कैंसर का कारण किसानी : कोई रोको

अगर कोई किसान आपका मित्र है और वह रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहा है, तो आपको अपने खेत से सब्जी नहीं देगा। वह जानता है कि इसे खाने से कैंसर हो जाता है। मैं ऐसे अनेक किसानों को जानता हूँ, जो अपने घर के लिए सब्जी में कीटनाशक नहीं डालते हैं। दूसरों को कैंसर होता है, तो होता रहे। पशुओं के चारे को भी किसानों ने जहरीला बना दिया है। यूरिया और डीडीटी का छिड़काव चारे में किया जाता है। इसका दुष्प्रभाव यह है कि यूरिया दूध में मिलने लगा है। वह दूध, जिसे अमृत कहा जाता है। मानव शिशु दूध पर ही निर्भर रहता है। किसान को इसकी भी चिन्ता नहीं है। शायद इसलिए कि उन्हें कोई रोकने वाला नहीं है।किसान अन्न उगाता है। इसी कारण किसान को अन्नदाता कहा जाता है। हम दिन में दो बार भोजन और दो बार जलपान करते हैं। यह किसान की कृपा से ही सम्भव है। अगर मैं यह लिखूँ कि किसान देश में कैंसर भी फैला रहे हैं, तो आपको ताज्जुब होगा, लेकिन है यह हकीकत। एक कड़वी हकीकत। आश्चर्यजनक बात यह है कि किसानों की राजनीति करने वाले इस हकीकत से बखूबी वाकिफ हैं, लेकिन बोलने की हिम्मत नहीं है। बोलेंगे तो किसान विरोधी कहलाएँगे। किसानों का समर्थन न मिलने का भय, फिर चुनाव में हार जाने की चिन्ता ने सबके मुँह पर ताले लटका रखे हैं। आम आदमी कैंसर से मरता है, तो मरे। हमारे प्रधानमन्त्री स्वस्थ रहने के लिए योग करने की सलाह दे रहे हैं। किसानों को सलाह नहीं, विवश किया जाना चाहिए कि कैंसर फैलाने के कारक न बनें। उन्हें नियम-कानून में बाँधना ही होगा, अन्यथा देश का मानव संसाधन उसी तरह बर्बाद हो जाएगा, जैसे बारिश में सड़कें हो जाया करती हैं।

कीटनाशक कर रहा नाश


अधिक उत्पादन का हर किसी को लालच है। वह चाहे कारखाना मालिक हो या किसान। इसके लिए किसान ने आधुनिक खेती की राह अपनाई। फसलों की कीटों से रक्षा के लिए डीडीटी, एल्ड्रिन, मेलाथियान एवं लिण्डेन जैसे खतरनाक कीटनाशकों का उपयोग किया। इनसे फसलों के कीट तो मरे साथ ही पक्षी, तितलियाँ फसल और मिट्टी के रक्षक कई अन्य जीव भी नष्ट हो गए। रसायनों के अंश अन्न, जल, पशु और हम मनुष्यों में आ गए। सब्जियों को ही लें। कीटों से रक्षा के लिए सब्जियों पर अँधाधुँध कीटनाशक रसायनों का छिड़काव किया जा रहा है। सब्जी के साथ ये कीटनाशक हमारे पेट में जा रहे हैं और बीमार बना रहे हैं। जो सब्जी और अन्न जमीन के ऊपर है, उस पर कीटनाशक रसायनों का प्रभाव अधिक है।

एक शोध के मुताबिक, सब्जियों में केडमियम, सीसा, कॉपर और क्रोमियम जैसी खतरनाक धातुएँ भी शामिल हैं। ये कीटनाशक और धातुएँ शरीर को बहुत नुकसान पहुँचाती हैं। सब्जियाँ तो पाचन तंत्र के जरिए हजम हो जाती हैं, लेकिन कीटनाशक और धातुएँ शरीर के संवेदनशील अंगों में एकत्र होते रहते हैं। यही आगे चलकर गम्भीर बीमारियों की वजह बनती हैं। इस प्रकार के जहरीले तत्व आलू, पालक, फूल गोभी, बैंगन और टमाटर में बहुतायत में पाए गए हैं।

कृषि विभाग की रिपोर्ट


कृषि विभाग की एक रिपोर्ट पर गौर कीजिए- पत्ता गोभी के 27 नमूनों का परीक्षण किया गया, जिनमें 51.85 फीसदी कीटनाशक पाया गया। इसी तरह टमाटर के 28 नमूनों में से 46.43 फीसदी में कीटनाशक मिला, जबकि भिंडी के 25 नमूनों में से 32 फीसदी, आलू के 17 में से 23.53 फीसदी, पत्ता गोभी के 39 में से 28, बैंगन के 46 में से 50 फीसदी नमूनों में कीटनाशक पाया गया।

इलाहाबाद से लिए गए टमाटर के नमूने में डीडीटी की मात्र न्यूनतम से 108 गुनी अधिक पाई गई। गोरखपुर से लिए सेब के नमूने में क्लोरडेन नामक कीटनाशक पाया गया जो कि लीवर, फेफड़ा, किडनी, आँख और केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुँचाता है। गेहूँ और चावल के नमूनों में ऐल्ड्रिन और क्लोरफेनविनफास नामक कीटनाशकों के अंश पाए गए हैं। ये दोनों कैंसर कारक है।

दूध में भी यूरिया


अगर कोई किसान आपका मित्र है और वह रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहा है, तो आपको अपने खेत से सब्जी नहीं देगा। वह जानता है कि इसे खाने से कैंसर हो जाता है। मैं ऐसे अनेक किसानों को जानता हूँ, जो अपने घर के लिए सब्जी में कीटनाशक नहीं डालते हैं। दूसरों को कैंसर होता है, तो होता रहे। पशुओं के चारे को भी किसानों ने जहरीला बना दिया है। यूरिया और डीडीटी का छिड़काव चारे में किया जाता है। इसका दुष्प्रभाव यह है कि यूरिया दूध में मिलने लगा है। वह दूध, जिसे अमृत कहा जाता है। मानव शिशु दूध पर ही निर्भर रहता है। किसान को इसकी भी चिन्ता नहीं है। शायद इसलिए कि उन्हें कोई रोकने वाला नहीं है। जैविक खेती क्यों नहीं?

किसानों की समझ में ये बात क्यों नहीं आ रही है कि दुनियाभर में जैविक खेती का चलन है। जैविक खेती से उत्पादित अनाज, सब्जी आदि का मूल्य कई गुना मिलता है। अमेरिका तथा यूरोप में जैविक खेती 20 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रही है। भारत से अमेरिका या यूरोप के देशों को जो चाय, अंगूर, आम या लीची भेजा जाता है, वह जैविक तरीके से उत्पादित होती है। जहरीले रसायनों के प्रयोग से उत्पादित खाद्य पदार्थों को वे वापस लौटा देते हैं। फिर हम रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों से अपनी खेती और मानव स्वास्थ्य को खतरे में क्यों डाल रहे हैं? आखिर कारण क्या है कि केन्द्र और प्रदेश का कृषि विभाग किसानों को जैविक खेती की ओर उन्मुख क्यों नहीं कर पाया है? किसान तो भोला भाला होता है। उसे जिस चीज में फायदा दिखता है, वही करने लगता है। अगर किसानों को जैविक खेती से मिलने वाले लाभों के बारे में बताया जाए, तो कोई कारण नहीं है कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग बंद न हो।

और अन्त में..


किसान की दुर्दशा पर अम्बरीश श्रीवास्तव को यह दोहा मन को झकझोर जाता है-
सुख-सम्पत्ति कुछ है नहीं, ना कोई व्यापार।
कर्ज चुकाने के लिए, कर्जे की दरकार।

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