जलवायु के बदलावों को स्वीकार करें

जब विज्ञान ने यह तथ्य स्थापित किया कि भूमंडलीय तापमान बढ़ रहा है और इसका भयावह असर हो सकता है, तो इसका भी संकेत दिया कि दुनिया के सबसे धनी देश यह समस्या पैदा कर रहे हैं, जिससे करोड़ों लोग प्रभावित हो रहे हैं। इस लिहाज से यह ‘पीड़ित’ और ‘खलनायक’ का मामला है।आप कल्पना करें: सूखे राजस्थान में बाढ़ और बारिश वाले असम में सूखा। ये दोनों ही मामले विध्वंसक हैं और लोग इनसे निपटने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन क्या यह प्राकृतिक आपदा है या इंसान द्वारा तैयार की गई आपदा – दुनिया के मौसम चक्र में आ रहे बदलाव का संकेत? या यह मानवीय कुप्रबंधन का नतीजा है और इसलिए इंसान जो पहले से ही तबाही की कगार पर है वह मौसम में होने वाले छोटे या बड़े बदलावों को भी नहीं झेल सकता है?

इन बहुविकल्पी सवालों के सभी जवाब सही हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक प्राकृतिक आपदा है चूंकि हमारे इलाके में मानसून का मिज़ाज बहुत उतार-चढ़ाव वाला और अनिश्चित होता है, इसलिए यह सूखा और बाढ़ दोनों लाता है। यह भी एक तथ्य है कि प्रकृति की ये घटनाएँ ज्यादा भयावह इसलिए हो गई है क्योंकि हम लोगों ने बगैर सीवर सिस्टम के शहर बसा दिए, ढलान वाले इलाकों में बस्तियां बसा दीं, पानी के सारे स्रोत मसलन तालाब, कुएँ आदि जहां पानी इकट्ठा होता था, भर दिए और हम लोगों ने वह सारे काम किए, जिनसे प्राकृतिक आपदा की स्थितियों में हमारी असुरक्षा बढ़ गई। लेकिन यह भी इतना ही सही है कि हमारी पारिस्थितिकी में बदलाव हो रहे हैं और इसलिए मौसम की घटनाएँ विकराल हो रही हैं।

समस्या यह है कि पारिस्थितिकी का विज्ञान बहुत सरल नहीं है। लेकिन वैज्ञानिक शुरुआती जांच के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि मानवता का भविष्य हम जितना सोच रहे हैं उससे ज्यादा अनिश्चित है। क्लाइमेट चेंज पर बनी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा है कि पारिस्थितिकी का बदलाव एक हकीक़त है और यह भविष्यवाणी की है कि इस सदी में भूमंडलीय तापमान दो से 4.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। ऐसा पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में दोगुनी बढ़ोतरी के कारण होगा। अमेरिकी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस ने कहा है कि 20वीं सदी के पिछले कुछ दशक पिछले चार सौ सालों की तुलना में ज्यादा गर्म थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि भूमंडलीय तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार बढ़ेगी, समुद्र का तल बढ़ेगा और मौसम की घटनाएँ अतिवादी होगी। लेकिन उन्होंने यह भविष्यवाणी नहीं की है कि ये सब बहुत जल्दी होगा। उदाहरण के लिए वैज्ञानिकों ने कहा है कि बर्फ की परत निचले हिस्से तक पिघलने में 10 हजार साल लगेंगे और इस वजह से गर्मी बढ़ने की मात्रा सीमित रहेगी और हर साल दो-तीन किलोमीटर तक बर्फ की चादर पिघलेगी और समुद्र का स्तर धीमी रफ्तार से बढ़ेगा। लेकिन अब वे कह रहे हैं कि रफ्तार बढ़ सकती है क्योंकि पिघले हुए बर्फ का पानी इकट्ठा होगा तो उससे बर्फ की चादरों में दरार पड़ेगी।

भविष्य हमारे सामने है। दुनिया के सबसे बड़े ग्लेशियर ग्रीनलैंड में ग्लेशियर टूटने लगे हैं। गर्मियों में ग्रीनलैंड में ग्लेशियर पिघलने से कई बड़े झील बन गए। वैज्ञानिकों ने पाया है कि आइसबर्ग टूट कर अटलांटिक महासागर में गिर रहे हैं। इसी तरह से अंटार्कटिक से हिमालय तक ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इसलिए वैज्ञानिकों ने समुद्र तल बढ़ने के समय का अपना अनुमान बदला है और अब वे मान रहे हैं कि यह जल्दी हो सकता है।

मैं ये सारी बातें अतिरिक्त सावधानी के साथ कर रही हूं। एक सामान्य तथ्य यह है कि हम यह नहीं जानते हैं कि ये सब कुछ हमारे हिस्से की दुनिया में हो रहा है। हम नहीं जानते, क्योंकि हमारा मौसम विभाग इस बात से अब भी इनकार कर रहा है कि चीजें बदल सकती हैं। वे मानते हैं कि मौसम के मिज़ाज की यह तब्दीली एक सामान्य बात है और क्लाइमेट चेंज से इसका कोई लेना देना नहीं है। अपनी बत के समर्थन में वे इतिहास में कभी हुई ऐसी घटना का ब्योरा खोज निकालते हैं और बताते हैं कि ऐसा होता रहता है और यह बहुत सामान्य बात है।

लेकिन हम लोगों के लिए निश्चित चिंता की बात है। यह लापरवाही का समय नहीं है। हाल ही में भूमंडलीय तापमान बढ़ने से भारतीय मानसून के गर्मियों पर पड़ने वाले असर के आकलन करने वाले एक शोध में कहा गया है कि इसके असर से मानसून अस्थिर हो सकता है। एक तरफ जलवायु में फॉसिल फ़्यूल और बायोमास बर्निंग के कारण एरोसोल की मात्रा बढ़ रही है, जिससे सर्दी बढ़ सकती है और बारिश की मात्रा घट सकती है। दूसरी ओर भूमंडलीय तापमान बढ़ने से आर्द्रता और गर्मी के दौर में बदलाव आएगा और इससे मानसून का चक्र प्रभावित होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो इससे कहीं बारिश की मात्रा बढ़ जाएगी कहीं सूखा पड़ जाएगा और कहीं बाढ़ आ जाएगी। लेकिन हमारे वैज्ञानिक इसे देखने से इनकार कर रहे हैं।

जब विज्ञान ने यह तथ्य स्थापित किया कि भूमंडलीय तापमान बढ़ रहा है और इसका भयावह असर हो सकता है, तो इसका भी संकेत दिया कि दुनिया के सबसे धनी देश यह समस्या पैदा कर रहे हैं, जिससे करोड़ों लोग प्रभावित हो रहे हैं। इस लिहाज से यह ‘पीड़ित’ और ‘खलनायक’ का मामला है।

यह समस्या धनी और गरीब सबके लिए है। और इसलिए हमारे वैज्ञानिकों को इसकी जांच में शामिल होना चाहिए। पारिस्थितिकी में आ रहे बदलाव से इनकार का खेल निश्चित रूप से बंद होना चाहिए।

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