जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव


लू, बाढ़, सूखे, आँधी का बढ़ना, खाद्य असुरक्षा, वायु की गुणवत्ता में गिरावट, बीमारियों का बढ़ना, आदि यह सभी जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। वायु के शुद्ध न होने से, वातावरण में जहरीली गैसों के होने के कारण अनेक साँस की बीमारियाँ सामने आ रही हैं। अनेक विषम रोग उत्पन्न हो रहे हैं, बीमारियों का स्वरूप बदल रहा, बीमार लोगों की संख्या बढ़ रही है। इसलिए समय रहते चेतने की जरूरत है।अभी हाल ही में भारत के प्रधानमन्त्री ने जलवायु परिवर्तन के विषय में जो गम्भीर चिन्ता व्यक्त की है, वह पूरे विश्व के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस समस्या पर समय रहते उचित ध्यान देने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन आखिर है क्या? सरल शब्दों में जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं में बदलाव आना है। पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन होना एक सामान्य प्रक्रिया है जो लम्बे समय में होता है। इसलिए इन प्रभावों को महसूस नहीं किया जा सकता। परन्तु अभी लगभग 150-200 वर्षों से यह परिवर्तन महसूस किया जा सकता है, क्योंकि इन वर्षों में यह बदलाव बहुत तीव्र गति से आए हैं और इन सभी बदलावों के चलते प्राणियों एवं वनस्पति जगत को सामंजस्य बैठाने में मुश्किल हो रही है।

जलवायु परिवर्तन अर्थात जलवायु की दशाओं में यह बदलाव प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव निर्मित भी। जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक कारण हैं, महाद्वीपों का खिसकना, पृथ्वी का झुकाव, ज्वालामुखी, समुद्री तरंगे आदि। आज हम जिन बदलावों की बात कर रहे हैं वह मानव निर्मित है और समस्त विश्व को विषम परिस्थितियों की तरफ अग्रसर कर रहे हैं। हरित गृह प्रभाव और वैश्विक तापमान मनुष्य के क्रियाकलापों का ही परिणाम है, क्योंकि वह मनुष्य द्वारा उद्योगों से निकली विभिन्न गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड आदि गैसों के वायुमंडल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम है। कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस आदि ईंधनों के जलने से, वाहनों एवं उद्योगों के प्रदूषण के कारण, अधिक वृक्षों को काटना, औद्योगिकरण एवं अपघटित पदार्थों के उपयोग के कारण विषैली गैसें वातावरण में मिल रही हैं। यह सभी जलवायु परिवर्तन के लिये उत्तरदायी हैं।

वैश्विक तापन का मुख्य कारण भी हरित गृह प्रभाव है। हरित गृह प्रभाव को सबसे पहले फ्रांस के वैज्ञानिक जीन बैप्टिस्ट फुरियर ने पहचाना था। यह हरित गृह गैसों की परत पृथ्वी पर इसकी उत्पत्ति के समय से है, यह अधिक उष्मा से पृथ्वी की रक्षा करती है। परन्तु मानवीय क्रियाकलापों की वजह से ये परत मोटी होती जा रही है और वैश्विक तापन को बढ़ा रही है। जिसके कारण प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ रहा है। इसका असर सभी प्रजातियों पर देखने को मिल रहा है, कई प्रजातियाँ तो इस कारण विलुप्त भी हो रही हैं। मानव प्रजाति के भी खतरे में आने की शुरुआत हो चुकी है। मनुष्य खुद अपने विनाश की ओर अग्रसर है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन का मानव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसका असर मनुष्य पर सामाजिक, शारीरिक एवं मानसिक सभी प्रकार से पड़ रहा है।

आबादी का बढ़ना और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग वैश्विक तापन को बढ़ा रहा है। ऐसी समस्या पर ध्यान देकर, इसे सुलझाना सभी के हित में होगा। जलवायु परिवर्तन का प्राणियों के स्वास्थ्य एवं वनस्पति पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। मानव का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। वायु के शुद्ध न होने से, वातावरण में जहरीली गैसों के होने के कारण अनेक साँस की बीमारियाँ सामने आ रही हैं। अनेक विषम रोग उत्पन्न हो रहे हैं, बीमारियों का स्वरूप बदल रहा, बीमार लोगों की संख्या बढ़ रही है। अनेक प्रजातियों में आनुवांशिक बदलाव आ रहे हैं।

कार्बन व अन्य प्रदूषित पदार्थों के उत्सर्जन के कारण हर साल लगभग 70 लाख लोगों की असामयिक मौत हो रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण बहुत से इलाकों में सूखा होने से निर्जलीकरण की समस्या सामने आ रही है। पानी के कम होने के कारण दूषित पानी पर निर्भर रहना पड़ रहा है जिसकी वजह से जल संक्रमण से होने वाली बीमारियाँ जैसे डायरिया, हैजा आदि फैलने का खतरा बढ़ जाता है। न्यूमोनिया, डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, खसरा, मौसमी एलर्जी आदि रोगों में भी वृद्धि हो गई है। बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं की मात्रा में वृद्धि हो रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से बाढ़ का खतरा बढ़ गया है और कई जगह तो बाढ़ की वजह से तबाही भी हो गई है। खाद्य असुरक्षा का यह एक महत्त्वपूर्ण कारण है क्योंकि बाढ़ के कारण मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को नुकसान पहुँचता है। उचित भोजन न मिल पाने से कुपोषण की तादाद बढ़ी है। लू, बाढ़, सूखे, आँधी का बढ़ना, खाद्य असुरक्षा, वायु की गुणवत्ता में गिरावट, बीमारियों का बढ़ना, आदि यह सभी जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। इसके कारण वनस्पति जगत पर भी नकारात्मक प्रभाव आया है, औषधिय पेड़ों की गुणवत्ता पर भी दुष्प्रभाव देखा जा रहा है।

इंसान अपने ही कर्म से अपने और अपनी आने वाली पीढ़ी के भविष्य को अंधकार की तरफ ले जा रहा है। समय रहते सम्भलना बहुत जरूरी है क्योंकि दिन-प्रतिदिन समस्या बड़ी और ज्यादा चुनौतिपूर्ण होती जा रही है। बिना समय गंवाए अगर कुछ बातों को ध्यान में रखें तो अभी भी पृथ्वी को विनाश से बचाया जा सकता है। जैसे ईंधन के उपयोग में कमी लाना, प्राकृतिक ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग करना जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि। वृक्षों को काटने की अपेक्षा अधिक वृक्षारोपण करना, अपघटन के कठिन या असम्भव पदार्थों जैसे प्लास्टिक, पॉलीथिन आदि का उपयोग न करना आदि। मनुष्य अपने फायदे के लिये प्रकृति का दोहन न करने शोषण कर रहा है जिसे समय रहते रोकने की आवश्यकता है अन्यथा पृथ्वी पर जीवन रह पाना असम्भव हो जायेगा।

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