जम्मू कश्मीर चुनाव और बाढ़ प्रभावित

बांध मज़बूत होता तो कभी भी नदी का पानी शहर में प्रवेश नहीं करता और न ही हम लोगों को यह भयानक तस्वीर देखनी पड़ती। उन्होंने कहा कि पति की पेंशन से बड़ी कठिनाई से मेरा घर चलता है, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं अपना घर दोबारा कैसे बनाऊंगी। मैं अपने बच्चे के साथ किराए के एक कमरे में रह रही हूं क्योंकि मुझे कैंप में प्रवेश नहीं होने दिया गया। मुझसे कहा गया कि तुम्हारा नाम नहीं है। सरकार की ओर से मुझे न तो किसी किस्म का कोई मुआवज़ा मिला है और न ही कोई मदद दी गई है। मैं सरकार से अपील करती हूं कि अगर मैं मदद की हक़दार नहीं हूं तो कौन है? क्या यही हमारे देश का इंसाफ है? जम्मू एवं कश्मीर राज्य में चुनावी सरगर्मियां अपने चरम पर हैं। 25 नवंबर को राज्य में पहले चरण के मतदान के तहत 15 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे और इस तरह 123 उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम में बंद हो जाएगा। नतीजे 23 दिसंबर को आएंगे। चुनावी मौसम में जिन्हें सबसे ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है वह राज्य के बाढ़ प्रभावित लोग हैं। उनसे भी देश के राजनेता वोट हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि उन्हें स्वयं को सहायता की जरूरत है। ऐसे में किसको कठघरे में खड़ा किया जाए इलेक्शन कमीशन को, केंद्र सरकार को, राज्य सरकार को या फिर कश्मीरियों की किस्मत को। कहने को करोड़ों रुपयों का एलान लोगों के पुनर्वास और उनकी मदद के लिए कर दिया गया है लेकिन चुनाव की वजह से राज्य में आचार संहिता लगाकर बाढ़ प्रभावित का न सिर्फ मज़ाक उड़ाया जा रहा है, बल्कि उनके ज़ख्मों पर मरहम के बजाए नमक का इस्तेमाल किया जा रहा है।

घाटी के लोग अपने राजनेताओं से सवाल कर रहे हैं कि अगर इस चुनाव को चंद माह बाद कराया जाता तो कौन-सी कयामत आ जाती। हालांकि चुनाव को टालने के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गई थी लेकिन न्यायालय ने दायर याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में प्रदेश में मौजूदा स्थिति में चुनाव कार्यक्रम निरस्त करने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि बाढ़ से करीब 26 सौ गांव प्रभावित हुए हैं और जबकि 390 गांव डूब गए थे।

याचिका में कहा गया था कि राहत और पुनर्वास कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है और इससे सवाल उठ रहा है कि निर्वाचन आयोग निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव करा पाएगा। राज्य में आचार संहिता लगी हुई हैै। ऐसे में बाढ़ प्रभावितों की कोई खैर-खबर लेने वाला नहीं है। उदाहरण के तौर पर जिला पुंछ की तहसील मंडी के गांव सलोनिया के वार्ड नंबर दस को देखिए। इस मोहल्ले की लंबाई डेढ़ किलोमीटर है।

यहां बाढ़ का पानी बढ़ जाने की वजह से पांच कच्चे मकान बह गए जिनमें दो स्थानीय लोगों की मौत हो गई, जिनका नाम मोहम्मद शफी और गुलाम हुसैन था। गुलाम हुसैन के बड़े बेटे शौकत हुसैन (22) के मुताबिक “उनके पिता गुलाम हुसैन और चाचा मोहम्मद शफी पूरे परिवार को सुरक्षित जगह पहुंचाने के बाद घर में भरे पानी को निकाल रहे थे कि अचानक बाढ़ का पानी बढ़ गया और उन्हें अपनी चपेट में ले लिया। उन्होंने आगे बताया कि उनके चाचा और पिता की आधी-आधी लाश तकरीबन दो किलोमीटर दूर नाले से मिली थी और बाकी का हिस्सा ढूढ़ने पर भी नहीं मिला। उन्होंने कहा कि पिता और चाचा की मौत के बाद उन्हें खुद मज़दूरी करके घर के 16 सदस्यों को पालना है। ’’

इस तरह का एक और उदाहरण पुंछ जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बरयाड़ी गांव का है, जो तहसील मंडी में आता है। यहां पर एक मकान में पानी भरने के कारण वह बह गया। इस परिवार के जावेद अली किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब हो पाए, उसके परिवार के बाकी 12 सदस्य मकान के अंदर रह गए। जिनमें से तीन लोगों की मौत हो चुकी है जिनमें उप सरपंच सैद मोहम्मद (55), बूबा बी (75) और सफूरा बेगम (20) हैं, बाकी 9 लोग जख्मी हो गए। इस हादसे में नगीना बी (12) को अपनी टांग गंवानी पड़ी जबकि जहीर अहमद का कान कट गया, मुख्तार अहमद की तीन पस्लियां टूट गईं।

जबकि अनवार जान की कमर की हड्डी टूट गई और इमरान खान के सिर में गहरे जख्म आए। उन्होंने आगे बताया कि बाढ़ में 20 भेड़-बकरियां, 4 भैंसे, 4 गायें, 1 घोड़ा, 20 मुर्गे और घर में रखे 50-60 हजार सब कुछ खत्म हो चुका था। उन्होंने आगे बताया कि सरकार की ओर से हमें कोई खास मदद नहीं मिली है। सरकार ने मरने वालों के नाम से डेढ़-डेढ़ लाख के तीन चैक और सर्दियां गुज़ारने के लिए एक टैंट दिया है। मैं राज्य और केंद्र सरकार से यह सवाल करता हूं क्या हम पीड़ितों का एक टैंट में सर्दियां गुज़ारना संभव है?

इसके अलावा पुंछ जि़ला मुख्यालय से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर शाहपुर गांव के ताालिब हुसैन अपनी सारी उम्र मेहनत मज़दूरी करने के बाद अपना एक मिट्टी का घर बना पाए थे और अपने परिवार के साथ रह रहे थे। मगर तूफानी बारिश ने उनको भी नहीं बख्शा और उनका मकान गिर गया। उन्होंने कहा सरकार की ओर से अभी तक हमें किसी किस्म की कोई मदद नहीं मिली है।

शाहपुर गांव के एक और स्थानीय निवासी जिनका नाम मोहम्मद युसूफ है, उन्होंने बताया कि उनके गांव में एक भी घर ऐसा नहीं बचा है जो बाढ़ के पानी से पूरी तरह सुरक्षित रहा हो। उन्होंने बताया कि मोहम्मद शरीफ और मीर मोहम्मद के मकान पूरी तरह तबाह हो चुके हैं। इसके अलावा शाहपुर में तकरीबन 15 घर हैं। वहीं शाहपुर के चेयरमैन लाल दीन के मुताबिक मोहल्ला दोंपरियां के रहने वाले मोहम्मद फारूक का मकान पूरी तरह से तबाह हा चुका है। उन्होंने बताया कि ढ़ोक बरोड़ में 120 मकान पूरी तरह से तबाह हो गए हैं।

इससे अंदाज़ा लगाना पाठक के लिए ज़्यादा मुश्किल नहीं होगा कि इस भयानक तबाही ने जहां एक तरफ मैदानी इलाकों में अपना कहर बरपा दिया, वहीं दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों को भी अपनी चपेट में ले लिया। इस भयानक तूफान ने जि़ला पुंछ की मशहूर नदी जो पड़ोसी मुल्क पकिस्तान में जाकर मिलती है, का एक बांध तोड़ दिया जिसकी वजह से इस नदी के पानी की दिशा शहर की ओर मुड़ गई और इसने मोहल्ला कनोईयां, स्टार होटल, शंकर बाग और आज़ाद मोहल्ले को अपना निशाना बनाया। इसके अलावा मकान, दुकानें, गाड़ियां, सड़कें, पशुओं और न इंसानी जानों का नुकसान हुआ।

इस बाढ़ ने जि़ला पुंछ के दोनों बड़े शमशान घाटों को अपनी चपेट में ले लिया और पुंछ को दुनिया से जोड़ने वाले शेरे-कश्मीर पुल को भी तबाह कर दिया। मोहल्ला शंकर नगर वार्ड नंबर 11 के स्थानीय निवासी मोहम्मद फारूक के मुताबिक जि़ला मुख्यालय में तकरीबन 140 घर बाढ़ में बह गए। इसमें अपना घर खो देने वाले मोहम्मद अज़ीम ने बताया कि 4 सितंबर को आने वाली बाढ़ में मेरा घर बह गया था लेकिन भगवान की कृपा रही कि मैं और मेरे बच्चे पहले ही घर से निकल गए थे।

उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन ने हमारी पूरी मदद की और हमें पुंछ के होटल के एक कमरे में ठहराया और हमें हर वह चीज़ दी जिसकी हमें ज़रूरत थी। हमारा हाल-चाल जानने के लिए सारे बड़े अधिकारी आते रहे। बाढ़ के दौरान और बाद में भी डीसीपी, एडीसी, एमएलए, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और सोनिया गांधी भी हमारा हाल चाल जानने के लिए आए। इतना ही नहीं उन्होंने हमसे वादा भी किया कि आपकी हर तरह से मदद की जाएगी। उन्होंने आगे बताया कि मेरे मोहल्ले के चार लोग, मुझे पूरा विश्वास है कि वह बाढ़ में बह गए हैं जिनमें से मैं दो लोगों को बहुत अच्छी तरह जानता हूं जिनका नाम फैज़ मोहम्मद और बंसी लाल है। उनकी मौत का मुझे बहुत अफसोस है। उन्हीं के कैंप में रहने वाले मोहम्मद शीम बताते हैं कि उन्होंने दस साल पहले तहसील मंडी में अपनी ज़मीन को बेचकर यहां प्लाट लिया था और घर बनाया था, मगर इस बाढ़ में हमारा घर भी ध्वस्त हो गया, जो अब रहने के लायक नहीं बचा है।

हम सभी सरकार से यह अपील करते हैं कि वो हमें किसी दूसरी जगह नए प्लाट दे दे और घर बनाने के लिए हमारी मदद करे ताकि हम अपनी बची हुई जिंदगी को आराम से गुज़ार सकें। मोहल्ला कनोईयां के वार्ड नंबर पांच में रहने वाली एक महिला जिनका नाम फातिमा बी है, उनके पति का देहांत छह साल पहले एक सड़क हादसे में हो गया था, उन्होंने अपने पति की मौत के बाद मिलने वाले मुआवज़े के पैसे से अपना मकाना बनाया था और अपने सात साल के बच्चे के साथ रह रहीं थीं, लेकिन इस भयानक बाढ़ ने इस बेसहारा का घर इनसे छीन लिया। उन्होंने मायूस होकर कहा कि इस बाढ़ के लिए सिर्फ पुराना और खस्ताहाल बांध जि़म्मेदार है और हमारी राज्य सरकार जि़म्मेदार है जिसने इस बांध की मरम्मत नहीं कराई थी।

अगर बांध मज़बूत होता तो कभी भी नदी का पानी शहर में प्रवेश नहीं करता और न ही हम लोगों को यह भयानक तस्वीर देखनी पड़ती। उन्होंने कहा कि पति की पेंशन से बड़ी कठिनाई से मेरा घर चलता है, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं अपना घर दोबारा कैसे बनाऊंगी। मैं अपने बच्चे के साथ किराए के एक कमरे में रह रही हूं क्योंकि मुझे कैंप में प्रवेश नहीं होने दिया गया। मुझसे कहा गया कि तुम्हारा नाम नहीं है। सरकार की ओर से मुझे न तो किसी किस्म का कोई मुआवज़ा मिला है और न ही कोई मदद दी गई है। मैं सरकार से अपील करती हूं कि अगर मैं मदद की हक़दार नहीं हूं तो कौन है? क्या यही हमारे देश का इंसाफ है? उन्होंने अपने पड़ोसी गुलाम नबी के बारे में बताते हुए कहा कि उनका घर भी हमारे घर के साथ बह गया था और उन्हें भी कैंप में प्रवेश नहीं होने दिया गया।

ईदगाह कैंप के संयोजक एडीजी पुंछ मुमताज़ चौधरी ने बताया कि मेरे पास तकरीबन 2 सौ परिवार थे जो धीरे-धीरे कम होते-होते 44 पर आ गए और अब सिर्फ 11 परिवार रह गए। जिनमें से 7 परिवारों को अपने-अपने घरों में वापस बसाया गया है, यह वह लोग हैं जिनके घरों को आंशिक रूप से क्षति पहुंची है। इसके अलावा जिन बच्चों की किताबें बह गई थीं उनको किताबें उपलब्ध कराई गई हैं ताकि वह अपनी पढ़ाई कर सकें। उन्होंने आगे कहा कि हम किसी को कोई तकलीफ नहीं होने देंगे। हमने किसी को जबरन नहीं भेजा और हमसे जो हो सका वह जनता के लिए करते रहेंगे। वहीं पुंछ के मोहम्मद फरीद ने बताया कि हमारे होस्टल की एक पूरी इमारत में बाढ़ से प्रभावित लोगों को ठहराया गया है जिसमें शुरूआत में 108 परिवार थे अब 88 परिवार ही बचे हैं।

उन्होंने कहा कि इंसानियत के नाते ऐसा करना बहुत अच्छा है लेकिन ऐसा करने में कुछ परेशानियां भी आ रहीं हैं जैसे एक कमरे में दो या तीन छात्र रहते थे, वहीं अब छह या आठ छात्रों को रहना पड़ रहा है। हमारे होस्टल के बावर्ची सबके लिए खाना बना रहे हैं जो बहुत ही मुश्किल काम है। वहीं होस्टल के छात्रों ने कहा कि बाढ़ प्रभावितों के यहां रहने से शोर-शराबे की वजह से हमारी पढ़ाई नहीं हो पा रही है। इस सबके बावजूद हम बाढ़ प्रभावितों की मदद को तैयार हैं।

लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि चुनाव की वजह से राज्य में आचार संहिता लग चुकी है जिसकी वजह से सरकारी मदद मिलना बंद हो गई है। ऐसे में मेरी समझ में नहीं आ पा रहा है कि उन बाढ़ प्रभावितों का क्या हाल हो रहा होगा जो बिना मदद के खुले आसमान के नीचे किसी की मदद का इंतज़ार कर रहे हैं। जबकि दूसरी ओर ठंड और बर्फबारी ने दस्तक दे दी है। ऐसे में किसको कठघरे में खड़ा किया जाए इलेक्शन कमीशन, केंद्र सरकार, राज्य सरकार या फिर कश्मीरियों की किस्मत को।

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