जलवायु परिवर्तन के साथ भारत में विकराल होती संभावित सूखे की समस्या

14 Mar 2020
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जलवायु परिवर्तन के साथ भारत में विकराल होती संभावित सूखे की समस्या
जलवायु परिवर्तन के साथ भारत में विकराल होती संभावित सूखे की समस्या

सारांश

जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के वितरण एवं तीव्रता में बदलाव के साथ ही भविष्य में बाढ़ एवं सूखे की समस्या भी उत्पन्न होने की संभावना है। भारत में खाद्यान उत्पादन एवं पेयजल उपलब्धता पर सूखे का विषम प्रभाव पड़ेगा। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत प्रपत्र में भारत में संभावित सूखे की समस्या के अध्ययन का एक प्रयास किया गया है। वैश्विक जलवायु मॉडलों (Global Climate Models i.e., GCMs½) द्वारा प्राप्त भविष्य के संभावित जलवायु प्रक्षेपों (projected climate scenarios) को उपयोग में लाते हुए Standard Potential Evapotranspiration Index (SPEI) नामक सूचकांक 0.25’ के पैमाने पर बनाया गया। इस सूचकांक से प्राप्त गणना के आधार पर समूचे भारत में सूखे की स्थिति का अध्ययन किया गया है। SPEI वर्षा एवं तापमान दोनों को ध्यान में रखते हुए सूखे का आंकलन करता है। ग्लोबल वार्मिंग को ध्यान में रखते हुए सूखे के आंकलन में तापमान को भी संज्ञान में लेने के कारण SPEI अन्य प्रचलित सूचकांकों की अपेक्षा अधिक प्रभावी है। इस अध्ययन में, किसी एक मॉडल पर निर्भर न रहकर नौ GCMs को उपयोग में लाया गया है तथा उनसे तैयार एक संवर्धित समय श्रृंखला के माध्यम से सूखे की तीव्रता एवं प्रकार का विश्लेषण किया गया है। इसके पहले भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा उपलब्ध कराये गए gridded वर्षा एवं तापमान का प्रयोग क्वांटाइल मैपिंग तकनीक के माध्यम से GCMs द्वारा उपलब्ध प्रक्षेपों में विद्यमान त्रुटियों को हटाने के लिए किया गया है। सूखे की तीव्रता एवं संभावित क्षेत्रीय प्रसार के अध्ययन हेतु Mann-Kendall एवं Sen’s slope जैसी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत प्रपत्र इस बात की संभवाना प्रकट करता है कि जलवायु परिवर्तन भविष्य में सूखे को और अधिक व्यापक एवं तीव्र बना सकता है।

Abstract

Due to alteration in distribution and intensity of rainfall caused by climate change, the problem of floods and droughts is likely to increase in future. Drought will have a negative impact on food production and drinking water availability in India. Keeping this in mind, an attempt has been made to study the drought situation in India in the presented paper under climate change scenarios of future years. An index named Standard Potential Evapotranspiration Index (SPEI), was utilized on a spatial scale of 0.25O using future climate forecasts projected by Global Climate Models (GCMs). Based on the calculations derived from this index, drought conditions have been studied all over India. SPEI assesses drought taking into account both rainfall and temperature. Owing to globalwarming scenario wherein temperature is on rise, SPEI is more effective than other popular indices since it takes temperature into account in estimation of drought. In this study, nine GCMs have been utilized instead of relying on a single model and the intensity and type of drought have been analyzed through a multi-model ensemble time series prepared from them. Earlier the gridded rainfall and temperature data provided by the India Meteorological Department has been used to correct the biases in the projections available by GCMs through quantile mapping technique. Mann-Kendall and Sen’s slope tests have been employed to study the trend in drought severity and regional spread. The presented study suggests the possibility that climate change may make drought more widespread and intense in the future across India.

1. प्रस्तावना

सूखे का विश्लेषण अल्पकालिक और साथ ही दीर्घकालिक आधार पर किया जा सकता है। जल संसाधनों, भूजल पुनर्भरण परियोजनाओं, वर्षा जल संचयन योजनाओं आदि के लिए बेहतर प्रबंधन के माध्यम से दीर्घावधि में जल संकट से निपटने के लिए नीति-निर्माण की दृष्टि से भविष्य में सूखे का अनुमान महत्त्वपूर्ण हैं। विभिन्न वैज्ञानिकों ने वैश्विक स्तर पर सूखे की विशेषता अर्थात संभावित गंभीरता, अवधि और तीव्रता में वृद्धि की सूचना दी। Trenberth et al. ;(2013) ने त्वरित शुरुआत, उच्च तीव्रता और लंबी अवधि की संभावना के साथ अधिक व्यापक प्राकृतिक सूखे की संभावना का सुझाव दिया। 1950-2008 के समय अवधि को कवर करते हुए एक अन्य अध्ययन में Dai (2011)ने प्रति दशक 1.74% की दर के साथ वैश्विक प्रतिशत शुष्क क्षेत्र में वृद्धि की सूचना दी। भविष्य के वैश्विक सूखे के संदर्भ में, Burke and Brown (2008)ने वैश्विक स्तर पर सूखे से प्रभावित क्षेत्र में समग्र वृद्धि के साथ कम गंभीर सूखे की तुलना में अधिक गंभीर सूखे के क्षेत्र प्रसार में अधिक वृद्धि की सूचना दी। भारत में सूखे की परिस्थति पर कई अध्ययनों में ध्यान केंद्रित किया गया है (Mishra and Singh 2009( Naresh Kumar et al. 2012( * Ojha et al. 2013( Mallya et al. 2016)A Naresh Kumar et al. (2012) ने हाल के दशक के दौरान भारत में मध्यम सूखा आवृत्ति के तहत स्थानिक क्षेत्र में वृद्धि की सूचना दी।

भारतीय संदर्भ में उपरोक्त चर्चित अध्ययनों में, कुछ को छोड़कर, एक अनुमानित जलवायु के तहत सूखे के लक्षण वर्णन के लिए SPI का उपयोग किया गया है जिसकी गणना में केवल वर्षा की जानकारी प्रयुक्त होती है (Mckee et al. 1993)। SPI की प्रमुख आलोचनाओं में से एक यह है कि यह सूखे के आंकलन में तापमान के प्रभाव को समाहित नहीं करता है (Sc-PDSI, SPEI 2016) जो कि ग्लोबल वार्मिंग के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। बढ़े हुए तापमान से पानी की मांग अधिक हो जाती है, इसलिए अनुमानित जलवायु के लिए सूखे सूचकांकों की गणना में Sc-PDSI, SPEI जैसे सूचक जो तापमान को भी संज्ञान में ले अधिक कारगर हैं (Vicente-Serrano et al. 2010)। वर्तमान अध्ययन का उद्देश्य अनुमानित जलवायु परिदृश्यों (RCP 4.5 और RCP 8.5) के दौरान मध्यम अवधि के सूखे (SPI-3 या त्रैमासिक SPI) के लक्षणों (अवधि, गंभीरता, क्षेत्र की सीमा) का विश्लेषण करना हैं।

2. क्रियाविधि

वर्तमान अध्ययन में, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), पुणे द्वारा उपलब्ध करवाए गए 0.250 स्थानिक रिज़ॉल्यूशन की वर्षा (Pai et al. 2014) और 10 स्थानिक रिज़ॉल्यूशन के तापमान डेटा (Srivastava et al. 2009) का प्रयोग किया गया है। भविष्य के सूखे की विशेषताओं का विश्लेषण करने के लिए, CMIP5 समूह से अनुमानित जलवायु डेटा लिया गया जैसा कि तालिका 1 में सूचीबद्ध है। विश्लेषण हेतु समान स्थानिक रिज़ॉल्यूशन स्थापित करने हेतु CDO पैकेज (उपलब्धः http://www-mpimet.mpg.de/cdo) का उपयोग करके विभिन्न रिज़ॉल्यूशन पर उपलब्ध डेटासेट को IMD द्वारा उपलब्ध वर्षा के रिज़ॉल्यूशन पर रीमैप किया गया है।

तालिका 1 CMIP5 समूह से लिए गए GCM का विवरण

क्र.सं.

मॉडल

संस्थान

स्थानिक रिजॉल्यूशन (अक्षांश X देशांतर)

1

BCC-CSM1.1(m)

Beijing Climate Center, China Meteorological Administration

1-125˚ x 1-125˚

2

HadGEM2-AO

Met Office Hadley Centre, UK (additional HadGEM2. ES realizations contributed by Instituto Nacional de Pesquisas Espaciais)

1-25˚ x 1-875˚

3

GFDL-CM3

Geophysical Fluid Dynamics Laboratory, USA

2˚ x 2.5˚

4

GFDL-ESM2G

Geophysical Fluid Dynamics Laboratory, USA

2˚ x 2.5˚

5

IPSL-CM5A-LR

Institut Pierre&Simon Laplace, France

1.875˚ x 3.75˚

6

IPSL-CM5A-MR

Institut Pierre&Simon Laplace, France

1.25˚ x 2.5˚

7

MIROC5

Atmosphere and Ocean Research Institute (The University of Tokyo), National Institute for Environmental Studies, and Japan Agency for Marine&Earth Science and Technology

1.4˚ x 1.4˚

8

MIROC&ESM&CHEM

Japan Agency for Marine-Earth Science and Technology, Atmosphere and Ocean Research Institute (The University of Tokyo), and National Institute for Environmental Studies

2.8˚ x 2.8˚

9

NorESM1-M

Norwegian Climate Centre

1.875˚ x 2.5˚

वर्तमान अध्ययन में, क्वांटाइल मैपिंग तकनीक (Li et al. 2010) का उपयोग GCM सिम्युलेटेड तापमान एवं वर्षा डेटा के बायस करेक्शन के लिए किया गया था। वर्षा के डेटा की दैनिक समय श्रृंखला को मौसमी पैमाने पर अर्थात्, JJAS&ONDJF–MAM पर एकत्र किया गया था, जो क्रमशः भारत में मानसून, मानसून और प्री-मानसून के मौसम से मेल खाती है। वर्षा के सुधार के लिए गामा डिस्ट्रीब्यूशन तथा तापमान के लिए गॉशियन डिस्ट्रीब्यूशन प्रयुक्त किए गए हैं। 1951-2005 के दौरान GCM डेटा की ऐतिहासिक समय श्रृंखला को 1951-1975 अर्थात 25 वर्ष और 1976-2005 अर्थात 30 वर्ष में विभाजित किया गया, जो कि क्रमशः बायस-करेक्शन तकनीक के परीक्षण और प्रशिक्षण के लिए है, जबकि जलवायु संबंधी प्रक्षेपणों (RCP 4-5 और RCP 8-5) को तीन कालों यानी 2010-2039 (निकट-भविष्य), 2040-2069 (मध्य-भविष्य), 2070-2099 (सुदूर-भविष्य) में किया गया। एकल GCM पर निर्भर न रहकर मल्टी मॉडल एन्सेम्बल (MME) की तर्ज पर एक से अधिक GCM को उपयोग में लाकर वर्षा एवं तापमान की संवर्धित समय श्रृंखलाएं (MME) तैयार की गई।

वर्तमान अध्ययन में, SPEI&3 का उपयोग करके सूखे की विशेषता का विश्लेषण किया गया था। यह 3 महीने की अवधि में गणना की गई छोटी और मध्यम अवधि की नमी की कमी/अधिकता का आंकलन करता है और मुख्य रूप से कृषि के संदर्भ में उपलब्ध नमी की स्थिति को उजागर करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। SPEI के अनुमान के लिए मासिक पानी की कमी यानी मासिक वर्षा और मासिक संभावित वाष्पीकरण (PET) के अंतर की आवश्यकता होती है। PET की गणना हरग्रेव्स विधि (Allen et al. 1998) से किया गया। समयावधि अर्थात, प्रशिक्षण अथवा संदर्भ अवधि (1976-2005), निकट भविष्य (2010-2039), मध्य-भविष्य (2040-2069) और सुदूर-भविष्य (2070-2099) में सूखे के विकास की तुलना करने के लिए, SPEI के लिए सूखे की गंभीरता वर्गीकरण मानदंड तालिका 2 में दिखाए गए हैं।

तालिका 2 SPEL आधारित सूखा वर्गीकरण

SPEI

श्रेणी

>2-0

अत्यधिक नम

1.5 to 1.99

गंभीर नम

1.0  to 1.49

मध्यम नम

−0.99 to 0.99

सामान्य

−1.0  to −1.49

मध्यम सूखा

−1.5 to −1.99

                        गंभीर सूखा

<−2.0

अत्यधिक सूखा

भारत पर सूखे का विश्लेषण करने के लिए; सूखे के अंतर्गत गंभीरता, अवधि और क्षेत्रीय प्रसार का अध्ययन किया गया। मध्यम सूखे की तुलना में, गंभीर और चरम सूखा फसल की वृद्धि के लिए हानिकारक हैं, इसलिए, विश्लेषण में ’मध्यम से अधिक’ सूखे के रूप में गंभीर और चरम सूखे को जोड़ा गया। सूखे की औसत लंबाई एक समय सीमा के दौरान अनुभव किए गए सूखे महीनों की कुल संख्या और सूखे की घटनाओं की संख्या का अनुपात है, जहां सूखे की घटनाओं में लगातार सूखे महीनों की घटनाओं की गिनती होती है।

अलग-अलग समय सीमा के तहत सूखे के क्षेत्रीय प्रसार में परिवर्तन की पहचान करने के लिए, दो गैर-पैरामीट्रिक परीक्षण, अर्थात्, मान-केंडल (MK)/संशोधित मान-केंडल (MMK) परीक्षण और थिएल-सेन की ढलान (TSS) का उपयोग किया गया। (MK)डज्ञ परीक्षण की सटीकता समय श्रृंखला में ऑटोक्रेलेशन की उपस्थिति के कारण बिगड़ती है, इसलिए, ऑटो-सहसंबद्ध डेटा के लिए (MMK) परीक्षण का उपयोग किया गया।3. परिणाम और चर्चा

3.1 बायस करेक्टेड वर्षा एवं तापमान के MME का निर्माण

उपयोग में लाए गए प्रत्येक GCM के बायस-करेक्टेड डेटासेट की उपयुक्तता का मूल्यांकन स्टैण्डर्ड डेविएशन (SD), कोरिलेशन कोफीसिएंट (CC) एवं रुट मीन स्क्वायर्ड डिफरेंस (RSMD) के आधार पर टेलर्स आरेख (चअर्नि 2001) के माध्यम से किया गया। यह मानसून के दृष्टिकोण से होमोजीनियस विभिन्न भूभागों चित्र 1 के लिए MMK का परीक्षण कर समय श्रृंखलाएं तैयार की गई जिनमें GCM के अलग अलग समूहों का प्रयोग हुआ। MMK की तैयारी के लिए मॉडल का चयन करते समय, MMK सटीकता और कैप्चरिंग में प्रदर्शन से समझौता किए बिना अधिकतम मॉडल के चयन को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया था। MMK के लिए इस मॉडल संयोजन को ध्यान से तालिका 3 में दिखाए गए संबंधित होमोजीनियस क्षेत्र के लिए पहचाना गया था। MMK वर्षा के निर्माण में प्रयुक्त हुए GCM का प्रयोग MMK तापमान के निर्माण हेतु किया गया।

 चित्र 1 मानसून के दृष्टिकोण से होमोजीनियस भूभाग चित्र 1 मानसून के दृष्टिकोण से होमोजीनियस भूभाग  चित्र 2 टेलर आरेख द्वारा प्रशिक्षण अवधि में विभिन्न GCM के बायस करेक्टेड एवं IMD की औसत क्षेत्रीय मासिक वर्षा का तुलनात्मक चित्रण चित्र 2 टेलर आरेख द्वारा प्रशिक्षण अवधि में विभिन्न GCM के बायस करेक्टेड एवं IMD की औसत क्षेत्रीय मासिक वर्षा का तुलनात्मक चित्रण

 3.2 सूखा लक्षण वर्णन

ग्लोबल वार्मिंग के परिप्रेक्ष्य में सूखे के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए संदर्भ अवधि (1976-2005) के दौरान सूखे की गंभीरता, अवधि और घटनाओं का अनुमान लगाया गया। संदर्भ अवधि के साथ निकट भविष्य (2010-2039), मध्य-भविष्य (2040-2069) एवं सुदूर भविष्य (2070-2099) के लिए RCP 4.5 और RCP 8.5 परिदृश्यों के तहत संबंधित सूचकांकों की तुलना की गई। सूखे के क्षेत्र प्रसार का अध्ययन करने के लिए, प्रत्येक वर्ष सूखे से प्रभावित कुल क्षेत्र का अनुमान लगाया गया। इस प्रयोजन के लिए ‘मध्यम सूखे’ (SPEI<= -1.5) और ‘मध्यम सूखे से ऊपर’ (SPEI<= -1.5) अर्थात, सूखे को या तो गंभीर सूखे या अत्यधिक सूखे के रूप में दर्शाया गया।

तालिका 3 MME श्रृंखला के निर्माण हेतु विभिन्न होमोजीनियस क्षेत्रों के लिए चिन्हित GCM

 (क्षेत्र)

 (चिन्हित मॉडल)

Central Northeast

(केन्द्रीय उत्तर-पूर्व)

BCC-CSM1.1(m), GFDL-CM3, GFDL-ESM2G, MIROC5, NorESM1-M

Hilly Regions

 (पर्वतीय क्षेत्र)

MIROC5, NorESM1-M

Northeast

 (उत्तर-पूर्व)

HadGEM2-AO, GFDL-CM3, GFDL-ESM2G, NorESM1-M

Northwest

 (उत्तर-पश्चिम)

BCC-CSM1.1(m), MIROC5, MIROC-ESM-CHEM  

Peninsula India

 (प्रायद्वीपीय भारत)

BCC-CSM1.1(m), GFDL-CM3, GFDL-ESM2G, MIROC5

West Central

(पश्चिम केन्द्रीय)

BCC-CSM1.1(m), GFDL-CM3, GFDL-ESM2G, MIROC5

MMK परीक्षण का उपयोग सूखे की गंभीरता और क्षेत्रीय प्रसार में परिवर्तन की जांच करने के लिए किया गया। दीर्घकालिक आधार पर अर्थात, पूरे अनुमानित दीर्घकालीन समय अवधि (2010-2099) के लिए सूखे की गंभीरता में वृद्धि RCP 4.5 और RCP 8.5 परिदृश्यों दोनों के तहत देश भर में 5% के स्तर पर महत्त्वपूर्ण पाई गई (चित्र 3)। इसका कारण निकट भविष्य की तुलना में सुदूर भविष्य में सूखा गंभीरता परिमाण में पर्याप्त वृद्धि को माना जा सकता है। इससे यह भी पता चलता है कि सुदूर-भविष्य और मध्य-भविष्य में क्रमशः मध्य-भविष्य और निकट-भविष्य की तुलना में सूखे की समस्या विकट हो सकती है।

तालिका 4 सूखे के क्षेत्र प्रसार के लिए रुझान विश्लेषण आंकड़े

मध्यम स्तर के सूखेs

मध्यम सूखे से ऊपर

 

Z-score

Theil-Sen’s Slope

Z-score

Theil-Sen’s  Slope

MME : संदर्भ अविध(1976-2005)

-0.64

-0.13

-1.00

-0.40

RCP 4.5

निकट भविष्य (2010-2039)

-0.75

-0.11

1.32

0.30

मध्य भविष्य (2040-2069

-2.27

-0.26

1.91

0.34

सुदूर भविष्य (2070-2099)

1.44

0.13

0.36

0.08

दीर्घकालीन (2010-2099)

-2.85

-0.09

4.24

0.30

निकट भविष्य(2010-2039)

-0.23

-0.02

1.00

0.30

मध्य भविष्य (2040-2069)

-1.03

-0.08

1.03

0.25

RCP 8.5

सुदूर भविष्य (2070-2099)

-1.73

-0.10

0.75

0.15

दीर्घकालीन (2010-2099)

-8.41

-0.14

5.70

0.41

(**10% सिग्नीफिकेन्स स्तर *5% सिग्नीफिकेन्स स्तर, नकारात्मक Z घटती प्रवृत्ति को दर्शाता है, सकारात्मक den Z बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है।)

सूखा प्रसार का विश्लेषण करने के लिए लंबी अवधि के आधार पर यानी, 2010-2099 के पूरे अनुमानित समय की लंबाई के साथ ही प्रत्येक समय सीमा पर यानी निकट-भविष्य, मध्य-भविष्य और सुदूर-भविष्य पर MMK परीक्षण किया गया। मध्यम सूखे के अधीन क्षेत्र दोनों परिदृश्यों के लिए घटता पाया गया। दीर्घावधि में, मध्यम सूखे के क्षेत्र में RCP 4.5 और RCP 8.5 परिदृश्यों (तालिका 4) के तहत 5% स्टैटिस्टिकल सिग्नीफिकेन्स के स्तर पर काफी कम पाया जाता है।  चित्र 3 SPEI 3 सूखे की गंभीरता की प्रवृत्ति में रुझान (‘NS, नॉन-सिग्नीफिकेंट प्रवृत्ति को दर्शाता है; बढ़ते और घटते रुझान क्रमशः लाल और नीले रंग में दिखाए जाते हैं)। चित्र 3 SPEI 3 सूखे की गंभीरता की प्रवृत्ति में रुझान (‘NS, नॉन-सिग्नीफिकेंट प्रवृत्ति को दर्शाता है; बढ़ते और घटते रुझान क्रमशः लाल और नीले रंग में दिखाए जाते हैं)।

मध्यम सूखे के विपरीत एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति दोनों परिदृश्यों के तहत ‘‘मध्यम सूखे से ऊपर’’ के क्षेत्र में पाई गई। अध्ययन किए गए सभी कालखण्डों के लिए ‘‘मध्यम सूखे से ऊपर’’ की स्थिति को ‘‘मध्यम स्तर के सूखे’’ की स्थिति से अधिक पाया जाता है जो भारतीय कृषकों और जल संसाधन प्रबंधकों के लिए कठिन परिस्थिति पैदा कर सकता है। भविष्य में देश के अधिकांश हिस्सों में सूखे की अवधि में 5% स्टैटिस्टिकल सिग्नीफिकेन्स के स्तर पर बढोत्तरी की संभावना है (चित्र 4)। लंबी अवधि के आधार पर गंगा के मैदानों, मध्य भारत का हिस्सा, उत्तर-पश्चिमी भारत और ऊपरी प्रायद्वीपीय भारत अनुमानित जलवायु परिदृश्यों के तहत अधिक गंभीर रूप से प्रभावित पाए जाते हैं।

 चित्र 4 SPEI -3 सूखे की अवधि में रुझान (‘NS’नॉन सिग्नीफिकेंट प्रवृत्ति को दर्शाता है; बढ़ते और रुझान क्रमशः लाल और नीले रंग में दिखाए जाते हैं)। चित्र 4 SPEI -3 सूखे की अवधि में रुझान (‘NS’नॉन सिग्नीफिकेंट प्रवृत्ति को दर्शाता है; बढ़ते और रुझान क्रमशः लाल और नीले रंग में दिखाए जाते हैं)।

4. निष्कर्ष

RCP 4.5 और RCP 8.5 के तहत अनुमानित जलवायु परिदृश्यों के तहत भारतवर्ष में सूखे के चरित्रांकन हेतु एक बहुप्रचलित सूचकांक SPEI का उपयोग किया गया। सूखे की स्थिति का अध्ययन करने के लिए वर्षा और तापमान का MME तैयार करने के लिए कुल 9 GCM का उपयोग किया गया था। तैयार MME, IMD डेटा के साथ तुलना करते समय उचित सटीकता के साथ क्षेत्रों के मौसमी चक्र को पकड़ने में समर्थ पाए गए। वर्तमान अध्ययन में RCP 4.5 और RCP 8.5 परिदृश्यों के तहत में ‘‘मध्यम स्तर से ऊपर’’ के सूखे की स्थिति के एक उच्च संभावना का पता चला। संदर्भ अवधि (1976-2005) की तुलना में निकट भविष्य (2010-2039), मध्य-भविष्य (2040-2069) और दूर-भविष्य (2070-2099) में औसत सूखे की लंबाई भी बढ़ रही है। इसी प्रकार, सूखे महीनों की बढ़ी हुई घटनाएं भी लगातार पाई गईं। संक्षेप में, जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य के तहत सूखे की स्थिति में वृद्धि की संभावना अधिक है। अधिक क्षेत्र ‘‘मध्यम स्तर से ऊपर’’ के सूखे की स्थिति से प्रभावित होगा यानी गंभीर और अत्यधिक सूखा, जिसका क्षेत्रीय जल उपलब्धता में गंभीर प्रभाव हो सकता है।

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