कैंसर के लिए ब्यूटी प्रसाधन!

सौंदर्य प्रसाधनों का सीधा प्रयोग शरीर पर किया जाता है। इन्हीं सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में बड़ी-बड़ी कंपनियां पारा, क्रोमियम और निकिल जैसे जहरीले रसायन का प्रयोग कर रही हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसके नियमित प्रयोग से फेफड़े के कैंसर से लेकर त्वजा बदरंग हो जाती है और किडनी तक को नुकसान पहुंचाने का खतरा रहता है।

खूबसूरत दिखने के लिए खासतौर पर स्त्रियां जिन सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल कर रही हैं, वे कहीं उन्हें दाग-धब्बे देकर बदसूरत तो नहीं बना रहे हैं या कैंसर और चर्मरोग तक तो उपहार में नहीं दे रहे हैं? दो सालों तक लगातार सर्वेक्षण और परीक्षण करने के बाद दिल्ली की संस्था सेंटर फॉर साइंस ऐंड इनवायर्मेंट (सीएसई) ने दावा किया है कि भारतीय बाजार में बिकने वाले सौंदर्य प्रसाधनों में जहरीले रासायनिक तत्व बड़ी मात्रा में पाए गए हैं, जिनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा है। क्रीमों और लिपस्टिकों में अधिक मात्रा में पारा, क्रोमियम और निकेल जैसे जहरीले रासायनिक तत्व मिले हैं।

भारत में पारे का किसी भी रूप में प्रयोग प्रतिबंधित है। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण इस शोध के विषय में कहती हैं कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट्स एंड रूल्स ऑफ इंडिया के तहत कॉस्मेटिक्स में पारे का इस्तेमाल प्रतिबंधित है। जिस सौंदर्य प्रसाधनों का सीधा प्रयोग शरीर पर किया जाता है उनमें पारा, क्रोमियम और निकिल के नियमित प्रयोग से फेफड़े के कैंसर से लेकर किडनी तक को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। त्वचा पर भी इसके घातक परिणाम देखने को मिले हैं। गौरतलब है कि भारत में पारे का किसी भी रूप में प्रयोग प्रतिबंधित है। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण इस शोध के विषय में कहती हैं कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट्स एंड रूल्स ऑफ इंडिया के तहत कॉस्मेटिक्स में पारे का इस्तेमाल प्रतिबंधित है। जिस सौंदर्य प्रसाधनों का सीधा प्रयोग शरीर पर किया जाता है उनमें पारा, क्रोमियम और निकिल के नियमित प्रयोग से फेफड़े के कैंसर से लेकर किडनी तक को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। त्वचा पर भी इसके घातक परिणाम देखने को मिले हैं। चूकि सौंदर्य प्रसाधनों के दुष्प्रभावों पर अभी तक कोई बड़ा शोध देश में सामने नहीं आया है इसलिए इन्हें बनाने वाली कंपनियां मनमाने ढंग से जहरीले रसायनों का प्रयोग कर रही हैं।

सौंदर्य प्रसाधनों पर शोध से जुड़े सीएसई के उपनिदेशक चंद्र भूषण कहते हैं कि भारत में कॉस्मेटिक्स उद्योग का 20 हजार करोड़ रुपए का कारोबार है और उम्मीद है 2015 तक यह 17 फीसदी की दर से बढ़ेगा लेकिन सौंदर्य प्रसाधनों में जहरीले रसायनों के प्रयोग के बारे में सरकार उदासीन बनी हुई है। इनकी कंपनियों के लिए सरकारी तौर पर न कोई दिशा-निर्देश दिए गए हैं और न ही किसी तरह के प्रमाणन की कोई व्यवस्था है। पशुप्रेमियों के दबाव में स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले दिनों यह फैसला किया है कि सौंदर्य प्रसाधनों के लिए पशुओं पर क्लीनिकल ट्रायल नहीं किए जा सकेंगे। ऐसे में अगर सौंदर्य प्रसाधनों का सीधे मनुष्यों द्वारा प्रयोग होने लगा, तो यह और भी खतरनाक हो जाएगा।

सीएसई ने शोध के लिए 2012 में बाजार से 73 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सौंदर्य उत्पाद उठाए थे, जिनमें 30 लिपस्टिक, 32 फेयरनेस क्रीम, लिप बाम और तीन कंपनियों की एंटी एजिंग क्रीमें शामिल थीं। इन क्रीमों और लिपस्टिकों का जब सीएसई का ही पर्यावरण मापने की प्रयोगशाला में गहन अध्ययन किया तो पता चला कि पारे का प्रयोग भारत और अमेरिका में पूरी तरह से प्रतिबंधित है। झटपट गोरा बना देने का दावा करने वाली 14 क्रीमों में पारा का प्रयोग 0.10 से लेकर 1.97 ‘पीपीएम’ तक हो रहा है। अमेरिका और जर्मनी में पारे का प्रयोग 1 पीपीएम से अधिक नहीं किया जा सकता है जबकि कनाडा में 3 पीपीएम तक इसका प्रयोग हो रहा है। पारे का अधिक मात्रा में प्रयोग किडनी को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ त्वचा का रंग बदरंग भी कर सकता है और घाव भी दे सकता है।

हफ्तों में सांवले को गोरा बना देने का दावा करने वाली 32 क्रीमों में से 44 फीसदी क्रीमों में अधिक मात्रा में पारा मिला है। 30 लिपस्टिकों में से 50 फीसदी में ‘क्रोमियम’ और 43 फीसदी में 'निकेल’ जैसे जहरीले रसायन बहुतायत में मिले हैं, जबकि एंटी एजिंग क्रीम और लिप बाम में किसी भी प्रकार के रसायन नहीं मिले हैं।

चंद्र भूषण बताते हैं कि सीएसई ने परीक्षण के लिए दिल्ली के बाजार से लॅक्मे, रेवलॉन, लॉरेल इंडिया (मेबेलीन हूक्ड पिंग-065), कलरबार, ब्लॉसम, कोचर के सौंदर्य उत्पाद, एरोमा मैजिक, पोंड्स, ओले नेचुरल्स, द बॉडी शॉप इंडिया, वाइएसएल करंट रोज-10, ब्राइडल ड्रीम-44, मैक, हाटर्स ऐंड टार्ट्स, प्रॉक्टर ऐंड गैंबल इंडिया, इस्टी लाउडर, चैंबोर, डायोर, लैनकॉम, हिमालया, लोटस और नीविया के क्रीम, लिपस्टिक, एंटी एजिंग क्रीम और लिप बाम उठाए थे। एंटी एजिंग क्रीम, लिप बाम और कुछ क्रीमों को छोड़कर सभी में जहरीले रसायन मिले। संस्था ने इन कंपनियों को पत्र लिखकर उन्हें यह बताने की कोशिश की कि आपके उत्पादों में ऐसे जहरीले रसायन मिले हैं जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं।

भूषण बताते हैं कि 73 में से सिर्फ सात कंपनियों ने जवाब दिया और कहा कि कॉस्मेटिक्स निर्माण पर सरकार की कोई विशेष दिशानिर्देश और मानक घोषित नहीं है। लेकिन पारा पूरी तरह से प्रतिबंधित होने के बाद भी उसका इतनी अधिक मात्रा में सौंदर्य प्रसाधनों में पाए जाने पर कंपनियों ने कोई जवाब देना जरूरी नहीं समझा।

जहां तक त्वचा विशेषज्ञों की बात है तो बता दें कि चूंकि भारत में अभी तक सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयोग हो रहे जहरीले रसायनों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर कोई शोध नहीं आया है, इसलिए वे इस विषय में कुछ भी कहने से बचते रहे, जबकि कुछ विशेषज्ञों ने माना कि उनके पास कई ऐसे मरीज आते हैं जिन्होंने किसी विशेष कंपनी की क्रीम का प्रयोग किया और उनकी त्वचा पर घाव और खुजली की शिकायत हो गई। कई लोगों की शिकायत है कि दाग-धब्बे से बचने के लिए उन्होंने जो क्रीम इस्तेमाल की, उसने उसे और बढ़ा दिया।

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