कालीबेई नदी के पुनर्जीवन की दास्तान

देश के इतिहास में पानी बचाने की मुहिम में एक बड़ा चमत्कार किया है एक संत ने। पर्यावरण बचाने के लिए नदियों का संरक्षण भी जरूरी है यह उनका दृढ़ विश्वास है। उन्होंने एक सौ साठ किलोमीटर लंबी 'काली बेई' नदी को जीवित किया है। पंजाब के होशियारपुर जिले की मुकेरियां तहसील के ग्राम घनोआ के पास से ब्यास नदी से निकल कर काली बेई दुबारा 'हरि के छम्ब' में जाकर ब्यास में ही मिल जाती है। मुकेरियां तहसील में जहां से काली बेई निकलती है। वो लगभग 350 एकड़ का दलदली क्षेत्र था।

अपने 160 किलोमीटर लंबे रास्ते में काली बेई होशियारपुर, जालंधार व कपूरथला जिलों को पार करती है। लेकिन इधर काली बेई में इतनी मिट्टी जमा हो गई थी कि उसने नदी के प्रवाह को अवरूद्ध कर दिया था। नदी में किनारे के कस्बों-नगरों और सैकड़ों गांवों का गंदा पानी गिरता था। नदी में और किनारों पर गंदगी के ढेर भी थे। जल कुंभी ने पानी को ढक लिया था। कई जगह पर तो किनारे के लोगों ने नदी के पाट पर कब्जा कर खेती शुरू कर दी थी।

'पंच आब' यानि पांच नदियों वाले प्रदेश में काली बेई खत्म हो गई थी। बुद्धिजीवी चर्चाओं में व्यस्त थे। जालंधर में 15 जुलाई 2000 को हुई एक बैठक में लोगों ने काली बेई की दुर्दशा पर चिंता जताई। इस बैठक में उपस्थित सड़क वाले बाबा के नाम से क्षेत्र में मशहूर संत बलबीर सींचेवाल ने नदी को वापिस लाने का बीड़ा उठाया। अगले दिन बाबाजी अपनी शिष्य मंडली के साथ नदी साफ करने उतर गए। उन्होंने नदी की सतह पर पड़ी जल कुंभी की परत को अपने हाथों से साफ करना शुरू किया तो फिर उनके शिष्य भी जुटे।

सुल्तानपुर लोधी में काली बेई के किनारे जब टेंट डालकर ये जीवट कर्मी जुटे तो वहां के कुछ राजनैतिक दल के लोगों ने एतराज किया, बल भी दिखाया। पर ये डिगे नहीं, बल्कि शांति और लगन से काम में जुटे रहे। पहले आदमी उतरने का रास्ता बनाया गया फिर वहां से ट्रक भी उतरे और जेसीबी मशीन भी। नदी को ठीक करने बाबा जहां भी गए, वहां नई तरह की दिक्कतें थी। नदी का रास्ता भी ढूंढना था। कई जगह लोग खेती कर रहे थे।

कईयों ने तो मुकदमे भी किए। पर बाबा ने कोई मुकदमा नहीं किया। वे गांव वालों को बुलाने के लिए संदेश भेजते, गांव वाले आते तो समझाते। सिक्खों की कार सेवा वाली पद्धति ही यहां चली। हजारों आदमियों ने साथ में काम किया। नदी साफ होती गई। बाबा स्वयं लगातार काम में लगे रहे। उनके बदन पर फफोले पड़ गए। पर कभी उनकी महानता के वे आड़े नहीं आए।

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