जलवायु परिवर्तन पर ‘रेड कोड अलर्ट’ 

11 Aug 2021
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जलवायु परिवर्तन, फोटो: साभार इंडिया साइंस वायर

नई दिल्ली, 10 अगस्त (इंडिया साइंस वायर): संयुक्त राष्ट्र द्वारा 9 अगस्त को जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट का संदेश और सार पृथ्वी के लिए तमाम खतरों की ओर संकेत करता है। जलवायु-परिवर्तन के दुष्परिणामों से न केवल मानव जाति, बल्कि पृथ्वी पर जीवन को संभालने वाले पारिस्थितिक तंत्र का ताना-बाना ही बदल जाने की आशंका जताई जा रही है। इस रिपोर्ट को मानवता के लिए कोड रेड अलर्ट का नाम दिया जा रहा है। इसके माध्यम से वैज्ञानिकों ने एक तरह की स्पष्ट चेतावनी दे दी है कि यदि मानव ने अपनी गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगाया तो आने वाले समय में उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। 

रिपोर्ट के अनुसार, 'वातावरण लगातार गर्म हो रहा है। तय है कि हालात और खराब होने वाले हैं। भागने या छिपने के लिए भी जगह नहीं बचेंगी।' इस चेतावनी को ध्यान में रखते हुए ही शीर्ष वैश्विक संस्था संयुक्त राष्ट्र ने इसे मानवता के लिए रेड कोड अलर्ट कहा है, जिसमें जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के लिए सीधे तौर पर मानवीय गतिविधियों को जिम्मेदार बताया गया है।  

करीब 3000 पन्नों की आईपीसीसी की इस रिपोर्ट को दुनिया भर के 234 वैज्ञानिकों ने मिलकर तैयार किया है। इससे पहले ऐसी रिपोर्ट वर्ष 2013 में आई थी। ताजा रिपोर्ट में पांच संभावित परिदृश्य पर विचार किया गया है। राहत की बात सिर्फ इतनी है कि इसमें व्यक्त सबसे खराब परिदृश्य के आकार लेने की आशंका बेहद न्यून बताई गई है। इसका आधार विभिन्न सरकारों द्वारा कार्बन उत्सर्जन में कटौती कि लिए किए जा रहे प्रयासों को बताया गया है, लेकिन पृथ्वी के तापमान में जिस रफ्तार से बढ़ोतरी होती दिख रही है, उसे देखते हुए ये प्रयास भी अपर्याप्त माने जा रहे हैं। फिर भी इनके दम पर सबसे खराब परिदृश्य के घटित होने की आशंका कम बताई गई है। 

रिपोर्ट के अनुसार सबसे बुरा परिदृश्य यही हो सकता कि यदि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए प्रयास सिरे नहीं चढ़ पाते हैं तो इस सदी के अंत तक पृथ्वी का औसत तापमान 3.3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। कुछ जानकार ऐसी बढ़ोतरी को प्रलयंकारी मान रहे हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 में पेरिस जलवायु समझौते में विभिन्न अंशभागियों ने इस पर सहमति जताई थी कि 21वीं सदी के अंत तक पृथ्वी का अधिकतम तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है। अमेरिका जैसे देश की पेरिस समझौते पर असहमति से यह लक्ष्य भी अधर में पड़ता दिख रहा है। इस सदी के समापन में अभी काफी समय है और पृथ्वी का तापमान पहले ही 1.1 प्रतिशत बढ़ चुका है। स्पष्ट है कि इस सदी के अंत तक पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी लक्षित सीमा से आगे निकल जाएगी। आईपीसीसी की रिपोर्ट के सभी अनुमान इस रुझान की पुष्टि भी करते हैं। 

इस रिपोर्ट की सह-अध्यक्ष और फ्रांस की प्रतिष्ठित जलवायु वैज्ञानिक वेलेरी मेसन डेमॉट का कहना है कि अगले कुछ दशकों के दौरान हमें गर्म जलवायु के लिए तैयार रहना होगा। उनका यह भी मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगाकर हम स्थिति से कुछ हद तक बच भी सकते हैं। रिपोर्ट में बढ़ते तापमान के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों को ही मुख्य रूप से जिम्मेदार बताया गया है। बताया गया है कि इनके उत्सर्जन के प्राकृतिक माध्यम औसत तापमान में 10वें या 20वें हिस्से के बराबर वृद्धि की कारण बन सकते हैं। 

इस रिपोर्ट को इस आधार पर भी भयावह संकेत माना जा रहा है कि बढ़ते तापमान के कारण विश्व भर में प्रतिकूल मौसमी परिघटनाओं में तेजी वृद्धि हुई है। हाल के दिनों में आर्कटिक से लेकर अंटार्कटिका तक बर्फ पिघलने की तस्वीरें देखने को मिली हैं। वहीं, हिमालयी हिमनद भी तेजी से अपना वजूद खोते जा रहे हैं। इसका परिणाम समुद्री जल के बढ़ते हुए स्तर के रूप में सामने आ रहा है। यदि औसत तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक भी रोक लिया गया तब भी माना जा रहा है कि वर्ष 2030 तक समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी को दो से तीन मीटर तक के दायरे में रोका जा सकता है। हालांकि इसके भी खासे दुष्प्रभाव होंगे, लेकिन यह यकीनन सबसे खराब परिदृश्य के मुकाबले अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति होगी। 

आईपीसीसी की रिपोर्ट कई और खतरनाक रुझानों की ओर संकेत करती है। विश्व में पहले जो हीट वेव्स यानी गर्म हवाओं के थपेड़े आधी सदी यानी पचास वर्षों में आते थे वे अब मात्र एक दशक के अंतराल पर आने लगे हैं। इससे विषम मौसमी परिघटनाएं जन्म लेती हैं। भारत के संदर्भ में भी रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म हवाएं, चक्रवात, अतिवृष्ट और बाढ़ जैसी समस्याएं 21वीं सदी में बेहद आम हो जाएंगी। महासागरों में विशेषकर हिंद महासागर सबसे तेजी से गर्म हो रहा है। इसके भारत के लिए गहरे निहितार्थ होंगे। इस पर अपनी प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि यह रिपोर्ट विकसित देशों के लिए स्पष्ट रूप से संकेत है कि वे अपने द्वारा किए जा रहे उत्सर्जन में कटौती के प्रयासों को और गति दें। (इंडिया साइंस वायर)

ISW/RM/MoEFCC/HIN/10/08/2021

Keywords: Inter-governmental Panel on Climate Change (IPCC), greenhouse gas, assessment reports, climate, globe, world, environment, changes, 21 centaury, oceans, water, pollution, air, soil, forests, global warming, science, innovation, pandemic,  India.

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