जल के निजीकरण का अन्तर्राष्ट्रीय षड्यंत्र

वित्तीय क्षेत्र पर लगभग पूर्ण नियंत्रण के बाद अब इस पूँजी ने मुनाफे के लिए जिन नए क्षेत्रों की खोज की है उनमें प्रमुख हैं जैविक संसाधन और जल संसाधन। 1992 में रियो डी जेनेरो (ब्राजील) के पृथ्वी सम्मेलन में जल के निजीकरण के अन्तर्राष्ट्रीय षड्यंत्रों का पर्दाफाश हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में आयोजित एवं विश्व की कुछ विशालतम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा प्रायोजित इस सम्मेलन के एजेण्डा-21 में साफ तौर पर घोषित किया गया कि जल और जंगल अब राष्ट्रीय नहीं बल्कि वैश्विक सम्पत्ति होनी चाहिए और इनका प्रबन्ध राष्ट्रीय सरकारों से छीनकर अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को दे देना चाहिए। यहाँ यह याद करना उपयुक्त होगा कि औपनिवेशिक शासन से पूर्व जल और जंगल का स्वामित्व और प्रबन्धन स्थानीय समुदायों के हाथों में हुआ करता था। औपनिवेशिक सत्ताओं ने यह स्वामित्व और प्रबन्धन स्थानीय समुदायों से छीनकर राष्ट्रीय सरकारों के हाथ में दे दिया और आज बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवादियों की कोशिश है कि जल और जंगल का स्वामित्व और प्रबन्धन राष्ट्रीय सरकारों से छीनकर वैश्वीकरण और निजीकरण को चलाने वाली अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों विश्वबैंक, मुद्राकोष, डब्ल्यू.टी.ओ. के संरक्षण में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को दे दिया जाय।

वैश्विक पूँजी मुनाफे के लिए नए-नए क्षेत्रों की तलाश में निकली हुई है। डब्ल्यू.टी.ओ. बनने के बाद इस पूँजी के मुक्त प्रवाह पर लगी राष्ट्रीय बंदिशें लगभग समाप्त हो चुकी हैं। औद्योगिक और वित्तीय क्षेत्र पर लगभग पूर्ण नियंत्रण के बाद अब इस पूँजी ने मुनाफे के लिए जिन नए क्षेत्रों की खोज की है उनमें प्रमुख हैं जैविक संसाधन और जल संसाधन।

अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों का कुचक्रः जल के व्यापारीकरण को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते से मान्यता मिल रही है। नार्थ अमरीकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (नाफ्टा) के अन्तर्गत अमरीका की कम्पनियाँ कनाडा की झीलों और नदियों का पानी निर्यात करने की योजना बना रही हैं। नाफ्टा के अध्याय-11 के अनुसार विदेशी कम्पनी नाफ्टा सदस्य देश की सरकार पर हर्जाने का मुकदमा ठोंक सकती है। विदेशी कम्पनियाँ इस समझौते के अध्याय-12 का हवाला देते हुए कहती हैं कि जल भी एक ‘सेवा’ ही है। इस झगड़े से निपटने के लिए एक पैनल का गठन हुआ है। यदि यह पैनल तय करता है कि ‘जल का निर्यात’ नाफ्टा के अन्तर्गत वैध है तो विदेशी कम्पनियों को पूरी छूट मिल जाएगी।

विश्व व्यापार संगठन (डब्लू.टी.ओ.) समझौते के गैट्स (जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज) अध्याय में जल को भी व्यापार की वस्तु मानकर शामिल कर लिया गया है। इसकी वजह से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को जल पर कब्जा करने और उनकी अन्तर्राष्ट्रीय मार्केटिंग करने में बहुत सहूलियत हो गई है। कनाडा की ग्लोबल वाटर कार्पोरेशन सिंगापुर को जहाजों से जल भेजने और बेचने की योजना बना रही है। यह कम्पनी पहले ही 18 अरब गैलन जल चीन के मुक्त व्यापार क्षेत्रों को भेजने का समझौता कर चुकी है।

विश्व बैंक तीसरी दुनिया में जल कल व्यवस्था के निजीकरण की मुहिम में पहले से ही जुटा हुआ है। दिल्ली के वजीराबाद जलकल संयंत्र का वीबोंदी वाटर (फ्रांस) के हाथों निजीकरण और सोनिया विहार प्लांट का स्वेज डेग्रोमो को सौंपना विश्व बैंक के प्रयासों का ही नतीजा है। भारत के अन्य महानगरों के साथ जल और गन्दे जल की व्यवस्था के ठेके विदेशी कम्पनियों को दिए जा रहे हैं। मद्रास कासीवेज ट्रीटमेंट का ठेका विदेशी कम्पनियों को दे दिया गया है। वित्तीय संकटों और कुप्रबन्धों से जूझ रहे नगर निगम तेजी से विश्वबैंक के नुस्खों को अपना रहे हैं। इन नुस्खों में प्रमुख है सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण। जल कल और मल निकासी का इसी आधार पर निजीकरण किया जा रहा है और बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ मुनाफे का गणित देखकर जल सेवा के निजीकरण में आगे बढ़कर हिस्सा ले रही हैं।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading