जलपोतों के पर्यावरणीय दृष्टि से उचित रूप से विखण्डन के सिद्धान्त

11 Jul 2017
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3.1 बेसेल संधि की अवधारणा


पृष्ठभूमि
बेसेल संधि की एक बाध्यता है कि खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों को न्यूनतम रखा जाये और जहाँ तक सम्भव हो, उन्हें वहीं निपटाया जाये जहाँ वे बने हैं। खतरनाक अपशिष्टों और अन्य अपशिष्ट पदार्थों को सीमा पार तभी ले जाया जा सकता है जब इन्हें निर्यात करने वाला राज्य इन्हें आयात करने वाले राज्यों और जिन राज्यों में से होते हुए ये अपशिष्ट गुजरेंगे, उन राज्यों के सक्षम अधिकारियों को लिखित पूर्वसूचना भेज चुका हो। प्रत्येक संचलन के साथ संचलन दस्तावेज और दूसरे पक्ष की सहमित होने चाहिए। इन दस्तावेजों के बिना भेजे गए खतरनाक अपशिष्ट पदार्थ गैरकानूनी होंगे।

बेसेल संधि का एक अन्य प्राथमिकतापूर्ण उद्देश्य है मानव स्वास्थ्य की रक्षा और जहाँ तक सम्भव हो पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्धन (ईएसएम) के जरिए खतरनाक अपशिष्टों के उत्पादन को न्यूनतम करना। इसका मतलब है कि इस मुद्दे को समेकित जीवन-काल अभिगम से निपटाना चाहिए, जिसमें खतरनाक अपशिष्टों के निर्माण और भण्डारण; परिवहन; उपचार; पुनरुपयोग; पुनश्चक्रण, पुनर्प्राप्ति और अन्तिम निपटारे पर सख्त नियंत्रण रहेंगे।

जलपोत विखण्डन उद्योग पर अनुप्रयोज्यता


संधि के तहत जलपोतों के निर्माण और प्रचालन में ऐतिहासिक रूप से उपयोग की जाने वाली बहुत सी सामग्रियाँ खतरनाक अपशिष्ट बन जाएँगे। इन सामग्रियों में शामिल हैं, अन्य सहित, एसबेस्टोस, पीसीबी और जलपोतों के सामान्य प्रचालन से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ, जैसे, तेल के अवशेष और भारी धातुओं वाले उत्पाद।

ये पदार्थ जलपोत विखण्डन प्रक्रिया के निष्कर्षण चरण में छोड़े जाते हैं। इसलिये जलपोतों के पुनश्चक्रण उद्योग के पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्धन की आवश्यकता स्पष्ट है।

3.2 पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्ध (ईएसएम) की परिभाषा


बेसेल संधि की धारा 2.8 ईएसएम को इस प्रकार से परिभाषित करती है:

'खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों और अन्य पदार्थों का पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्ध” से तात्पर्य है खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों और अन्य पदार्थों का प्रबन्धन इस तरीके से हो कि वह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को इन अपशिष्ट पदार्थों के कारण होने वाले हर प्रतिकूल प्रभाव से बचाए।

इसके अलावा, पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्धन के लिये मार्गदर्शक सिद्धान्त विकसित करने के कार्य के लिये बेसेल संधि की धारा 4.2 का सीधा सम्बन्ध है:

धारा 4.2
हर पक्ष निम्नलिखित के लिये उचित उपाय करेगा:

1. यह सुनिश्चित करने के लिये कि सामाजिक, प्रौद्योगिकीय और आर्थिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इसमें खतरनाक और अन्य प्रकार के अपशिष्टों का निर्माण न्यूनतम हो;
2. यह सुनिश्चत करने के लिये कि खतरनाक और अन्य प्रकार के अपशिष्टों के पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्धन के लिये जो निपटारा सुविधाएँ लगाई जाएँगी, वे जहाँ तक हो सके वहीं लगाई जाएँगी जहाँ उनका निपटारा होना है;
3. यह सुनिश्चित करने के लिये कि उसमें जो लोग खतरनाक और अन्य प्रकार के अपशिष्टों के प्रबन्धन का कार्य कर रहे हैं, वे आवश्यकतानुसार ऐसे कदम उठाएँगे जो खतरनाक और अन्य अपशिष्टों के प्रबन्धन से होने वाले प्रदूषण, यदि ऐसा प्रदूषण हो, को न्यूनतम रखने और मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले उनके कुप्रभावों को न्यूनतम रखने के लिये जरूरी हो;
4. यह सुनिश्चित करने के लिये कि खतरनाक और अन्य प्रकार के अपशिष्टों के सीमापार संचलन को इस प्रकार के अपशिष्टों के पर्यावरणीय दृष्टि से उचित और कार्यक्षम रीति से प्रबन्धन के अनुसार न्यूनतम रहे तथा यह संचलन इस तरह किया जाये कि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण उसके कुप्रभावों से बचा रहे;
5. खतरनाक और अन्य अपशिष्ट पदार्थों को ऐसे राज्यों या राज्यों के समूहों को निर्यात की अनुमित न दें जो आर्थिक और/या राजनीतिक गठजोड़ संगठन के पक्ष हों, विशेषकर विकासशील देश जिन्होंने कानून पारित करके इस तरह के आयातों को निषिद्ध किया है, या यदि उन्हें यह मानने के लिये पर्याप्त कारण है कि इन अपशिष्ट पदार्थों का प्रबन्धन पर्यावरणीय दृष्टि से उचित रूप से इन पक्षों की प्रथम बैठक में निर्धारित कसौटियों के अनुरूप नहीं किया जाएगा;
6. यह आवश्यक बनाने के लिये कि खतरनाक और अन्य अपशिष्ट पदार्थों के प्रस्तावित सीमापार संचलन से सम्बन्धित सूचनाएँ सम्बन्धित राज्यों को अनुलग्नक 5 अ के अनुसार उपलब्ध कराई जाएँगी और इनमें यह स्पष्ट रूप से कहा जाये कि इस प्रस्तावित संचलन से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है;
7. यदि उसे यह मानने के लिये कारण हो कि विचाराधीन अपशिष्ट पदार्थों का प्रबन्धन पर्यावरणीय दृष्टि से उचित रूप से नहीं किया जाएगा, तो इन खतरनाक पदार्थों के आयात को रोकना;
8. इस प्रकार के अपशिष्ट पदार्थों के पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्धन को सुधारने और इनके गैरकानूनी आवाजाही को रोकने के लिये अन्य पक्षों और रुचि लेने वाले संगठनों के साथ सीधे अथवा सचिवालय के माध्यम से सहयोग करना, जिसमें खतरनाक और अन्य प्रकार के अपशिष्टों के सीमा पर संचलन के बारे में सूचना वितरण भी शामिल है।

यह स्पष्ट हो जाता है कि ईएसएम का अनुपालन करने वाली प्रक्रियाएँ विकसित करने के लिये विखण्डन सुविधाओं से सीधे रूप से जुड़ी हुई प्रक्रियाओं के अलावा अन्य कई प्रक्रियाओं के कारकों से निपटना भी आवश्यक हो सकता है। ईएसएम के उद्देश्यों की प्राप्त में शामिल हो सकते हैं, विखण्डन का लक्ष्य (जलपोत) और विखण्डन करने वाले कर्मी।

ईएसएम में ऐसे उपाय शामिल हैं जो अपशिष्ट पदार्थों के निर्माण को रोकते हैं। इसके लिये एक कार्यक्षम अभिगम होगा जलपोत निर्माण के ‘साफ’ अभिकल्पों को अमल में लाना। यह नए जलपोतों पर ही लागू हो सकता है। साफ जलपोत अभिकल्पन तौर-तरीकों में जलपोत के जीवन-काल के हर स्तर में उसकी कार्यक्षमता को स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरण की दृष्टि से और उसके घटक पदार्थों की दृष्टि से सर्वोत्तम रखना शामिल होगा। पर्यावरणीय पहलुओं पर विचार करते हुए टिकाऊ व्यवहार के प्रति अनुपालन के सिद्धान्तों को कसौटी बनाया जाना चाहिए। ऐसे कच्चे मालों का उपयोग जिनकी पुनर्प्राप्ति सम्भव नहीं है और उनके प्रक्रियण में लगने वाली ऊर्जा की माँग, तथा अपशिष्टों को न्यूनतम रखना और निपटारे के समय पुनश्चक्रण को इष्टतम स्तर पर पहुँचाना, जैसे विषयों की ओर ध्यान देना चाहिए। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से खतरनाक अपशिष्टों के प्रबन्धन को निम्नलिखित वरीयता-क्रम (घटते क्रम में) का पालन करना चाहिए:

- अपशिष्टों की रोकथाम – मत पैदा करो!
- अपशिष्टों को न्यूनतमीकरण – यदि खतरनाक अपशिष्ट को पूर्णतः रोका नहीं जा सकता हो, तो उन्हें न्यूनतम रखा जाये
- पुनश्चक्रण
- पुनः-प्रक्रियण – जिन अपशिष्टों का पुनश्चक्रण सम्भव न हो, उनका उपचार इस तरह किया जाना चाहिए कि वे खतरनाक न रहें
- निपटारा – यदि अपशिष्टों को सुरक्षित नहीं बनाया जा सकता हो, तो उनका निपटारा सुरक्षित रूप से किया जाना चाहिए, जिसमें जमीन में रिसाव (लीचिंग) और अन्य प्रतिकूल प्रभावों का मानिटरण भी शामिल है

इसलिये डीकमिशनिंग चरण की चुनौती है पैदा हुए अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा को न्यूनतम रखना और उनके पुनश्चक्रण/सामग्रियों और घटकों के पुनरुपयोग को अधिकतम करना। तदनुसार, अभिकल्पन चरण में सामग्रियों का चयन करते समय इस चुनौती को ध्यान में रखना चाहिए। वर्तमान जलपोतों के लिये यह प्रयास किया जाना चाहिए कि इनके प्रचालन में खतरनाक सामग्रियों के उपयोग को धीरे-धीरे बन्द किया जाये। ये पहलू जलपोत के तकनीकी मुद्दों से जुड़े हुए हैं और इन्हें आईएमओ की भूमिका में शामिल किये गए हैं (देखें अनुभाग 2.3)। ये मार्गदर्शक सिद्धान्त वास्तविक विखण्डन प्रक्रिया तक सीमित हैं और उपर्युक्त पहलुओं पर प्रकाश नहीं डालते।

3.3 ईएसएम की दृष्टि से जलपोत विखण्डन की विशिष्ट चुनौतियाँ


विश्व के जहाजी बेड़े को नवीनीकृत करने के लिये पुराने जलपोतों को निपटारे के लिये डीकमिशन करना आवश्यक है (तालिका 1 में चित्रित)। जलपोत मुख्य रूप से (कुछ प्रकार में 90 प्रतिशत तक) इस्पात से बना होता है और इसलिये विखण्डन प्रक्रिया बड़े पैमाने पर पुनश्चक्रण के अवसर लिये हुए होता है। भंगार के रूप में भारी मात्रा में इस्पात का स्रोत होने के अलावा, जलपोतों में विद्यमान उपकरण, घटक और अन्य उपभोग्य सामग्रियों का नया उपयोग सम्भव है।

जलपोत विखण्डन से अपशिष्टों की एक धारा निर्मित होती है जिसमें निम्नलिखित सामग्रियाँ होती हैं:

- लौह और अलौह भंगार जिसमें कोटिंग भी शामिल है
- घटक: मशीनें, बिजली के या इलेक्ट्रोनिक उपकरण, जोइनेरी, अयस्क, प्लास्टिक
- उपभोग्य वस्तुएँ: तेल, रसायन, गैस
- खतरनाक अपशिष्ट: एसबेस्टोस, कोटिंग, पीसीबी, इलेक्ट्रोनिक कचरा जैसी चीजें जो उनके घटकों और उनके निपटारे की विधि के अनुसार खतरनाक भी हो सकती हैं

विखण्डन प्रक्रिया से मलबा भी पैदा होता है जो अपशिष्ट धारा के संघटन के अनुरूप होता है और साथ ही कार्यविधियों से उत्सर्जन/निकसियाँ भी होती हैं।

ईएसएम की दृष्टि से मुख्य चुनौतियाँ अपशिष्ट धारा के प्रबन्धन में आती हैं, जिनमें शामिल हैं:

- निष्कर्षण
- छँटाई, पृथक्करण और तैयारी (काटना, आदि)
- परिवहन, भण्डारण और निपटारा

निष्कर्षण, छँटाई, पृथक्करण और तैयारी की प्रक्रियाओं के बाद पुनरुपयोग की सम्भावना वाले घटक और पुनश्चक्रित किये जा सकने वाले पदार्थ/सामग्रियाँ प्राप्त की जाती हैं।

विखण्डन की चुनौतियाँ – अपशिष्ट धारा


प्रचालनात्मक और पर्यावरणीय चुनौतियाँ विखण्डित होने वाले जलपोत की विशिष्टताओं के अनुरूप होंगी। इसी प्रकार, भविष्य में आवश्यक विखण्डन क्षमता विश्व के जहाजी बेड़े की आयु और विशिष्टता द्वारा संचालित होगी।

विश्व के वाणिज्यिक पोतों में से विखण्डन के लिये आने वाले पोतों की आपूर्ति को हर वर्ष 500-700 मालवाहक जहाजों का आँका गया है, जो 2.5 करोड़ डीडब्ल्यूटी के बारा है और जिनकी औसत आयु 25-26 वर्ष है। ये आँकड़े विनियमनों, उपलब्ध आँकड़ों और जलपोतों के पंजीकरण के आँकड़ों पर आधारित हैं और ये अगले 15 सालों के रुझानों को दर्शाते हैं। ये आँकड़े दर्शाते हैं कि जलपोत विखण्डन क्षमता में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि आवश्यक होगी जब हम 1994-1999 के दौरान प्रतिवर्ष औसत रूप से विखण्डित जलपोतों के आँकड़ों को देखें।

तालिका 2 में विखण्डन प्रक्रिया के क्रांतिक पहलुओं को वास्तविक चुनौतियों के साथ मिलान किया गया है। तालिका 3 में इन पर अधिक ब्यौरेवार जानकारी दी गई है और विभिन्न प्रक्रियाओं से निकलने वाले पदार्थों और उनके पर्यावरणीय परिणामों को पहचाना गया है।

 

तालिका 2 क्रान्तिक पहलू और पर्यावरणीय चुनौतियाँ

क्रान्तिक पहलू

चुनौतियाँ

जलपोत का प्रकार और आकार

विखण्डन क्षमता ऐसी होनी चाहिए कि विभिन्न आकार-प्रकार के जलपोतों पर काम हो सके।

क्रूस शिप और नौसेना के पोत अन्य जलपोतों की तुलना में अपवाद होते हैं क्योंकि उनमें इस्पात की मात्रा भिन्न-भिन्न होती हैं और उनसे विविध प्रकार के पदार्थ निकलते हैं।

विखण्डित जलपोतों का थ्रूपुट रेंज क्षमता और ऑन-साइट भूआकृति और जमीनी स्थितियों का प्रतिफल होता है।

पहुँच

सरल, नियंत्रणशील समग्र पहुँच अति महत्त्वपूर्ण है। इसे सुनिश्चित करने के लिये विखण्डित होने वाले जलपोत के लिये कुछ शर्तों की पूर्ति करना आवश्यक बनाया जा सकता है।

सामान सूची: जहाज का सामान सूची तैयार रहे – सभी खतरनाक सामग्रियाँ चिन्हित हों।

सावधानियाँ: हटाना, साफ करना, प्रणालियों को बन्द करना, सुरक्षित करना (विस्फोटक/ऐसे स्थान जहाँ साँस लेना सम्भव न हो)।

पहुँच पर सुविधा की विशिष्ट स्थितियों का भारी प्रभाव पड़ता है: पत्तन (डोकिंग) (शुष्क-पत्तन), पोतघात में बाँधना (मूरिंग), तट पर लाना (बीचिंग)

परिसीमन

निष्कर्षण प्रक्रिया और उसके बाद की छँटाई/तैयारी, भण्डारण, निपटारा और परिवहन से जुड़ी प्रक्रियाओं के फलस्वरूप पर्यावरण (हवा/समुद्र/जमीन) पर उत्सर्जन/निकासियाँ होंगी: मलबा, तरल अपशिष्ट, काटने/जलाने पर होने वाला धुँआ। परिसीमन मोटे तौर पर विखण्डन सुविधा की विशिष्टताओं पर निर्भर करेगा: पत्तन (डोकिंग) (शुष्क-पत्तन), पोतघात में बाँधना (मूरिंग), तट पर लाना (बीचिंग)

पुनश्चक्रण, हटाना, निपटारा

विखण्डन प्रक्रिया से ऐसे घटक और सामान मिलते हैं जिनका पुनरुपयोग या पुनश्चक्रण सम्भव है और इन्हें विखण्डन सुविधा से बाहर ले जाया जाता है। इनमें से कुछ 'उत्पाद' दूषित हो सकते हैं (कोट की हुई इस्पात की चादरें), या खतरनाक हो सकते हैं या अन्य दृष्टि से बाजार में लाने के लायक नहीं होते हैं। पीसीबी (और अन्य स्थायी जैविक सन्दूषकों (पीओपी)) और एसबेस्टोस जैसे इनमें से कुछ पदार्थों को किसी भी स्थिति में पुनश्चक्रित नहीं किया जाना चाहिए।

खतरनाक अपशिष्टों के लिये पर्याप्त, सुरक्षित एवं मानिटरित भण्डारण और निपटान सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए।

विखण्डन सुविधा कौन-कौन से उप्ताद उपलब्ध कराएगी इस सम्बन्ध में उसे एक नीति विकसित करनी चाहिए। इसके लिये आवश्यक सामग्री अध्याय 4.2 में उपलब्ध है।

प्रशिक्षण

जागरुकता और कुशलताएँ पर्यावरणीय दृष्टि से और व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक हैं। कर्मियों के प्रशिक्षण पर विशेष जोर देना चाहिए, जिनमें शामिल हैं व्यावसायिक/तकनीकी/पर्यावरणीय कार्यविधियों और निजी सुरक्षा उपकरणों के उपयोग में प्रशिक्षण। केवल पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित कर्मियों को ही जलपोत विखण्डन स्थल के विभिन्न भागों में जाने की अनुमति होनी चाहिए।

 

पर्यावरणीय चिन्ताएँ – हवा, पानी और जमीन में छोड़े जाने वाले सम्भावित उत्सर्जन/निकासियाँ


हवा, पेय जल स्रोत और खाद्य शृंखला को दूषण से बचाने के लिये विखण्डन स्थल से छोड़े जाने वाले पदार्थों का सही हस्तन परम महत्त्व रखता है। दूषण के तीव्र एवं दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं और यह मात्र कर्मियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अधिक विस्तृत समुदायों के स्वास्थ्य और कल्याण को भी जोखिम में डाल सकता है।

प्रमुख पर्यावरणीय चिन्ताओं में शामिल हैं:

1. स्थान: विखण्डन सुविधा की प्रकृति स्थान की नाजुकता या जनसंख्या की आवश्यकताओं के अनुरूप न हो।
2. प्रचालन: सुविधा की विशिष्टताओं में परिसीमन या विषाक्त पदार्थों के जल, अवसाद/जमीन और/या हवा में घुसने से रोकने की असमर्थताएँ हों।

ईआईए (देखें अध्याय 6.2) को इन चिन्ताओं को दूर करने के लिये सम्पूर्ण प्रयास करना चाहिए। सरकारों को ऐसे प्रावधान करने चाहिए कि इस तरह के मूल्यांकन करवाए जाएँ और इनके निष्कर्षों पर अमल किया जाये।

विखण्डित होने वाले जलपोत में जो खतरनाक और अन्य पदार्थ होते हैं जो सामान्य रूप से पर्यावरण के लिये चिन्ता के विषय हैं, उनकी सूची तालिका 3 में दी गई है। तालिका में स्रोत, पर्यावरणीय उद्भासन (एक्सपोशर) के बारे में जानकारी और बेसेल संधि की सूची अ से सम्पर्क भी दिये गए हैं। इस सूची में संधि की धारा 1, पैरा 1 (ए) में जिन अपशिष्ट पदार्थों को खतरनाक माना गया है, उनका उल्लेख है। परिशिष्ट आ में उन खतरनाक अपशिष्टों की सूची है जो बेसेल संधि की सूची अ में दी गई है और जो जलपोत में अथवा उसकी संरचना में विद्यमान हैं। इन पदार्थों और इनके हस्तन के लिये उपयोग में लाई जाने वाली विधियों के कारण जो पर्यावरणीय प्रभाव होते हैं और इनके कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी पहलुओं की चर्चा अध्याय 4.2 में हुई है।

 

तालिका 3 जलपोत विखण्डन उद्योग से सामान्यतः छोड़े गए पदार्थ

सम्भावित रूप से खतरनाक सामग्रियाँ

खतरनाक घटक

स्रोत की पहचान

प्रक्रिया-जनित अपशिष्ट पदार्थ

पर्यावरणीय उद्भासन

पर्यावरणीय प्रभाव

अपशिष्ट सूची के सम्पर्क (देखें परिशिष्ट आ)

धातुएँ

- धातुओं में विषाक्त पदार्थ हो सकते हैं या वे विषाक्त पदार्थों से लिपे हुए हो सकते हैं।

- भारी धातुएँ (जैसे, सीसा या पारा)

एनोड और बैटरी, पेंट, मोटर

घटक, जनित्र, नलियाँ, केबल, तापमापी, बिजली के स्विच, बिजली की बत्तियाँ, आदि

धातु के ढाँचे (जैसे, कैडमियम से लिपा इस्पात, लौह आक्साइड, जिंक आक्साइड, कुछ पेंटों में क्रोमियम), कणिकीय सामग्री और काटने के दौरान उत्पन्न छीलन

खतरनाक धातु वाष्प में श्वसन एक व्यावसायिक स्वास्थ्य समस्या है, लेकिन कुछ धातु वाष्प हवा द्वारा स्रोत से काफी दूर भी ले जाई जा सकती है।

सम्भावित रूप से खतरनाक धातुएँ जमीन और जल में भी फैल सकती हैं जब धातुयुक्त उत्पादों को ठीक तरह से भण्डारित न किया जाये या निपटाया न जाये।

 

ए1010 ए1020 ए1030 ए1080 ए1160 ए1180 ए2010

तेल और ईंधन

- हाइड्रोकार्बन

- धातुमल

- भारी धातुएँ

- विस्फोटक वाष्प

निलियाँ और

टंकियाँ, पीपे,

मशीनों वाली

जगहें,

मशीन-शोप,

टैकर कार्गो

होल्ड

सफाई के दौरान पैदा हुए तेलीय अपशिष्ट

हवा, पानी और जमीन के जरिए बाह्य वातावरण में फैल जाती हैं

कर्मियों के लिये आग और विषाक्तता का खतरा पैदा करती हैं पेट्रोलियम और गैरपेट्रोलियम उत्पादों दोनों के ही पर्यावरण पर जाने-पहचाने कुप्रभाव होते हैं।

ए3020 ए4060

बिल्ज और बलास्ट जल

- तेल और चिकनाई (ग्रीस)

- बचा हुआ ईंधन

- पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन

- जैवनाशक

- भारी धातुएँ और अन्य धातुएँ

- गैरस्थानीय जीव-जंतु

बिल्ज जल निकासी जल है जो जलपोत के पेटे (हल, यानी वह भाग जहाँ जहाज के यंत्र होते हैं) में होता है

बलास्ट जल बलास्ट टंकियों में और/या कार्गो टंकियों में होता है

सफाई के दौरान पैदा हुए तेलीय अपशिष्ट

विषाक्त ऑर्गेनिक रसायनों की निकासी से जहरीली गैसें उत्पन्न हो सकती हैं।

अन्तरण गतिविधियों के दौरान यदि परिसीमन की व्यवस्था न हो तो बिल्ज और बलास्ट जल को सीधे पर्यावरण में छोड़ा जाता है उपर्युक्त खतरनाक घटक हवा, पानी और जमीन के जरिए बाह्य वातावरण में फैल जाते हैं

गैर स्थानीय जीव-जन्तुओं को छोड़ने से स्थानीय पारिस्थितिकी का सन्तुलन बिगड़ सकता है। स्थानीय या क्षेत्रीय जैवविविधता को जोखिम में डालने के गम्भीर आर्थिक परिणाम हो सकते हैं। बालास्ट जल में रोगाणु भी हो सकते हैं जो मानव स्वास्थ्य को जोखिम में डाल सकते हैं। तेल, पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन, जैवनाशक और कुछ प्रकार की धातुओं के कारण बाह्य पर्यावरण पर विषाक्त प्रभाव पड़ सकता है। तेल भी बाह्य पर्यावरण को भौतिक क्षति पहुँचा सकता है।

ए4130

पेंट और लेप (कोटिंग)

- पीसीबी

- भारी धातुएँ (जैसे, सीसा, बेरियम, कैडमियम, क्रोमियम, जिंक)

क्षरण-रोधी पेंट और ऐंटी फाउलिंग कोटिंग रखरखाव के लिये लगाया गया ताज पेंट भी जलपोत पर मिल सकता है।

काटने के स्थानों से पेंट और लेप हटाने से अपशिष्ट पदार्थ पैदा होंगे। किस तरह के अपशिष्ट बनेंगे यह इस पर निर्भर करेगा कि पेंट आदि हटाने के लिये कौन सी विधि अपनाई जाती है (रासायनिक विधि, रगड़ना, विस्फोटन या यांत्रिक विधि)।

खतरनाक धातु वाष्प में श्वसन एक व्यावसायिक स्वास्थ्य समस्या है, लेकिन कुछ धातु वाष्प हवा द्वारा स्रोत से काफी दूर भी ले जाई जा सकती है।

ज्वलनशील पेंट कर्मियों के लिये अग्नि जोखिम का कारण बनते हैं। जिन पेंटों में पीसीबी हों उन्हें तापीय विधि से नहीं हटाना चाहिए क्योंकि इससे डाइओक्सिन पैदा हो सकता है। पेंट हटाने से निर्मित अपशिष्ट स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं।

ए1040 ए4030 ए4070

 

 

तालिका 3 जलपोत विखण्डन उद्योग द्वारा सामान्यतः छोड़े गए पदार्थ

सम्भावित रूप से खतरनाक सामग्रियाँ

खतरनाक घटक

स्रोत की पहचान

प्रक्रिया-जनित अपशिष्ट पदार्थ

पर्यावरणीय उद्भासन

पर्यावरणीय प्रभाव

अपशिष्ट सूची के सम्पर्क (देखें परिशिष्ट आ)

धातुएँ

- कीटनाशक (जैसे, ट्राईबूटाइल टिन (टीबीटी))

- ओर्गेनो-मर्क्युरी यौगिक, कोपर ऑक्साइड, संखिया (आर्सेनिक), विलायक

एनोड और

बैटरी, पेंट, मोटर

घटक,

जनित्र, नलियाँ, केबल, तापमापी, बिजली के स्विच, बिजली की बत्तियाँ, आदि

धातु की वाष्प (जैसे,

कैडमियम से लिपा इस्पात, लौह ऑक्साइड, जिंक

ऑक्साइड, कुछ पेंटों में

क्रोमियम), कणिकीय सामग्री और काटने के दौरान पैदा हुए छीलन

खतरनाक धातु वाष्प के सम्पर्क में आना एक व्यावसायिक स्वास्थ्य समस्या है, लेकिन धातु वाष्प हवा द्वारा स्रोत के काफी दूर भी पहुँच सकती है।

सम्भावित रूप से खतरनाक धातुएँ जमीन और जल में भी घुस सकती हैं जब

धातुयुक्त उत्पादों को ठीक तरह से भण्डारित न किया जाये या निपटाया न जाये।

 

ए1010

ए1020

ए1030

ए1080

ए1160

ए1180

ए2010

एसबेस्टोस

एसबेस्टोस के रेशे

तापीय प्रणाली के ऊष्मारोधण के लिये और सतह ढँकने की सामग्री के रूप में

 

जब एसीएम खराब हो जाता है, एसबेस्टोस बहुत ही महीन रेशों में टूटता है जो हवा के माध्यम से छितरित होता है। मुख्यतः एक व्यावसायिक खतरा, लेकिन ये रेशे आसपास के परिवेश में भी पहुँच सकते हैं।

अधिक मात्रा में एसबेस्टोस रेशे साँस द्वारा अन्दर खींचने से फेफड़ों का कैंसर, मेसोथेलियोमा और एसबेस्टोसिस बीमारियाँ हो सकती हैं।

ए2050

पीसीबी

- पीसीबी

केबलों का विद्युतरोधण, ऊष्मारोधण, ट्रांसफोर्मर, कैपैसिटर, तेल, पेंट, प्लास्टिक और रबड़, आदि

पीसीबी से भी अधिक विषाक्त पदार्थ होते हैं पीसीबी को गरम करने पर बनने वाले रसायन (पोलीक्लोरिनेटेड डाइबेन्सोफुरान और पोलीक्लोरिनेटेड डाइबेन्सो-पी-डाइओक्सिन)।

पीसीबी त्वचा से सम्पर्क में आने से या साँस द्वारा अन्दर खींचे जाने से कर्मियों पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं।

यदि उचित रूप से हस्तन न किया जाये या निपटाया न जाये तो पीसीबी आसपास के परिवेश में जमीन और/या पानी के माध्यम से पहुँच सकते हैं।

तांबे के तारों की पुनर्प्राप्ति के लिये केबलों को जलाने से बहुत ही विषाक्त डाइओस्किन पैदा होते हैं, इसलिये केबलों को कभी भी जलाया नहीं जाना चाहिए।

पीसीबी विषाक्त पदार्थ होते हैं और वे परिवेश में लम्बे समय के लिये बने रहते हैं और यह जानी-मानी बात है कि उनके कारण स्वास्थ्य पर अनेक प्रकार के विपरीत प्रभाव पड़ते हैं।

ए1180 ए3180

कार्गो अवशेष

- रसायन

- तेल

- गैसें

कार्गो टंकियाँ/होल्ड

सफाई के दौरान पैदा हुए रासायनिक/तेलीय अपशिष्ट

हवा, पानी और जमीन के जरिए बाह्य वातावरण में फैल जाती हैं

कार्गों के अनुसार। पेट्रोलियम और गैरपेट्रोलियम उत्पादों दोनों के ही पर्यावरण पर जाने-पहचाने कुप्रभाव होते हैं। अग्नि और विस्फोट के खतरे रहते हैं।

ए4130 ए4080 ए3020

अन्य

- रसायन

- अग्नि मंदक

ऐंटी फ्रीस तरल, सम्पीड़ित गैसें, सीएफसी

 

यह उत्सर्जन के प्रकार पर निर्भर करेगा।

यह उत्सर्जन के प्रकार पर निर्भर करेगा।

ए3140 ए4080

 

3.4.1 वर्तमान पद्धतियाँ और मानक


वर्तमान पद्धतियाँ - सिंहावलोकन
वर्तमान में जलपोत विखण्डन का कार्य मुख्य रूप से भारत, चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हो रहा है। ये देश लगभग 89 प्रतिशत टनेज (डीडब्ल्यूटी) के लिये जिम्मेदार हैं (देखें नीचे चित्र 3)। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के जलपोत विखण्डन सुविधाओं में तोड़े जाने वाले जलपोतों में से अधिकांश ओईसीडी देशों से आते हैं। ओईसीडी देशों के 49 प्रतिशत जलपोतों को ओईसीडी देशों के बाहर तोड़ा जाता है (तथ्य स्रोत: लोइड्स रेजिस्टर, 2000)। यह टनेज (डीडब्ल्यू) की दृष्टि से लगभग 93 प्रतिशत के बराबर है। यह भी समझना जरूरी है कि ओईसीडी के सदस्य देशों द्वारा प्रबन्धित और प्रचालित बहुत से जलपोत दूसरे देशों के झंड़ों तले चलते हैं।

विश्व के प्रमुख जलपोत-भंजन देशों में रोजगार की आवश्यकता और निवेश के लिये धन की कमी एक सामान्य कारक है। वर्तमान पोत-भंजन स्थलों में जलपोत के पेटे (हल) तक पहुँचने के लिये यंत्रीकृत सुविधाएँ नहीं हैं और उत्तोलन क्षमता लगभग नदारद है और तोड़ने के सभी काम बाहर खुले में किये जाते हैं। स्थान-स्थान पर कार्यविधियाँ थोड़ी-बहुत भिन्न हो सकती हैं लेकिन आमतौर पर कुछ अपवादों को छोड़कर सभी जगहों में एक ही सिद्धान्त अपनाए जाते हैं।

जिन जलपोतों को किसी भी कारण से सेवानिवृत्त करना हो, उन्हें रद्दी बाजार में बेचने के लिये रखा जाता है और सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को जैसा-है-वैसा के आधार पर स्थान पर ही बेच दिया जाता है।

चूँकि मानव शक्ति प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है और जलपोतों से निकाले गए उपकरणों और घटकों के लिये बाजार उपलब्ध होता है, इसलिये विखण्डन प्रक्रिया अधिकतम पृथक्करण के सिद्धान्त पर चलती है, जो पोत-निर्माण विधि का ठीक उल्टा होती है और उसी तरह श्रम-साध्य होती है, किन्तु वह पोत-निर्माण के लिये जो उन्नत प्रौद्योगिकियाँ उपयोग में लाई जाती हैं, उनका उपयोग नहीं करती। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है रद्दीकृत जलपोत को तट पर ले आना (जो कुछ अपवाद को छोड़कर सभी पोत-भंजन देशों द्वारा अपनाया जाता है)।

उद्योगीकृत देशों में विद्यमान सामान्य मानकों और रूढ़ियों की तुलना में जलपोतों के विखण्डन की वर्तमान पद्धतियाँ कई दृष्टियों से अनुपालन की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती हैं। किस हद तक अनुपालन नहीं होता है, इसे अनेक स्थल-विशिष्ट अध्ययनों और उपलब्ध प्रकाशित सामग्री में दर्शाया गया है। यह तुरन्त ही स्पष्ट हो जाता है कि मानकों के अनुपालन में और उद्योगीकृत देशों की प्रत्याशाओं और वास्तविक स्थितियों के बीच की दूरी को पाटने के लिये पोत-भंजन सुविधाओं, प्रक्रिया नियंत्रण और क्रान्तिक रूप से भिन्न कार्यविधियाँ और परिस्थितियाँ अपनाने में काफी पूँजी निवेश की आवश्यकता रहेगी। इसके अलावा स्थानीय कानूनी और सांस्कृतिक ढाँचा भी खड़ा करना पड़ेगा जो यह सुनिश्चित करेगा कि जो भी नए उपाय और कार्रवाइयाँ शुरू की जाएँगी उनका अनुपालन होगा।

स्थानीय मानकों की तुलना में स्थिति उतनी हानिकारक नहीं लगेगी। प्राथमिकताएँ भिन्न होती हैं और बहुत कम वैकल्पिक जीवनशैलियाँ उपलब्ध होती हैं। इसमें कोई शक नहीं कि स्थानीय समुदाय और अर्थव्यवस्था पर इस उद्योग का काफी प्रभाव पड़ता है और किसी भी नए उपाय या कार्रवाइयाँ करने से पहले इस बात को ध्यान में लेना चाहिए। यदि इन वर्तमान स्थलों में जो भारी मात्रा में पोत-भंजन कार्रवाइयाँ होती हैं, उन्हें अन्यत्र ले जाया गया तो इसके भारी सामाजिक परिणाम निकलेंगे क्योंकि इन गतिविधियों से बहुत से लोगों को रोजगार मिलता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को राजस्व भी। इसके विपरीत यदि पर्यावरण, स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को ठीक तरह से न निपटाया गया तो यह एक परिणाम भी हो सकता है।

चूँकि श्रम सस्ता है वर्तमान पोत-विखण्डन स्थलों का प्रचालनात्मक खर्चा कम रहता है। इसके साथ ही, ये कम विकसित देश पम्प, जनित्र आदि पोत-भंजन से प्राप्त घटकों के लिये बाजार भी होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि ये घटक विनियमनों के अनुसार काम करें या प्रत्याशाओं को पूरा करें जिससे उनका दूसरी जगह पुनरुपयोग सम्भव हो सके।

संक्षेप में, वर्तमान स्थलों के चार क्रान्तिक विशेषताएँ हैं:

- इस कार्य को करने के लिये तैयार श्रम की प्रचुरता और उसकी कम लागत।
- अपर्याप्त या लागू न किया जाने वाला कानूनी ढाँचा
- पुराने घटकों/वस्तुओं, जैसे पम्प, जिनत्र, कम्प्रेसर, मोटर आदि, के लिये तैयार बाजार।
- सुविधाजनक और विस्तृत अन्तर-ज्वारीय क्षेत्र जहाँ ज्वार के समय जलपोत को अपनी ही शक्ति से चलाकर तटीय जमीन पर ले आया जा सकता है।

डीकमिशनिंग और रद्दीकरण के लिये बिक्री


जब जलपोत जिस बाजार को सेवित कर रहा हो, उसमें वह पुराना हो गया हो या वह अनुपालन करने योग्य न रह गया हो या अन्य किसी कारण से अपने उपयोगी जीवनकाल के अन्त तक पहुँच गया हो, तो उसे सामान्यतः किसी बिचोलिये या 'नकद में खरीदने वालों' (ऐसी कम्पनियाँ जो जलपोतों को खरीदकर उन्हें पोत-भंजकों को पुनः बेचती हैं) के जरिए किसी पोत-भंजक को बेच दिया जाता है।

विकल्प 1: जलपोत का स्वामी उसे सीधे किसी जलपोत-भंजन कम्पनी को बेच सकता है, या, जैसा कि अधिक सामान्य है, किसी बिचौलिये के जरिए ऐसा करता है। जब जलपोत को पोत-भंजन कम्पनी को बेच दिया जाता है, तो पोत-स्वामी को जलपोत को उसके अन्तिम गन्तव्य स्थान तक ले जाने का बन्दोबस्त करना होता है। जलपोत को बिक्री के समय उसके बाजार मूल्य पर बेच दिया जाता है।

विकल्प 2: पोत-स्वामी उसे किसी 'नकद में खरीदने वाली' कम्पनी को बेच देता है, जो जलपोत को पोत-भंजन स्थल में ले जाता है। इस विकल्प में जलपोत का मूल्य विकल्प 1 से कम होता है।

बाजार में जलपोत के लिये कितना मूल्य मिलेगा वह इस पर निर्भर करता है कि जलपोत में कितनी मात्रा में इस्पात विद्यमान है। इसलिये जलपोत का प्रकार और लाइटशिप वेइट आवश्यक प्राचल हैं। लेकिन, इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में मुनाफे का एक मुख्य स्रोत जलपोत से प्राप्त उपकरणों और घटकों की बिक्री होता है। यह ध्यान में रखना चाहिए कि पोत-भंजक देशों ने रद्दीकरण के लिये आयातित टनेज पर कर लगाया है। इसका स्तर भिन्न-भिन्न है और यह जलपोत के लिये मिलने वाले मूल्य को प्रभावित करता है।

जलपोत रद्दीकरण स्थल में आता है और उसे अपनी ही शक्ति से चलाकर बीच किया जाता है। इसके लिये यह आवश्यक है कि जलपोत चलाने लायक स्थिति में हो और तट पर पहुँचाने तक वह सभी विनियमों का अनुपालन करें और उसके पास सभी आवश्यक प्रमाणपत्र हों। इस कारण से जलपोत के पोत-भंजन स्थल में पहुँचने के पूर्व उसमें से खतरनाक वस्तुओं को हटाना (डीकंटैमिनेशन) अधिक सम्भव नहीं हो पाता। बीचिंग के लिये जलपोत की हालत ऐसी होनी चाहिए कि वह स्वयं चल सके इसलिये उसे इस तरह से तैयार नहीं किया जा सकता जो आवश्यक प्रमाणन को प्रभावित करे (उसे खींचकर लाना (टोइंग) सम्भव नहीं है)।

तोड़ने के लिये भेजे जाने वाले जलपोतों में किस तरह के दस्तावेज होने चाहिए और वे किस हालत में होने चाहिए, इनके सम्बन्ध में कोई अन्तर्राष्ट्रीय आवश्यकताएँ या मानक उपलब्ध नहीं हैं। इसलिये अधिकतर मामलों में पोत स्वामी ने जलपोत पर कोई सावधानियाँ नहीं बरती होती हैं, न ही वह जलपोत में विद्यमान खतरनाक सामग्रियों के बारे में कोई जानकारी ही उपलब्ध कराने की स्थिति में होता है। किन्तु जिस देश में जलपोत को तोड़ा जाना हो, उसकी अपने राष्ट्रीय आवश्यकताएँ हो सकती हैं। किन्तु जब इस तरह की आवश्यकताओं का अमलीकरण होता है, तो जलपोत ऐसे देशों को मोड़ दिये जाते हैं जहाँ इस तरह के ‘अवरोध’ नहीं होते।

चूँकि रद्दीकरण के लिये भेजे गए जलपोत पर समुद्री कानून अब भी लागू होते हैं, जिनमें दोनों एसओएलएएस और मारपोल भी शामिल हैं, रद्दीकरण की प्रक्रिया के लिये प्रासंगिक कुछ अन्य आवश्यकताएँ भी हो सकती हैं। मारपोल संधि के अनुलग्नक 1, 2, 4, 5, और 6 जलपोतों द्वारा निर्मित कचरे के लिये पर्याप्त कचरा-प्राप्ति सुविधाएँ स्थापित करने को आवश्यक बनाते हैं (सम्बन्धित अनुलग्नकों की विषयवस्तु के अनुसार)। तालिका 4 विभिन्न पोत-भंजन देशों के लिये इस संधि की स्थिति का सिंहावलोकन प्रस्तुत करती है।

 

तालिका 4 प्रमुख पोत-भंजक देशों के लिये मारपोल संधि की स्थिति

 

देश

बांग्लादेश

चीन

भारत

पाकिस्तान

मारपोल 73/78

अनुलग्नक 1/2

अभिपुष्टि नहीं हुई है

अभिपुष्टि हो चुकी है

अभिपुष्टि हो चुकी है

अभिपुष्टि हो चुकी है

अनुलग्नक 3

अभिपुष्टि नहीं हुई है

अभिपुष्टि हो चुकी है

अभिपुष्टि हो चुकी है

अभिपुष्टि हो चुकी है

अनुलग्नक 4

अभिपुष्टि नहीं हुई है

अभिपुष्टि नहीं हुई है

अभिपुष्टि नहीं हुई है

अभिपुष्टि हो चुकी है

अनुलग्नक 5

अभिपुष्टि नहीं हुई है

अभिपुष्टि हो चुकी है

अभिपुष्टि नहीं हुई है

अभिपुष्टि हो चुकी है

प्रोटोकॉल 97 (अनुलग्नक 6)

अभिपुष्टि नहीं हुई है

अभिपुष्टि नहीं हुई है

अभिपुष्टि नहीं हुई है

अभिपुष्टि नहीं हुई है

 

टिप्पणियाँ: मारपोल (मारपोल 73य74) – जलपोतों से प्रदूषण की रोकथाम के लिये अन्तरराष्ट्रीय संधि, 1973, प्रोटोकॉल 1978 और 1997 द्वारा संशोधित। अनुलग्नक 1 – तेल द्वारा प्रदूषण की रोकथाम के लिये विनियम। अनुलग्नक 2 – थोक मात्रा में जहरीले तरलों द्वारा प्रदूषण की रोकथाम के लिये विनियम। अनुलग्नक 3 – पैकेज में बन्धे रूप में जलपोतों द्वारा वहन किये जाने वाले खतरनाक सामग्रियों से प्रदूषण की रोकथाम के लिये विनियम। अनुलग्नक 4 – जलपोतों के जलमल द्वारा प्रदूषण की रोकथाम के लिये विनियम। अनुलग्नक 5 – जलपोतों के कचरे द्वारा प्रदूषण की रोकथाम के लिये विनियम। अनुलग्नक 5 – जलपोतों के द्वारा वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिये विनियम।

कभी-कभी पोत-भंजक अनुबन्धात्मक दस्तावेज तैयार करते हैं, लेकिन सामान्यतः इस तरह के दस्तावेज बिचौलिये या ‘नकद खरीदी करने वालों’ द्वारा बनवाया जाता है। ‘सेलस्क्रैप 87’ (बिमको द्वारा जलपोत उद्योग के लिये उपलब्ध कराया गया) ही एक मानक अनुबन्धीय प्रारूप है जिसका रद्दीकरण के लिये बिक्रि हेतु सामान्यतः उपयोग किया जाता है। इस दस्तावेज को संशोधित किया गया है और संशोधित संस्करण मार्च 2002 में उपलब्ध हो जाएगा।

तोड़ना – तोड़ने की प्रक्रिया के सिद्धान्त


सिद्धान्तः जलपोत को तोड़ने की प्रक्रिया में अनेक शृंखलाबद्ध प्रचालन होते हैं जिन्हें अलग-अलग स्थानों में पूरा किया जाता है:

- तटेतर: बीच करने के पूर्व टंकियों को खाली किया जाता है और कीमती चीजें (अप्रदूषित तेल-उत्पाद, उपभोग्य वस्तुएँ और बेचे जा सकने वाली वस्तुएँ जैसे इलेक्ट्रोनिक उपकरण) हटा दिये जाते हैं। यदि सम्बन्धित राष्ट्रों ने (ध्वजीय राष्ट्र और/या पत्तन राज्य) मारपोल के बन्धनकारी अनुलग्नकों की अभिपुष्टि की हो तो इन राष्ट्रों के विनियमों के प्रावधान जलपोत द्वारा पैदा किये गए अपशिष्टों पर लागू होंगे।
- अन्तर-ज्वारीय क्षेत्र: जलपोत को अपनी ही शक्ति से चलाकर बीच किया जाता है और तोड़ने का काम शुरू किया जाता है (एक निश्चित क्रम में)।
- तट: जलपोत को अधिक सुविधाजनक टुकड़ों में काटा जाता है, घटक निकाल लिये जाते हैं और उन्हें छाँटकर उपयोगकर्ताओं को भेज दिया जाता है।
- जमीन पर: जलपोत से निकाले गए उपकरणों और घटकों को और पुनर्निर्मित/पुनश्चक्रित नई वस्तुओं/घटकों को (स्थानीय/क्षेत्रीय) बाजारों में बेचना। (निपटारा पुनश्चक्रण)।

इन प्रचालनों के बारे में अधिक ब्यौरा तालिका 5 में दिया गया है।

 

तालिका 5 पोत-भंजन क्रिया

स्थान

प्रचालन

टिप्पणियाँ

तटेतर

जलपोत में विद्यमान उपभोग्य वस्तुओं और बेचे जा सकने वाले (खुले) उपकरणों को हटाया जाता है टंकियाँ खाली की जाती हैं (कुछ स्थितियों में कार्गो टंकियों को धोया जाता है)। जलपोत को जितना हल्का किया जा सके, उतना हल्का किया जाता है ताकि वह तट पर अधिकतम दूरी तक चढ़ आ सके (उदाहरण के लिये जहाँ जलपोत हो वहीं निकासी की जाती है)।

ये गतिविधियाँ तोड़ने के स्थल पर या उसके निकट किये जाते हैं। यदि प्राप्ति की सुविधाएँ न हों, तो टंकियों के अवशेष/बलास्ट जल, आदि को समुद्र में ही छोड़ दिया जाता है।

अन्तर-ज्वारीय क्षेत्र

जलपोत को अपनी ही शक्ति से चलाकर तट पर ले आया जाता है ताकि उसे तोड़ने के लिये उस तक पहुँचा जा सके। जहाज के आगे के भाग और बगलों को खोल दिया जाता है ताकि मूल्यवान घटकों तक पहुँचा जा सके। पेटे (हल) की चादरें, बड़े भाग और ढाँचागत वस्तुओं को खोला/निकाला जाता है और क्रमवार निकालकर और घिरनी द्वारा या खींचकर या पानी में तैराकर तट पर लाया जाता है।

ऐंटीफाउलिंग, नलियों में विद्यमान हाइड्रोकार्बन, खाली स्थान, टंकियों के अवशेष आदि, और मलबा (भारी धातुएँ, पेंट अवशेष, धूल (एसबेस्टोस, आदि) पानी/जमीन पर अवसाद के रूप में बैठ जाते हैं और हवा में भी पहुँचते हैं। काटते समय हवा में उत्सर्जन होते हैं।

टोर्च कटिंग, सामग्रियों के हस्तन और सम्बन्धित कार्यविधियों के दौरान सम्भावित खतरनाक स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं; जलना, ऊँचाई से गिरना, अधिक भार वहन करना, कुचला जाना, गिरती वस्तुओं द्वारा घायल किया जाना, दम घुटना, विस्फोट, जहरीले या खतरनाक वस्तुओं के सम्पर्क में आना, इत्यादि।

तट

पुनर्प्राप्त रद्दी इस्पात का आकार कम करने के लिये उसे टोर्च द्वारा काटा जाता है। पुनर्प्राप्त सामग्रियों (रद्दी इस्पात, घटक, आदि) की छँटाई। सामग्रियों और पदार्थों का परिवहन/निर्यात।

अपर्याप्त या गैरविद्यमान परिसीमन सुविधाओं के कारण तरल पदार्थों को रखे गए स्थानों से उनका जमीन में रिसना। मलबा (भारी धातुएँ, पेंट अवशेष, धूल (एसबेस्टोस, आदि)), प्रणालियों/टंकियों के अवशेष, आदि अवसाद में निक्षेपित हो सकते हैं। काटने के समय और आग के कारण (ऊष्मारोधण को निकालने, आदि) हवा में उत्सर्जन।

टोर्च कटिंग, सामग्रियों के हस्तन और सम्बन्धित कार्यविधियों के दौरान सम्भावित खतरनाक स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं; जलना, ऊँचाई से गिरना, अधिक भार वहन करना, कुचला जाना, गिरती वस्तुओं द्वारा घायल किया जाना, दम घुटना, विस्फोट, जहरीले या खतरनाक वस्तुओं के सम्पर्क में आना, इत्यादि।

जमीन पर *मोटे अक्षर - पर्यावरणीय

छाँटी गई वस्तुओं को निकट के बाजारों और पुनर्प्रक्रियण सुविधाओं को भेजा जाता है। (निपटारा पुनश्चक्रण)।

भंजन स्थल से निर्यातित खतरनाक सामग्रियाँ (जैसे, कोल्ड रोलिंग/गलाने के लिये रखी गई रद्दी इस्पात चादरों में लगा हुआ पेंट अवशेष, खतरनाक वस्तुओं का पुनरुपयोग (एसबेस्टोस-युक्त वस्तु (एसीएम, यानी एसबेस्टोस कंटेनिंग मटीरियल्स))।

परिवहन, अधिक भार वहन। पुनर्प्रक्रियण स्थलों में चलने वाले प्रचालनों से इन प्रचालनों की प्रकृति के अनुरूप स्थितियाँ बन सकती हैं (जैसे दुबारा गलाने के समय जलने की घटनाएँ)।

*मोटे अक्षर – पर्यावरणीय पहलू; झुके अक्षर – सुरक्षा के पहलू

 

निपटारा और पुनश्चक्रण


तोड़ने पर प्राप्त होने वाली सामग्रियों की धारा को वितरित करके पोत-भंजन स्थल से स्थानीय उद्यमों को पुनर्बिक्री, पनर्निर्माण या पुनश्चक्रण हेतु भेज दिया जाता है। ये उद्यम आमतौर पर पोत विखण्डन सुविधा के निकट ही स्थित होते हैं और उनके स्वामी भी वे ही होते हैं जो पोत विखण्डन सुविधा के हैं।

पुनर्बिक्री:


उपयोग किये जा सकने वाली वस्तुओं का व्यापार रद्दीकरण सुविधा के निकट ही होता है अथवा इन वस्तुओं को किसी केन्द्रीय स्थल को (जैसे मुख्य शहर) को पुनर्बिक्री हेतु भेजा जाता है। निजी व्यापार सुविधियाँ किसी न किसी वस्तु में विशेषज्ञता रखते हैं। नीचे उन वस्तुओं की सूची दी गई है जिन्हें सीधे पुनर्बिक्री के लिये भेजा जाता है (बिना किसी पुनर्प्रक्रियण या पुनर्निर्माण के):

- पम्प, वाल्व, मोटर, मशीन
- नौवहन उपकरण
- जीवन रक्षक उपकरण (रैफ्ट, लाइफबाय, लाइफ-वेस्ट, जीवन-रक्षक पोशाक, इत्यादि)
- निजी रक्षी उपकरण (हेलमेट, वर्कबूट, दस्ताने, चश्मे, ओवरोल, इत्यादि)
- पेइंट और लेप (कोटिंग)
- इस्पात के घटक (लंगर, सांखल, वातन घटक, नलियाँ, इत्यादि)।
- स्वच्छता सम्बन्धी उपकरण (शौचालय, बाथ टब, इत्यादि)।
- फर्नीचर
- बिजली के केबल (साबुत) और बैटरियाँ
- ऊष्मारोधण सामग्री
- तेल के उत्पाद (निर्माण उद्योगों को)

पुनर्निर्माण/पुनर्प्रक्रियण:


अपशिष्ट धारा का एक बड़ा भाग बिक्री के पूर्व पुन्प्रक्रियित या पुनर्निर्मित होता है, न कि पुनश्चक्रित। निम्नलिखित से इस बात को स्पष्ट करते हैं:

- इस्पात का पुनर्निर्माण: निकाले गए सभी इस्पात को रद्दी नहीं माना जाता है। बिना 'क्षतिग्रस्त' चादरों को काटकर, कूटकर या गरम काम द्वारा पुनर्निर्मित किया जाता है। लंगर, सांखल, इंजन के ढाँचे, आदि को भी इन्हीं प्रक्रियाओं से पुनर्निर्मित किया जा सकता है।
- तेल का पुनर्निर्माण: उपयोग किये गए (गन्दे) तेलों (स्नेहन तेल) को पुनर्प्रक्रियित करके बेचा जाता है।
- खनिजों का पुनर्प्रक्रियण: ऊष्मारोधन सामग्री (एसबेस्टोस) को कुछ सुविधाओं में हाथ से कूटकर निर्माण उद्योगों को बेचा जाता है।
- तांबे की पुनर्प्राप्ति: क्षतिग्रस्त केबल या बेचे न जा सकने वाले केबलों के ऊष्मारोधक को जलाकर या यांत्रिक तरीके से (जो कभी-कभी रद्दीकरण स्थल में ही होता है) हटाया जाता है।

पुनश्चक्रण:


उत्पाद शृंखला में कच्चे माल के रूप में उपयोग किये जाने के अर्थों में अपशिष्टों के पुनश्चक्रण का प्रथम और प्रमुख उदाहरण रद्दी इस्पात है। यह इस्पात कारखानों और कोल्ड-रोलिंग सुविधाओं के लिये कच्चा माल होता है। अन्तिम उप्ताद की गुणवत्ता उपलब्ध रद्दी माल की गुणवत्ता, छँटाई प्रक्रिया और पुनश्चक्रण विधि पर निर्भर करता है।

वर्तमान तौर-तरीके और मानक – प्रमुख पोत-भंजक देश


पोत-भंजन में संलग्न अधिकांश देश किसी-न-किसी रूप में अपने राष्ट्रीय विनियमनों, मार्गदर्शक सिद्धान्तों और/या सिफारिशों का जिक्र करते हैं जो पोत-भंजन उद्योग पर लागू होते हैं। इनमें स्थल के लिये लाइसेंस देना तथा व्यावसायिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरणीय चिन्ताओं से जुड़े मुद्दों का भी समावेश होता है। लेकिन ऐसे प्रमाण भी उपलब्ध जो सुझाते हैं कि कुछ प्रमुख पोत-भंजक देशों में इनका पूर्ण क्रियान्वयन नहीं होता है।

3.4.2 भारत


परिमाण की दृष्टि से भारत विश्व का अग्रणी पोत-भंजक राष्ट्र है। इससे जुड़ी गतिविधियाँ गुजरात के अलंग के तटों पर केन्द्रित हैं।

कई स्वतंत्र अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि अलंग और अन्य पोत-भंजक स्थलों में कर्मियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा और पर्यावरण के संरक्षण में कमियाँ हैं।

जाँच-पड़तालों से पता चला है कि यहाँ भारी धातुओं, एसबेस्टोस, पीएएच और ट्राइब्यूटाइल टिन (टीबीटी) का सांद्रण देखा जाता है। अपशिष्टों को स्वीकार करने और उनके निपटारे की क्षमता का अभाव देखा गया है और एसीएम जैसे खतरनाम पदार्थों के लापरवाहीपूर्ण हस्तन के मामले बारबार सामने आये हैं। अलंग के विखण्डन स्थलों में कर्मियों को 24 घंटे इन प्रदूषक पदार्थों के सम्पर्क में रहता है क्योंकि इनका निवास भी कार्यस्थल के निकट ही होता है।

कानूनी ढाँचा


दिल्ली स्थित केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ‘पोत-भंजक देशों के लिये पर्यावरणीय दिशा-निर्देश’ तैयार किया है जिसका उद्देश्य है 'जलपोत-भंजक उद्योग के कारण आसपास के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिये उद्योगों का उचित स्थानीयन (साइटिंग), पर्यावरणीय प्रबन्ध योजना (ईएमपी) लागू करना और विपदा प्रबन्ध योजना (डीएमपी) लागू करना।' इन दिशानिर्देशों में ठोस कचरे, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और शोर के नियंत्रण के लिये उचित उपायों का वर्णन भी शामिल है। इसमें कर्मियों की सुरक्षा से जुड़े विषयों का भी समावेश हुआ है। ईएमपी के क्रियान्वयन को नियमित रूप से मानिटर करने की जिम्मेदारी सम्बन्धित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) की है। प्रदूषण, जैसे वायु या जल प्रदूषण, को नियमित रूप से मानिटरण करने की जिम्मेदारी पर्यावरणीय प्रबन्ध विभाग की है।

गुजरात समुद्री बोर्ड (गुजरात मैरीटाइम बोर्ड, जीएमबी) ने, जो उन क्षेत्रों के प्रशासन की देखरेख करता है जहाँ अलंग में रद्दीकरण से जुड़ी गतिविधियाँ चलती हैं, 31 अगस्त 2000 को नए दिशा-निर्देश जारी किये जिसमें जलपोतों के बीचिंग के दौरान सुरक्षा उपायों का उल्लेख हुआ है। नीचे इन विनियमों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है:

बीचिंग:


- दस्तावेजन – गैस-मुक्त होने का प्रमाणपत्र
- जलपोत को बीच करने की अनुमति
- जलपोतों की संख्या और प्रति प्लोट इनके स्थानों (इनमें आपसी दूरी) पर सीमाएँ

काटने का काम शुरू करने के पूर्व सावधानियाँ:

- खतरनाक सामान हटाए जाने के बाद जीएमबी अनुमति जारी करता है
- अग्निशमन क्षमता का प्रावधान
- प्लाट के स्वामी की मदद से जीएमबी के सुरक्षा अधिकारियों द्वारा पर्यवेक्षण

1. सभी कर्मियों की पहचान (आईडी-कार्ड जारी करके और प्लाट के प्रवेश द्वार पर कार्ड पढ़ने की मशीन लगाकर कर्मियों का मानिटरन करना)

घटनाओं की सूचना देने की प्रक्रिया:

- घटनाएँ/दुर्घटनाएँ होने पर दंड/प्रचालन के लिये आवश्यक अनुमति का अस्थायी स्थगन की व्यवस्था

राष्ट्रीय पहल


गुजरात समुद्री बोर्ड (जीएमबी) ने संचार माध्यमों में भारत के जलपोत-विखण्डन सुविधाओं में सम्भावित पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्याओं को मिल रहे महत्त्व पर अभी हाल में प्रतिक्रिया जताई है। जीएमबी इस समले से सक्रिय रूप से निपट रही है, उदाहरण के लिये बन्दरगाह विकास गुजरात कार्यक्रम (पीओडीईजी) के ढाँचे के तहत। पीओडीईजी गुजरात-नीदरलैंड सहयोग कार्यक्रम है जिसके अन्तर्गत कुशलताओं के हस्तान्तरण की व्यवस्था है। पीओडीईजी की एक गतिविधि, अर्थात पोत-भंजन का उद्देश्य है पर्यावरणीय और स्वास्थ्य स्थितियों में सुधार लाना, जीवन स्तर और सामाजिक स्थितियों में सुधार लाना और पुनर्गठन हेतु संस्थागत विकास में सुधार लाना।

पीओडीईजी ने जलपोतों के पुनश्चक्रण उद्योग पर एक कार्यशाला का प्रायोजन किया जो 19 फरवरी 2000 भावनगर, भारत में हुई। कार्यशाला के बाद जीएमबी द्वारा रिपोर्ट किये गए पहलों, कार्रवाइयों और निष्कर्षों के उदाहरण नीचे दिये गए हैं:

- अलंग में हुई घटनाओं पर अनुसन्धान; मृतकों और घायलों की संख्या और इसके कारण (सितम्बर 2000 में पूरा हुआ)
- फोरमैन और कर्मियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम (सितम्बर 2000 – सिम्तबर 2001)
- कर्मी सुरक्षा के बारे में जागरुकता लाने के लिये सूचना अभियान (2000 के अन्त में)
- अलंग के लिये एक अपशिष्ट-प्रबन्धन योजना का विकास (सितम्बर 2000 – जून 2001)
- बीचिंग के लिये नए विनियम (अगस्त 2000 में पेश किया गया)
- वर्तमान (और नए) नियमों का प्रवर्तन
- 30,000 कर्मियों के आवास के लिये योजना (जारी)
- श्रम सुरक्षा संस्थान की स्थापना की योजना (जारी)

पीओडीईजी के बजट का एक हिस्सा अलंग में कार्रवाई करने और वहाँ पूँजी लगाने के लिये आवंटित किया गया है। जीएमबी की योजनाओं का कार्यान्वयन फरवरी 2001 में गुजरात में आये भूचाल के कारण थोड़ी पीछे चल रही है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 13.10.1997 को खतरनाक अपशिष्टों के प्रबन्धन के लिये एक उच्च स्तरीय समिति (एचपीसी) गठित की। एचपीसी के कार्य का दायरा था 'सर्वांगीण और दीर्घकालिक दृष्टि वाला दस्तावेज तैयार करना जिसका विषय हो न केवल बेसेल संधि के तहत खतरनाक अपशिष्टों के आयात को नियमित करना, बल्कि सभी खतरनाक अपशिष्टों का सुरक्षित निपटारा, जिसमें देश में बने अपशिष्ट भी शामिल हैं और इन अपशिष्टों के कारण प्रकट होने वाले खतरों को न्यूनतम रखना।' खतरनाक अपशिष्टों के प्रबन्धन के बारे में एचपीसी ने मई 2001 के पहले एक प्रतिवेदन जारी किया जिसे पता चलता है कि भारत में खतरनाक अपशिष्टों से सम्बन्धित स्थिति में सुधार लाने की काफी गुंजाईश है। एचपीसी ऐसे कुछ उपाय भी सुझाता है जो यह सुनिश्चित करने में उपयोगी हैं कि भारत में विखण्डन के लिये आने वाले जलपोत किसी बन्दरगाह में पहुँचने से पहले ठीक तरह से दूषणरहित कर दिये गए हैं। इन उपायों में से कुछ हैं:

- जलपोत को सम्बन्धित अधिकरण या राज्य समुद्री बोर्ड से उचित अनुमति है जिसमें कहा गया हो कि उसमें कोई खतरनाक कचरा या रेडियोधर्मी पदार्थ नहीं हैं
- जलपोत को तोड़ने से बनने वाले कचरे को खतरनाक और गैरखतरनाक वर्गों में वर्गीकृत किया जाएगा
- खतरनाक पदार्थों का हस्तन और निपटार एक खास विधि के अनुसार होगा

3.4.3 चीन


चीन में सस्ता श्रम और बाजारीय अवसर दोनों के लक्षण विद्यमान हैं। निर्माण हेतु इस्पात की ऊँची माँग और एक सुविकसित अधोसंरचना वे प्रमुख कारण हैं जिनकी मदद से चीन कुछ वर्षों तक अधिकांशतः निष्क्रिय रहने के पश्चात पिछले कुछ वर्षों में एक बार फिर एक प्रमुख पोत-भंजक राष्ट्र के रूप में उभर सका है। अधिक महत्त्व की बात यह है रद्दीकरण के लिये आयातित जलपोतों में लगने वाले करों में हाल में परिवर्तन किया गया है जिससे चीनी पोत-भंजक सुविधाएँ अधिक प्रतिस्पर्धात्मक हो गई हैं।

चीन में जलपोतों को तोड़ने के लिये अपनाई गई विधियाँ अन्य प्रमुख पोत-भंजक देशों द्वारा अपनाई गई विधियों से कुछ भिन्न हैं क्योंकि चीन में पोत-घाट या क्वे जैसी सुविधाएँ अपनाई जाने लगी हैं। ऐसी प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है जो पर्यावरण को अधिक सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता रखती हैं (जैसे क्रेन, घाट, आदि) और इससे अपने जलपोतों के विखण्डन के इच्छुक पोत-स्वामी आकृष्ट हुए हैं। ‘चीन का राष्ट्रीय पोत-रद्दीकरण संघ’ ने, जो लगभग पन्द्रह प्रमुख पोत-भंजक स्थलों का प्रतिनिधित्व करता है, अभी हाल में यूरोप में प्रमोशन दौरे करवाए हैं जिसका विषय है ‘चीन में जलपोतों का साफ-सुथरा पुनश्चक्रण’।

नीचे चीन में जलपोत भंजन और पुनश्चक्रण के वर्तमान सिद्धान्तों की सूची दी गई है जिसे ‘चीन के राष्ट्रीय पोत-रद्दीकरण संघ’ ने अपनाया है।

स्थल विशिष्ट पहलू/आवश्यकताएँ:


1. जलपोतों को क्वे या तट पर तोड़ा जाना चाहिए।
2. जलपोत भंजन यार्ड में अपशिष्टों की स्वीकृत करने और उनके भण्डारण के लिये सुविधाएँ होनी चाहिए और खतरनाक पदार्थों के भण्डारण के लिये पर्यावरणीय और सुरक्षा विनियमों के अनुसार अलग सुविधाएँ होनी चाहिए।
3. यार्ड में धातुमल/तेल अवशेष से निपटने के लिये विभाजक होने चाहिए।
4. यार्ड में तेल छलकने, निजी दुर्घटनाएँ, आग और खतरनाक पदार्थों से सम्बन्धित दुर्घटनाओं से निपटने के लिये आपत योजना और क्रियाविधियाँ होनी चाहिए।
5. यार्ड में घायल व्यक्तियों के प्राथमिक उपचार की व्यवस्था होनी चाहिए।
6. यार्ड में अग्निशमन उपकरण होने चाहिए।
7. यार्ड में अनधिकृत प्रवेश को रोकने की व्यवस्था होनी चाहिए।
8. यार्ड को सुरक्षा विनियमों और क्रियाविधियों का अनुपालन करना चाहिए।
9. यार्ड को रोकथाम की प्रविधियाँ अपनानी चाहिए।
10. यार्ड को पर्यावरण को रक्षित करने की कार्यविधियाँ अपनानी चाहिए और एक पर्यावरणीय नीति स्थापित करनी चाहिए।
11. यार्ड को अपने कर्मियों के लिये एक स्वास्थ्य कार्यक्रम स्थापित करना चाहिए।
12. यार्ड को अपने उपकरणों के सुरक्षित रख-रखाव के लिये कार्यक्रम स्थापित करना चाहिए।
13. यार्ड में सुस्पष्ट कार्यविधियाँ होनी चाहिए और सभी कर्मियों को उनका पालन करना चाहिए।

प्रमाणपत्र/लाइसेंस:


1. यार्ड को तोड़ने का काम करने वाले यार्डों के किसी सामान्य/मास्टर संगठन का सदस्य होना चाहिए, जो आचार के नियम जारी करता हो।
2. यार्ड को पोत-भंजन के लिये लाइसेंस प्राप्त करना चाहिए और उसे लाइसेंस देने वाले अधिकरण को रिपोर्ट करना चाहिए।
3. यार्ड को पर्यावरणीय अधिकारियों की सहमति से काम करना चाहिए और उसे इस मामले में उसे मिले लाइसेंस को प्रस्तुत करना चाहिए।
4. पर्यावरणीय अधिकारियों को नियमित रूप से यार्ड की जाँच करनी चाहिए।
5. यदि यार्ड को जलपोत खरीदने हों, तो उसे आयात लाइसेंस प्रस्तुत करना चाहिए।
6. यदि तोड़ने के काम के लिये या/और परिवहन/अपशिष्ट संग्रह और/या खतरनाक पदार्थों के हस्तन के लिये उपठेकेदारों का उपयोग करना हो, तो नियमित रूप से इसकी जाँच करनी चाहिए कि इन ठेकेदारों को इस तरह के कामों के लिये लाइसेंस मिला हुआ है या नहीं।
7. यार्ड को खतरनाक उत्पादों के हस्तन और निपटारे के लिये विद्यमान नियमों और विनयमों का पालन करना चाहिए।

कर्मी:


1. कर्मियों को खतरनाक पदार्थों के हस्तन में और घायलों को प्राथमिक चिकित्सा देने में प्रशिक्षण मिला हुआ होना चाहिए।
2. कर्मियों को अग्नि शमन और तेल के छलकाव से निपटने का प्रशिक्षण मिलना चाहिए।
3. यार्ड पर काम कर रहे कर्मयों को सुरक्षात्मक हेलमेट, जूते, चश्मे और दस्ताने पहने रहना चाहिए।
4. यार्ड पर काम कर रहे कर्मी जब विषाक्त सामग्रियों का हस्तन कर रहे हों या ऐसी सामग्रियों का हस्तन कर रहे हों जो विषाक्त गैसों का उत्सर्जन कर सकते हों, तो उन्हें सुरक्षित मुखौटा पहनना चाहिए।
5. जो कर्मी एसबेस्टोस या एसबेस्टोस युक्त सामग्रियों का हस्तन कर रहे हों उन्हें सुरक्षात्मक कपड़े और मुखौटा पहनना चाहिए।
6. जो कर्मी टोर्च से इस्पात को काटने का काम कर रहे हों उन्हें पेंट के जलने से पैदा होने वाली विषाक्त वाष्पों से रक्षित करना चाहिए।

कार्यविधि:


1. तोड़ने या पुनश्चक्रण के लिये पोत को स्वीकार करने से पहले उस पर क्या-क्या खतरनाक चीजें हैं इसका आकलन करना चाहिए।
2. यह सुनिश्चित करने के लिये अन्दरूनी और बाह्य नियमों का पालन हो रहा है, कर्मचारियों को नियुक्त करना चाहिए।
3. इस्पात को काटने का काम जहाँ तक हो सके हाइड्रोलिक कैंचियों या जल जेट द्वारा किया जाना चाहिए।
4. नौतल (कील) को तट पर ही तोड़ना चाहिए।
5.जलपोत में विद्यमान अवशिष्ट तेलों को तट पर ले आना चाहिए और तेल रोकने के फाटक बनाए जाने चाहिए।
6. अन्तिम ईंधन/डीजल तेल और धातुमल को बिल्ज तालाब में पम्प करके हटाना चाहिए और इन अवशेषों के हस्तन के लिये विभाजकों का उपयोग करना चाहिए और यह काम जलपोत के रद्दीकरण के पूर्व करना चाहिए।
7. जलपोत के ढाँचे में जो एसबेस्टोस है उसे हटाते समय कर्मियों को सुरक्षित कपड़े और मुखौटे पहनने चाहिए।
8. खुले एसबेस्टोस को हटाते समय ऐसे उपाय करने चाहिए ताकि एसबेस्टोस की धूल या रेशे हवा में न पहुँचें।
9. खतरनाक प्रकृति के बिजली केबल के ऊष्मारोधण को भी उसी तरह हटाना चाहिए जिस तरह एसबेस्टोस को। इस ऊष्मारोधन पदार्थों को जलाना निषिद्ध है।
10. इस्पात से जो डामर/बिटूमन चिपका रह गया हो, उसे कुरेदकर हटा देना चाहिए।
11. इस्पात से चिपके हुए ऊष्मारोधन को सुरक्षित कपड़े और मुखौटा पहने हुए कर्मियों द्वारा हटाया जाना चाहिए और इस तरह के कचरे को अलग रखना चाहिए।

सम्भावित खतरनाक (अपशिष्ट) उत्पाद:


1. बैटरियों को लाइसेंसित डीलरों को भेजना चाहिए जो इनके हस्तन में कुशल हैं।
2. डीजल तेल को पम्प करके तट पर जमा करना चाहिए और लाइसेंसित डीलरों द्वारा उनका हस्तन होना चाहिए।
3. बिजली के घटकों को काटकर अलग करना चाहिए और उनके पुर्जे अलग करने के पूर्व यह देख लेना चाहिए कि उनमें बिजली शेष तो नहीं रह गई है।
4. रेशों/ग्लासवूल के स्लैबों पर पानी छिड़कना चाहिए ताकि वे बिखरे न।
5. आग का पता लगाने वाले उपकरणों का हस्तन सुरक्षित कपड़े और मुखौटा पहने हुए कर्मियों द्वारा किया जाना चाहिए।
6. फ्रेयोन/हेलोन (बोतलों में और जलपोत के शीतलन प्रणालियों में) का हस्तन लाइसेंसित डीलरों द्वारा होना चाहिए।
7. ईंधन तेल (बचा हुआ) को पम्प करके तट पर जमा करना चाहिए और विभाजकों से निकालने पश्चात ही उनका निपटारा होना चाहिए।
8. ग्रेनुलेटेड कोर्क का लाइसेंसित डीलरों द्वारा ही हस्तन होना चाहिए।
9. स्नेहन तेल (लूब्रिकेटिंग ओयल) को पम्प करके तट पर जमा करना चाहिए और विभाजकों से निकालने पश्चात ही उनका निपटारा होना चाहिए।
10. पेंट अवशेषों का लाइसेंसित डीलरों द्वारा ही हस्तन होना चाहिए।
11. प्लास्टिक/पीवीसी को जलपोत से निकालकर तट पर इकट्ठा करना चाहिए और फिर लाइसेंसित डीलरों द्वारा उनकी छँटाई और संग्रह किया जाना चाहिए।
12. पोलीयूरेथेन फोम (स्प्रे किया हुआ) का लाइसेंसित डीलरों द्वारा ही हस्तन होना चाहिए।
13. पोलीयूरेथेन चादरों को जलपोत से निकालकर तट पर इकट्ठा करना चाहिए और फिर लाइसेंसित डीलरों द्वारा उनकी छँटाई और संग्रह किया जाना चाहिए।
14. रबड़ को जलपोत से निकालकर तट पर इकट्ठा करना चाहिए और फिर लाइसेंसित डीलरों द्वारा उनकी छँटाई और संग्रह किया जाना चाहिए। ट्रांसफोर्मर तेल को जलपोत से निकालकर तट पर इकट्ठा करना चाहिए और फिर लाइसेंसित डीलरों द्वारा उनकी छँटाई और संग्रह किया जाना चाहिए।
15. दीवार के पेनल/बल्कहेड (में ऊष्मारोधी पदार्थ के रूप में एसबेस्टोस हो सकता है)। इस एसबेस्टोस को पहले हटाना चाहिए और फिर पैनलों को तट पर लागकर लाइसेंसित डीलरों द्वारा छँटाई और संग्रह होना चाहिए।

जाँच:


1. यार्ड को तोड़ने के दौरान बेचने वाले या उसके नामित प्रतिनिधि द्वारा नियमित जाँच/पर्यवेक्षण की अनुमति देनी चाहिए।
2. यार्ड को तीसरे पक्षों को जिनमें शामिल है अखबारनवीस या पर्यावरणीय गुटों के प्रतिनिधियों को आने देना चाहिए।
3. यार्ड को भंजन कार्य पूरा होने के बाद बेचने वाले को सम्पूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराने चाहिए, जिनमें फोटो भी शामिल हैं। इस दस्तावेजन में ऊपर उल्लिखित लाइसेंसित डीलरों को दी गई सामग्रियों की पुष्टि भी होनी चाहिए।

हाल के वर्षों में चीन में हर साल 15 लाख टन रद्दी जलपोतों का भंजन हो रहा है, जिनमें से 90 प्रतिशत को पोत-घाटों में तोड़ा जाता है। चीन के राष्ट्रीय पोत-भंजक संघ ने दिसम्बर 2001 की अपनी हाल की बैठक में अपने लिये लक्ष्य रखा है कि वह पर्यावरणीय दृष्टि से उचित पोत-रद्दीकरण उद्यम स्थापित करेगा। वह चीन के प्रमुख पोत-भंजन उद्यमों को आईएसओ 14000 और एचएसए 18000 प्रमाणीकरण के लिये पेश होने का अनुरोध करेगा और इसमें उनकी मदद भी करेगा।

3.4.4 बांग्लादेश


इस समय बांग्लादेश में जलपोतों के रद्दीकरण का काम उसके तटों पर कई स्थलों पर हो रहा है। दरअसल फौजदारहाट वाला क्षेत्र जो चिटगाँव के दक्षिणपश्चिम में स्थित 16 किलोमीटर लम्बा तट है रद्दीकृत जलपोतों की संख्या की दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जलपोत-विखण्डन स्थल है।

चिटगाँव बड़े जलपोतों के लिये दुनिया का सबसे बड़ा स्थल है और यहाँ 200,000 डीडब्ल्यूटी से अधिक बड़े 52 प्रतिशत जलपोतों का रद्दीकरण होता है (1997-98)। इसका कारण चिटगाँव में ज्वार-भाटे के स्तर में बहुत बड़ा अन्तर है, जिसके कारण अन्तर-ज्वारीय क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है, जिससे बड़े जलपोतों को आसानी से बीच किया जा सकता है। किन्तु इससे भी महत्त्वपूर्ण बात शायद यह है कि यहाँ ‘गरम काम’ के लिये सावधानियाँ बरतने के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की आवश्यकताओं का अभाव है।

स्थलों पर जाकर किये गए निरिक्षणों से पता चला है कि अन्य बातों के साथ यहाँ जल और अवसाद में तेल की मात्रा बहुत अधिक है तथा मिट्टी के नमूनों में भारी धातुओं, पीसीबी और ट्राइब्यूटाइल टिन (टीबीटी) के अंश बहुत अधिक हैं। एसबेस्टोस हर जगह विद्यमान था। इन परिणामों से स्पष्ट होता है कि जलपोत-विखण्डन गतिविधियों से पर्यावरण का दूषण होता है।

अन्य अध्ययनों में पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्धन और व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के आधारभूत सिद्धान्तों के सीधे विपरीत बातें देखी गई हैं।

- कर्मियों के लिये पेयजल जलपोत-विखण्डन यार्ड में ही खोदे गए नलकूपों से प्राप्त किया जाता है।
- कर्मियों को आराम करने के लिये कमरों की सुविधाएँ नहीं हैं।
- गैस से काटने वाले कर्मी और उनके सहायक इस्पात की चादरें काटते समय चश्मे, रक्षात्मक लिबास, दस्ताने, बूट आदि का उपयोग नहीं करते और इनके बिना ही लम्बे समय तक काटने का काम करते रहते हैं। स्थानीय विनियमों में निर्दिष्ट वजनों से कहीं भारी वस्तुओं को कर्मी उठाते हैं।
- बीच करने के पूर्व जलपोतों के बन्द भागों को ठीक तरह से साफ नहीं किया जाता है और उनमें विषाक्त रसायन या वाष्प भरे हो सकते हैं। इनमें कर्मियाँ विद्यमान खतरों से बेखबर रहते हुए घुसते हैं और उनका दम घुटता है और उनके फेफड़ों को नुकसान पहुँचता है। कुछ स्थानों में विस्फोटक गैसें भरी हो सकती हैं और जब गैस से काटने वाले कर्मी वहाँ छेद करते हैं या अन्य रीति से इन गैसों को बाहर निकालने की कोशिश करते हैं तो गम्भीर विस्फोट हो जाते हैं और आग भी लग जाती है।

इस अध्ययन ने कोई सुरक्षात्मक या पर्यावरणीय उपायों का सुझाव नहीं दिया न ही उसने नीचे उल्लिखित विनियमनात्मक आवश्यकताओं के अनुपालन की पुष्टि की।

फौजदारहाट के रद्दीकरण प्लोट मछुआरों के गाँवों के ठीक निकट स्थित हैं। मछली पकड़ने के इलाकों और रद्दीकरण उद्योग के बीच हितों की टकराहट स्पष्ट है।

कानूनी ढाँचा


जलपोतों के रद्दीकरण के प्रबन्धन के लिये एक राष्ट्रीय विनियमनात्मक ढाँचा स्थापित किया गया है। इसमें शामिल हैं:

- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से विखण्डन स्थल के प्रचालक को अनुमति प्राप्त करने का प्रावधान।
- रद्दीकृत होने वाले हर जलपोत के लिये 'बर्थिंग प्रमाणपत्र' जारी करना (जहाजरानी मंत्रालय के अधीन आने वाले बन्दरगाह प्राधिकरण)।
- ‘गरम काम’ प्रमाणपत्र जारी करना (विस्फोटक विभाग द्वारा)।

इसके अलावा पर्यावरणीय कानून (1997 के) में यह प्रावधान है कि जलपोत विखण्डन उद्योग सहित प्रत्येक उद्योग को वन और पर्यावरण मंत्रालय के पर्यावरण विभाग (डीओई) से ‘पर्यावरणीय अनुमति प्रमाणपत्र’ प्राप्त करना है। इसके लिये जलपोत विखण्डन स्थल को एक पर्यावरणीय प्रबन्ध योजना (ईएमपी) स्थापित करनी होती है। पर्यावरणीय कानून सुरक्षा उपाय, व्यावसायिक स्वास्थ्य, अपशिष्ट प्रबन्धन, मानिटरण योजनाएँ और विपदा प्रबन्ध की भी चर्चा करता है। इसके अलावा सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर भी विचार हुआ है।

राष्ट्रीय पहल


वर्ष 2000 की गर्मियों में चिटगाँव में दो मुख्य घटनाएँ हुईं जिनमें कई कर्मियों की जानें गईं। दोनों घटनाएँ विस्फोटक परिवेश में टोर्च द्वारा काटने के काम से हुईं। इन दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप जिन परिस्थियों में पोत-भंजन काम होता है, उसके विरोध में चिटगाँव में एक प्रदर्शन आयोजित किया गया।

इस प्रदर्शन के नतीजतन, सरकार ने पोत-भंजन क्षेत्रों में एक अस्पताल और अग्निशमन दल स्थापित करने की योजना का खुलासा किया। जलपोत-विखण्डन सुविधाओं के कुछ फोरमैनों के लिये एक दो-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।

3.4.5 पाकिस्तान


वर्ष 2000 के आँकड़ों के अनुसार पाकिस्तान चौथा सबसे बड़ा पोत-भंजक राष्ट्र है। किन्तु हाल की रिपोर्टों से लगता है कि यह गतिविधि तेजी से खत्म होती जा रही है और 2001 में नाममात्र का काम ही हो पाया।

पाकिस्तान में जो पोत तोड़े जाते हैं, वे बहुत बड़े होते हैं, जिससे पता चलता है कि उनमें से अधिकांश टैंकर हैं। इससे एक और बात का पता चलता है ‘गरम काम’ को सुरक्षित रूप से करने के लिये आवश्यक प्रतिबन्ध या तो बिलकुल ही नहीं हैं या बहुत कम हैं। अपनाई गई कार्यविधियाँ भारत और बांग्लादेश के समान हैं और रद्दीकृत जहाजों को बीच किया जाता है।

पाकिस्तान में रद्दीकरण का प्रशासन किस तरह होता है और उसका संगठन कैसा है इस बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। जो संक्षिप्त मूल्यांकन हुए हैं उनसे स्पष्ट नहीं हो पाया है कि पोत-भंजन क्षेत्र में किस तरह के पर्यावरणीय मुद्दे या व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े मुद्दे प्रमुख हैं। गैरसरकारी संगठनों ने पाकिस्तान के इस उद्योग के मूल्यांकन के लिये योजनाओं की घोषणा की है।

3.4.6 अन्य


अब तुर्की ही एकमात्र ओईसीडी देश है जो उल्लेखनीय रूप से जलपोत विखण्डन का काम करता है। उनके पोत-भंजन यार्ड एजियन तट पर अलियागा के इर्द-गिर्द स्थित हैं। अलियागा के पोत-भंजन कम्पनियों की कुल क्षमता 500,000 टन प्रति वर्ष है, जिसमें से 75 प्रतिशत बड़े मालवाहक पोत हैं, 15 प्रतिशत मछली पकड़ने वाली नावें हैं और 10 प्रतिशत तेल टैंकर हैं (2000 के आँकड़े)।

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