जलवायु परिवर्तन – कारण एवं प्रभाव

पिछले कुछ दशकों से संपूर्ण विश्व में अभूतपूर्व औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हुआ है। जिसके कारण सांसारिक ऐशो आराम और मूलभूत सुविधाओं को आम-आदमी तक पहुंचाना संभव हुआ है। परंतु इस होड़ में औद्योगिक एवं कृषि संबंधी क्रिया-कलापों के फलस्वरूप हमारे पर्यावरण पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है। इसके कारण हमारे सामने नई समस्याएं उत्पन्न हुई हैं।

जलवायु परिवर्तन जो मानवता को प्रभावित करने वाले सभी मसलों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, हमारे लिए मुख्य चिंता का विषय है, आज हमें डर इसी बात का है कि मनुष्य अपने ही क्रिया-कलापों से विश्व जलवायु का ढांचा बदल रहा है।

उद्योगों एवं कृषि से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन व अन्य ग्रीनहाउस गैसों के कारण हमारी धरती का तापमान बढ़ रहा है। हालांकि इस जलवायु परिवर्तन का तात्कालिक संकट हमें महसूस नहीं हो रहा है तथा जिसके दसियों या सैकड़ों वर्षों में होने का अनुमान है तथा यह परिवर्तन प्राकृतिक है या मानवीय क्रिया-कलापों का परिणाम, यह भी सुनिश्चित नहीं है। तथापि उस वक्त तक इंतजार करना बुद्धिमत्ता नहीं होगी जब वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा इतनी बढ़ जाये कि उसे नियंत्रण करना मुश्किल या असम्भव हो जाये।

ग्रीनहाउस गैसों के दुष्प्रभाव से संबंधित अधिकतर अध्ययन भूमंडलीय संचरण मॉडलों (GCM) के परिणामों पर आधारित हैं। इन अध्ययनों के अनुसार वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि के फलस्वरूप कृषि, जल स्रोत, ऊर्जा, प्राकृतिक स्थलीय प्रणाली और सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र संभावित प्रभावित हो सकते हैं।

विश्व जलवायु संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने संभावित जलवायु परिवर्तन से पैदा हुई चिंता देखते हुए संयुक्त रुप से जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारीय पैनल का गठन किया है। एक विश्व व्यापी जलवायु समझौते पर लगभग सभी राष्ट्रों द्वारा हस्ताक्षर किये गये हैं।

आज इस बात का और अधिक महत्व हो जाता है कि इस्तेमाल करने वालों के अधिकतम सम्भव वर्ग को जलवायु और जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दों के बारे में सही-सही जानकारी उपलब्ध की जाए जिससे जलवायु और जलवायु परिवर्तन यथासमय सम्बंधी मौजूदा अनिश्चितताओं का समाधान हो सके।

इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें



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