जल के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों का प्रयोग

28 Dec 2011
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पृथ्वी पर जीवन की मुख्य आवश्यकताओं में जल का स्थान प्रमुख है। विभिन्न प्रतिस्पर्धात्मक क्षेत्रों जैसे-शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, जनसंख्या वृद्धि, एवं मानव के रहन-सहन स्तर में परिवर्तन के कारण जल की मांग में निरंतर होने वाली वृद्धि से स्वच्छ जल स्रोतों की गुणवत्ता एवं जल उपलब्धता में निरंतर कमी हो रही है। इसके अतिरिक्त सामयिक एवं कालिक आधार पर देश में वर्षा की अत्यधिक परिवर्तनीयता के कारण विभिन्न उद्देश्यों हेतु उपलब्ध जल के इष्टतम संरक्षण एवं प्रबंधन की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है।

विगत कुछ दशकों में जलविज्ञान ने विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय प्रगति की है। जलविज्ञानीय मापयंत्रण, आंकड़ा एकत्रीकरण, आँकड़ा प्रक्रमण एवं संचयन आदि का संगणकीकरण किया जा चुका है। सुदूर संवेदी उपग्रह से प्राप्त स्थानीय आँकड़ा बेस एवं भौगोलिक सूचना तंत्र के द्वारा प्राप्त स्थानिक विश्लेषण के अनुप्रयोग, अनेकों निदर्शन अध्ययनों में किए जा रहे हैं।

किसी सरिता में विभिन्न स्रोतों से पुनःपूरण क्षेत्रों के चयनीकरण, भूजल निस्सरण एवं इसकी गति तथा प्रवाह घटकों के चयनीकरण से संबंध अनेकों जलविज्ञानीय अनुप्रयोगों में नाभिकीय तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त नदी बेसिन के पैमाने पर निर्णय सहायक तंत्र को विकसित किया जा रहा है, जो निदर्शन जटिलताओं की गहराई हेतु नीति निर्धारकों को सहायता प्रदान कर सकता है। प्रस्तुत प्रपत्र में जलविज्ञान एवं जल संसाधनों के विभिन्न पहलुओं में कुछ नवीनतम विकास से संबंध विषयों का वर्णन किया गया है।


जल के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों का प्रयोग (Recent advances in water sector)


राजदेव सिंह

सारांश


पृथ्वी पर जीवन की मुख्य आवश्यकताओं में जल का स्थान प्रमुख है। विभिन्न प्रतिस्पर्धात्मक क्षेत्रों जैसे शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, जनसंख्या वृद्धि एवं मानव के रहन-सहन के स्तर में परिवर्तन के कारण जल की मांग में निरन्तर होने वाली वृद्धि से स्वच्छ जलस्रोतों की गुणवत्ता एवं जल उपलब्धता में निरन्तर कमी हो रही है। इसके अतिरिक्त सामयिक एवं कालिक आधार पर देश में वर्षा की अत्यधिक परिवर्तनीयता के कारण विभिन्न उदेश्यों हेतु उपलब्ध जल के इष्टतम संरक्षण एवं प्रबन्धन की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है। विगत कुछ दशकों में जलविज्ञान ने विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय प्रगति की है। जलविज्ञानीय मापयंत्रण आँकड़ा एकत्रीकरण, आँकड़ा प्रक्रमण एवं संचयन आदि का संगणकीकरण किया जा चुका है। सुदूर संवेदी उपग्रह से प्राप्त स्थानीय आँकड़ा बेस एवं भौगोलिक सूचना तंत्र द्वारा प्राप्त स्थानिक विश्लेषण के अनुप्रयोग अनेक निदर्शन अध्ययनों में किये जा रहे हैं। किसी सरिता में विभिन्न स्रोतों से पुनः पूरण क्षेत्रों के चयनीकरण, भूजल निस्सरण एवं इसकी गति तथा प्रवाह घटकों के चयनीकरण से सम्बद्ध अनेकों जलविज्ञानीय अनुप्रयोगों में नाभिकीय तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त नदी बेसिन के पैमाने पर निर्णय सहायक तंत्र को विकसित किया जा रहा है जो निदर्शन जटिलताओं की गहराई में प्रवेश किये बिना विवेकपूर्ण सतही एवं भूजल विकास एवं प्रबन्धन के लिये विभिन्न स्थितियों के विश्लेषण हेतु नीति निर्धारकों को सहायता प्रदान कर सकता है। प्रस्तुत प्रपत्र में जलविज्ञान एवं जल संसाधनों के विभिन्न पहलुओं में कुछ नवीनतम विकास से सम्बद्ध विषयों का वर्णन किया गया है।

Abstract


Water is essential for sustaining life on Earth. However in view of the increasing demands for various competing sectors such as urbanization, industrialization growing population, and increasing living standars the finite freshwater resources are getting vulnerable to deficiet in terms of quantity and quality. Further, because of the high time and space variability in rainfall in this country, optimum conservation and management of the available water resource for different purposes is the need of the hour. In the past few decades, the science of hydrology has made significant progress in various dimensions. Hydrological instrumentation data collection processing storage and retrieval have been computerized to a considerable extent. Spatial database provided through remote sensing satellites and spatial analyses through Geographic Information System (GIS) are finding applications in a number of modeling studies. Nuclear techniques are finding applications in a number of hydrological applications related to identification of recharge areas, groundwater seepage and its movement and identification of flow components from different source in a stream. Further, Decision Support Systems (DSS) are being developed at the scale of river basins which can help the decision make in analyzing various scenarios for rational surface and groundwater development and management without going deep into the modeling intricacies. This paper discusses some of these recent development in various facets of hydrology and water resources.

प्रस्तावना


पृथ्वी पर उपलब्ध पुनः प्राप्त किये जाने योग्य संसाधनों में जल का प्रमुख स्थान है। जल जीवन की समस्त अवस्थाओं के संयोजन, खाद्यान्न उत्पादन, आर्थिक विकास एवं समाज के कल्याण के लिये अत्यन्त आवश्यक है। यह प्रकृति द्वारा मानव को प्रदत्त एक विशिष्ट उपहार है। जल एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है, जिसमें मार्ग परिवर्तन, परिवहन, संचयन एवं पुनः चक्रण की क्षमता उपलब्ध है। जल की उपरोक्त समस्त विशिष्टतायें मानव जीवन के उपयोग के लिये जल की महान उपयोगिताओं को प्रदान करती हैं।

हमारे देश के सतही एवं भूजल संसाधन, जल शक्ति उत्पादन, पशुधन उत्पादन, औद्योगिक गतिविधियों, वनविज्ञान, मत्स्य जीवन, नौकायन एवं मनोरंजन से सम्बद्ध गतिविधियों इत्यादि उपयोगों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान करते हैं। जल संसाधनों के योजनीकरण एवं प्रचालन के सम्बन्ध में हमारी राष्ट्रीय जल नीति के अंतर्गत मुख्य रूप से निर्धारित की गई प्राथमिकताएं: (1) पेयजल (2) सिंचाई (3) जल शक्ति (4) परिस्थितिकी (5) कृषि उद्योग, कृषि रहित उद्योग एवं (6) नौकायन हैं। भारत में हिमपात सहित लगभग 4000 घन किमी. वार्षिक अवक्षेपण प्राप्त होता है। जिसमें से 3000 घन किमी. वर्षा ऋतु के दौरान प्राप्त होता है। भारत को प्रकृति की अनमोल देन नदी तंत्र है, जिसमें अनेकों सहायक नदियों सहित 20 से अधिक प्रमुख नदियाँ सम्मिलित है। इन नदियों में से अधिकांश नदियाँ बारहमासी हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र एवं सिन्धु जैसी प्रमुख नदियाँ हिमालय से उद्गमित होती हैं तथा इन नदियों में जल प्रवाह पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है। भारत के जल संसाधनों का 50 प्रतिशत से अधिक भाग इन नदी तंत्रों की विभिन्न सहायक नदियों में उपलब्ध रहता है। देश की विभिन्न नदियों में उपलब्ध जल के अतिरिक्त, भूजल भी पेयजल, सिंचाई, औद्योगिक क्षेत्रों, इत्यादि के लिये जल मांगों का पूर्ण करने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। भूजल देश में लगभग 80 प्रतिशत घरेलू जल आवश्यकताओं को तथा 45 प्रतिशत से अधिक सिंचाई आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

जलविज्ञान, वायुमण्डल, पृथ्वी की सतह एवं पृथ्वी की सतह के नीचे जल की उपलब्धता, वितरण एवं गति का विज्ञान है। समय के साथ जलविज्ञान के क्षेत्र में अनेक नवीनतम तकनीकों का अन्वेषण हुआ है। जलविज्ञानीय एवं जल मौसमविज्ञानीय क्षेत्रों में स्वचालित मापयंत्र, जल संसाधन के क्षेत्र में विविध समस्याओं के समाधान हेतु उपलब्ध आधुनिक निदर्शन तकनीकों में अनुप्रयोग के लिये आवश्यक समय अन्तराल पर उपयुक्त एवं शुद्ध आँकड़े प्रदान करते हैं। अंकीय जलविज्ञानीय आँकड़ा संचयन एवं प्रक्रमण के लिये उपयोगकर्ता प्रभावी सॉफ्टवेयर विकसित किये जा रहे हैं तथा उनका उपयोग प्रभावी आँकड़ा बेस प्रबन्धन के लिये किया जा रहा है। स्थानिक आँकड़ा बेस प्रबन्धन एवं विश्लेषण के लिये सुदूर संवेदी उपग्रह एवं स्थानिक विश्लेषण द्वारा स्थानिक निर्णय सहायक तंत्र. के विकास के लिये सुदूर संवेदी एवं भौगोलिक सूचना तंत्र द्वारा प्रदत्त स्थानिक आँकड़ा बेस महत्त्वपूर्ण यंत्र हैं। ये यंत्र निदर्शन अध्ययनों के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश प्रदान करते हैं। इन अध्ययनों से प्राप्त परिणामों का प्रयोग अनेक जल संसाधन प्रबन्धन विषयों में किया जा रहा है। जलविज्ञान एवं जल संसाधनों के क्षेत्र में साट गणक तकनीकों जैसे कृत्रिम न्यूरल नेटवर्क एवं फज्जी लॉजिक का विशिष्ट विकास एवं अनुप्रयोग हुआ है। नाभिकीय तकनीकों का अनुप्रयोग अनेक जल विज्ञानीय क्षेत्रों में किया गया है जिनमें एक नदी के विभिन्न स्रोतों से पुनःपूरण का चयनीकरण, भूजल निःस्यंदन एवं इसकी गति तथा प्रवाह घटकों का चयनीकरण सम्मिलित है।

इसके अतिरिक्त नदी बेसिन पैमानों पर निर्णय सहायक तंत्र को विकसित किया जा रहा है, जो निदर्शन जटिलताओं की गहराई में प्रवेश किये बिना विवेकपूर्ण सतही, भूजल विकास एवं प्रबन्धन के लिये विभिन्न स्थितियों के विश्लेषण में नीति निर्धारकों को सहायता प्रदान कर सकता है। प्रस्तुत प्रपत्र में जल विज्ञानीय निदर्शन एवं विश्लेषण में नवीनतम विकास की संक्षिप्त जानकारी प्रदान की गई है।

जल विज्ञानीय मापयंत्रण में नवीनतम तकनीकों का प्रयोग


जल संसाधन परियोजनाओं का योजनीकरण, विकास एवं प्रचालन जल विज्ञानीय आँकड़ों पर पूर्णतः आश्रित है। जल संसाधनों के आर्थिक एवं इष्टतम उपयोग, योजनीकरण, अभिकल्पन एवं विकास के लिये सतही एवं भूजल की आवश्यकता होती है। जलविज्ञानीय मापयंत्रण का विकास इस क्षेत्र की एक प्राथमिक आवश्यकता है, जिसके लिये जलविज्ञानीय चक्र एवं उससे सम्बन्धित घटकों के विश्वसनीय एवं पर्याप्त प्रेक्षण आँकड़ों की आवश्यकता होती है। जल घनत्वमापी, जलीय चक्र के तत्वों के मापन एवं प्रेक्षण से सम्बद्ध है। सामान्यतः अध्ययन के लिये उपयोग किये जाने वाले मुख्य मौसमविज्ञानीय अवयवों में अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान, वायु वेग एवं दिशा, सूर्य का चमकना, वाष्पन, मृदा आर्द्रता इत्यादि सम्मिलित हैं। अध्ययन के लिये आवश्यक मुख्य जलविज्ञानीय अवयवों में नदी जल स्तर एवं उसके सापेक्ष निस्सरण सम्मिलित हैं। इन अवयवों का मापन सामान्यतः रुढ़िवादी मापयंत्रों जैसे थर्मामीटर, वर्षामापी, वायुवेगमापी, सनशाइनमापी, पाइरेनोमापी एवं पैन वाष्पनमापी इत्यादि द्वारा किया जाता है। WMO (1998) ने विभिन्न मात्रयन्त्रों एवं उनकी सहायता से की जाने वाली प्रेक्षण पद्धतियों को सूचीबद्ध किया है।

.निकट पूर्वकाल में जल मौसमविज्ञानीय अवयवों की आवश्यक अवधि पर निरन्तर प्रेक्षण एवं प्रेक्षित मानों का उपयोग किये जाने हेतु एक डाटा लागर में संचयन के लिये स्वचालित मौसम स्टेशन का अन्वेषण किया गया। ये माप यंत्र (चित्र 1) विभिन्न जलविज्ञानीय एवं जल मौसमविज्ञानीय प्राचलों जैसे वायु वेग, वायु दिशा, आर्द्रता, तापमान, सूर्य के चमकने की अवधि, वायुदाब सौर विकिरण, वर्षामापी, मृदा आर्द्रता एवं मृदा तापमान इत्यादि को रिकॉर्ड करते हैं। ये स्वचालित मौसम स्टेशन, सुदूर एवं अगम्य एवं वीरान क्षेत्रों में मौसम एवं चक्रवात के पूर्वानुमान से सम्बद्ध आँकड़ों के लिये सर्वोच्च महत्वत्ता प्रदान करते हैं स्वचालित मौसम स्टेशन बेस स्थलों तक मौसमविज्ञानीय आँकड़ों एवं क्षेत्रीय स्थलों के लिये आवश्यक प्रकाशित आँकड़ों तथा पूर्व चेतावनी स्थलों को उपग्रह की सहायता से संप्रेषित करते हैं। ये मापयंत्र सौर ऊर्जा पर आधारित होते हैं तथा इनका प्रचालन एक बैटरी की सहायता से किया जाता है जिसे लघु सौर पैनल से सौर ऊर्जा के द्वारा आवेशित किया जाता है। भारत में, भारत मौसमविज्ञान संस्थान ने वृहत्त संख्या में नवीनतम स्वचालित मौसम स्टेशनों को सम्पूर्ण देश में स्थापित किया है तथा इस संबंध में अधिक स्टेशनों की स्थापना हेतु निरन्तर प्रयत्न किया है तथा इस संबंध में अधिक स्टेशनों की स्थापना हेतु निरन्तर प्रयत्न किये जा रहे हैं। मौसम विज्ञानीय सेवाओं में सुधार हेतु भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरों) हिम एवं हिमस्खलन अध्ययन संस्थान (सासे) द्वारा विस्तार कार्यक्रम के अंतर्गत लगभग 1000 स्वचालित मौसमविज्ञानीय स्टेशन स्थापित किये जाने की भी योजना है।

.किसी अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल से प्रति सेकेंड गुजरने वाले जल के आयतन को सरिता निस्सरण के रूप में जाना जाता है तथा इसे सामान्यतः घन मी/सेकेंड (क्यूसेक) के रूप में व्यक्त करते हैं। किसी अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल से समय के सापेक्ष गुजरने वाले जल के वेग को निस्सरण के रूप में जाना जाता है। अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल का निर्धारण करने के लिये अनुप्रस्थ काट स्थिति पर नदी की चौड़ाई को मापा जाता है, तथा नदी की गहराई को अंशांकित छड़ से मापा जाता है। विशाल नदियों में अनुप्रस्थ काट को गतिशील नाव की सहायता से ज्ञात करते हैं तथा जल की गहराई को ईको-गहराई मापी द्वारा मापा जाता है। नदी की गहराई (स्टेज) के मापन के लिये स्वचालित एवं अंकीय जलस्तर रिकॉर्डर को विशिष्ट महत्व दिया जा रहा है। जल के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आये बिना राडार पल्स के प्रयोग द्वारा राडार जलस्तर मापक मापयंत्र, जलस्तर का मापन करता है (चित्र 2)। इस उपकरण को पुल, पियर या जल सतह के उपर किसी संरचना पर स्थापित किया जा सकता है। यह उपकरण लॉगिंग संवेदक से सम्बद्ध किये जाने पर उपयोगकर्ता की आवश्यकतानुसार विशिष्ट समयान्तराल पर आँकड़ों को रिकार्ड कर सकता है। जलप्रवाह के वेग को सामान्यतः किसी लोट या धारामापी की सहायता से मापा जाता है। अन्वेषण हेतु विविध प्रकार के लोट या धारामापी उपलब्ध है। नदियों एवं सरिताओं में औसत प्रवाह वेग मापन के लिये अंकीय वेगमापी भी विकसित किये गये हैं।

जलविज्ञानीय आँकड़ा प्रविष्टि एवं प्रक्रमण


जलविज्ञान में नवीनतम अन्वेषण जलविज्ञानीय अवयवों, के श्रेष्ठ विश्वसनीय एवं निरन्तर मापन पर आधारित है। विभिन्न स्रोतों/मापयंत्रों से एकत्र किये गये जल मौसमविज्ञानीय आँकड़े सामान्यतः अपरिष्कृत होते हैं, तथा उन्हें अधिकांश जलविज्ञानीय विश्लेषणों हेतु यथा स्थिति में प्रयोग नहीं किया जा सकता। इन आँकड़ों का सर्वप्रथम संगणकीकरण किया जाता है। उसके पश्चात आँकड़ों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु उन्हें अनेक प्रकार के परीक्षणों से गुजारा जाता है। आँकड़ा प्रक्रमण में प्रेक्षित अपरिष्कृत आँकड़ों को प्राप्त करने एवं उन्हें अध्ययन योग्य बनाने की समस्त गतिविधियाँ सम्मिलित हैं। अपरिष्कृत आँकड़े विविध स्वरूपों जैसे हस्तलिखित रिकॉर्ड, चार्ट एवं अंकीय रिकॉर्ड के रूप में उपलब्ध होते हैं। प्रेक्षण के पश्चात प्राप्त अपरिष्कृत आँकड़ों में अनेक रिक्त स्थान एवं असंगतियाँ पाई जाती है। इन परिष्कृत आँकड़ों को उपयोगी बनाने के लिये अनेक विशिष्ट प्रक्रियाओं जैसे आँकड़ा प्रविष्टि, आवश्यक मान्यकरण परीक्षण, आँकड़ा श्रेणियों में रिक्त स्थानों को पूर्ण करना, आवश्यक अवयवों के आकलन के लिये अपरिष्कृत आँकड़ों का प्रक्रमण, विभिन्न अवस्थाओं में आँकड़ों का संकलन एवं सामान्यतः आवश्यक सांख्यिकीय के लिये आँकड़ों का विश्लेषण इत्यादि से गुजारा जाता है। संगणक प्रौद्योगिकी हार्डवेयर स्पीड के प्रचालन एवं आँकड़ों की संचयन क्षमता के साथ-साथ जलविज्ञानीय सॉफ्टवेयर की क्षमताओं ने जलविज्ञानीय आँकड़ों की विशाल मात्राओं के प्रबन्धन को अत्यधिक सरलीकृत किया है। संगणक आधारित जलविज्ञानीय सूचना तंत्र के अनेक लाभ हैं, जैसे प्रक्रमण, मान्यकरण एवं प्रतिवेदन पद्धतियों के मानकीकरण को प्रोन्नत करने की अनुमति प्रदान करना आँकड़ों की विशाल मात्रा का प्रबन्धन करना एवं उपयोगकर्ता द्वारा आवश्यक सारणी या ग्राफीय प्रारूप में आँकड़ों को प्रदान करना। सतही जल आँकड़ा प्रविष्टि तंत्र (SWDES) का विकास जलविज्ञानीय परियोजना के प्रथम चरण में 1999 में हुआ। इस आँकड़ा प्रविष्टि सॉफ्टवेयर का प्राथमिक उद्देश्य समस्त प्रकार के मौसमविज्ञानीय एवं जलविज्ञानीय आँकड़ों की प्रविष्टि के लिये पर्याप्त सुविधा प्रदान करना है। सॉफ्टवेयर सतही जल एजेन्सियों द्वारा प्रेक्षित वर्षा, जल स्तर, स्टेज-निस्सरण, जल गुणवत्ता, अवसाद एवं जलवायु आँकड़ों की प्रविष्टि के लिये उपयुक्त सुविधाएं प्रदान करता है। इस सॉफ्टवेयर के प्रयोग द्वारा एकत्र आँकड़ों को आवश्यक आँकड़ा प्रविष्टि परीक्षण से गुजारा जाता है, जिससे अशुद्धियों की सम्भावनाओं को न्यूनतम किया जा सके। आँकड़ों का ग्राफीय प्रस्तुतीकरण प्रविष्ट आँकड़ों के मान्यकरण के लिये अतिरिक्त लाभ प्रदान करता है। सॉफ्टवेयर का प्रयोग विभिन्न एजेन्सियों के पास विशाल मात्रा में उपलब्ध ऐतिहासिक एवं वर्तमान आँकड़ों को प्रविष्ट करने में किया जाता है। यह सॉफ्टवेयर सभी प्रकार के मौसमविज्ञानीय एवं सतही जल गुणवत्ता आँकड़ो की प्रविष्टि एवं प्राथमिक मान्यकरण के लिये आँकड़ा प्रविष्ट करने वाले व्यक्ति के लिये फ्रन्ट -एण्ड प्रदान करता है। सतही जल आँकड़ा प्रविष्टि तंत्र सॉफ्टवेयर के मुख्य स्क्रीन को चित्र 3 में प्रस्तुत किया गया है।

.हाईमौस जलविज्ञानीय एवं पर्यावरणीय आँकड़ो के संचयन, प्रक्रमण एवं विश्लेषण के लिये एक उपयोगी सूचना तंत्र है। यह तंत्र आँकड़ा प्रविष्टि, मान्यकरण, सुधार, विश्लेषण एवं प्रस्तुतीकरण के लिये शक्तिशाली यंत्रों सहित प्रभावी आँकड़ा बेस संरचना प्रदान करता है।

.आँकड़ा प्रक्रमण एवं विश्लेषण गुणों की वृहत्त विविधता जल सम्बन्धी अध्ययनों में जटिल परियोजना अनुप्रयोगों को हाईमौस अत्यधिक उपयुक्त बनाता है। हाईमौस को नम्य एवं बहु कार्यकारी जलविज्ञानीय सूचना तंत्र के रूप में विकसित किया गया है। हाईमौस सॉफ्टवेयर का जटिल चित्रण चित्र 4 में प्रदर्शित किया गया है।

हाईमौस, अन्य उपलब्ध आँकड़ा बेसों जैसे सतही जल आँकड़ा प्रविष्टि तंत्र (SWDES) एवं निदर्शन तंत्रों सहित आँकड़ा स्थानांतरण को सुनिश्चित करने के लिये आँकड़ा संरचना का उपयोग करता है DELFT TOOLS का एक भाग होने के कारण हाईमौस WL/DELFT हाइड्रोलिक्स के अन्य सॉफ्टवेयर पैकेजों जैसे SOBEK, DEWAQ एवं RIBASIM के साथ पूर्णतः समाकलित है हाईमौस आँकड़ा बेस स्थानिक विश्लेषण के लिये सामान्य सुविधाओं सहित समय श्रेणी के अनुकूल है। विस्तृत भौगोलिक आँकड़ा विश्लेषण के लिये भौगोलिक सूचना तंत्र सहित हाईमौस जल प्रबन्धन तंत्र के योजनीकरण, अभिकल्पन एवं प्रचालन के लिये समस्त आँकड़ा संचयन एवं प्रक्रमण आवश्यकताओं को पूर्ण करता है। हाईमौस एवं अत्यधिक सामान्य जी.आई.एस. तंत्र के मध्य आँकड़ों का पारस्परिक हस्तातंरण सरल एवं उपयोगकर्ताओं के लिये मित्रवत है।

जल विज्ञानीय निदर्शन : सॉफ्ट गणक तकनीकें


जीवविज्ञानीय तंत्र में सॉफ्ट गणक तकनीकें सूचना प्रक्रमण पर आधारित हैं। मानस सूचना प्रक्रमण के अंतर्गत तर्कसंगत एवं अन्तर्देशी दोनों प्रकार का सूचना प्रक्रमण सम्मिलित है। रुढ़िवादी संगणक तंत्र, तर्क संगत सूचना प्रक्रमण के लिये उपयुक्त है, परन्तु अन्तर्देशी सूचना प्रक्रमण के लिये क्षमताओं के विकास में यह अभी काफी अविकसित है। मानव हेतु गणक तंत्र के लिये सूचना प्रक्रमण सुविधाओं के समान यह तीन विशिष्टताओं उदारता, कड़ापन एवं वास्तविक समय प्रक्रमण को सहायता प्रदान करने हेतु पर्याप्त रूप में तन्य होना चाहिए। इन तीनों विश्ष्टिताओं के साथ सूचना प्रक्रमण तंत्रों के रूप में जाना जाता है। अतः सॉफ्ट गणक तकनीकों को वास्तविक तंत्र के प्रमुख संघटक के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है। अनेक लेखकों ने वास्तविक विश्व समस्याओं के समाधान हेतु सॉफ्ट गणक तकनीकों की सम्भावना पर विचार विमर्श किया है।

सॉफ्ट गणनाओं के तीन मूल घटकः कृत्रिम न्यूरल नेटवर्क, फज्जी लॉजिक एवं जनित प्रमेय हैं। वर्तमान समय में इनमें दो अन्य पद्धतियाँ (1) अपरिष्कृत सैट थ्योरी एवं (2) विस्तारक रीजनिंग भी सम्मिलित हुई हैं। कृत्रिम न्यूरल नेटवर्क उन परिस्थतियों में उपयोगी हैं जहाँ अधःस्थ प्रक्रम/संबंध अव्यवस्थित गुणधर्मों को प्रदर्शित करते हैं। ए.एन.एन. के लिये विचारणीय तंत्र की पूूर्व जानकारी होना आवश्यक नहीं है। यह वास्तविक समय आधार पर गतिकीय तंत्रों के निदेर्शों हेतु सर्वथा उपयुक्त है। फज्जी लॉजिक एक अन्य सॉफ्ट गणक तकनीक है, जो जटिल तंत्रों के विश्लेषण के लिये आवश्यक है। सॉफ्ट गणक तकनीकों का अन्य घटक जनित प्रमेय है। यह प्रमेय विकास के सिद्धांत पर आधारित है। वास्तविक जीवन समस्याओं के समाधान हेतु कृत्रिम न्यूरल नेटवर्क में न्यूरॉन के प्रस्तुतीकरण को चित्र 5 में दर्शाया गया है।

.वैज्ञानिक एवं अभियन्ता समुदाय ने पिछले कुछ दशकों से सॉफ्ट गणक तकनीकों के प्रयोग एवं विकास में बहुत अधिक अनुभव प्राप्त किया है। ये पद्धतियाँ रुढ़िवादी पद्धतियों की तुलना में अत्यधिक लाभकारी है। न्यूरल नेटवर्क प्रौद्योगिकी, जलविज्ञान एवं जल संसाधन अनुकरण के क्षेत्र में अनेक श्रेष्ठ परिणाम प्रदान करती है। फज्जी लॉजिक तकनीक एक अन्य सॉफ्ट गणक तकनीक है जिसने वर्तमान में जलविज्ञान के क्षेत्र में ध्यानाकर्षण किया है वैकल्पिक अभिकल्प प्रौद्योगिकी का यह एक ऐसा उदाहरण है, जिसका अनुप्रयोग रेखीय एवं अरेखीय तंत्रों को विकसित करने में किया जा सकता है। फज्जी लॉजिक, फज्जी तंत्र एवं फज्जी निदर्शन की विधाएं उपमार्ग नियंत्रक सहित वास्तविक विश्व स्वचालित नियंत्रण अनुप्रयोग, ऑटोनोमस रोबोट नौकायन, स्वचालित लैक्स कैमरा, प्रतिबिम्ब विश्लेषण एवं निदान तंत्र में इसकी महानतम सफलता के प्रमाण हैं।

पूर्व स्थापित हार्ड कम्प्यूटिंग तकनीक को सॉफ्ट गणक तकनीकों के वैकल्पिक उदाहरण के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। पारम्परिक कठोर गणक पद्धतियाँ वर्तमान में आने वाली समस्याओं का अधिकांशतः समाधान नहीं कर पाती है। उनके समाधान हेतु विशिष्ट विश्लेषणात्मक निदर्श की सैदव आवश्यकता होती है, तथा अक्सर गणना में अत्यधिक समय की आवश्यकता होती है। सॉफ्ट गणक तकनीकों जो अनावश्यक परिशुद्धता के लिये तंत्र के व्यवहार में परिवर्तन पर बल देती हैं, को अनेक समकालीन समस्याओं के प्रयोगात्मक समाधान के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयोगात्मक यंत्र के रूप में स्वीकार किया गया है। ए.एन.एन. एवं एफ.एल.एम., घटकों का प्रयोग रेखीय, अज्ञात, आंशिक ज्ञात जटिल तंत्रों या प्रक्रमों के लिये किया जाता है। वर्तमान वर्षों में जनित प्रमेय एवं कण इष्टतमीकरण तकनीकों का उद्गमन सम्भाव्य एवं रोबस्ट इष्टतमीकरण यंत्रों के रूप में हुआ है।

मानव आवश्यकताओं के विभिन्न क्षेत्रों में स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिये सदैव बढ़ती मांगों के कारण विश्व के सभी भागों विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ जल संसाधन का वितरण स्थान एवं समय दोनों ही स्वरूपों में असमान है, जल संसाधन के इष्टतम प्रबंधन की समस्याओं में वृद्धि हुई है। जल संसाधनों के प्रभावी प्रबन्धन के लिये, विभिन्न जलविज्ञानीय घटकों जैसे वर्षा अपवाह का सहसंबंध, जलाशय में अंतर्वाह का पूर्वानुमान, वर्षा का पूर्वानुमान, वाष्पन का पूर्वानुमान, अधिकतम बाढ़ का पूर्वानुमान एवं इष्टतम जलाशय प्रचालन नीति इत्यादि की भविष्यवाणी आवश्यक है। जल संसाधन अभियांत्रिकी में जटिल तंत्र के पूर्वानुमान के लिये सॉफ्ट गणक तकनीकें अत्यधिक प्रभावी हैं। जलविज्ञानीय साहित्य में कृत्रिम न्यूरल नेटवर्क पर आधारित अनेकों अध्ययन प्रतिवेदित किये गये हैं। फज्जी लॉजिक के प्रयोग द्वारा जलविज्ञान एवं जल संसाधन में निदर्शन, अनुसंधान का एक नवीन क्षेत्र है। यद्यपि पिछले दशक में इस विषय पर कुछ अध्ययनों, मुख्यतः जलाशय प्रचालन एवं जल संसाधन प्रबन्धन द्वारा इसकी उपयोगिता प्रमाणित की जा चुकी है। कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे स्टेज-निस्सरण अवसादन संबंध, वर्षा-अफवाह निदर्शन, एवं जलविज्ञानीय पूर्वानुमान इत्यादि में फज्जी लॉजिक अनुप्रयोगों ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है।

जल विज्ञान में समस्थानिक प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग


1960 के दशक में आवाह जल विज्ञानीय अनुसंधान में, रुढ़िवादी जलविज्ञानीय पद्धतियों की अनुपूरक पद्धतियों के रूप में समस्थानिक पद्धतियों का प्रवेश, इन प्रश्नों का समाधान जानने के लिये किया गया कि जब वर्षा होती है तो उसका जल कहाँ जाता है, सरिता में यह क्या मार्ग अपनाता है एवं कितनी दीर्घावधि तक जल आवाह क्षेत्र में उपलब्ध रहता है इस क्षेत्र में अनुसंधान अनुप्रयोगों की काफी मन्द प्रगति के पश्चात पिछले दशक में समस्थानिक आधारित आवाह क्षेत्र अध्ययनों में तीव्र गति से प्रगति मुख्यतः उपयुक्त मापयंत्रों से परिपूर्ण 0.01 से 100 वर्ग किमी. के लघु आवाह क्षेत्रों में किये गये अध्ययनों में पाई गई। तुलनात्मक दृष्टि से अनुप्रयोग के क्षेत्र में काफी कम कार्य किया गया एवं इनसे प्राप्त सिद्धांतो एवं प्रौद्योगिकियों को वृहत्त (100 से 1000 वर्ग कि.मी.) एवं सूक्ष्म मापयंत्रण वाले नदी बेसिनों में स्थानान्तरित किया गया। वर्षा अपवाह निदर्शाें के अंशांकन एवं परीक्षण तथा अविरत जल संसाधन प्रबन्धन में समस्थानिक सूचना के उपयोग के संबंध में कार्य की बहुत अधिक सम्भाव्यता निहित है समस्थानिक जल विज्ञान, जल संसाधन विकास एवं प्रबन्धन के क्षेत्र में अन्वेषक के रूप में समस्थानिकों के अनुप्रयोग से संबंधित है। विगत कुछ वर्षों से जल के क्षेत्र में बढ़ती समस्याओं विशिष्टतः भूजल गुणवता में कमी जल गुणवत्ता में अपक्षय एवं जल विज्ञानीय चक्र को प्रभावित करने वाली अनेक अन्य प्राकृतिक घटनाओं (जिनकी पूर्व में भविष्यवाणी सम्भव नहीं है) के कारण जलविज्ञान एवं जल संसाधनों में समस्थानिकों के प्रयोग में वृद्धि हुई है। पर्यावरणीय समस्थानिक हमारे पर्यावरण में बहुतायत में पाये जाने वाले तत्वों जैसे H,C,N,O एवं S के प्राकृतिक समस्थानिक हैं। ये समस्थानिक जल विज्ञानीय, भूगर्भीय एवं जीवविज्ञानीय तंत्रों के प्रमुख तत्व हैं। इन तत्वों के स्थिर समस्थानिक जल, कार्बन, न्यूट्रियेन्ट एवं विलेय चक्र के अन्वेषक के रूप में कार्य करते हैं। रेडियोऐक्टिव पर्यावरणीय समस्थानिको जैसे C-14 एवं H-3 का प्रयोग भूजल की आयु/प्रचार के आकलन के लिये किया जा सकता है।

एक विशाल विविधता के पर्यावरणीय स्थिर एवं रेडियोएक्टिव समस्थानिकों (जैसे 2H, 3H, 3He, 4He, 6Li, 11B, 14C, 15N, 18O, 34S, 37cl, 81Br, 81Kr, 87Sr, 129I, 137Cs, 210Pb इत्यादि) को जल विज्ञानीय अध्ययनों के लिये नियोजित किया गया। यद्यपि स्थिर समस्थानिक कृत्रिम अन्वेषकों ( 3H, 46SC, 60Co, 82Br, 13I, 198Au इत्यादि) की तुलना में अधिक लाभकारी है क्योंकि वे किसी तंत्र में उनके प्राकृतिक वितरण द्वारा अधिक बड़े सामयिक एवं कालिक पैमाने पर विविध जलविज्ञानीय प्रक्रमों के अध्ययन की सुविधा रखते हैं। पर्यावरणीय समस्थानिक प्रौद्योगिकियाँ, समय एवं स्थल समाकलित विशिष्टताओं को प्राप्त करने के लिये जल संसाधनों के क्षेत्रीय अध्ययनों में विशिष्ट स्थान रखती है जबकि कृत्रिम अन्वेषक सामान्यतः स्थानीय अनुप्रयोगों के लिये स्थल विशेष के लिये ही प्रभावी होते हैं। पूर्व काल में कृत्रिम रूप से उत्पादित रेडियोएकिटव समस्थानिकों को केवल अन्वेषकों के रूप में अत्यधिक सीमित कार्य क्षेत्र में प्रयोग किया जा रहा है। परन्तु वर्तमान में दोनों पर्यावरणीय समस्थानिकों (रेडियोएक्टिव एवं स्थिर समस्थानिकों) का वृहत्त उपयोग बिना किसी स्वास्थ्य आपदा के डर के विविध अनुप्रयोगों में किया जा रहा है। पर्यावरणीय समस्थानिक वायुमण्डल में स्वतंत्र रूप से उपलब्ध हैं तथा उनका प्रयोग जलविज्ञानीय चक्र में स्वचल रूप में किया जा रहा है अतः उपयोगकर्ताओं को समस्थानिकों को क्रय करने या उन्हें जलविज्ञानीय तंत्र में प्रविष्ट कराने की आवश्यकता नहीं है। अत्यधिक सूक्ष्म एवं परिशुद्ध समस्थानिक मापन के लिये परिष्कृत एवं स्वचालित मापयंत्रों के विकास के साथ नई पद्धतियों का विकास हुआ है। तथा समस्थानिक यंत्रों में नवीन यंत्र सम्मिलित किये गये हैं। वर्तमान में समस्थानिक तकनीकों का प्रयोग विभिन्न जलविज्ञानीय अध्ययनों के लिये प्रभावी रूप से किया जा सकता है। विशिष्ट रूप से, समस्थानिकों का उपयोग भूजल स्रोतों की अन्वेषण गति एवं प्रदूषण के लिये किया जा सकता है। समस्थानिकों का प्रयोग विभिन्न समस्याओं के चयन तथा उनके बारे में अध्ययन हेतु किया जा सकता है जिससे समस्याओं की जानकारी प्राप्त की जा सके। जलविज्ञान में समस्थानिकों के मुख्य अनुप्रयोग निम्न हैं:

1. जल एवं अवसादन का काल-निर्धारण ।
2. जल विभाजकों/आवाह क्षेत्रों में मृदा कटान का आंकलन।
3. भूजल प्रवाह वेग एवं दिशा का आंकलन।
4. पर्वतीय नदियों का निस्सरण मापन।
5. जल पिंडों से निःस्सरण/रिसाव।
6. जल लेख अलगाव
7. लवणता के स्रोत एवं समुद्र जल अनधिकृत प्रवेश।
8. उथले एवं गहरे जलदायकों के लिये पुनःपूरण स्रोतों एवं पुनःपूरण जोनों का चयन।
9. भूजल/सतही जल पारस्परिक संबंध।
10. हिम एवं हिमनद अध्ययन एवं
11. जलवायु परिवर्तन अध्ययन।

.राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की में स्थिर एवं रेडियो समस्थानिकों के मापन के लिये पूर्णतः सुसज्जित नाभिकीय जलविज्ञान प्रयोगशाला उपलब्ध है। संस्थान ने निकट पूर्व में समस्थानिक तकनीकों के प्रयोग द्वारा विभिन्न अध्ययनों जैसे तीस्ता नदी का निस्सरण, मापन, देवप्रयाग में भागीरथी नदी पर जलालेख अलगाव, टिहरी बाँध से रिसाव का चयन, नैनीताल झील के जल संतुलन का आंकलन, उत्तरी भारत की प्रमुख झीलों में अवसादन दर का आंकलन, दिल्ली में यमुना नदी के तटीय क्षेत्र में नदी भूजल पारस्परिक संबंध का आंकलन, गोमुख में भागीरथी नदी द्वारा वर्षा ऋतु में जल योगदान का आंकलन पर्वतीय क्षेत्रों में झरनों एवं मैदानी क्षेत्रों में भूजल के पुनःपूरण जोनों एवं स्रोतों का चयन एवं भारतीय अवक्षेपण का विशिष्टीकरण इत्यादि को पूर्ण किया है।

जल विज्ञान में सुदूर संवेदी एवं जी.आई.एस. के अनुप्रयोग


नीति निर्माण में उचित समय पर उपयुक्त व्यक्ति द्वारा इष्टतम मूल्य पर सही सूचना की उपलब्धता एक कठिन कार्य किसी जल संसाधन विकास परियोजना के लिये वर्तमान भूमि उपयोग/आच्छादन, कृषि पद्धति मृदा विश्ष्टिताएं एवं उनका स्थानिक वितरण मूल आवश्यकताएं हैं। इनके लिये आवश्यक आँकड़ों एवं सूचनाओं के सावधानीपूर्वक प्रभावी विश्लेषण संचयन एवं पुनः प्राप्ति की आवश्यकता होती है। रुढ़िवादी पद्धतियों द्वारा उपलब्ध रिकॉर्ड का संचयन, प्रबन्धन एवं आधुनिकीकरण अत्यधिक मन्द एवं अव्यवस्थित है, तथा बहुत अधिक स्थान का अधिग्रहण करता है। इसके अतिरिक्त इसके उपयोग हेतु बहुत अधिक मानव शक्ति की आवश्यकता होती है जिससे इन रिकार्ड्स का आधुनिकीकरण अत्यधिक कठिन है। सुदूर संवेदी एवं जी.आई.एस. सॉफ्टवेयर के अन्वेषण से विभिन्न स्तरों पर गति संसाधन मानचित्रों को तैयार करना सम्भव हो गया है। सुदूर संवेदी तकनीकें विश्वसनीय तरीके से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के लिये बहु स्पैक्ट्रमी एवं बहुकालिक संक्षिप्त आच्छादन प्रदान करती हैं। जबकि जी.आई.एस. विविधतापूर्ण आँकड़ों के समाकलन एवं विश्लेषण हेतु सुविधाएँ प्रदान करता हैं। सामाजिक रूप से स्वीकार्य प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन के लिये निर्णय निर्माण सार्वजनिक एवं भागेदारी प्रक्रम हैं। मानचित्रों एवं चित्रों के रूप में सूचनाओं को प्रदर्शित करने की जी.आई.एस. की क्षमता सामान्यतः जनमानस को अधिक जानकारी उपलब्ध कराती है, तथा उन्हें निर्णय निर्माण गतिविधियों में सम्मिलित कर सकती है।

सुदूर संवेदन तकनीक एक निश्चित दूरी से ही संवेदनशीलता को समाविष्ट कर देती हैं। प्रत्येक उपग्रह प्रतिबिम्ब, पृथ्वी की सतह से विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम की एक या अनेक तरंग लम्बाई सीमाओं में आने वाली ऊर्जा के स्थानिक वितरण को प्रदर्शित करता है। बहु-स्पैक्ट्रमी उपग्रह आँकड़ों के उप्युक्ततापूर्वक उपयोग द्वारा विभिन्न भू-विशिष्टताओं को अलग-अलग किया जा सकता है एवं थीमेटिक मानचित्र तैयार किये जा सकते हैं। उपग्रह सुदूर संवेदी मानचित्र का प्रयोग विशाल क्षेत्रों के लिये भूमि सतह की कृषि एवं जल विज्ञानीय स्थितियों पर नियमित सूचना प्रदान करने के लिये किया गया है। इसके अतिरिक्त जल प्रबन्धन योजनाओं के विकास एवं प्रबोधन में उपग्रह सुदूर संवेदन मापयंत्र सक्रिय भूमिका प्रदान करते हैं। अध्ययन क्षेत्रों की शीघ्र सूची को निर्मित करने के लिये आँकड़ा एकत्रीकरण एवं ऋतु परिवर्तनों में नदी बेसिनों के महत्व, समय एवं मानव शक्ति बाध्यता की आवश्यकता होती है। विभिन्न जल विज्ञानीय अध्ययनों में सुदूर संवेदी तकनीकों की उपयोगिता को विभिन्न अध्ययनों में दर्शाया गया है। सुदूर संवेदी प्रौद्योगिकी में नवीनता से आँकड़ा एकत्रीकरण एवं अन्तर्वेश में समय एवं धन की बचत होती है। उपग्रह आँकड़ों के प्रतिबिम्ब प्रक्रमण के लिये विभिन्न विविधताओं के पैकेज: (i) निम्न मूल्य वाले एवं सरल (eSibUQks] IDRISI, ER-eSij] PCI), (ii) पूर्ण एवं सरल (इलविस, ग्रास) एवं (iii) व्यवसायिक एवं महँगे (एरडास-इमेजिन, IDL ENVI) उपलब्ध हैं।

विगत कुछ वर्षों में भूमि, उपयोग, मृदा प्रकार, हिम आच्छादन क्षेत्रों, सिंचित क्षेत्रों एवं फसल पद्धति, फसल जल तनाव एवं फसल उपलब्धि, फसल वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन, मृदा आर्द्रता एवं लवणता के चयनीकरण के लिये सस्ती एवं तीव्र प्रौद्योगीकी के प्रस्तुतीकरण हेतु सुदूर संवेदी प्रौद्योगिकी के उपयोग में वृद्धि हुई है। वर्षा-अपवाह निदर्शन, जलाशय अवसादन निर्धारण, जल विभाजक प्रायिकता, बाढ़ पूर्वानुमान, बाढ़ जोखिम जोनिंग एवं बाढ़ प्रबंधन इत्यादि क्षेत्रों में सुदूर संवेदी आँकड़ों के उपयोग में वृद्धि हुई है। जी.आई.एस. वातावरण के अंतर्गत सुदूर संवेदी आँकड़ों के स्रोतों एवं अन्य प्रकारों सहित समाकलन द्वारा विशिष्ट वृद्धि हो सकती है। जलविज्ञानीय अध्ययनों में जी.आई.एस. सम्भाव्य अनुप्रयोगों में स्थलाकृति विश्लेषण (DEM का सृजन, प्रवणता पहलू, जल निकासी नेटवर्क एवं बेसिन संरचनाएं एवं उनकी विशिष्टताएं जल मौसम विज्ञानीय नेटवर्क, स्थानिक एवं कालिक आँकड़ों की उपलब्धता इत्यादि।

निर्णय सहायता तंत्र (DSS) का विकास


समय के साथ हम इस वास्तविकता को जान चुके हैं कि हमारी जलापूर्ति मात्रात्मक एवं गुणवत्तामक दोनों ही स्वरूपों में सीमित है जल का प्रयोग अनेक उद्देश्यों के लिये किया जाता है तथा जल तंत्र अन्य भौतिक एवं सामाजिक आर्थिक तंत्रों के साथ परस्पर एक दूसरे से सह-संबंधित है नदी बेसिन में जल एवं संबंधित पर्यावरण के प्रभावी प्रबंधन हेतु बेसिन के समाकलित एवं समकक्ष योजनीकरण की आवश्यकता है इसके अतिरिक्त नदी बेसिन में जल संसाधन परियोजनाओं (जलाशय, सिंचाई नहरें इत्यादि) के परिचय से सतही एवं भूजल उपलब्धता एवं उपयोग की संशोधित स्थितियों के साथ बेसिन में नवीन जलविज्ञानीय व्यवस्था स्थापित होगी। इसके अतिरिक्त नदी बेसिन में अनेक जल संबंधित परिवर्ती सम्मिलित हैं जैसे वर्षा वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन, भूमि उपयोग एवं भूमि आच्छादन, मृदा प्रकार, फसल पद्धतियाँ एवं उनकी जल मांग, सिंचित क्षेत्र, भूजल सम्भाव्य/विकास एवं इसकी कालिक उपलब्धता, शहरी/ग्रामीण क्षेत्र एवं जल माँगे, औद्योगिक विकास एवं जल माँगे, जल संसाधन संरचनाएं एवं उनकी विशिष्टताएं, जल मौसम विज्ञानीय नेटवर्क एवं स्थानिक एवं कालिक आँकड़ों की उपलब्धता इत्यादि।

निर्णय सहायक तंत्र एक संगणक आधारित सहायक तंत्र है जो नीति निर्धारकों को आँकड़ों एवं निदर्शों के उपयोग एवं असंरचनात्मक समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान करता है। समाकलित जल संसाधन योजना एवं प्रबन्धन के लिये निर्णय सहायक तंत्र एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण यंत्र हो सकता है जो त्वरित गणनाओं, सरल आँकड़ा प्रबन्धन एवं वैकल्पिक जननीति के बारे में निष्कर्ष प्राप्त करने में सहायक होगा। संगणक निदर्श जैसे मौडसिम, रिबासिम, रिवर वेयर, वाटर वेयर एवं मीना नदी बेसिन योजना एवं प्रबन्धन के रूप में किया गया है।

इनका अभिकल्पन नदी प्रबन्धन के लिये क्षेत्रीय पद्धतियों सूखा सम्भाव्यता योजना, भूजल विनिमय कार्यक्रम मूल्यांकन, प्रबन्धन पुनःपूरण एवं शहरी कृषि एवं पर्यावरणीय विषयों में प्रतिकूलन के लिये निर्णय सहायक तंत्र के रूप में किया गया है। TERRA(TVA) पर्यावरण एवं नदी संसाधन सहायता एक निर्णय सहायक तंत्र है। जिसका विकास टेन्सेसी घाटी प्राधिकरण एवं विद्युत शक्ति अनुसंधान संस्थान के नदी जलाशय एवं शक्ति संसाधनों के प्रबंधन के लिये किया गया है। रिवरवेयर एक निर्णय सहायक तंत्र है जिसका विकास तीन आधारभूत समाधान पद्धतियों सरल अनुकरण, नियम आधारित अनुकरण एवं इष्टतमीकरण के प्रयोग द्वारा अनुप्रयोगों की वृहत्त सीमा हेतु सामान्य नदी बेसिन निदर्शन के लिये कोलोरोडो विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है। इसी प्रकार एक्वाटूल, वाटरवेयर, रिबासिम (डेलट हाईड्रोलिक्स नीदरलैण्ड द्वारा विकसित) माइक बेसिन (डी.एच.आई., डेनमार्क द्वारा विकसित) एवं स्वैट कुछ अन्य निर्णय सहायक तंत्र है जिनका प्रयोग बेसिन जलविज्ञानीय योजनाओं एवं जल संसाधनों के प्रभावी प्रबन्धन के विकास हेतु सम्पूर्ण विश्व में किया जा रहा है।

जलविज्ञानीय परियोजना के द्वितीय चरण के अंतर्गत, समाकलित जल संसाधन योजना एवं प्रबन्धन के लिये राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान द्वारा एक निर्णय सहायक तंत्र (योजना) को विकसित किया जा रहा है। निर्णय सहायक तंत्र के पाँच मुख्य घटक हैं सतही जल योजना जलाशयों का समाकलित प्रचालन, सतही एवं भूजल का संयुग्मी उपयोग, सूखा प्रबोधन निर्धारण एवं प्रबन्धन सतही जल एवं भूजल गुणवत्ता प्रबन्धन। निर्णय सहायक तंत्र अनुप्रयोगों को भारत के नौ प्रायद्वीपोें के लिये विकसित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त वास्तविक समय बाद पूर्वानुमान एवं जलाशयों से बाढ़ के प्रबन्धन में नीति निर्धारकों के सहायतार्थ भाखड़ा व्यास प्रबन्धन बोर्ड द्वारा वास्तविक समय पर एक निर्णय सहायक तंत्र विकसित किया जा रहा है यह निर्णय सहायक तंत्र संतुलन नदी बेसिन के लिये तैयार किया गया है। DHI, डेनमार्क के परामर्श से दोनों निर्णय सहायता तंत्र विकसित किये जा रहे हैं।

निष्कर्ष


समय के साथ जन मानस में जल के प्रति जागरूकता में वृद्धि हो रही है। मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों ही रूपों में जल की उपलब्धता सीमित है। वर्तमान में जलविज्ञान एवं जल संबंधी अध्ययनों को विशेष महत्व दिया जा रहा है। क्योंकि समस्त विकास गतिविधियाँ जल पर आधारित हैं तथापि प्रौद्योगिकी अन्वेषण एवं अंकीय तकनीकों के उद्गम से जलविज्ञानीय प्रेक्षण, विश्लेषण एवं प्रबन्धन में समय के साथ तीव्रता से उन्नति हो रही है। AWX एवं GPRS प्रौद्योगिकी के अन्वेषण से जलविज्ञानीय माप यंत्रण के क्षेत्र में सुधार हुआ है जबकि जलविज्ञानीय आँकड़ों के संचयन, विश्लेषण प्रक्रमण एवं विकिरण के लिये सॉफ्टवेयर विकसित किये गये हैं। वास्तविक तंत्र के विस्तृत प्रस्तुतीकरण के लिये सुदूर संवेदी एवं जी.आई.एस. तकनीकों सहित अधिक जटिल जलविज्ञानीय निदर्शों का प्रयोग संयुग्मी रूप से किया जा रहा है जल तंत्रों की जलविज्ञानीय अनुक्रिया के अनुकरण के लिये निदर्शों सहित साट गणक तकनीकों को समाकलित किया जा रहा है। अनेक जलविज्ञानीय अनुप्रयोगों में नाभिकीय तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। निदर्शन जटिलताओं की गहराई में जाए बिना, समाकलित सतही एवं भूजल विकास एवं प्रबंधन के लिये, विभिन्न स्थितियों के विश्लेषण में, नीति निर्धारकों की सहायता के लिये, नदी बेसिन पैमाने पर निर्णय सहायक तंत्र को विकसित किया जा रहा है। ये सभी विकास कार्य, जल संसाधन वैज्ञानिकों/अभियंताओं को भविष्य की जल माँग एवं आपूर्ति हेतु, दबाव को दूर करने हेतु आवश्यक नीतियों को निर्मित करने में सहायक सिद्ध होंगे।

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सम्पर्क


राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की (उत्तराखण्ड), National Instiutute of Hydeology (N.I.H.), Roorkee (UK)

भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका, 01 जून, 2012

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