कह रही हर बार ये अपनी नदी

15 Dec 2012
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कब से बह रही, यार ये अपनी नदी
कह रही हर बार ये अपनी नदी।

शोर है, गम्भीरता का, रंग है,
एक जीवित व्यक्ति है अपनी नदी।

काट डाले हाथ और फिर पैर उसके,
एक सिसकता गांव है, अपनी नदी,

औरतों के पेट तलवारों से चीरे
दंगों में फंसी हर सांस है, अपनी, नदी।

पंचतारा होटलों में बैठ कर,
बेचते हैं हुकमरां, अपनी नदी।

मैं तेरी हूं, मैं तेरी हूं, ये कहती जा रही,
अपनी नदी, अपनी नदी, अपनी नदी।

ये जमीं, ये पानी और जंगल
धड़कन, समुंदर की है ये, अपनी नदी।

सूरज हजार बार आया और गया,
आग के आगोश में अपनी नदी।

खतरे में है, धरती और आसमां
लहर की झंडियां लहरा रही, अपनी नदी।

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