जल प्रदूषण की मार प्रदेश की डेढ़ करोड़ की आबादी पर

Water Pollution
Water Pollution

पंजाब में नदियों में डाला जा रहा सीवरेज का दूषित पानी

सतलुज और व्यास नदियों के प्रदूषण का यह मुद्दा गंभीर है। लेकिन न तो इस पर पंजाब सरकार गंभीर है और न ही राजस्थान सरकार। नतीजा सामने है। पंजाब के कई जिले आज कैंसर की चपेट में हैं। वहाँ कैंसर महामारी का रूप ले चुका है। भठिंडा से बीकानेर जाने वाली एक यात्री गाड़ी का नाम ही कैंसर ट्रेन हो गया है। कुछ ऐसी ही स्थिति श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में भी बन रही है।श्रीगंगानगर। विश्व भर में आज पर्यावरण को लेकर चिन्ता व्यक्त की जा रही है। लेकिन इसे बचाने के लिये किए जा रहे प्रयास कागजी ही हैं। पर्यावरण को बिगाड़ने के खतरे अब साफ नजर आने लगे हैं। पृथ्वी का तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे जल प्रलय और जल संकट दोनों की भविष्यवाणियाँ लगातार हो रही है।

सरस्वती की तरह अगर गंगा लुप्त हो गई तो भारत के कई राज्यों में पानी का गम्भीर संकट खड़ा हो जायेगा और आज जो इलाका हरा-भरा दिखाई दे रहा है, वह रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा। फिर भी गंगा को प्रदूषित करने से हम बाज नहीं आ रहे। आसन्न खतरे को देख कर भी उसे बचाने के प्रयास हम नहीं कर रहे। सोच यही है कि गंगा तो बहती रहेगी। कुछ ऐसी ही सोच के चलते देश की अन्य नदियों की काया और उसके पानी को बिगाड़ने का काम बड़े पैमाने पर चल रहा है। जीवनदायिनी नदियों से हो रहे ऐसे व्यवहार पर अंकुश लगाने के लिये देश में अव्वल तो कोई कानून नहीं। अगर है तो वह इतनी लचर है कि उसकी किसी को परवाह नहीं।

सतलुज और व्यास नदियों को ही लें तो पंजाब व राजस्थान को सिंचाई के साथ-साथ पेयजल उपलब्ध करा रही इन नदियों को पंजाब में कूड़ादान बना दिया गया है। वहाँ के बारह से अधिक शहरों के सीवरेज का पानी इन नदियों में डाला जा रहा है। रही-सही कसर औद्योगिक इकाइयां पूरा कर रही हैं। उनका रासायनिक अपशिष्ट भी इन्हीं नदियों के पानी में घुल रहा है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जाँच में यह बात सामने आ चुकी है कि औद्योगिक इकाइयों के रासायनिक अपशिष्ट में पारा और सीसा जैसी कई ऐसी धातुयें हैं जो मानव शरीर के लिये अत्यंत घातक होती है। मानव जीवन से हो रहे खिलवाड़ को रोकने के लिये संत बलवीर सिंह सीचेवाल की जनहित याचिका पर पंजाब हाईकोर्ट नदियों में डाले जा रहे रासायनिक अपशिष्ट पर कड़ाई से रोक लगाने का आदेश दे चुका है। लेकिन इसकी पालना आज तक नहीं हुई। औद्योगिक इकाइयों के रासायनिक अपशिष्ट आज भी बुढ्ड़े नाले के जरिये, सतलुज और व्यास नदियों के पानी में मिल रहा है।

मुद्दा गंभीर, सरकार गंभीर नहीं


सतलुज और व्यास नदियों के प्रदूषण का यह मुद्दा गंभीर है। लेकिन न तो इस पर पंजाब सरकार गंभीर है और न ही राजस्थान सरकार। नतीजा सामने है। पंजाब के कई जिले आज कैंसर की चपेट में हैं। वहाँ कैंसर महामारी का रूप ले चुका है। भठिंडा से बीकानेर जाने वाली एक यात्री गाड़ी का नाम ही कैंसर ट्रेन हो गया है। कुछ ऐसी ही स्थिति श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में भी बन रही है। पिछले कई सालों में इन दोनों जिलों में कैंसर रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हनुमानगढ़ जिले की टिब्बी तहसील के एक गाँव में तो कैंसर रोगियों की संख्या राष्ट्रीय औसत से ज्यादा पाई गई है। पंजाब से गंगनहर, भाखड़ा और इंदिरा गांधी नहरों के माध्यम से आ रहे सतलुज और व्यास नदियों के पानी को राजस्थान के आठ जिलों की डेढ़ करोड़ से अधिक की आबादी पेयजल के रूप में उपयोग कर रही है। ऐसे में राजस्थान सरकार को बजाय कागजी दावे करने के जल प्रदूषण रोकने को पंजाब के साथ साझा योजना बनानी चाहिये। इसी में दोनों राज्यों का हित है।

कितना खतरनाक अपशिष्ट


औद्योगिक इकाइयों का रासायनिक अपशिष्ट कितना खतरनाक है, इसका पता उन गाँवों में जाने पर पता चलता है जो रासायनिक अपशिष्टों को सतलुज और व्यास नदियों तक ले जाने वाले नाले के मुहाने पर बसे हैं। उन गाँवों में कैंसर की बीमारी तो आम है। नाले से उठने वाली गैस इतनी जहरीली है कि उसके असर से मकानों के लगे लोहे के गेटों में छेद हो गए हैं। यही स्थिति घरों के ऊपर लगी डिश एंटीना की छतरियों की है। नदियों में डाले जा रहे औद्योगिक इकाइयों के रासायनिक अपशिष्ट से जब लोहे में छेद हो सकते हैं तो मानव शरीर की क्या हालत होती होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading