जल संसाधन के क्षेत्र में समस्थानिक तकनीकों का प्रयोग-एक नवीन युक्ति


समस्थानिक ऐसे तत्वों के परमाणु होते हैं जिनकी परमाणु संख्या समान होती है लेकिन परमाणु भार भिन्न होते हैं। समस्थानिक रेडियोएक्टिव एवं स्थायी प्रकृति के हो सकते हैं। आजकल, पर्यावरणीय समस्थानिक (स्थायी एवं रेडियोएक्टिव) का जल विज्ञानीय अन्वेषणों के लिए काफी उपयोग हो रहा है। समस्थानिक जलविज्ञान जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन में ट्रेसर्स के अनुप्रयोग का विज्ञान है।

जलविज्ञान एवं जलसंसाधनों में समस्थानिकों का अनुप्रयोग एक नवीन विषय है लेकिन पिछले कुछ दशकों से ही इसके महत्व को समझा गया है। इसका कारण जल क्षेत्र में समस्याओं में बहुत ज्यादा वृद्धि होना है, विशेषकर भूजल मात्रा में कमी आना, जल गुणता में ह्रास तथा अन्य बहुत से पूर्वानुमान न हो पाने वाली प्राकृतिक घटनाएं जो जलविज्ञानीय चक्र को प्रभावित करती है। पारम्परिक विधियाँ इस समस्याओं के कारण बताने में असमर्थ है जबकि समस्थानिक तकनीकें इनकी स्पष्ट तस्वीर बतातीं है तथा उपयुक्त हल ढूंढने में सहायक है।

जल विज्ञान में समस्थानिकों का अनुप्रयोग सामान्य तौर पर “ट्रेसर्स” के रूप में किया जाता है जिसमें कृत्रिम समस्थानिकें का प्रयोग किया जाता है अथवा प्राकृतिक रूप में उपलब्ध (पर्यावरणीय) समस्थानिकों का अनुप्रयोग किया जाता है। पर्यावरणीय समस्थानिकों (रेडियोएक्टिव अथवा स्थायी) का अप्राकृतिक समस्थानिकों (कृत्रिम)/ ट्रेसर्स की तुलना में विशेष लाभ है क्योंकि वह जलविज्ञानीय तंत्र में अपने प्राकृतिक वितरण के कारण बहुत अधिक अवधि एवं स्थलिक पैमाने पर विभिन्न जलविज्ञानीय अध्ययनों में सहायक होते हैं।

जल संसाधन के क्षेत्र में समस्थानिक तकनीकों का प्रयोग: एक नवीन युक्ति (Isotope techniques in water resources: an advanced tool)



भीष्म कुमार एवं तिलक राज सपरा

सारांश


समस्थानिक ऐसे तत्वों के परमाणु होते हैं जिनकी परमाणु संख्या समान होती है लेकिन परमाणु भार भिन्न होते हैं। समस्थानिक रेडियोएक्टिव एवं स्थायी प्रकृति के हो सकते है। आजकल पर्यावरणीय समस्थानिक (स्थायी एवं रेडियोएक्टिव) का जलविज्ञानीय अन्वेषणों के लिये काफी उपयोग हो रहा है। समस्थानिक जलविज्ञान जल संसाधन विकास एवं प्रबन्धन में ट्रैसर्स के अनुप्रयोग का विज्ञान है। जलविज्ञान एवं जल संसाधनों में समस्थानिकों का अनुप्रयोग एक नवीन विषय है लेकिन पिछले कुछ दशकों से ही इसके महत्व को समझा गया है इसका कारण जल क्षेत्र में समस्याओं में बहुत ज्यादा वृद्धि होना है, विशेषकर भूजल मात्रा में कमी आना, जल गुणता में ह्रास तथा अन्य बहुत से पूर्वानुमान न हो पाने वाली ऐसी प्राकृतिक घटनाएं जो जलविज्ञानीय चक्र को प्रभावित करती है। पारम्परिक विधियाँ इन समस्याओं के कारण बताने में असमर्थ हैं जबकि समस्थानिक तकनीके इनकी स्पष्ट तस्वीर बताती हैं तथा उपयुक्त हल ढूढने में सहायक हैं।

जल विज्ञान में समस्थानिकों का अनुप्रयोग सामान्य तौर पर ‘‘ट्रेसर्स’’ के रूप में किया जाता है जिनमें कृत्रिम समस्थानिकों का प्रयोग किया जाता है अथवा प्राकृतिक रूप में उपलब्ध (पर्यावरणीय) समस्थानिकों का अनुप्रयोग किया जाता है। पर्यावरणीय समस्थानिकों (रेडियोएक्टिव अथवा स्थायी) का अप्राकृतिक समस्थानिकों (कृत्रिम/ ट्रेसर्स) की तुलना में विशेष लाभ है क्योंकि वह जलविज्ञानीय तन्त्र में अपने प्राकृतिक वितरण के कारण बहुत अधिक अवधि एवं स्थलिक पैमाने पर विभिन्न जल विज्ञानीय अध्ययनों में सहायक होते हैं। इसलिए समय एवं स्थान समेकित अभिलक्षणों की प्राप्ति के लिये जल संसाधनों के क्षेत्रिय अध्ययनों में पर्यावरणीय समस्थानिकों का प्रयोग सर्वोत्त्म तकनीक है। फिर भी स्थल-विशेष एवं स्थानीय अनुप्रयोगों के लिये कृत्रिम ट्रेसर्स का प्रयोग ही एक प्रभावी तकनीक है। सामान्यतया, समस्थानिक ट्रेसर्स का स्वतंत्र रूप से उपयोग नहीं किया जाता है अपितु जलविज्ञानीय तन्त्र में हो रही प्रक्रियाओं को समझने के लिये यह जलविज्ञानीय भू-अन्वेषणों एवं भू-रासायनिक सूचनाओं का पूरक है। इसलिये, जलविज्ञानीय अन्वेषणों में जल-रासायनिक एवं जल-भूगर्भीय तकनीकों के साथ-साथ समस्थानिक तकनीकों का उपयोग करना चाहिए क्योंकि सभी समस्थानिक, जल-भौतिकीय, जल-रासायनिक एवं जल गतिकीय प्रक्रियाएं समय एवं काल से संबंधित हैं इसलिये अध्ययन क्षेत्र में जल के नमूनों एवं जलविज्ञानीय अवस्थाओं के सभी पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए।

जलविज्ञानीय अध्ययनों के लिये बहुत प्रकार के पर्यावरणीय स्थायी एवं रेडियोएक्टिव समस्थानिकों का अनुप्रयोग किया जाता है। (जैसा कि पर्यावरणीय समस्थानिक 2H, 3H, 3He, 6Li, 11B, 13C, 14C, 15N, 18O, 34S, 36Cl, 37Cl, 81Br, 81Kr, 87Sr, 129I, 137Cs, 210Pb इत्यादि। 3H, 46Sc, 60Co, 82Br, 131I, 198Au इत्यादि पूर्व में कृत्रिम रूप से उत्पादित रेडियोएक्टिव समस्थानिकों का प्रयोग केवल ट्रेसर्स के रूप में सीमित उपयोग किया जाता था परंतु अब पर्यावरणीय समस्थानिकों ( रेडियोएक्टिव एवं स्थायी दोनों समस्थानिक) का उपयोग विभिन्न प्रयोगों के लिये किया जाता है। इससे स्वास्थ्य के लिये कोई खतरा भी नहीं होता। पर्यावरणीय समस्थानिक स्वतः ही वायुमण्डल में पहुँचते रहते हैं तथा जलविज्ञाननीय चक्र में स्वतः ही शामिल होते रहते हैं इसलिये उपयोगकर्ताओं को न तो इनको खरीदना पड़ता है और न ही जलविज्ञानीय चक्र में इनजैक्ट करना पड़ता है।

Isotopes are the atoms of an element with same atomic number but different atomic weight. Isotopes may be radioactive and stable by nature. Now a days, environmental isotopes (stable and radioactive) are widely used for hydrological investigations. Isotope Hydrology deals with the application of isotopes as tracers in water resources development and management. Applications of isotopes in hydrology and water resources are relatively a new subject, but its importance has been felt more in recent years. This is due to tremendous increase of problems in water sector, particularly depleting groundwater quantity, deterioration, in water quality and many other unpredictable natural events that affect the hydrological cycle. The conventional methods often fail to provide insight to these problems, while isotope techniques provide picture and helps in finding a suitable solution. Applications of isotopes in hydrology are based on the general concept of “tracing”, in which either intentionally introduced isotopes or naturally occurring (environment) isotopes are employed Environment isotopes (either radioactive or stable) have a distinct advantage over injected (artificial) tracers and these facilitate the study of various hydrological processes on a much larger temporal and spatial scale through their natural distribution in a hydrological system.

Thus, environmental isotope methodologies are unique in regional studies of water resources to obtain time and space integrated characteristics whereas the artificial tracers generally are effective for site-specific, local applications. Generally, isotope tracers are not used as an independent tool but to supplement hydrogeological, geophysical and geochemical information for a better understanding of the processes taking place in a hydrogeological system. Therefore in hydrogeological investigations, isotope techniques should be used routinely along with hydrochemical and hydrogeological techniques. As all isotopic, hydrogeological and hydronamic interpretations are space and time related, it is imperative that one should consider all the related aspects of water sampling and prevailing hydrogeological conditions in a study area.

A large variety of environmental stable and radioactive istopes are emplied for hydrogeological studies (e.g., 2H, 3H, 3He, 6Li, 11B, 13C, 14C, 15N, 18O, 34S, 36Cl, 37Cl, 81Br, 81Kr, 87Sr, 129I, 137Cs, 210Pb etc. ) However, the stable isotopes have been distinct advantage over injected (artificial) tracers 3H, 46Sc, 60Co, 82Br, 131I, 198Au, etc.) is that they facilitate the study of various hydrogeological process on a much larger temporal and spatial scale though their natural distribution in a system. Earlier, artificially produced radioactive isotopes which were being used with a very limited isotopes are widely used for a variety of applications with no fear of health hazards. Environmental isotopes are freely available in the atmosphere and automatically injected into the hydrologic cycle. Therefore, the users have neither to purchase these isotopes nor to inject them in the hydrogeological system.

जल संसाधनों के बेहतर रख-रखाव में समस्थानिकों का प्रयोग


समस्थानिक तकनीक में जल के एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित होने तथा मिश्रित करने के दौरान घटने वाले सभी जलविज्ञानीय चक्रों एवं प्रक्रियाओं को ट्रेस करने की सामर्थ्य है। इसीलिये समस्थानिक जलविज्ञान बहु-विषयक विज्ञान क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ है। अधिक सामर्थ्य समस्थानिक मापन के लिये संगणक आधारित एवं स्वचालित मापयंत्रों के विकास के साथ नवीन उपागमों का विकास हुआ है जिससे समस्थानिक तकनीकों में नये-नये अनुप्रयोग तथा युक्तियाँ जुड़ गई हैं। अब विभिन्न जलविज्ञानीय अध्ययनों को करने में समस्थानिक तकनीकों का प्रभावी उपयोग हो सकता है। जल संसाधन के क्षेत्र में विभिन्न जलविज्ञानीय अन्वेषणों के लिये तथा समस्याओं के संभावित हल के लिये समस्थानिकों के महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग की सूची नीचे दिये गई है। परन्तु यह पूर्ण सूची नहीं है तथा इसके और भी बहुत से अनुप्रयोग हो सकते हैं।

सतही जल


1. झीलों और जलाशयों की गतिशीलता और जल संतुलन।
2. सतही जल और भूजल अन्तः क्रिया।
3. जल निकायों से रिसाव और टपकना।
4. पहाड़ी नदियों का निस्सरण मापन।
5. झीलों और जलाशयों में अवसादन।
6. जलविभाजक/जल ग्रहण क्षेत्र से मृदा अपरदन।
7. गलित हिम अपवाह और जलालेख विघटन।
8. निलम्बित एवं तटीय अवसादन परिवहन।
9. प्रदूषण के स्रोत एवं अनुलेखन।
10. पेलियो (बहुत पुराना) जलविज्ञानीय अन्वेषण एवं जल विभाजक प्रबन्धन।

भूजल


1. मृदा आर्द्रता विविधता एवं इसकी गतिशीलता।
2. सिंचाई/मानसून वर्षा के कारण भूजल पुनः पूरण।
3. पुनः पूरण स्रोत तथा गहरे जलदायी क्षेत्रों का अभिनिर्धारण।
4. भूजल वेग एवं प्रवाह दिशा।
5. अन्तर्देशीय/तटीय जलदायी क्षेत्रों में भूजल का लवणीकरण तथा अन्य प्रदूषण अनुरेखण एवं स्रोत।
6. भूजल के कृत्रिम पुनः पूरण की प्रभाविकता।
7. भूजल एवं सतही जल सह-संबंध।
8. जलदायी क्षेत्र सह-संबंध।
9. जल निकायों की अन्तः क्रिया।
10. 3H एवं 14C डेटिंग का
11. हिमगलन सतही अपवाह एवं भूजल घटकों का जलालेख में विभाजन।

पर्यावरणीय


1. वैश्विक और क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन।
2. वर्षा के स्रोतों और मानसून की शुरुआत।
3. प्रेक्षण में स्थानीय वाष्पीकरण का योगदान।
4. जल विज्ञानीय चक्र का अनुरेखन।
5. प्रेक्षण एवं ऊँचाई, अक्षांश और महाद्वीपीय प्रभाव।
6. पर्यावरणीय अनुरेखन प्रदूषण।
7. वायुमण्डल में मात्रा स्थानान्तरण की वैश्विक प्रवृत्ति।
8. वर्षा में स्थलीय और समय में समस्थानिक भिन्नता और अन्य जल आधार आँकडा उत्पादन।
9. वन और पारिस्थितिकी अध्ययन।

जल संसाधन में प्रमुख चुनौतियाँ जहाँ इनको हल करने के लिये समस्थानिकों का उपयोग किया जा सकता है:


1. महानगरों की जल समस्याओं के हल के लिये विकासशील उपागम।
2. पर्यावरणीय प्रदूषण के जटिल एवं बढ़ते खतरे का हल ढूंढना।
3. वैश्विक जलवायु परिवर्तन को समझने में योगदान देना।
4. समस्थानिक तकनीकों के प्रायोगिक अनुप्रयोग में नवीन मापयन्त्रण।
5. जल संसाधन एवं भूतापीय उर्जा संसाधन प्रबन्धन।
6. जल विज्ञानीय प्रक्रियाओं की अच्छी समझ तथा जल संसाधनों का प्रबन्धन।
7. कुछ विशिष्ट आवश्यकताओं (जैसे कि आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में) की पूर्ति के लिये जल के वैकल्पिक स्रोतों की उपयुक्तता की जाँच करना।
8. ट्रांस बाउन्ड्री प्रबन्धन विषयों को हल करना।

क्या आप जानते हैं कि भूजल, सतही जल से काफी धीमी गति से बहता है। भूजल की गति मिलीमीटर से मीटर/वर्षा होती है तथा वह माह से हजारों वर्ष पुराना हो सकता है जबकि सतही जल की गति कई मीटर/सेकेंड हो सकती है यहाँ तक कि सबसे लम्बी नदी का जल कुछ सप्ताह में पुनः नवीन हो जाता है यदि भूजल पुराना है तो जलाशय अथवा जलदायी स्तर सम्भवतः पुनः भर नहीं सकता। क्या आपने सोचा है कि आपका पीने का जल कितना पुराना है अथवा यह कहाँ से आया है? आप इन प्रश्नों का उत्तर कैसे देंगे? क्या आप जानना चाहते हैं कि इन प्रश्नों का तथा जल संसाधनों के बारे में ऐसे अन्य कई प्रश्नों का उत्तर समस्थानिकों द्वारा पाया जा सकता है।

भारत में समस्थानिक मापन सुविधाएँ


वर्तमान में भारत में समस्थानिक मापन की सुविधाएँ कई संगठनों में उपलब्ध हैं जैसे किः

1. भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद
2. राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (एन.आई.एच.) रुड़की
3. भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बी.ए.आर.सी.) मुंबई
4. परमाणु अनुसंधान (एन.आर.एल.) प्रयोगशाला, आई.सी.ए.आर. दिल्ली
5. राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (एन.आई.ओ.), गोवा
6. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर (आई.आई.टी. खड़गपुर)
7. उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान का भारतीय संस्थान (आई.आई.टी.एम.), पुणे
8. जल संसाधन विकास और प्रबंधन केन्द्र, कोझीकोट, केरल (CWRDM)
9. ऐन्टार्कटिक और समुद्री (एन.सी.ए.ओ.आर.) अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय केन्द्र, गोवा

परमाणु जलविज्ञान प्रयोगशाला, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की


न्यूक्लियर हाइड्रोलॅाजी प्रयोगशाला एवं न्यूक्लियर जलविज्ञान प्रभाग वर्ष 1993 में यू.एन.डी.पी. द्वारा सहायता प्राप्त परियोजना के तहत संस्थान को सृदढ़ बनाने के दौरान स्थापित किये गये थे। इस प्रयोगशाला की क्षमताएं एवं सुविधाएं निम्न प्रकार से हैं:

 

Radioactive Isotopes

Environmental/Stable Isotopes

Environmental Tritium (3H)

Hydrogen-2(2H) or Deuterium

Artificial Tritium (3H)

Carbon-13 (13C)

Carbon-14 (14C)

Oxygen-18 (18O)

Caesium-137 (137Cs)

Nitrogen-15 (15N)

Lead-210 (210 Pb)

Sulpher-34 (34S)

Polonium-210 (210 Po)

Chlorine-37 (37CI)

Bismuth-210 (210Bi)

 

Radium-226 (226 Ra)

 

Radon-222 (222 Rn)

 

Uranium-238(238U)

 

 

भारतीय संस्थाएं तथा इस क्षेत्र में कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति विभिन्न प्रकार के समस्थानिक घटकों/सान्द्रण का भुगतान आधार पर अथवा मूल्य रहित, यदि संयुक्त समन्वयन गतिविधि है, आधार पर जल/अवसाद नमूनों में विश्लेषण करा सकते हैं।

समस्थानिकों के जलसंसाधन के क्षेत्र में उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभान ने निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ एक बड़ी परियोजना को स्वीकृति दी। विभिन्न जलस्रोतों से जल नमूना एकत्रीकरण के लिये इस परियोजना के अंतर्गत कुल चौदह भिन्न-भिन्न संस्थाओं को शामिल किया गया।

1. स्थानीय वायुमण्डल में क्षेत्रीय/स्थानीय जलवाष्प घटक का अभिधारण

2. वर्षा की जल वाष्प में हिस्सेदारी एवं मात्रात्मककरण तथा वर्षा का विभिन्न घटकों जैसे कि वाष्पोत्सर्जन, मृदा आर्द्रता, सरित प्रवाह एवं भूजल में पुनः हिस्सेदारी।

3. भिन्न अन्तरदेशीय जलविज्ञानीय इकाइयों में वाष्प/जल का ठहराव समय का निर्धारण।

4. मौसमीय एवं स्थलीय आधार पर वायुमण्डलीय/सतही जल/भूजल अन्तः क्रिया से संबंधित अन्वेषण।

5. भारतीय उपमहाद्वीप के समस्थानिक जलविज्ञान आँकड़ा आधार के लिये वेब संसाधन का विभाग।

सन्दर्भ
1. अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा संस्थान, ‘‘जल विज्ञान में न्यूक्लियर तकनीक पर दिग्दर्शिका’’ तक प्रति रु. 91, (1968)

2. ‘‘स्थायी समस्थानिक भू-रसायन,’’ तृतीय संस्करण, होट्स, जे स्प्रिंजर, वरलैग, बर्लिन, (1987)

3. केन्काल सी एवं मैकडोलन जे जे, ‘‘आवाह क्षेत्र जलविज्ञान में समस्थानिक ट्रेसर’’, एल्जेवियर विज्ञान, एम्सटर्डम, (1938) 839.

4. ऐटनडोरन एच जी एवं बोवन आ एन सी, ‘‘रेडियोएक्टिव एवं स्थायी समस्थानिक भूविज्ञान,’’ पैपमैन एवं हाल, लन्दन, (1997) 522.

5. बोवन आर एन सी, ‘‘भूविज्ञान में समस्थानिक’’, एल्जेवियर, अनुप्रयुक्त विज्ञान’’, लन्दन (1991) 483

6. फ्रिब्ज पी एवं फोन्टस जे सी, ‘‘पर्यावरणीय समस्थानिक भू-रासायनिकी पर दिग्दर्शिका’’, खण्ड-2, एम्सटर्डम, (1986) 557.

8. गैट जे आर एवं गोनफियानटिनी आर, ‘‘स्थायी समस्थानिक जलविज्ञान जल चक्र में डयूटीरियम एवं ऑक्सीजन 18’’, IAEA तकनीकी प्रतिवेदन, विज्ञान रु. 210, (1981) 33.

9. होप्स जे, ‘‘स्थायी समस्थानिक भू रासायनिकी’’ चतुर्थ संस्करण, स्प्रिनजर वरलैग बर्लिन, (1997) 214.

10. ग्रुट पी डी, ‘‘स्थायी समस्थानिक विश्लेषण तकनीक के लिये दिग्दर्शिका’’ खण्ड एक एवं दो.

सम्पर्क
भीष्म कुमार एवं तिलक राज सपरा, Bhishm Kumar & Tilak Raj Sapra
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, National Institute of Hydrology Roorkee
भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका, 01 जून, 2012

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