केन बेतवा प्रोजेक्ट पर रॉयटर्स की पक्षपातपूर्ण, भ्रामक और मिथ्या रिपोर्ट

12 Sep 2017
0 mins read

1 सितंबर, 2017 को रॉयटर्स ने मोदी सरकार के केन-बेतवा प्रोजेक्ट को फोकस करते हुए नदियों को जोड़ने को लेकर एक रिपोर्ट (i) प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट को स्थानीय, राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मीडिया में प्रमुखता से जगह दी गयी। (यहाँ हम जो नोट दे रहे हैं, वह एक पत्र की शक्ल में था। यह पत्र रॉयटर्स व थॉमसन रॉयटर्स के पदाधिकारियों को विगत 2 सितंबर 2017 को भेजा गया था, लेकिन इस नोट के लिखे जाने तक रॉयटर्स की ओर से किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी।)

अफसोस है कि रॉयटर्स की उक्त रिपोर्ट पक्षपातपूर्ण, भ्रमित करने वाली और तथ्यगत तौर पर गलत है। रॉयटर्स की ओर से ऐसी रिपोर्ट की अपेक्षा नहीं थी।

यह रिपोर्ट देखी, तो मैंने रॉयटर्स के पत्रकार मयंक भारद्वाज को तुरंत फोन किया क्योंकि यह रिपोर्ट उन्होंने ही फाइल की थी। मैंने फोन पर उन्हें समझाने की कोशिश की कि रिपोर्ट किस तरह मिथ्या व भ्रमित करने वाली है, लेकिन उनकी तरफ से उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं आयी। तब मैंने रिपोर्ट के बाबत एक नोट फेसबुक व कुछेक ग्रुप पर डाल दिया। इस नोट के साथ उस दस्तावेज का स्क्रीन शॉट भी था, जिसमें बताया गया है कि केन-बेतवा प्रोजेक्ट को एनवायरन्मेंट क्लीयरेंस नहीं मिला है।

रॉयटर्स की उक्त रिपोर्ट में तथ्यगत त्रुटियों व भ्रामक हिस्सों के बारे में हम नीचे बता रहे हैं।

1. रिपोर्ट में कहा गया है : ‘रॉयटर्स को दो सूत्रों व दस्तावेज से पता चला है कि केन-बेतवा को जोड़ने-वाली स्कीम के लिये पर्यावरण व वन समेत आधा दर्जन क्लीयरेंस मिल चुके हैं।’ यह तथ्यगत तौर पर गलत दावा है और केन-बेतवा प्रोजेक्ट को एनवायरन्मेंट क्लीयरेंस लेटर व फाइनल फॉरेस्ट क्लीयरेंस लेटर नहीं मिला है। कानूनी तौर पर इस प्रोजेक्ट के लिये जरूरी एनवायरन्मेंट व फॉरेस्ट क्लीयरेंस लेटर मिला है या नहीं, इसकी जानकारी सही वेबसाइट, सम्बंधित मंत्रालय या उनसे ली जा सकती है, जो इस तरह की परियोजनाओं पर नजर रखते हैं। मसलन सैनड्रप। (अगर आप जानना चाहते हैं, कि हम केन-बेतवा प्रोजेक्ट को लेकर किस तरह लिख रहे हैं, तो आप https://sandrp.wordpress.com/ पर केन बेतवा टाइप कर देख सकते हैं।)

रिपोर्ट से साफ है कि रिपोर्टर ने ऐसा कुछ भी नहीं किया और स्रोत के दावे को जाँचे बिना और कैबिनेट नोट के आधार पर ही रिपोर्ट लिख दी। जैसा कि मैंने उस रिपोर्टर को समझाया था कि यह दावे की बात नहीं है बल्कि तथ्य की बात है कि आखिरकार प्रोजेक्ट के लिये जरूरी क्लीयरेंस लेटर है या नहीं।

वास्तव में वन्य व वन्यजीव क्लीयरेंस बनाम पर्यावरण अप्रेजल की शर्तों में कई तरह की कठिनाइयाँ व विरोधाभास हैं। मैंने पत्रकार को विस्तार से बताया था (इस सिलसिले में हमारे ब्लॉग भी देख सकते हैं) इस बारे में और यह भी कहा था कि प्रोजेक्ट को ये क्लीयरेंस फिलहाल नहीं मिलने वाले।

मैं यहाँ इसके कारणों के बारे में विस्तार से नहीं बताऊँगा, लेकिन अगर आप चाहेंगे, तो इस पर विस्तार से बता सकता हूँ।

2. रिपोर्ट में लिखा गया है : ‘सूत्रों के अनुसार मोदी की कैबिनेट दो हफ्तों में इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दे सकती है। इसके बाद मोदी साइट पर कंस्ट्रक्शन शुरू करने की हरी झंडी देंगे। यह साइट नई दिल्ली से करीब 805 किलोमीटर दूर स्थित है और फिलहाल निशानी के तौर पर वहाँ लाल रंग के कंक्रीट स्लैब रखे गये हैं।’ रपट के इस हिस्से से लगता है कि कैबिनेट अगले दो हफ्ते में इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दे देगी और प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो जायेगा। यह पूरी तरह गलत दावा है। प्रोजेक्ट को लेकर कई तरह के क्लीयरेंस लेटर अब तक जारी नहीं हुए हैं, जिनके बारे में हम यहाँ क्रमवार बता रहे हैं। (1) एनवायरन्मेंट क्लीयरेंस (ईसी) लेटर अभी तक नहीं मिला है। (2) फाइनल फॉरेस्ट क्लीयरेंस (एफसी) लेटर अब तक जारी नहीं हुआ है (3) वाइल्ड-लाइफ क्लीयरेंस लेटर की स्क्रुटनी चल रही है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी में भी इसको लेकर याचिका दायर की गयी है, जिसकी स्क्रुटनी होनी अभी बाकी है। (4) योजना जिन दो राज्यों में मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में लागू की जानी है, उनके बीच अब तक कोई समझौता नहीं हुआ है। दोनों राज्यों में बुनियादी बिंदु यानी पानी के बँटवारे को लेकर भी समझौता नहीं हुआ है। इस सिलसिले में टाइम्स ऑफ इंडिया की 2 सितंबर, 2017 की रिपोर्ट (ii) देखी जा सकती है। (5) एनवायरन्मेंट व फॉरेस्ट क्लीयरेंस अगर जारी होते हैं, तो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में इसे चुनौती दी जा सकती है, क्योंकि प्रोजेक्ट को लेकर आमजनों से विमर्श नहीं किया गया है और न ही इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर विश्वसनीय आकलन किया गया है।

ये सब तथ्यगत बातें हैं और इनसे जुड़े तथ्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। इन तथ्यों के बावजूद रिपोर्ट में यह बताना कि कैबिनेट की मंजूरी मिलते ही कंस्ट्रक्शन शुरू हो जायेगा, न केवल तथ्य के पैमाने पर गलत हैं बल्कि इससे यह भी संभावना पैदा होती है कि यह निहित स्वार्थों के हाथों की कठपुतली है।

3. रिपोर्ट बताती है : ‘नदीजोड़ योजनाओं का प्रस्ताव वर्ष 2002 में तत्कालीन भाजपा की नेतृत्ववाली सरकार ने दिया था। लेकिन, राज्य सरकारों में पानी के बँटवारे को लेकर समझौते पर गतिरोध और भारत की कुख्यात व बोझिल नौकरशाही के कारण कई तरह के क्लीयरेंस नहीं मिल पाये थे।’ पहली बात यह कि नदी जोड़ परियोजना का प्रस्ताव वर्ष 2002 में नहीं, बल्कि वर्ष 1980 में दिया गया था। वर्ष 1981-1982 में इसको लेकर नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) (iii) का गठन किया गया था, जिसने इस परियोजना को लेकर शोध शुरू किया।

पत्रकार ने सही लिखा है कि पानी के बँटवारे को लेकर मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच अब तक समझौता नहीं हुआ है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उन्हें यह पता नहीं! पत्रकार लिखते हैं कि क्लीयरेंस की प्रक्रिया भारत की कुख्यात बोझिल नौकरशाही में फँसकर रह गयी। इससे पता चलता है कि उन्हें (रिपोर्टर को) क्लीयरेंस की प्रक्रिया या पर्यावरणीय शासन प्रणाली के बारे में बेहद कम जानकारी है। सच तो यह है कि पर्यावरण व वन मंत्रालय पर्यावरण को लेकर कभी भी जागरूक नहीं रहा और बाँध तथा नदी घाटी परियोजनाओं को लेकर क्लीयरेंस देने का इसका रिकॉर्ड शत-प्रतिशत रहा है।

एनवायरन्मेंट क्लीयरेंस के लिये केन-बेतवा प्रोजेक्ट वर्ष 2015 में पर्यावरण व वन मंत्रालय के पास आया और वर्ष 2016 में उसे क्लीयरेंस देने का सुझाव दिया गया।

यहाँ यह भी बता दें कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने धमकी दी थी कि अगर प्रोजेक्ट को क्लीयरेंस नहीं मिलता है, तो वह पर्यावरण व वन मंत्रालय का विरोध करेंगी। उनकी इस धमकी के बाद ही क्लीयरेंस दिया गया था।

काश, पत्रकार सीरियस होते और इन प्रक्रियाओं की तह में जाकर समझने की कोशिश करते कि आखिर इन मंत्रालयों में होता क्या है।

4. रिपोर्ट कहती है : ‘अथॉरिटी का कहना है कि उनके पास बाघों व गिद्धों की सुरक्षा के लिये भी योजना है।’ यहाँ भी अथॉरिटी के दावे को रिपोर्ट में शामिल करने की जगह पत्रकार को दावे की जाँच करनी चाहिए थी। उन्हें देखना चाहिए था कि एनवायरन्मेंट मैनेजमेंट प्लान तैयार है या नहीं और इस प्लान में क्या-क्या है। उन्हें यह पता लगाना चाहिए था कि एनवायरन्मेंट मैनेजमेंट प्लान अभी भी प्रतिपादित ही हो रहा है।

सच तो यह है कि पर्यावरण व वन मंत्रालय की एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी ने एनयवायरन्मेंट मैनेजमेंट प्लान तैयार होने के बाद उसकी स्वतंत्र समीक्षा करने की बात कही है! जहाँ तक गिद्धों, घड़ियालों, मछलियों और केन नदी की बात है, तो इनको लेकर कोई एनवायरन्मेंट मैनेजमेंट प्लान नहीं है।

5. रिपोर्ट की पहली लाइन ‘वर्षों की खींचतान’ अपने आप में समस्यात्मक प्रतीत होती है। लगता है कि पत्रकार बुरी तरह चाहता था कि प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो जाये और वह इस बात से बेहद नाराज था कि उसकी इच्छा के विरुद्ध सरकार बिना वजह देर कर रही थी!

इससे यह भी पता चलता है कि इस तरह की परियोजनाओं को जिन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, उनके बारे में पत्रकार को बेहद कम जानकारी है।

मैंने पत्रकार से कहा कि इनमें से अधिकांश मामले तथ्य से जुड़े हैं न कि दावों या नजरिये से। रॉयटर्स से उम्मीद रहती है कि उसकी रिपोर्ट में सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध तथ्यों को सही रूप में रखी जायेगी, न कि केवल अथॉरिटी के दावों को प्रमुखता दी जायेगी। खासकर मामला जब बहुत महत्त्वपूर्ण हो, तो यह आशा रहती है कि रिपोर्टर तथ्यों को विश्वसनीय स्रोतों से जाँचने की कोशिश करेगा। इस मामले में साफ तौर पर ऐसा नहीं हुआ है।

हेडलाइन में प्रोजेक्ट पर होने वाले खर्च व अन्य तथ्यों समेत रिपोर्ट के दूसरे समस्यात्मक पहलुओं के बारे में भी विस्तार से बात रख सकता हूँ, लेकिन मैं यहीं विराम लूँगा।

थॉमसन रॉयटर्स के सिद्धांत (iv) में लिखा है : ‘विश्वभर के पाठक हमसे उम्मीद करते हैं कि हम उन्हें विश्वसनीय व निष्पक्ष खबर व सूचना देंगे। इसका मतलब है कि हमें अपनी आजादी व अखंडता को बरकरार रखने की विशेष जरूरत है और किसी व्यक्ति या हितों के नियंत्रण से होने वाले पक्षपात से बचना है।’

अफसोस की बात है कि रिपोर्ट में इन सिद्धांतों का पालन नहीं हुआ है क्योंकि इसमें भरोसेमंद, निष्पक्ष व तथ्यात्मक रूप से सही खबर व सूचना देने की कोशिश नहीं की गयी है। पूरी रिपोर्ट घोर रूप से पक्षपाती है और एक बड़े निवेश वाली परियोजना के पक्ष में लिखी गयी है, जिसको मौजूदा सरकार खास फायदे के लिये हर हाल में पूरा करना चाहती है। उम्मीद है कि रॉयटर्स इस मामले में उचित कदम उठायेगा।

हिमांशु ठक्कर (ht.sandrp@gmail.com)

अतिरिक्त त्रुटियाँ जे. वी. ग्रुईसन ने अपने फेसबुक पेज में गिनायी हैं।

अन्तरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की सूचना आश्चर्यजनक रूप से गलत है और रॉयटर्स की रिपोर्ट बुनियादी तथ्यों को लेकर भी भ्रमित करती है। एजेंसी के पत्रकार को निराशानजक रूप से इस मुद्दे की समझ नहीं है। ‘भारत में बाढ़ के बीच मोदी की 83 बिलियन डॉलर की नदी जोड़ योजना शुरू होने को तैयार’ इस मुद्दे पर दूसरे समाचार माध्यमों की तुलना में यह रिपोर्ट सबसे ज्यादा गलत है, जबकि पिछले दो वर्षों में गलत तथ्यों पर आधारित खबरें देने को लेकर प्रतिस्पर्द्धा बढ़ी है। कोई भी व्यक्ति ऐसी न्यूज एजेंसी पर कैसे भरोसा कर सकता है, जो इतना सतही होमवर्क करता हो…

बहुत सामान्य तथ्य, मसलन केन और बेतवा नदी को जोड़ने वाली नहर की लंबाई के बारे में लिखा गया है कि इसकी लंबाई 22 किलोमीटर (14 माइल) है जबकि ईआइए के मुताबिक इसकी लंबाई 218.695 किलोमीटर (करीब 135 माइल) है।

रॉयटर्स कहता है कि केन-बेतवा प्रोजेक्ट के पहले चरण में ‘हजारों मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा।’ लेकिन डीपीआर और ईआइए के अनुसार महज 60 मेगावाट बिजली क्षमता होगी! यह ट्रंप के क्राउंड असेसमेंट से भी ज्यादा अतिश्योक्तिपूर्ण है!

रॉयटर्स आगे बताता है, ‘बाँध बनाने के लिये 6.5 प्रतिशत सुरक्षित वन क्षेत्र हटाने की सरकार की योजना है।’ वास्तव में टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में बाँध बनना है और करीब-करीब पूरा डूब क्षेत्र (90 वर्ग किलोमीटर) टाइगर रिजर्व के भीतर है।

वन विभाग के अधिकारियों ने दिखाया है कि इस प्रोजेक्ट के कारण 200 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र नष्ट हो जायेगा, जो नेशनल पार्क का 30 प्रतिशत (यह पन्ना टाइगर रिजर्व का सबसे संवेदनशील और मुख्य क्षेत्र) है। यह योजना बुन्देलखण्ड के बाघों के लिये शवगृह बन जायेगी।

पत्रकार ने ‘दो वर्षों की अल्प बारिश’ के बाद बाढ़ की बात कही है। आखिर वह रहते कहाँ हैं? पिछले वर्ष कम से कम मध्य भारत में पिछले एक दशक में मॉनसून की सबसे अधिक बारिश हुई।

हिमांशु ठक्कर ने नदी जोड़ परियोजना में देरी और क्लीयरेंस को लेकर रिपोर्ट में लिखी गयी वाहियात बातों पर काफी कुछ साफ कर दिया है। लेकिन, यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि बोझिल नौकरशाही और राज्यों में कशमकश ही मुख्य वजहें नहीं थीं कि यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी। कांग्रेस सरकार का रवैया भाजपा की सरकार से बिल्कुल अलग था। योजना के सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इसे ‘विध्वंसक’ करार दिया था।

सचमुच, पारिस्थितिक व समाजशास्त्र के नजरिये से भी देखें, तो यह किसी आपदा से कम साबित नहीं होगी।

केन-बेतवा लिंक का सूखा और बाढ़ से कोई लेना-देना नहीं है। दोनों नदियाँ एक समान क्षेत्रों से ही निकलती हैं और दोनों की जलवायु एक तरह की है। सच तो यह है कि ये देश के सबसे अधिक सूखा प्रवण क्षेत्रों में से एक से पानी लेती है और दूसरे सूखा प्रवण क्षेत्र को देती है।

और वैसे भी तमाम तर्क बताते हैं कि बाँध बाढ़ को रोकने की जगह बाढ़ के कारण बनते हैं। बाँध का युग समाप्त हो चुका है। अमेरिका प्रतिवर्ष 60 से 70 बाँधों को खत्म कर रहा है, फिर भारत में क्यों अधिक से अधिक बाँध बनाने का लक्ष्य रखा जा रहा है?

जे वी ग्रुईसेन (joannavg@gmail.com)

1 सितंबर, 2017 को फेसबुक व ई-ग्रुप में प्रसारित नोट :
बेहद मुर्खतापूर्ण व तथ्यगत रूप से गलत रिपोर्ट।
http://in.reuters.com/article/india-rivers/modis-87-billion-river-linking-gamble-set-to-take-off-as-floods-hit-india-idINKCN1BC3HJ

मैंने उस पत्रकार को फोन किया जिसने यह रिपोर्ट लिखी थी। मैंने पत्रकार से कहा कि एनवायरन्मेंट क्लीयरेंस नहीं है, फाइनल फॉरेस्ट क्लीयरेंस नहीं है, सशर्त वाइल्ड लाइफ क्लीयरेंस की सीईसी स्क्रुटनी कर रही है व इसके बाद सुप्रीम कोर्ट इसकी स्क्रुटनी करेगी और मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के बीच समझौता भी नहीं हुआ है। एनवायरन्मेंट क्लीयरेंस की सिफारिश (एनवायरन्मेंट क्लीयरेंस लेटर जारी होना अभी बाकी है, इस संदर्भ में पर्यावरण व वन मंत्रालय की वेबसाइट का स्क्रीनशॉट देखा जा सकता है) अब वैध नहीं रही क्योंकि फॉरेस्ट व वाइल्डलाइफ क्लीयरेंस की सिफारिश वन/संरक्षित क्षेत्र से पावर कंपोनेंट को बाहर ले जाने की शर्त पर की गयी है। लेकिन, एनवायरन्मेंट क्लीयरेंस की सिफारिश उस प्रोजेक्ट के लिये है जिसके पावर कंपोनेंट वन/संरक्षित क्षेत्र के भीतर हैं। प्रोजेक्ट को लेकर कनाल व निचले हिस्से के प्रभावित क्षेत्रों में जन सुनवाइयाँ तक नहीं हुई हैं, जबकि यह होना चाहिए और एएफसीएल द्वारा किया गया एनवायरन्मेंट इंपैक्ट असेसमेंट (ईआईए) अधूरा, गलतियों से भरा अप्रामाणिक प्रभाव आकलन है।

मैंने उन्हें आगे कहा कि रिपोर्ट प्रकाशित करने से पहले सम्बंधित मंत्रालय व जो लोग इन पर नजर रख रहे हैं, उनके तथ्यों की जाँच करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि वह मंत्रालय से क्लीयरेंस की सत्यता की जाँच करेंगे। (इसका मतलब है कि उन्होंने रिपोर्ट प्रकाशित करने से पहले इसकी जाँच नहीं की थी।)

उन्होंने बताया कि एक महीने तक इस रिपोर्ट पर काम किया गया। इस पर मैंने कहा कि अगर आपके पास इतना वक्त था, तो दावों की जाँच की जानी चाहिए थी।

अपने बचाव में उन्होंने कहा कि कैबिनेट नोट में क्लीयरेंस का दावा किया गया और पूछा कि क्या क्लीयरेंस नहीं मिलने के बावजूद कैबिनेट नोट में सरकार ऐसा दावा कर सकती है? मैंने जवाब दिया कि निश्चित तौर पर सरकार ऐसा करती है। फ्री प्रेस रिपोर्ट (V) के अनुसार पर्यावरण व वन मंत्रालय के सूत्रों ने बताया है कि जल संसाधन मंत्रालय ने पार्लियामेंट को बरगलाया है और कैबिनेट नोट तो वैधानिक दस्तावेज भी नहीं है।

मैंने उनसे आगे कहा कि एक अच्छे रिपोर्टर को इन तथ्यों की जाँच करनी चाहिए और अगर तथ्यों में गड़बड़ी पायी जाती है, तो उसे उजागर किया जाना चाहिए, लेकिन वह इसको लेकर इच्छुक नहीं दिखे। यह सच में खामियों से भरी एक योजना को लेकर समस्यात्मक रिपोर्ट है। यह खयाल जेहन में कौंधता है कि अगर रॉयटर्स ऐसा करता है, तो दूसरे क्या क्या कर सकते हैं?

पोस्ट स्क्रिप्ट : 1. उपरोक्त तथ्यों को मैंने पत्र की शक्ल में रॉयटर्स व थॉमसन रॉयटर्स के कुछ पदाधिकारियों को 2 सितंबर, 2017 को भेजा।

2. 3 सितंबर, 2017 को संजीव मिगलानी (विशेष संवाददाता, थॉमसन रॉयटर्स, नई दिल्ली) ने निम्नलिखित जवाब दिया। जवाब यूँ है:

‘लेख को लेकर अपनी चिंता जाहिर करने के लिये आपको धन्यवाद हिमांशु।’

हमने दोबारा लेख को चेक किया है जैसा कि रिपोर्ट लिखे जाने के बाद एक महीने तक हमने कई बार चेक व संपादन किया था। परियोजना के अनुमोदन का केंद्रीय बिंदु जल संसाधन मंत्री संजीव बलियान की तरफ से आया है। उन्हें हमने कोट किया है कि सभी तरह के क्लीयरेंस मिल चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अनुमोदन पिछले साल आया है, जो स्टोरी के मुख्य मुद्दे का समर्थन करता है कि मौजूदा प्रशासन नदी जोड़ योजना को आगे बढ़ाने पर जोर दे रहा है।हमारे दूसरे स्रोत व कैबिनेट नोट से भी मंत्री द्वारा दी गयी जानकारी की पुष्टि हुई है।

हम सरकार के मंत्री व कैबिनेट नोट लिखने वालों की ओर से भी कुछ दायित्व की उम्मीद करते हैं, लेकिन किसी भी तरफ से स्टोरी के कंटेंट को लेकर किसी तरह की चुनौती नहीं दी गयी है।

इन तथ्यों के मद्देनजर रॉयटर्स अपनी रिपोर्ट के साथ खड़ा है।

3. उसी दिन यानी 3 सितंबर, 2017 को मैंने रॉयटर्स/थॉमसन रॉयटर्स के उन्हीं पदाधिकारियों को निम्नलिखित जवाब दिया, जिन्हें पहले लिखा था: ‘जवाब के लिये शुक्रिया’।

सबसे पहले तो मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि पत्र का कंटेंट (थोड़ा-बहुत संशोधन के साथ) हमारे ब्लॉग https://sandrp.wordpress.com/2017/09/02/reuters-biased-misleading-erroneous-reporting-about-ken-betwa-project/ प्रकाशित किया गया है। मैं वहाँ आपकी प्रतिक्रिया और अपने जवाब के साथ जोड़ दूँगा।

अब यह साफ हो गया है कि रॉयटर्स को मंत्री के बयान और कैबिनेट नोट पर गजब का भरोसा है। इतना भरोसा कि वे तथ्यों की जाँच करने की जहमत भी नहीं उठाना चाहते हैं, जबकि तथ्यों की जाँच करना बेहद आसान है। यहाँ तक कि भ्रामक तथ्यों की ओर ध्यान दिलाने के बावजूद रॉयटर्स इन पर विचार करने को तैयार नहीं है, हालाँकि मंत्री का बयान और कैबिनेट नोट कुछ और ही कह रहा है !

यह मजेदार बात है कि जिस मीडिया संगठन के लिये जनता के प्रति जवाबदेही और स्वतंत्रता का सिद्धांत, भरोसेमंद व तथ्यपरक खबरें व सूचना, आजादी व अखंडता की रक्षा सर्वोपरि है और जो किसी भी तरह के पक्षपात से बचता है, उसे मंत्री के बयान पर अजब का भरोसा है।

आपका संगठन व आपकी वेबसाइट कहती है, ‘यह आजादी, अखंडता को बरकरार रखने, सूचना व समाचार संग्रह में पक्षपात से आजादी को लेकर समर्पित है।’ पाठक इस रिपोर्ट और आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर यह तय करेंगे, आप इन सिद्धांतों को कितना आत्मसात करते हैं।

साथ ही साथ यह भी अजब है कि आपने प्वाइंट दर प्वाइंट मुद्दों पर मेरे पत्र का जवाब देने की जहमत नहीं उठायी, बल्कि सरकारी दस्तावेज की तर्ज पर मंत्री के बयान पर भरोसा जताने की बात कह कर पल्ला झाड़ लिया। इस रवैये से भी बहुत कुछ पता चल जाता है।

यदि रॉयटर्स या थॉमसन रॉयटर्स या आप में कोई भी इस सिलसिले में अपनी तरफ से कुछ भी जोड़ना चाहते हैं, अथवा इस मामले में कोई कदम उठाने का निर्णय लेते हैं, तो उम्मीद रहेगी कि मुझे इसकी सूचना दी जायेगी, अगर ऐसा संभव हो।

4. रॉयटर्स/रॉयटर्स थॉमसन की तरफ से अगर दोबारा कोई जवाब आता है तो उसे भी हम यहाँ अपडेट कर देंगे।

आखिरी नोट्स :
[i] http://in.reuters.com/article/india-rivers/modis-87-billion-river-linking-gamble-set-to-take-off-as-floods-hit-india-idINKCN1BC3HJ
[ii] http://timesofindia.indiatimes.com/city/bhopal/uma-bhartis-tweet-reveals-row-over-ken-betwa-river-linkage-project/articleshow/60313477.cms
[iii] http://www.nwda.gov.in/
[iv] https://www.thomsonreuters.com/en/about-us/trust-principles.html
[v] http://www.freepressjournal.in/india/river-interlinkingdid-uma-bharti-mislead-ls/1125654

अनुवाद – उमेश कुमार राय

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading