कहां सुधरी सफाईकर्मियों की हालत?

Sewage
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चेन्नई में 24 मई 2003 और 17 अक्टूबर 2008 के बीच 17 सीवर कर्मचारियों की मौत, मैनहोलों या गटर की सफाई करते समय गंदी जहरीली गैस चढ़ने से हो गई। सफाई कर्मचारियों की ट्रेड यूनियनों का कहना है कि यह गिनती पिछले दो दशकों में 1,000 के नजदीक पहुंचती है।
.मशहूर भारतीय फिल्मकार सत्यजित रे ने अपनी एक फिल्म अमेरिका में प्रदर्शित की तो पहले शो में ही बहुत से अमेरिकी फिल्म बीच में ही छोड़कर आ गए क्योंकि सत्यजीत रे ने फिल्म के एक सीन में भारतीय लोगों को हाथों से खाना खाते हुए दिखाया था जिसे देखकर उन्हें वितृष्णा होने लगी थी। लेकिन अगर उन्हें इंसान के हाथों से सीवरेज की सफाई होती दिखला दी जाती तो शायद वे बेहोश हो जाते। सिर्फ अमेरिकी ही क्यों, इस नर्क के दर्शन से तो बहुत से भारतीय भी बेहोश हो जाएंगे। लोग अपने घरों में साफ-सुथरा टॉयलेट इस्तेमाल करते हैं लेकिन वे शायद ही कभी सोचते हों कि उनके इस टॉयलेट को साफ रखने के लिए इस दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो अपनी जान दे देते हैं।

सिर्फ इसलिए कि दूसरे लोग एक साफ-सुथरी, ‘‘हाइजेनिक’’ जिंदगी जी सकें। बहुत सारी जिंदगियां इस तरह की भी हैं जो हर रोज इंसान की गंदगी से भरे गटरों-मैनहोलों आदि में उतरती हैं। महज 90 या हद से हद 110 रुपये की दिहाड़ी कमाने के लिए। पिछले दिनों चेन्नई म्यूनीसिपल कारपोरेशन संबंधी आई रिपोर्टे कुछ ऐसे ही तथ्य पेश करती हैं। चेन्नई मेट्रो जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड का कहना है कि 24 मई 2003 और 17 अक्टूबर 2008 के बीच 17 सीवर कर्मचारियों की मौत, मैनहोलों या गटर की सफाई करते समय गंदी जहरीली गैस चढ़ने से हो गई।

सफाई कर्मचारियों की ट्रेड यूनियनों का कहना है कि यह गिनती पिछले दो दशकों में 1,000 के नजदीक पहुंचती है। यही नहीं जो कामगार जिंदा भी हैं, वे हर समय कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड और मीथेन जैसी जहरीली गैसों के सीधे संपर्क में रहने से कई प्रकार की सांस की बीमारियों के शिकार हैं। यही नहीं, दस्त, टाइफाइड और हैपीटाइटस-बी इन कामगारों में पाये जाने वाले सामान्य रोग हैं। ई कौली नामक बैक्टीरिया पेट के बहुत गंभीर रोगों का जन्मदाता है और क्लोसटरीडम टैटनी नामक बैक्टीरिया खुले जख्मों के सीधे संपर्क में आने से टिटनेस का कारण बनता है। ये सारे बैक्टीरिया गंदे पानी में आमतौर पर पाए जाते हैं और चमड़ी के रोग इतने हैं कि गिने नहीं जा सकते।

चेन्नई के 5.63 लाख घरों के कनेक्शनों वाला 78,861 मैनहोलों सहित 2,671 किलोमीटर लंबे सीवरेज नेटवर्क को संभालने के लिए सिर्फ 4,000 ही कर्मचारी हैं जबकि 1978 में इनकी गिनती 11,000 थी।

इस सारी प्रक्रिया में जो सबसे अमानवीय बात है वह यह है कि आज भी मैनहोलों को साफ करने के लिए सफाई कर्मचारी उनके अंदर उतरते हैं और सारी सफाई हाथों से करते हैं।

इंप्लॉयमेंट ऑफ मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड कंस्टरक्शन ऑफ ड्राई लैटरीन्ज (प्रोविजनल) एक्ट 1993 के तहत मानवीय हाथों से मैनहोल या गटर तो क्या घरों के सैप्टिक टैंक भी साफ करना गैर-कानूनी है। लेकिन हमारे देश के अन्य सभी कानूनों की तरह यह कानून भी महज कागज़ी ही है। इस कानून की धज्जियां उड़ते हुए आप किसी भी मैनहोल पर चलते काम के समय देख सकते हैं। यहां तक कि इन सफाई कर्मचारियों को सुरक्षा के इन्तज़ाम तक मुहैया नहीं करवाए जाते। कानूनन ऑक्सीजन सिलण्डर हर समय सफाई कर्मचारी के पास होना चाहिए, लेकिन भ्रष्टाचार के चलते यह हो पाना संभव ही नहीं है।

.बड़ी गिनती में सफाई कर्मचारी ठेके पर भर्ती किए जाते हैं। इतने बड़े शहर चेन्नई में मैनहोलों के बीच की सिल्ट साफ करने के लिए अगर उन्नत तकनीक अपनायी जाये तो होने वाली मौतें कम की जा सकती हैं। वैसे तो तमिलनाडू सरकार ने पिछले कई वर्षो से अण्डरग्राउण्ड सीवरेज स्कीम का शोशा भी छोड़ रखा है। जिसके तहत सभी सीवरेज महकमे का मशीनीकरन किया जायेगा। इस स्कीम की हवा तभी निकलती दिखती है जब यह पता चलता है कि 148 नगर निगमों में से सिर्फ 6 नगर निगमों में ही यह स्कीम पूरी हो पाई है।

उपरोक्त दिए गए तथ्यों में चेन्नई के सफाई कामगारों की हालत का ही पता नहीं चलता बल्कि यह तो पूरे देश के सफाई कामगारों की जिंदगी की एक धुंधली सी तस्वीर है जो हमेशा खूबसूरत शहरों की परतों के नीचे दबी रहती है। असल तस्वीर इससे भी कहीं भयानक है।
 

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