जल पर जंग


जल प्रकृति ने हमें जीवनदायी सम्पदा के रूप में जल दिया है। प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस लौटाना भी हमें ही है। हर कोई जानता है कि हम पानी का निर्माण नहीं कर सकते लेकिन पानी व्यर्थ न हो, इसके लिये प्रयत्न निश्चित रूप से कर सकते हैं। पानी तथा पर्यावरण के बारे में हर व्यक्ति को सोचना होगा। यदि हम इसके प्रति संवेदनशील नहीं हैं तो स्पष्ट है कि हम आने वाली पीढ़ी के भविष्य के प्रति भी संवेदनशील नहीं हैं। जल ही जीवन है ऐसा सुविचार स्कूली शिक्षा के दौरान पढ़ने के बावजूद हम जल के प्रति सजग नहीं हो पाये। यही वजह है कि आज जल पर जंग जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है। यही वजह है कि आज पानी बचाने के विज्ञापन अखबार से लेकर सार्वजनिक स्थानों पर चस्पां हो रहे हैं। जल को लेकर पूरी दुनिया में जिस तरह का कोहराम मचा है उसे देखते हुये लोग यह मानने लगे हैं कि अगला विश्व युद्ध जल के लिये हो सकता है। यह नौबत न आए इसके लिये जल को बचाने का संकल्प आज अन्तरराष्ट्रीय जल दिवस पर लेना हर एक का कर्तव्य बन जाता है।

यदि इस कर्तव्य का निर्वाह आज से नहीं किया गया तो आज सिर्फ लातूर में जल के लिये जमावबंदी अर्थात धारा 144 लागू किया गया है, कल पूरे मुंबई में, महाराष्ट्र में, हिन्दुस्तान में भी जल के लिये जमावबंदी का आदेश जारी किया जा सकता है। सूखे की मार से त्रस्त मराठवाड़ा में अब जल को बचाये रखना एक चुनौती बन गई है। जल की बढ़ती समस्या के कारण ही सरकार ने लातूर, धाराशिव, परभणी तथा बीड जिले में स्थित जिला अधिकारी कार्यालय में ‘वार रूम’ शुरू करने का आदेश जारी किया है। जल की चोरी को रोकने के लिये पुलिस ने रात में गश्त लगानी शुरू कर दी है। जहाँ भी पानी नजर आता है वहाँ पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है। पानी का टैंकर जब पानी लेकर कहीं पहुँचता है तो लोगों में उसे पाने की होड़ मच जाती है। कोहराम और उपद्रव की आशंका से निपटने के लिये ही पानी आपूर्ति करने वाले स्थान पर धारा 144 लागू कर दिया गया है, ताकि एक समय में वहाँ 5 से अधिक लोग मौजूद न रहें। अभी लातूर में पानी के लिये धारा 144 का सहारा लेना पड़ा। पानी के लिये ढेर सारी समस्याएँ आज कई स्थानों पर संघर्ष का आगाज दे रही है।

जल के लिये होने वाले झगड़ा कोई नया नहीं है। लेकिन अब पानी पाने के लिये मारपीट होने लगी है। मनमाड क्षेत्र में कई दिन से एक माह में एक दिन ही पानी आ रहा है। पालखेड बाँध से होनेवाली जल आपूर्ति की जलवाहिनी में कुछ गिने-चुने स्थानों पर पानी उपलब्ध है। पानी के लिये बाल्टी, घड़ा लेकर जाना पुरानी बात हो गई है। लोग अब 500 लीटर की टंकी लेकर भीड़ में शामिल हो रहे हैं। रात में घर की छत पर स्थित पानी की टंकी में पाइप डालकर पानी चोरी बढ़ने लगी है। तलोजा जैसे औद्योगिक परिसर में भी लोग पिछले कुछ माह से पानी की पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने से परेशान हैं। इस परिसर में दो दिन जल आपूर्ति बंद होती है। उद्योग चलाना मुश्किल हो गया है इसलिये इन लोगों ने पानी के लिये सरकार से गुहार लगाई है। गाँव में ही जल के लिये कोहराम मच गया है, ऐसी बात नहीं है। शहरों में भी जल आपूर्ति की समस्या अब भयावह होती जा रही है। दादर स्थित फूल बाजार में मनपा ने एक मछली बाजार भी बनाया है। यहाँ पर मछली बेचने वालों को हाथ धोने के लिये पानी उपलब्ध नहीं है।

दुनिया ने आज कितनी तरक्की कर ली है, फिर भी उस तरक्की के बाद भी हम दो बूँद पानी के लिये मारपीट कर रहे हैं। परमाणु बम के टॉप क्लब में शामिल होने का गौरव हमें प्राप्त है लेकिन देश की जनता को जीवनदायी जल देने में हम असफल साबित हो रहे हैं। घर के कम्प्यूटर पर देश-दुनिया की जानकारी हमें पल भर में मिलती है। लेकिन पानी के लिये दर-दर भटकना पड़ रहा है। राजधानी दिल्ली में तो आम आदमी की सरकार है, फिर भी वह आम आदमी को एक बूँद पानी मुफ्त में देने में असफल है। कुछ साल पहले राजधानी में पाँच हजार सरकारी नल थे लेकिन विकास की आँधी में करीब चार हजार नल उड़ गये। बड़े-बड़े समुद्र, नदियों और झरनों के साथ ही तालाब, कुँए और बावड़ी की उपस्थिति में भी लोग पानी के लिये हाय-हाय क्यों कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब ढूँढ़ने का समय आ गया है।

जल संसाधनों और उसके प्रबंधन को हर स्तर पर अब प्राथमिकता मिलनी चाहिये। पिछले डेढ़ दशक से जल संसाधन मंत्रालय को महत्त्वहीन समझा जा रहा था। उसकी अहमियत को स्वीकार करने का समय आ गया है। अन्यथा आने वाली पीढ़ी को हम इस सवाल का जवाब भी नहीं दे पाएँगे कि हिन्दुस्तान में पानी को अमृत क्यों कहा जाता है? इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि रंगों के त्यौहार से पहले ही ‘विश्व जल दिवस’ आया है। यह दिवस हमें पानी बचाने का संदेश दे रहा है। ‘जल है तो कल है’ इसलिये चलो संकल्प करें कि होली पर पानी बचाकर न सिर्फ आप अपने को बल्कि समूचे विश्व को एक नये रंग में रंग देंगे।

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