जल संसाधन के इष्टतम उपयोग में प्रबंधन की भूमिका- एक विषय विशेष अध्ययन

जलाशयों की संरक्षण मांगों को उत्तम प्रकार से तभी संतुष्ट किया जा सकता है जब जलाशय मानसून के मौसम के अंत तक अधिक से अधिक भर जाए। दूसरी ओर बाढ़ नियंत्रण के लिए जलाशय में संचयन स्थान को खाली रखा जाता है ताकि भविष्य में आने वाली बाढ़ को जलाशय में संग्रहित किया जा सके। संचयन स्थान की आवश्यकता, दोनों उद्देश्यों (संरक्षण एवं बाढ़ नियंत्रण) के लिए अलग-अलग होने के कारण होने वाले मतभेद को जलाशय के समुचित संचालन के द्वारा दूर किया जाता है।

जल प्रकृति का एक बहुमूल्य वरदान है। बढ़ती जनसंख्या, बढ़ते उद्योग, उच्चतर रहन-सहन एवं जल के विभिन्न उपयोगों के कारण जल की आवश्यकताएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं जबकि जल की उपलब्ध मात्रा सीमित है। आज आवश्यकता है कि उपलब्ध जल की मात्रा का इष्टतम उपयोग किया जाए ताकि जल संबंधी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। जल के इष्टतम उपयोग में जल प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका है। समयोचित प्रबंधन के द्वारा विभिन्न समस्याओं जैसे सूखा, बाढ़, जल ग्रसन आदि पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इस प्रपत्र में यह दर्शाया गया है कि जलाशयों के उचित प्रबंधन द्वारा जल से संबंधित विभिन्न समस्याओं पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। इस अध्ययन में साबरमती जलसंग्रह क्षेत्र में स्थित विभिन्न जलाशयों का प्रबंधन विश्लेषण किया गया है ताकि सूखा एवं बाढ़ संबंधी समस्याओं का समयानुसार समाधान किया जा सके। यह भी दर्शाया गया है कि यदि प्रबंधन के उचित निर्णय समय से पूर्व ही न लिए जाएं तो समस्याएं काफी गंभीर हो सकती हैं।

मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं में जल का प्रमुख स्थान है। प्रगति के विभिन्न आयामों के साथ-साथ जल की मांगों में वृद्धि हुई है तथा जल की मात्रा सीमित होने के कारण प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता काफी कम हुई है। उद्योंगों की निरंतर वृद्धि के कारण जल की गुणता में भी काफी ह्रास हुआ है। अतः आवश्यकता है कि उचित प्रबंधन द्वारा उपलब्ध जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग किया जाए।

जल संसाधनों के नियमित उपयोग में जलाशयों की प्रमुख भूमिका है। जलाशयों का प्रमुख उद्देश्य अतिवृष्टि के समय अतिरिक्त जल को एकत्रित कर भविष्य में मांगों के अनुसार जल को उपलब्ध करवाना है। भारत में जलाशयों का प्रमुख उद्देश्य सिंचाई, घरेलू उपयोग, विद्युत उत्पादन एवं उद्योगों में जल को नियमित रूप से उपलब्ध कराने के लिए उसका संरक्षण करना है। इसके अतिरिक्त जलाशय बाढ़ नियंत्रण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जलाशयों की संरक्षण मांगों को उत्तम प्रकार से तभी संतुष्ट किया जा सकता है जब जलाशय मानसून के मौसम के अंत तक अधिक से अधिक भर जाए। दूसरी ओर बाढ़ नियंत्रण के लिए जलाशय में संचयन स्थान को खाली रखा जाता है ताकि भविष्य में आने वाली बाढ़ को जलाशय में संग्रहित किया जा सके। संचयन स्थान की आवश्यकता, दोनों उद्देश्यों (संरक्षण एवं बाढ़ नियंत्रण) के लिए अलग-अलग होने के कारण होने वाले मतभेद को जलाशय के समुचित संचालन के द्वारा दूर किया जाता है। जलाशय से प्राप्त होने वाले लाभ इस तथ्य पर काफी निर्भर करते हैं कि जलाशय का प्रचालन कितनी कुशलतापूर्वक किया गया है। जलाशय प्रचालन जल संसाधन तंत्र की योजना एवं प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जलाशय पर नियुक्त अभियंता/प्रचालक को विस्तृत निर्देश दिए जाते हैं जो उन्हें जलाशय प्रबंधन संबंधी उचित निर्णय लेने में सहायक होते हैं।

इस अध्ययन में साबरमती बेसिन में स्थित विभिन्न जलाशयों के लिए प्रचालन नियम सुझाएं गए हैं, ताकि उपलब्ध जल का इष्टतम उपयोग किया जा सके तथा जलीय आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़ आदि से बचा जा सके। जल संसाधन संबंधी मांगों जैसे सिंचाई, घरेलू उपयोग एवं उद्योगों के लिए आवश्यक जल को नियमित प्रकार से संतुष्ट करने के लिए नियम वक्र विकसित किए गए हैं। साबरमती जलसंग्रह क्षेत्र में स्थित प्रमुख नगरों जैसे अहमदाबाद एवं गांधीनगर को बाढ़ के प्रकोप से बचाने के लिए एक प्रमुख बांध (धरोई बांध) का बाढ़ नियमन अध्ययन कर बाढ़ प्रचालन नीति विकसित की गई है। इस प्रपत्र का मुख्य उद्देश्य उचित प्रबंधन से होने वाले लाभ को प्रदर्शित करना है ताकि प्रबंधन से प्रभावित उपयोगकर्ता इसके महत्व व भूमिका को समझ सके तथा समय-समय पर लिए गए प्रबंधन संबंधी निर्देशों का अनुकरण कर सकें। इस प्रपत्र में संरक्षण एवं बाढ़ संबंधी नीति को विकसित करने की तकनीक का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है।

इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें



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