केन-बेतवा नदी गठजोड़ : शान्त बुन्देलखण्ड में एक भीषण तूफान की दस्तक

30 Apr 2011
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एक दिवसीय सत्याग्रह उपवास दिनांक 30 अप्रैल 2011


[img_assist|nid=30183|title=|desc=|link=none|align=left|width=400|height=325]भारत सरकार की नदी गठजोड़ परियोजना के तहत प्रधानमंत्री जी की उपस्थिति में विगत 25 अगस्त 2005 को उ.प्र. तथा म.प्र. सरकारों द्वारा केन-बेतवा नदी गठजोड़ पर त्वरित कार्य स्वीकार किया गया था। इसे समझना बुन्देलखण्ड के परिप्रेक्ष्य में आवश्यक है।

 

 

प्रस्तावित योजना-


1. छतरपुर-पन्ना सीमा पर गंगऊ बैराज से 2-3 किमी. ऊपर डौढ़न गांव के समीप लगभग 73 मीटर ऊंचा बांध केन नदी के सम्पूर्ण पानी का संग्रह करेगा।
2. इस बांध से लगभग 231 किमी. लम्बी विशालकाय नहर द्वारा झांसी जिले के बरूआसागर झील को भरा जायेगा जो आगे बेतवा नदी से जुड़ी है।
3. बेतवा में आये इस अतिरिक्त जल को संभवतः झांसी नगर पेयजल आपूर्ति तथा पारीक्षा प्रणाली को सशक्त करने में प्रयोग हेतु लाया जायेगा।
4. डौढ़न बांध से निकलने वाली नहर पर दो विद्युत गृह बनाने का भी प्रस्ताव है।
5. डौढ़न से बरूआ सागर तक जाने वाली नहर छतरपुर, टीकमगढ़ तथा झांसी जनपद के अनेक गांवो की जमीनों से होकर निकलेगी।
6. नदी गठजोड़ कार्यक्रम पर सम्पूर्ण विनिवेश सरकारी, निजी या अर्न्तराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा दिया जाना संभव है।

 

 

 

 

बीमार बुन्देलखण्ड और केन बेतवा नदी गठजोड़-


राष्ट्रीय नदी विकास अभिकरण (एनडब्ल्यूडीए) द्वारा देश भर में प्रस्तावित तीस नदी गठजोड़ परियोजनाओं में से सबसे पहले केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना पर अमलीकरण प्रस्तावित है। इस परियोजना के सामाजिक आर्थिक एवं कृषि आधारित मुद्दों पर सर्वेक्षण की जिम्मेदारी एनडब्ल्यूडीए ने एनसीएइआर को सौंपी थी। यह सर्वेक्षण परियोजना के लिये एनडब्ल्यूडीए द्वारा किये गये पूर्व संभाव्यता अध्ययन पर आधारित रहे हैं। बांधों नदियों एवं लोगों का दक्षिण एशिया नेटवर्क सैण्ड्रप ने एक विश्लेषणात्मक अध्ययन बुन्देलखण्ड के पर्यावरणीय हालातों के मद्देनजर भविष्यगामी जल त्रासदी एवं पानी के लिये युद्ध करार देने वाली इस परियोजना के सन्दर्भ में किया था।

बुन्देलखण्ड उ.प्र., म.प्र. में प्रस्तावित केन-बेतवा लिंक गठजोड़ परियोजना प्रतिवेदन के आधार पर इस लिंक से प्रभावित होने वाली गांवों की श्रेणी में छतरपुर जनपद की बिजावर तहसील के दस आदिवासी बाहुल्य गांव क्रमशः सुकवाहा, भोरखुहा, घुघरी, बसुधा, कूपी, साहपुरा, दौधन, पिलकोहा, खरयानी, मैनारी गांव आते हैं। इस बात का खुलासा जनसूचना अधिकार 2005 के तहत केन्द्रीय जनसूचना अधिकारी एवं अधीक्षण अभियन्ता श्री ओमप्रकाश कुशवाहा ने बीते 30.06.2010 को किया था। उन्होंने बताया कि प्रस्तावित केन-बेतवा लिंक में दौधन बांध एवं पावर हाउस प्लान्ट पर 2182 हे. भूमि एवं नहरों के अन्तर्गत 4317 हे. भूमि उपयोग की जानी है, कुल 6499 हे. कृषि भूमि इस लिंक के विकास हेतु विन्ध्य बुन्देलखण्ड से अधिगृहीत की जायेगी। साथ ही इस परियोजना की कुल प्रस्तावित लागत 7615 करोड़ रूपये है। 31 मार्च 2009 तक प्रस्तावित लिंक की डीपीआर पर ही 22.5 करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके हैं। योजना से प्रभावित वे किसान जो डूब क्षेत्र अथवा दौधन बांध व आदिवासी गांव के बासिन्दे हैं। उनके पुनर्वास हेतु मुआवजा राशि नेशनल रिहैबीलीटेशन एवं रिसिटीलमेन्ट पॉलिसी 2007 व आईआरएमपी 2002 के बावत अलग-अलग दी जानी है। जिसमें कि बी.पी.एल. मध्यम किसान, लधु सीमान्त किसान के लिये मुआवजा राशि का राष्ट्रीय विकास जल अभिकरण द्वारा दी गयी सूचना में जिक्र किया गया है। योजना क्षेत्र से विस्थापित ग्रामीणों को 1 लाख से 2 लाख रूपये प्रति हे. मुआवजा राशि दिये जाने की बात कही गयी है।

गौरतलब है कि प्रस्तावित परियोजना में छः बांध में से एक ग्रेटर गंगऊ बांध को आधार बनाकर ही लिंक की डीपीआर तैयार की गयी है। 212 किमी. लम्बी कंक्रीट युक्त नहर के द्वारा केन (कर्णवती) नदी का पानी झांसी जनपद के बरूआ सागर अपस्ट्रीम में मध्य प्रदेश की सीमा से लगे टीकमगढ़ जिले में बेतवा नदी पर प्रस्तावित एक अन्य बांध में डाला जाना है। इस बांध के बांये किनारे पर दो बिजली घर परियोजनायें निर्मित होनी हैं। जिनसे 20 व 30 मेगावाट बिजली बनने का दावा किया गया है। इसके अतिरिक्त इस लिंक की कुल लागत वर्ष 1989-90 की लागत पर 1.99 अरब रूपये अनुमानित की गयी थी। दीगर बात यह है कि अनुसूचित जाति व जनजाति के 34.38 प्रतिशत व 15.4 प्रतिशत संख्या वाले आदिवासी गांव इसकी चपेट में हैं। उदाहरण के तौर पर घुघरी गांव में 91.84 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति के हैं। भौगोलिक आकृति के अनुसार डौढ़न बांध स्थल-खरयानी से 5 किमी. दक्षिण, पलकोहा- सुकवाहा से 4.5 किमी. दक्षिण, सुकवाहा-भोरखुहा से 6 किमी. दक्षिण पश्चिम के साथ इसकी सीमा पर पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क भी शामिल है। जो कि डूब क्षेत्र में आता है।

 

 

 

 

नदियों का संक्षिप्त परिचय-


केन- समुद्रतल से पांच सौ मीटर की ऊंचाई से कैमूर पर्वत से निकलकर पन्ना एवं छतरपुर जिलों से गुजरती हुयी उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के चिल्ला घाट के पास 427 किमी. चलकर यह नदी यमुना में मिलती है। केन नदी का जलग्रहण क्षेत्र 28224 वर्गकिमी. है। केन नदी पर लगभग 110 वर्ष पूर्व ब्रिटिश शासनकाल में गंगऊ (छतरपुर) तथा बरियारपुर (पन्ना) दोनो स्थानों पर बैराज बनाये गये थे। 1950 के दशक में छतरपुर जिले में प्रवाहित होने वाली बन्ने नदी पर रनगवां बांध बनाया गया जो स्थानीय सिंचाई के अतिरिक्त बरियारपुर बैराज के माध्यम से केन कैनाल प्रणाली को अतिरिक्त जल की आपूर्ति करता है।

बेतवा नदी- समुद्रतल से 576 मीटर ऊंची विन्ध्य पर्वत श्रंखला से निकलकर यह नदी बुन्देलखण्ड के ललितपुर, टीकमगढ़, झांसी, जालौन तथा हमीरपुर जिलों को स्पर्श करती हुयी 590 किमी. बहकर यमुना नदी में मिलती है। बेतवा नदी के जलग्रहण की क्षमता 43895 वर्गकिमी. है। इस नदी पर ललितपुर तथा झांसी जिलों में क्रमशः राजघाट, माताटीला बांध, ढुकुवा एवं पारीक्षा बियर बनाये गये हैं। राजघाट बहुउद्देशीय बांध है जो म.प्र. तथा उ.प्र. को बिजली आपूर्ति करता है। बेतवा एक बड़ी नदी है। केन की अपेक्षा इसमें पानी की मात्रा अधिक रहती है। भौगोलिक रूप से यह केन की अपेक्षा ऊंचे भूभाग पर बहती है, बाढ़ के समय दोनों ही नदियां विस्तार, प्रभाव एवं आकार की दृष्टि से बेतवा-केन की अपेक्षा अधिक संसाधन सम्पन्न है।

 

 

 

 

गठजोड़ से संभावित परिणाम-


1. पन्ना तथा बांदा जिलों की सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह अस्त व्यस्त हो जायेगी। डौढ़न बांध के कारण गंगऊ तथा बरियारपुर जलहीन हो जायेंगे।
2. छतरपुर, टीकमगढ़ तथा झांसी के बहुत से गांवों की जमीनें नहर में समाहित होने से भूमिहर किसान विस्थापित होगा और किसानों के समक्ष रोजगार की समस्या उत्पन्न होगी।
3. बेतवा नदी में पारीक्षा बियर के पूर्व अत्यधिक जलापूर्ति वर्षा ऋतु के अलावा भी शेष नदी के चारों ओर भीषण जलभराव तथा निकटवर्ती जालौन एवं हमीरपुर में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होगी। यमुना में आया हुआ अतिरिक्त पानी हमीरपुर तथा बांदा जिलों के उत्तर पूर्वी संभाग को बाढ़ग्रस्त बनायेगा।
4. दोनों ही नदियां वर्षा ऋतु एवं एक ही समय पर उफान पर होती हैं। शेष समय बहुत कम प्रवाह होता है। नदी गठजोड़ से बेतवा को तो पानी मिलेगा पर केन पूरी तरह बरसाती नदी के रूप में तब्दील होकर अपना प्राकृतिक सौंदर्य खो देगी।
5. इन दोनों नदियों को मिलाकर जल ग्रिड बनाने की कल्पना दिवास्वप्न है। क्योंकि नहरें एक ही दिशा में बहती हैं। उनके प्रवाह की जलधारा को मोड़ा नहीं जा सकता। जलप्रवाह की तुलना बिजली के प्रवाह से नहीं की जा सकती है।
6. प्रस्तावित पक्की नहर के माध्यम से न तो भूगत जल रिचार्ज होगा और न ही खेतों को पानी मिल सकेगा। गरीबी तथा पलायन का माहौल बुन्देलखण्ड में जल आपदा की दस्तक लेकर भीषण जल संकट उत्पन्न करेगा।
7. केन नदी के आसपास के नगर पन्ना म.प्र., बांदा, महोबा के अनेक गांवों जो पेयजल तथा कृषि पशुपालन हेतु नदी के पानी पर आश्रित हैं और जो मछुवारे, मल्लाह, मछली तथा नौका द्वारा अपनी जीविका अवगत करते हैं। वे भी बेजार हो जायेंगे।
8. डौढ़न के आसपास विस्थापित 10 गांवों के आदिवासी लोगों के साथ डूब क्षेत्र वाले पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क भी बाढ़ की तपिस में बह जायेगा और यहां वाइल्ड लाइफ (वन्य जीव संरक्षण) को सर्वाधिक खतरा पहुंचने की पूरी सम्भावना है।
9. बांध निर्माण के निकटवर्ती दुष्परिणामों से पर्यावरणीय प्रदूषण एवं परिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होने की स्थिति है।
10. सम्पूर्ण विनिवेश चूंकि निजी, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से होने की सम्भावना है। इसलिये सार्वजनिक क्षेत्रों में कारपोरेट कम्पनियों का एकाधिकार और व्यापारीकरण बढ़ेगा जिससे पानी व्यापार की वस्तु बनकर खुले बाजार में बिकने लगेगा।

अंततः प्राकृतिक नदियों का ऐसा अनर्गल गठजोड़ मौन एवं जंगलों को शांत खड़े बुन्देलखण्ड को विनाश एवं आने वाली कई पीढ़ियों के लिये जल त्र्रासदी की ओर ले जाने का निर्णायक गठजोड़ है।

 

 

 

 

हमारी मांगे व समाधान-


1. केन-बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना पर विराम लगाया जाये। जैसा कि विगत 16 अप्रैल 2011 को केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन राजमंत्री श्री जयराम रमेश द्वारा पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क को गठजोड़ से हानि पहुंचने के चलते अनापत्ति प्रमाण पत्र दिये जाने से मना किया है।
2. बुन्देलखण्ड में बड़ी बांध परियोजनाओं यथा केन बेतवा लिंक, अर्जुन सहायक बांध परियोजना महोबा, बांदा, हमीरपुर प्रस्तावित क्षेत्र से विस्थापित किसानों को उचित मुआवजा एवं पुनर्वास की माकूल व्यवस्था की जाये।
3. स्थायी रोजगार के समाधान जैसे बुन्देलखण्ड का शजर उद्योग, बांदा कताईमिल, बुनकर एवं शिल्प कला समृद्धि, बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री चित्रकूट, महोबा, छतरपुर पान उद्योग को पुर्नस्थापित करते हुए सर्वाधिक पलायन की मार से टूट चुके बुन्देलखण्ड को अखण्ड बुन्देलखण्ड पुर्ननिर्माण की तरफ ले जाया जाये।
4. बांदा, चित्रकूट, महोबा में लगातार जारी खनन, अवैध वन कटान को जनहित में पूरी तरह बंद किया जाये।

‘‘ नदियों को कल-कल बहने दो, लोगों को जिन्दा रहने दो ’’
निवेदक
प्रवास सोसाइटी, बुन्देलखण्ड रिसोर्स स्टडी सेन्टर, 1136/14, वन विभाग कार्यालय के पास एवं ओ.एफ.ए.आई. नार्थ, 51 सन सिटी, सिविल लाइन्स, बांदा (उ.प्र.) छतरपुर, म.प्र. मोबाइल न. 09425814405, 09621287464

 

 

 

 

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