जनमैत्री संगठन ने की हलद्वानी की रामगाड़ नदी अध्ययन यात्रा 

9 Dec 2022
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हलद्वानी की रामगाड़ नदी अध्ययन यात्रा,फोटो- बची सिंह बिष्ट,
हलद्वानी की रामगाड़ नदी अध्ययन यात्रा,फोटो- बची सिंह बिष्ट,

4  से 7  नवंबर 2022 : जनमैत्री संगठन ने की हलद्वानी की रामगाड़ नदी अध्ययन यात्रा  

रामगाड़ नदी का प्रमुख उद्गम मुक्तेश्वर महादेव की चोटी के ठीक नीचे ‘शिव जटा संगम से होता है।  इसकी एक धारा वन पंचायत बूढीबमा के जंगल पिसयापानी के प्राकर्तिक श्रोत से जो नर्मदेश्वर महादेव मंदिर कशियालेख के पास है, से निकलकर तमाम जल धाराओं को शामिल कर नेगरा  संगम में ‘रामगाड़’ से मिलती है। एक ही नदी उसके गाँव के लोगों के द्वारा स्थानीय बोली में अलग नाम से पुकारी और पहचानी जाती है। सदानीरा रामगाड़ नदी वास्तव में संकट में  है।

उद्गम से प्रारंभ : प्रथम दिन (4 - 11 - 2022)

शिव जटा मुक्तेश्वर महादेव मंदिर की चोटी के नीचे धारी में स्थित एक मंदिर है , जहाँ पर “जटा धारा सहित” दो और नदी धाराएँ मिलती हैं। यह स्थान बहुत पौराणिक , सांस्कृतिक महत्त्व रखता है। वन पंचायत दाड़िमा के अन्दर एक प्राचीन शिवालय और छोटा सा नदी संगम है , उसके नीचे लगभग 1 किलोमीटर पर एक और छोटा सा संगम है। इस तरह रामगाड़ नदी का उदगम शुरू हो जाता है , जिसमे पूर्व से जटाधारा और उसकी अन्य धाराएं जिसमे पूर्व से जटाधारा और उसकी अन्य धाराएं दक्षिण से बूढीबमा , सुनकिया होते हुए , पूर्व और पश्चिम की अनेक छोटी धाराओं को समाहित करते हुए नडगटा   संगम बन जाता है। हम निम्न लोगो शिवजटा  से विधिवत पूजा करने के बाद जटा धारा से सुनकिया नवीन की ओर चले , जहाँ पर जनमैत्री से जुड़े मदन डंगवाल ने यात्रियों का स्वागत किया। भोजन के बाद बैठक की गयी , जिसमे कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।
 
यात्रीगण जो इसमें शामिल हुए, बची सिंह बिष्ट, महेश गलिया, महेश चन्द्र, हरि नयाल, कमलेश लोधीपाल, हेमंत कुमार सिंह बोरा, राजेंद्र प्रसाद जोशी, महेंद्र सिंह, सुभाष पंगरिया आदि।

जहां संपर्क अभियान चला। जल धाराएं  शिव जटा दाड़िम गढ़गॉव , भ्योड़ा , कोकिलवना तल्ला , सूपी वन पंचायतें दाड़िम , सुनकिया , कोकिलवना , बूढी बना और उसकी वन पंचायत, सबसे समृद्ध वन पंचायत - दाड़िमा, कोकिलवना , सुनकिया , बूढी बना, घराट - 2  सुनकिया गाड़। 

जहां नदी की समस्या देखीं गईं, सबसे अधिक अतिक्रमण - शिव जटा  से नंगटा तक, नदी खनन क्षेत्र - बोल्डर सुनकिया गाड़, रेता, बोल्डर - गढ़गॉव , भ्योड़ा , कोकिलावना, सूपी के सेलवानी क्षेत्र में प्लास्टिक कचरा - शिव जटा और कोकिलवना , तल्ला सूपी।

उद्गम क्षेत्र में पक्षी क्षेत्र जो पाया गया - दाड़िम और सुनकिया , कोकिलावना के जंगल में, वन्य जीव - सभी वन पंचायतों में  सूअर  , बन्दर बाघ क्षेत्र 

उद्गम क्षेत्र में मुख्य जोखिम (वनाग्नि क्षेत्र) - दाड़िम का ऊपरी क्षेत्र , कोकिलावना का खोदा क्षेत्र चीड़ से आच्छादित है।

सुनकिया नवीन में चर्चा का मुख्य विषय था कि स्थानीय नाले (जल वाहिका नदी ) पर एक मॉडल (ढाण ) जल बंधन। जलकोष निर्माण  मुख्य नदी पर पुराने घराटों के लिए जल संग्रह क्षेत्रों में बंधन पर विचार।

स्थिति यह है कि  नदी जीवन - सभी जलधाराएं अक्टूबर की बरसात से ही कुछ जीवित हुई हैं , जिनमे अब गर्मियों में पानी पूरी तरह सूख  जाता है। जिसके कारण इन नदी धाराओं में जलीय जीवन पूरी तरह समाप्त हो चुका है। 

उद्गम से प्रारंभ का दूसरा  दिन (5  - 11 - 2022)

सेलवानी से कोठगाड़ तक के बीच सड़क नदी में उतारी गयी है , जिसमें लगातार नदी तट  पर अवैध खनन किया जा रहा है , कोठगाड़ के पास रिवाड़ नदी जब सेलवानी या रामगाड़ में मिलती है , वो यहाँ से काफी दूर तक नदी कोठगाड़ ही कहलाती है। यहाँ पर तीन पुराने घराट थे जो कि  पानी की कमी की वजह से अब समाप्त हो चुके हैं। एक घराट  का निशान मात्र शेष है। इसके आगे नदी किनारे रामगाड़ की ओर बढ़ने पर बाएं तरफ फिर एक घराट और पम्पिंग योजना मिलती है। दाहिने ओर सुरक्षित बाँज और खरसू का नया जंगल मिलता है। आगे लोद गांव का माप जमीन में बनाया गया है। विभिन्न चौड़ी पत्ती  जातियों का साझा जंगल और दाहिने ओर चीड़ प्रजाति का जंगल मिलता है। 

नदी में कुछ पानी है , किनारे कुछ जलस्रोत बारिश के बाद अच्छी स्थिति में हैं। नदी से पानी लेने के लिए लगातार पम्पिंग और लिफ्ट योजनाएं दिखती हैं। नदी पर रेता, बोल्डर खनन के निशान  मिलते हैं , दोनों ओर गल्ला और नथुवाखान के गावों द्वारा बचाये जंगल मिलते हैं। 

नथुवाखान के जंगल में काफल धारी तक, और फिर लोश्ज्ञानी मक़ामा , तल्ला रामगढ तक लगातार लगातार चीड़ मिलता है जबकि इधर गल्ला का जंगल बाँज और चीड़ तथा मैकामा। बाँज डाली के ठीक सामने पाटा का घना बाँज का जंगल भी दिखता है। गल्ला के नीचे नथुवाखान से एक जलधारा रामगाड़ में मिलती है। बाँजडाली के ठीक सामने पाटा गाड़ का रामगाड़ से संगम होकर आगे रामगढ़ बनकर नदी बहने लगती है। बाँजडाली के पास का घराट चलता हुआ, जीवित है। आगे तल्ला रामगढ़  नारायण स्वामी आश्रम के हनुमान मंदिर तक नदी के तट  के पास कुछ न कुछ निर्माण कार्य होते दिखते है। पूरी नदी में जलीय जीवन समाप्त हो चुका  है। रामगढ में हमारे पास स्थानीय अभिरक्षा इकाई के दो लोग मिलने आते हैं। वे यात्रा के उद्देश्य और उसमे शामिल लोगों के पूरी जानकारी लेना शुरू करते हैं। यह अजीब है परन्तु , कोई बात तो ज़रूर है। हेमंत बोरा जी सबके जलपान की व्यवस्था करते हैं| राजेंद्र जोशी जी , सुभाष पंगरिया और हेमंत जी तल्ला रामगढ़ से वापस हो जाते हैं. हम काफलधारी तक वाहन  लेकर , फिर घरों को वापसी करते हैं। 

आज सुरेश बिष्ट टांडा तक हमारे साथ आये लेकिन लाल सिंह और बसंत लाल पूरे रास्ते भर साथ रहे। बची सिंह बिष्ट , महेश गालिया, सुरेश सिंह बिष्ट, महेश चंद्र , राजेंद्र जोशी , शुभाष पंगरिया , हेमंत बोरा , लाल सिंह , महेंद्र सिंह , बसंत लाल , डिकर सिंह तल्ला रामगढ़ में यात्रा का समापन किया गया। 

ग्राम सभा सूपी , कोकिलवना , लोद , गल्ला , सतबूंगा , नथुवाखान और महिला संघठन से जुड़े लोग सूचना के बाद भी अति व्यस्तता के कारण यात्रा में शामिल नहीं हुए। समस्या यह है कि नदी पर रेता, बोल्डर , पत्थर का खनन लगातार जारी है। नदी में जलीय जीवन समाप्त हो चुका  है। स्थानीय जंगलों में सधलता बढ़ रही है है जबकि चीड़  का विस्तार भी काफी हो रहा है। नदी को लेकर लोगों को इस्तेमाल की समझ तो है लेकिन बचाने को लेकर कोई जागृति नहीं हैः। पंछी मैदानों को जा चुके हैं , तितलियाँ भी नहीं हैं। पूरा नदी तट खामोश और स्थपंदन रहित है।

तीसरा  दिन (6   - 11 - 2022)

आज रामगाड़ अध्ययन यात्रा का तीसरा दिन है। सात यात्री साथ चलने के लिए तैयार हुए ; डिकर  सिंह लोधियाल जी कहते हैं देखो लड़कियों / महिलाओं को इन गाड़ गधेरों की यात्रा करवाना सही नहीं होगा , हम अपने शमशानों और बीहड़ जैसी डरावनी जगहों से गुजर रहे हैं। वो डरेंगी तो बाद में हमारा ही नाम  आएगा। हमने तय किया है कि हम अंतिम दिन समापन पर महिलाओं का साथ लेंगे। सभी लोग काफलदारी से एक जीप लेकर तल्ला रामगढ़  पहुँच गए। जलपान के बाद ठीक खोजा गधेरा रामगाड़ संगम से नदी की ओर प्रस्थान करते हैं। 

18 -19 अक्टूबर 2021 की तबाही के निशान अभी भी दिखते हैं। रामगाड़ ने अपना रौद्र रूप लेकर पुल , सड़क , मकान और खेत , बगीचे सब रौंद डाले थे , कई घर जो नदी के किनारे बने थे , वे अभी खंडहर हैं और जिन्होंने नदी पर अतिक्रमण किया था , उनके अहंकार को भी नदी नालों में चूर कर डाला था। इस अतिवृष्टि ने क्षेत्र में रामगाड़ के उदगम से संगम तक 25 से अधिक लोगों के प्राण ले लिए थे। अनुभवी लोग कहते हैं आपदा के बाद नदी का स्वरुप और व्यवहार दोनों बदल चुके हैं। लोग अपने खेतों को ठीक कर रहे हैं , रामगढ़ तक नदी से रेता , बोल्डर उठाने का काम चल रहा है। झूतिया के ओर बढ़ने पर नदी अपना मुख्य मार्ग छोड़कर गांव की ओर बढ़ चुकी है| उसके मुख्य मार्गों में मलबे के ढेर लगे हैं। ऐसा लगता है जैसे लोग नदी से डर गए हैं और अब उससे दूर हो जाना चाहते हैं। 

गांव की महिलाओं और बुजुर्गों से बात करने पर वे बताते हैं कि रामगाड़ एक खूबसूरत नदी थी , जिसके किनारे बगीचे थे और आलू की खेती होती थी। चारों ओर बाँज का घना  जंगल था। दूध पर्याप्त था चोटी में चीड़ के कुछ पेड़ थे, लगातार चीड़ का फैलाव बढ़ा , अत्यधिक निर्माण हुए और नदी की सहायक धाराओं में मानवीय अतिक्रमण होने से नदी बरसाती नाले में बदल गयी है , घराट , पम्पिंग योजनाएं , पुल और कई सहायक धाराएं नष्ट हो चुकी हैं। मुख्य नदी पर सरकार प्रदत्त निर्माण कार्यो  से भी नदी का प्रवाह अपने मूल स्थान से हट चुका  है। नीचे कुछ बाँज  है ऊपर चोटी तक चीड़  का विस्तार हो चुका  है , जिससे प्रतिवर्ष गर्मियों और जाड़ों के मौसम में आग लगती है। सैकड़ों वृक्ष, वनस्पतियाँ, वन्य जीव प्रजातियां , घासें आदि समाप्त हो चुकी हैं। 

रामगाड़ नदी में मुख्य जल संग्रह धाराओं में बहुत अतिक्रमण हुआ है। शिवजटा , सुनकिया, बूढीबमा, सूपी, पल्ला, खपराड़ , मल्ला रामगढ़, उमगाढ़ क्षेत्र के अतिक्रमण से उमागढ़ के जलधाराएं झूतिया में मौत का तांडव कर चुकी हैं। कई घरों के दीवारें हिली हैं। 

“रामगाड़ नदी में झूतिया तक जलीय जीवों का नामो निशान नहीं बचा है। नदी का अपना परितंत्र  नष्ट हो चुका  है न, यह बरसाती नाले में बदल कर अपना सदाजीवी स्वरुप खो चुकी है। हमारा आज का निष्कर्ष है कि तमाम बिल्डिंग , सड़कें , सरकारी विकास कार्यों में नदी और उसकी सहायक जल धाराओं के प्राकर्तिक यात्रा पथ व् प्रवाह की अनदेखी की गयी है , जिसके कारण नदी अपने रौद्र रूप में विनाशक बन जाती है , नदी नाले जलस्रोत सूखते जा रहे हैं और नदी सदाजीवी स्वरुप खो रही है। मानवीय अतिक्रमण और नदी जीवन के साथ क्रूरता ने नदी को प्राणहीन , स्पंदनहीन घातक नाले में बदल दिया हैं। 

रामगाड़ नदी अध्ययन यात्रा समापन : चौथा   दिन (7 - 11 - 2022) :

झूतिया के ही तोक पिछलटाना के पास से आज अंतिम दिवस की यात्रा प्रारम्भ की गयी, नदी में कई स्थानों पर जाने का मार्ग नहीं है। चीड़ बाहुल क्षेत्र है , हर वर्ष आग लगती है , पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि पानी की मात्रा अब बहुत घट गयी है ,  पहले लगभग 50 वर्ष पूर्व पूरा बाँज  का जंगल था , जंगलों में वन्यजीव थे और नदी में भी मछलियॉँ व् अन्य नदी जीव मौजूद थे> नदी किनारे के घराट अब प्रचलन में नहीं है , पम्पिंग योजनाएं , हाईड्राम भी अब बंद हो चुकी हैं। पिछलटाना से सुकुमा तक मानव आबादी है , फिर काफी दूर जाकर हली हरतपा की बस्तियाँ  आती हैं|  बीच में वनस्पतियों का स्वरुप बदल गया। चीड़ के साथ अब आँवला , बेल और गर्म घाटी की वनस्पतियाँ मिलने लगती हैं। अंतिम सिरे पर रामगाड़ जल विधुत परियोजना का पुराना स्टेशन मिलता हैं, जो रन ऑफ रिवर से विकेन्द्रित विद्युत उत्पादन का बहुत बढ़िया उदाहरण है। 

शिप्रा और रामगाड़ के संगम में बैठकर यात्रा का समापन किया गया। इस दौरान यात्रा के अनुभव बांटे गए तथा नदी सरंक्षण के व्यापक उद्धेश्य को समझने का प्रयास भी किया गया। यह बैठक ठीक रामगाड़ और शिप्रा के तट पर नदी के पत्थरों में बैठकर की गयी। लगभग दो घंटे के विचार विमर्श के दौरान लोगों ने यात्रा की जरुरत, नदी की स्थिति , उसके मुख्य उद्गम स्थल पर, सहायक धाराओं की स्थिति , अतिक्रमण और भविष्य के कार्यों पर विचार किया गया। 

समापन के अवसर पर सभी ने अपनी बात रखी। बची सिंह बिष्ट ने कहा अपनी नदी और उसके पानी से अपने समाज को जोड़ने की कोशिश है , नदी और उसकी जल धाराओं का संकट पूरी दुनिया के लिए नया खतरा है। भावी पीढ़ियों को स्वस्थ परिवेश और सम्पन्न इकोतंत्र देने की इच्छा है। 

महेश गलिया ने बताया कि नदी की जलधाराओं में मानवीय हस्तक्षेप ने नदी जीवन को ही समाप्त कर दिया है। पानी बह रहा है, जीवन नहीं। यात्री महेश चंद्र ने कहा कि रामगाड़ नदी में चार दिनों से कोई जलीय जीव नहीं देखा , नदी का हक़, उसका रास्ता तक घेर लिया है, और उसके किनारे भी जीवनहीन बना दिए हैं। बहुत ही दुखद स्थिति है। 
बसंत लाल - नदी को देखने की यह दृष्टि पहली बार मिली, अब जब ऐसे देखा तो दिक्कत की गहराई समाज में आई  है। 

महेंद्र सिंह मेहरा - यह नदी वाकई में संकट में है , आप सभी लोगों ने खुद विचार कर अपनी नदी के बारे में सोचना और लोगों के साथ नदी को पुनर्जीवित सदावाहिनी बनाने का विचार किया, यह अद्भुत है। मै फिर आऊंगा , यह मेरे शोध का विषय है, नदी पर पुराने घराट , पम्पिंग योजनाएं और नदी से जुडी वनस्पतियाँ , जीवन और लोग हमारा विषय है , हम लगातार साथ रहेंगे। 

द्वाराहाट सुईखेत इंटर कॉलेज के शिक्षक और पानी बोओ , पानी उगाओ अभियान के प्रणेता मोहन कांडपाल जी ने कहा कि हमने इस यात्रा से सीख लिया कि कैसे समाज नदी से जुड़ता है। अभी तक हम छात्रों और महिलाओं को ही जोड़ रहे थे , रिक्किन नदी पर उसके जलागम पर पिछले 30 सालों के कार्यों के अनुभवों को जोड़ते हुए कांडपाल जी ने इस यात्रा की जरुरत को समझते हुए , इसके सफल संचालन के लिए बची सिंह बिष्ट और उनके साथियों को बधाई दी। 

इस यात्रा से जुड़े राजेंद्र जोशी ने ग्राम्य परिवेश और उसको लेकर अपने अनुभव साझा करते हुए रामगाड़ नदी अध्ययन यात्रा को सफल बनाने वाली टीम को बधाई दी। 

हीरा जंगपांगी रौतेला ने बताया कि महिलाएं प्रकर्ति के सबसे नज़दीक होती हैं। पर्वतीय उत्तराखंड की ग्रामीण महिलाओं का जीवन  खेत, पानी , घास , पशुओं और जंगलों के साथ ही जुड़ा होता है। इसीलिए नदी अभियान में उनकी बड़ी भागीदारी बहुत जरुरी है। पर ऐसा प्रयास है जिसे आगे बढ़ाने की जरुरत है। महिलाओं को अधिक से अधिक जोड़ने के लिए उनकी अधिकतम सक्रिय भागीदारी बढ़ाने की जरुरत है। 

श्री हेमंत बोरा जी ने नदी को माता कहा और मनुष्य की आध्यात्मिक चेतना की उच्यता का केंद्र बताया। उन्होंने जीवन की उत्पति , सभ्यताओं के विकास और अन्य आध्यात्मिक पूर्णताओं की प्राप्ति का केंद्र नदी को बताया। 
उन्होंने कहा कि नदी, समाज, जंगल , खेत सब एक दूसरे के पूरक हैं। यह सरकार का कार्य बाद में है , पहले समाज का कार्य है। 

समापन से पूर्व ग्राम प्रधान सतबूंगा द्वारा सभी जल अध्ययन यात्रियों का भव्य स्वागत किया गया। यात्रा के समापन पर अध्यक्ष जीवन गौड़ ने सभी को बधाई दी और जल संचय के अपने कार्यों के साथ व्यापक जल कोष नियोग के लिए साथ जुड़ने की जरुरत पर बल दिया। चार दिवसीय नदी अध्ययन यात्रा ने अनेक पहलुओं पर समझ को बढ़ाया। जिसके निष्कर्षों पर सभी यात्री अपने अपने अनुभव लिखकर एक साझा रिपोर्ट तैयार करेंगे। 

  • रामगाड़ नदी अध्ययन यात्रा सफलता पूर्वक संपन्न हुई 
  • नदी , जल धाराएँ , जैव विविधता पर लगातार संकट है 
  • समाज नदी के प्रति संवेदनशील नहीं है 
  • रामगाड़ नदी पर मानवीय अतिक्रमण और जलवायु परिवर्तन का व्यापक प्रभाव स्पष्ट दिखता है 
  • नदी को बचाने के लिए इसके जलागाम में निर्माणों को सख्ती से नियंत्रित किया जाना जरुरी है।
  • निश्चित ही रामगाड़ नदी का अस्तित्व ही समाप्त न हो जाये , उससे पहले वहां के समाज को सचेतन होना होगा और छोटी जल वाहिकाओं पर अधिक से अधिक कार्य करना होगा। 
  • सुनकिया और सतबूंगा के ग्रामीण बागवानों ने पहल करने का संकल्प लिया है। निश्चित ही और गांव भी शीघ्र जुड़ेंगे। 
  • यह एक यात्रा का प्रारम्भ है , भविष्य में जल्दी ही एक और नदी की स्थिति को जानने समझने के लिए यात्रा करने की इच्छा साथियों ने व्यक्त की है। 

हमने अपनी दो बड़ी चिंताओं को रेखांकित करने का प्रयास किया है 

नदी जीवन शून्य कैसे हो गया , हमारे पहले और हमारे सामने रामगाड़ नदी में सैकड़ों बड़े बड़े तालाब थे , जिसको हम अपनी बोली मछली का “गाड़ या गढ़ “ कहते थे, हमने पाया कि इधर शिवजटा उदगम से बूढी बना मोक्ष धाम से रामगाड़  संगम तक वे पुराने सभी ताल और डोबरे भर चुके हैं। मछली के घर मलबे , रेता , बोल्डर से पट चुके हैं। रामगाड़ तक के झरने भी समाप्त हो चुके हैं। जो नदी कभी उद्धाह लेती , जीवन से भरपूर थी। सदियों से इसमें जीवन मौजूद था, इसे जीवन विहीन करने के अनेक कारण हमको समझ में आये, जिनमे मुख्य कारणों को हमने अनुभव से समझा है।

रामगाड़ एक जीवनदायिनी नदी है। सदियों से यह आसपास के खेतों, ग्रामवासियों के लिए सिंचाई , पेयजल , धार्मिक एवं पारम्परिक रीति रिवाजों के लिए जल उपलब्ध करवाती रही है। अचानक से यह अपने रौद्र और विनाशकारी स्वरुप में आकर लोगों के खेतों, घरों और जीवन को समाप्त करने लगती है। वर्ष 2021, अक्टूबर में आई आपदा में नदी और उसकी सहायक धाराओं ने 25 से भी अधिक लोगों की जान ले ली। सैकड़ों नाली जमीन , बगीचों और कृषि उदपादक क्षेत्र को रौखड़ में बदल दिया , सैकड़ों लोगों को घरों से बेघर कर दिया तथा अनेक मकानों को क्षतिग्रस्त व् कइयों को जमीनदोज़ कर दिया। जिसके कारण लोग नदी से डरने लग गए हैं। 

सुरक्षित गांव , नदी क्षेत्र का इलाका आपदा क्षेत्र बन गया, जिसके पीछे के कारणों को समझने का भी प्रयास इस नदी अध्ययन यात्रा के दौरान किया गया। रामगाड़ व् उसकी सहायक धाराओं में 30 के करीब पारम्परिक घराट  और पम्पिंग योजनाएं थी , जिनमे से सिर्फ 2 पम्पिंग हाउस और 1 घराट ही जीवित है। अधिकतर नदी प्रवाह की कमी से सूख गए हैं या पिछली आपदाओं में बह चुके हैं। इनके कारण की पड़ताल का प्रयास हमने इस नदी अध्ययन के दौरान किया, तमाम कारण जो हमारी स्थानीय अध्ययन टोली को दिखे , बताये गए और समझ में आये उनकी अपने अध्ययन विवरण में स्थान देने का प्रयास किया है - 

  • नदी में मछली एवं अन्य जलीय जीवों की समाप्ति के कारण 
  • सरकार एवं विभिन्न कृषि रसायन, कीटनाशक उत्पादन करने वाली कंपनियों के द्वारा उपलब्ध करवाए गए जहरीले कीटनाशक, फफूंदनाशक , ब्लीचिंग पाउडर का खेतों , बगीचों में अत्यधिक प्रयोग। जो बरसाती पानी में घुलकर नदी जल में मिलकर जलीय जीवों की समाप्ति का बड़ा कारण बना है। 
  • मछली मारने के लिए स्थानीय निवासियों द्वारा भारी मात्रा में ब्लीचिंग पाउडर का नदी में उपयोग किया जाना 
  • नदी के पोखरों में विस्फोटकों का प्रयोग 
  • नदी में बिजली का करंट , बड़ी बैटरियों का करंट दाल कर अवैध शिकार किया जाना 
  • नदी के पोखरों से खेतों में सिंचाई करने के लिए अवैध रूप से लगातार डीजल चालित , विधुत चालित मोटरों से पानी का उठाया जाना 
  • सरकारी पम्पिंग योजनाओं द्वारा लगातार नदी जल को उठाया जाना 
  • नदी की सहायक धाराओं से अवैध पानी की व्यक्तिगत लाइने बिछाकर घरों तक पानी लाकर जलस्रोतों के अविरल प्रवाह को बाधित किया जाना 
  • जलागम , मनरेगा की चेकडैम , खेतों के मेढ़बंदी, सोलर पंप योजनाओं के द्वारा नदी तट , नदी विस्तार क्षेत्रों में बाधा पहुँचाया जाना 
  • रामगाड़ नदी के उदगम  स्थलों और उसकी सहायक धाराओं के उदगमों  पर सरकारी निर्माण , होटल , सड़कें और भरी सीमेंट के निर्माण करके जल प्रवाह को बढाकर नालों की प्रवाहगति को बढ़ा दिया गया है। इन नालों पर तमाम सड़कों , भवन निर्माण  का मलबा डालकर जलधाराओं का प्राकर्तिक मार्ग बाधित किया है। 
  • रामगाड़ नदी के उदगम  से शिप्रा संगम तक के जंगलों , चाल , खाल पोखरों , वर्षा जल संग्रहण के कार्यों को वन पंचायतों और ग्राम पंचायतों के द्वारा करवाया जाता है , तमाम कार्यक्रमों में नदी प्रवाह , जैव , समृद्धि तथा वनों के प्राकर्तिक पुनर्जिवीतिकरण का कोई ध्यान नहीं दिया जाता है| 
  • जिन वन पंचायतों , ग्राम समुदायों , निजी व्यक्तियों द्वारा प्राकर्तिक आवरण की सघनता बढ़ाने का कार्य किया है , उनकी पहचान , प्रोत्साहन और आव्यशक प्रशिक्षण का कार्य भी नहीं किया गया है। 
  • सामूहिक वनाधिकार से वंचित गाँवों  को आरक्षित वन क्षेत्रों में अधिकार देकर उनके विकास और प्रबंधन की जिम्मेदारी सौपने का कार्य नहीं हुआ है। 
  • कई समर्थ और पहुँच वाले लोगों ने जंगलों , पानी के स्रोतों , जल भरण क्षेत्रों के कब्ज़ा किया है। उन्होंने वन भूमि से पेड़ों को काटा और अवैध खेत, मकान, पाताल तोड़ करके , सड़कें आदि बनाकर नदी जल प्रवाह में बाधा पहुँचाई है , उनकी पहचान होने के बाद भी उन पर कोई दवाब नहीं है , जिससे प्रेरित होकर कई लोग अवैध कब्जों को करने लग गए हैं। 
  • रामगाड़ के जलागम में पारम्परिक बाँज  और चौड़ी पत्ती के जंगलों के साथ चीड़  व् लेन्टाना का विस्तार हुआ है। जिसमे प्रतिवर्ष आग लगती है। आग लगने से चौड़ी पत्ती , घास लता , झाड़ियों को , उनके ऊपर निर्भर वन के प्राणियों को अत्यधिक नुक्सान होता है , यह जलागम के प्राकर्तिक जल स्रोतों को सुखाने का भी कारण बना हुआ है। 
  • पानी को लेकर स्थानीय समुदाय से जिम्मेदार प्रतिनिधियों और सरकारी तंत्र तक की समझ सिर्फ निजी जरुरत पूरी करने और अधिक से अधिक उपयोग / इस्तेमाल करने वाले साधन की है। उनके लिए नदी का मरना , जलवायु में आता बदलाव , प्राकर्तिक संसाधनों के प्रति व्यवहार चिंता की बात नहीं है। 
  • जल और उससे सम्बंधित कार्यों का निर्णय अभियांत्रिकी का ही विषय माना जाता है। प्राकर्तिक संसाधनों , समृद्ध परिवेश और स्वस्थ पारितंत्र को लेकर अधिक गहम मानवीय , भावनात्मक समझ की कमी पूरी यात्रा के दौरान सभी जलयात्रियों ने महसूस की।

संभावनाएं 

  • स्थानीय समुदाय , किसान बागवानों की दृष्टि से अपनी नदी , उससे जुड़े जंगलों जैव विविधता और नदी परिवेश (पारितंत्र) को जानने का यह अनूठा और पहला ही प्रयास था, जहाँ दैनिक रूप से नदी जंगल खेती से जुड़े स्थानीय लोग खुद अपनी समझ से नदी अध्ययन करने निकले थे। 
  • नदी अध्ययन यात्रा के दौरान यह भी लोगों ने बताया, स्वयं महसूस किया कि वैश्विक तापमान वृद्धि का प्रभाव जलस्रोतों , जंगलों की जैव विविधता और नदी परितंत्र पर पड़ रहा है। यह नदी को समृद्ध करने वाली प्राकर्तिक धाराओं के सूखने , जंगलों में वन्य जीवों की खाद्य श्रंखला के नष्ट होने , वन्य जीवों के अधिवास के बदलने के रूप में खंतियों के अलावा प्राकर्तिक जल स्रोतों का सरक्षण भी किया है ,
  • मुख्य उदगम क्षेत्र की खेती बागवानी और सहायक गतिविधियों से लोगों की आजीविका मजबूत होती है। यहाँ पलायन कम होने से मानव श्रम पर्याप्त संख्या में उपलब्ध है। 
  • महिलाएं पानी, जंगल , खेती , दूध पालन सहित परिवार चलाने में मुख्य भूमिका का निर्वाह करती है। नदी संरक्षण के लिए उनके इस लगाव से वे लोगों को संवेदनशील और जागरूक बनाने के साथ किसी भी रचनात्मक कार्यक्रम में सक्रिय निर्णायक भूमिका निभाने में समर्थ है। 
  • नदी अधययन अभियान के दौरान तमाम गाँवो , उसके रहवासियों , महिलाओं और अनुभवी किसानों से हुई बातचीत से यह भी समझ बानी कि रामगाड़ नदी को नवजीवन देने के लिए मुख्य नदी की सहायक जलधाराओं में कुछ रचनात्मक कार्य किया जाना बहुत जरुरी है ,
  • स्थानीय लोगों के साथ जिला प्रशासन और स्थानीय पंचायतें मिलकर साझा अभियान व् रचनातमक पहल करें , प्रशासन लोगों की सलाह को सम्मान दे तो रामगाड़ नदी का पुनर्जीवन संभव है , 
  • निश्चित ही प्रदेश सरकार  की  भूमिका को सहयोगी , सकारात्मक और वास्तविक होना भी जरुरी है , इसलिए प्रदेश सरकार इन सुझावों के क्रियानन्वन में मदद कर सकती है - 
  • रामगाड़ सहित सभी गैर बर्फानी छोटी नदियों के उदगम और जलधारण क्षेत्र में निर्माण सख्ती से प्रतिबंधित करे , जो अवैध या गैर जरुरी निर्माण है उनको ध्वस्त करवाकर जल वाहिकाओं का निर्वाध विचरण सुनिश्चित करे 
  • रामगाड़ क्षेत्र के सभी आबाद गांवों जो नदी से जुड़े हैं , जैविक खेती के लिए विशेष प्रोत्साहन दे और नदी में खनन , मत्स्य आखेट , मोटरों  से , पम्पिंग योजनाओं से पानी उठाना , पत्थर तोड़ना , सीमेंट के निर्माण बंद कराए। 
  • रामगाड़ नदी के सभी नालों में  प्लास्टिक कचरा डालना दंडनीय अपराध घोषित करते हुए ,स्थानीय स्टार पर चलाये जा रहे होटलों , बाज़ारों , दुकानों और रिसार्ट के कचरे के सख्त जांच कर उसका निस्तारण सुनिश्चित करे , 
  • रामगाड़ नदी से हुए स्थानीय लोगों के नुक्सान की भरपाई , न्यायपूर्ण तरीके से के जाये। उन प्रतिनिधियों अधिकारीयों कर्मचारियों को दण्डित किया जाये जिन्होंने अयोग्य और अपात्र लोगों को राजकीय सहायता दिलवाकर वास्तविक पत्रों की उपेक्षा की है। 
  • राज्य सरकार नदी पुनर्जिवितीकरण के कार्यों के लिए सीधा लाभार्थी समूहों को वित्तीय सहायता / फण्ड उपलब्ध करवाए। 
  • वन विभाग को नदी पर अतिक्रमण , खनन , नदी पर कचरा डालने , आखेट और जेहरीले रसायन डालने के लिए प्रत्यक्ष जवाबदेह बनाकर उसकी स्थानीय लोगों के साथ निगरानी की जाये। 
  • यह संभव है कि सरकार स्थानीय लोगों के समन्वय की जिम्मेदारी जनमैत्री संगठन को दे ताकि वह स्थानीय वन पंचायतों , मंदिर कमिटी,  स्वयं सहायता समूहों, रामलीला कमिटी , उपभोक्ता समूह, विद्यालय (PTA) समुहों आदि को जोड़कर व्यापक जन भागीदारी सुनिश्चित करे ,  जिसके लिए सरकार वित्तीय व्यवस्था दे। 
  • यह हमारा अनुभव और विचार है। वैज्ञानिक अध्ययन समूहों और नदी विशेषज्ञों की राय भी बहुत जरुरी है। 
  • हम स्थानीय समूह हैं। हमारी चिंताओं में लोगों की रोजी रोटी , स्वास्थ्य रोजगार के अलावा स्वच्छ परिवेश शामिल है , हमारी जलधाराएं हमारी जीवन रेखाएं हैं। इनके ऊपर किया हर एक निर्माण , हर एक अतिक्रमण सीधा हमसे जुड़ता है। 
  • हम यह सुनिश्चित करना चाहते है कि हमारी हर एक जलधारा। प्राकर्तिक जलस्रोत सुरक्षित गंदगी और अतिक्रमण से मुक्त रहे , यदि इसके लिए सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयास होते रहें तो ही यह हो सकता है। 
  • रामगाड़ एक नदी से मृतप्राय नाला बनकर रह गयी है , उसकी रवानगी, जीवन्तता , मानव व् प्रकर्ति की सेवा की क्षमता ख़त्म हो चुकी है। 
  • उसके परितंत्र में मानवीय आक्रमण हो रहे हैं और उसके उदगम स्थलों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भी पड़ रहे हैं। 
  • जलवायु परिवर्तन से हो या मानवीय हस्तक्षेप व् गैर जरुरी गतिविधियों से रामगाड़ भर रही है। और हम इसे जिन्दा चाहते हैं , कैसे भी करके , किसी भी कीमत पर और हम इसके लिए हर स्तर पर प्रयास करते रहेंगे| 

संपर्क लेखक - बची सिंह बिष्ट, जनमैत्री संगठन, 8958381627 

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