जल लघुकथा : नदी की चतुराई

3 Aug 2015
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एक दिन नदी को ठहाका मार कर हँसते हुए देख नदी के तट ने पूछा, दीदी आज क्या बात है। आप बहुत प्रसन्न हैं,

नदी ने कहा-भाई मेरे एक बहुत पुरानी बात याद आ गई तो सहसा मैं जोर से हँस पड़ी।

तट ने कहा-‘‘कौन सी घटना थी, क्या मुझे नहीं बताओगी?

नदी ने कहा-‘‘अवश्य बताऊँगी, सुनो बहुत साल पहले की बात है भादों माह में अत्याधिक बरसात हुई, इस बरसात के कारण शहर के एक मात्र सूखे नाले में इतना अधिक पानी आया कि वह बहते-बहते मुझसे आ मिला। शायद उसने मेरा यह सुन्दर रूप और चारों ओर फैला हुआ मेरा वैभव पहली बार देखा था। वह मेरी सुन्दरता पर इतना अधिक मुग्ध हुआ कि मुझे देखते ही वह बोला-‘‘सुनो सुन्दरी, मैं आपके सौन्दर्य से अभिभूत हूँ, क्या आप मेरी जीवन संगनी बनेंगी? क्या आप मुझसे विवाह करेंगी? मैं मौन बनी रही क्योकि उसका यह प्रस्ताव मेरे लिए अप्रत्याशित था, परन्तु वह गंदा, मर्यादाहीन, बेबकूफ बदबूदार नाला मेरे पीछे ही पड़ गया उसे नाराज करना नही चाहती थी, आखिर था तो वह कुछ ही दिनों का मेरा मेहमान ही विवाह के लिए उसके बार-बार आग्रह करने पर आखिर मैंने तंग आकर एक दिन मैंने उससे कह ही दिया कि ‘‘मैं आपसे विवाह के लिए तैयार हूँ लेकिन मेरी एक शर्त है,’’

नाले ने अधीर होकर कहा-‘‘कहिए-कहिए मुझे आपकी सारी शर्तें स्वीकार हैं’’
मैने कहा- पहले मेरी शर्त तो सुन लीजिए? कि शर्त क्या है?
वह शर्माते हुए बोला -जी हाँ कहिए?
मैंने कहा-‘‘हमारे यहाँ बरसात में विवाह जैसे पवित्र कार्य सम्पन्न नहीं होते, हमारे यहां विवाह प्राय: मई या जून माह मेंहोते है, यदि आप मई या जून के माहों में विवाह करने आयेगे तो मैं आप से सहर्ष विवाह कर लूंगी, यह सुन कर ना समझ बेवकूफ नाला सकुचाते, शर्माते हुए बोला- जी मुझे स्वीकार है, अब मुझे आज ही और अभी से ही अगले वर्ष के माह मई-जून का इंतजार रहेगा.....

तट ने मुस्कुराते हुए कहा-‘‘दीदी सच में, मैं आपकी चतुराई समझ गया, क्योंकि जब माह मई-जून में नाले का कोई अस्तित्त्व ही नहीं रहता तो वह आयेगा कैसे?

यह सुनकर नदी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गई।

111, पुष्पांजली स्कूल के सामने शक्तिनगर, जबलपुर-482001 (म.प्र.)

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