिजॉय ने बतायाः

यमुना की सफाई का अभियान क्यों?

उत्तर-नई दिल्ली से होकर बहने वाली यमुना नदी के 48 किमी. के दायरे में राजधानी में प्रवेश करने से पहले प्रति 100 cc पानी में 7500 कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया होते हैं। प्रतिदिन लगभग 225 मिलियन गैलन अपरिष्कृत सीवेज ग्रेटर दिल्ली से यमुना में डाला जाता है परिणामत: जब दिल्ली से बाहर पानी जाता है तब इस पानी में प्रति 100 cc में 24 मिलियन कॉलिफॉर्म जीवाणु होते हैं।
यमुना के इसी दायरे में रोजाना 1,25,000 गैलन डीडीटी अपशिष्ट मिश्रित 5 मिलियन गैलन औद्योगिक कचरा डाला जाता है।

यमुना फाउण्डेशन फॉर ब्लू वॉटर का उद्देश्य

दिल्ली में सीवेज को परिशोधित करने के लिए बहुत से महँगे-महँगे ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए लेकिन उनमें से कोई भी सीवेज को यमुना में जाने से नहीं रोक पाया। इसलिए हम यमुना के जलागम क्षेत्र में ऐसी सस्ती और विकेन्द्रीकृत ट्रीटमेंट व्यवस्था कायम करना चाहते हैं जिससे बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) की समस्या और कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया को खत्म किया जा सके। उम्मीद है कि प्रस्तावित सिस्टम से बीओडी के वर्तमान लेवल को 5-10% तक लाया जा सकता है।

सफाई अभियान का इतिहासः

1992 से ही यमुना फाउण्डेशन ऐसे सस्ते और विकेन्द्रीकृत सिस्टम के लिए प्रयास कर रही है जिससे यमुना में गंदा पानी लाने वाले नालों को साफ करने के लिए प्राकृतिक सिस्टम का इस्तेमाल किया जा सके। ऐसे सिस्टम के इस्तेमाल के लिए सबसे पहले 2004 में हैदराबाद के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ने अपने कैम्पस में इसकी शुरुआत की।

 

डीपपोंड ट्रीटमेंट


इस प्रोजेक्ट में एक एनारॉबिक और गहरा गड्ढा बनाया गया है यह गंदे नाले में बहने बाली ठोस अपशिष्ट और सीवेज को खा जाता है। अगर मल की मात्रा ज्यादा हो तो इस सिस्टम में बहुत ज्यादा मीथेन गैस बनती है जिसका इस्तेमाल कईं उपयोगी कामों में किया जा सकता है।

फिलहाल तो मल का वोल्यूम काफी कम है जिसकी वजह से मीथेन का उत्पादन भी कम ही हो रहा है। एनारॉबिक अपशिष्ट को खत्म करके गड्ढे से 3 फुट या उससे नीचे ही रखता है। पिछले 25 सालों में अमेरिका में इसी तरह के सिस्टम में किसी भी तरह के ठोस कचरे को खत्म करना जरूरी नहीं था। अपशिष्ट को प्लांट के समीप के बागीचों में इस्तेमाल किया गया था। छात्रों की डॉरमिट्री, कैफेटेरिया और प्रशासनिक भवनों से निकलने वाला गंदा पानी गुरुत्व के माध्यम से स्वतः बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट सिस्टम पोंड में आता है। दक्षिण के आवासीय क्षेत्रों के गंदे पानी को पोंड के दक्षिणी छोर पर ग्राइंडर पम्प द्वारा निकाला जाता है।

लाभ

इस पूरी प्रक्रिया पर $ 82,000 का खर्च आया इस तरह इसने गंदे पानी को परिष्कृत करने की एक कम खर्चीली वैकल्पिक व्यवस्था की नींव रखी।
ठीक ऐसा ही, वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट सिस्टम की आंध्रप्रदेश में लगाया जाएगा। इस प्रोजेक्ट में करीब 80% की बचत होगी।
इसमें पोलिशिंग पोंड से निकले गंदे पानी को ट्रीटमेंट सिस्टम से आगे बनाए गए बागीचों की सिंचाई में इस्तेमाल किया जा रहा है। ठोस का वोल्यूम कम होने की वजह से पोंड की तली में बहुत कम मल ही खत्म हो पा रहा है। नए डिजाईन में एरेशन पोंड से पानी रीसर्कुलेट होता है जिससे पहले पोंड के ऊपरी हिस्से में ऑक्सीजन का स्तर काफी ऊंचा रहता है।
इस सिस्टम की खास बात यह है कि इसमें ग्रीनहाउस(मीथेन) गैस के उत्सर्जन में भी कमीं आई है जो कि परम्परागत सिस्टम में बहुत ज्यादा मात्रा में था। इस सिस्टम से 1128 फीट या 8,437 गैलन मीथेन गैस उत्सर्जन में कमीं आई है।

डीपपोंड सिस्टम का काम

इस सिस्टम को इंस्टाल करना और चलाना बहुत आसान है। इसमें केवल तीन हिस्से हैं जिससे इसकी मेंटेनेंस का खर्च भी बहुत कम आता है।
सीपीसीबी के मुताबिक दिल्ली की यमुना में बड़े नालों से डालने वाला गंदा पानी 2,723 मिलियन लीटर या 720 मिलियन गैलन प्रतिदिन है।
जब यमुना दक्षिण में वजीराबाद बैराज से ओखला डैम तक बहती है वहां इसमें 17 गंदे नाले गिरते है। इन नालों से निकलने वाले मल को परिशोधित करने के लिए डीपपोंड ट्रीटमेंट सिस्टम प्रदूषकों को साफ करने में काफी कारगर साबित होगा।
नई दिल्ली के कोटला नाले पर वेस्टवाटर ट्रीटमेंट सिस्टम लगाने के लिए यमुना फाउंडेशन ने दिल्ली जल बोर्ड को एक प्रस्ताव दिया है, इसमें सिस्टम का डिजाईन, इंस्टालेशन, शुरुआती कार्रवाई और रखरखाव शामिल है। इसकी लागत भी दिल्ली जल बोर्ड द्वारा लगाए गए वर्तमान ट्रीटमेंट प्लांट से 10% कम है।
हैदराबाद में लगे प्लांट के काम को और उपयुक्त जलापूर्ति और सेनिटेशन की जरूरतों के मद्देनजर दूसरे शहरों को भी अपशिष्ट जल के ट्रीटमेंट और पुनः प्रयोग के बारे में सोचने की जरूरत है। इन प्रयासों से स्वास्थ्य संबंधी कईं समस्याओं को रोका जा सकता है।

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