कहावतें/लोकोक्तियाँ

1. सेत बरसें खेत भर, कारे बरसें पारे भर।
जब उठें धुआंधारे, तब आंय नदिया नारे।

2. तीतर पारवी बादरी, विधवा काजर देय।
वे बरसे वे घर करें, ईमें नयी सन्देह

3. धूनी दीजे भांग की, बबासीर नहीं होय।
जल में घोलो फिटकरी, शौच समय नित धोय।

4. निन्नें पानी जो पियें, हर्र भूंजके खांय।
दूदन ब्यारी जो करें, तिन घर वैद्य न जॉय।

5. अधजल गगरी छलकत जाय।
भरी गगरिया चुप्पे जाय।

6. बन्दर जोगी अगिन जल, सूजी सुआ सुनार।
जे दस होंय ना आपनें, कूटी कटक कलार।

7. चन्दा निकरे बादर फोर, असाढ़ मास अंधियारी
तीन मास कौ वर्षा जोर, सवत्तर रये जलधारी।

8. नार सुहागन घट भर ल्यावै, दध मछली सन्मुख जो आवै।
सामें गऊ-चुखावै बच्छा, ऐई सगुन है सबमें अच्छा।

9. जेठ बदी दसमीं दिनां, जो शनिवासर होई।
पानी रहे न धरनी पै, विरला जीवै कोई।

10. कान-आँख-मोती-मतौ बासन-बाजौ ताल।
गढ़ मठ डौड़ा जंत्र पुनि, जै फूटे बेहाल।

11. मन मोती मूंगा मतो, ढ़ोगा मठ गढ़ ताल।
दल-मल बाजौ बन्धुआ, घर फुटे वेहाल।

12. वेल पत्र शाखा नहीं, पंक्षी बसे ना डार।
वे फल हमखों भेजियो, सियाराम रखवार।

13. माता-बाकी जल बसे, पिता बसे आकाश।
जूने कहो तो भेजदें, नये आंहें कातक मास।

14. पय-पान-रस-पानहीं, पान दान सम्मान।
जे दस मीटे चाहिए, साव-राज-दीवान।।

15. दच्छिन वयें जल-थल अलमीरा, ताइ सरूप जूझे बड़ बीरा।
मघा न बरसे भरे न खेत, माई न परसे भरे न पेट।

16. लाल बरसे ताल भरैं, सेत बरसै खेत भरै
कारे बरसें पारे भर, जब उठे धुंआ धारे
तब आवै नदिया नारे।

17. आगे रवि, पीछे चले, मंगल जो आषाढ़।
तो बरसे अनमोल हो, धरती उमगे बाढ़।

18. अषाढ़ मास अधियारी, चंदा निकरे जल-धारी।
चंदा निकरे बादर फोर, तीन मास को वर्षा जोग।

19. चौदस पूनो जेठ की, वर्षा बरसे जोय।
चौमासो बरसे नहीं, नदियन नीर न होय।

20. फागुन मास चले पुखाई, तब गेंहू के गिरूवा धाई।
नीचे आद ऊपर बदराई, पानी बरसे पुनि-पुनि आई।
तब गेहूं को गिरूवा खाई।

21. निन्नें पानी जो पियें, भूंज हर्र नित खांय।
दूध ब्यारी जे करें, उन पर बैध न जांय।

22. कमला नारी कूपजल, और बरगद की छांय।
गरमी में शीतल रहें शीतल में गरमाय।

23. काबुल गये मुगल बन आये, बोलन लागे वानी।
आव-आव कर मर गये, खटिया तर रओ पानी।

24. कोदन की रोटी, और कल्लू लुगाई।
पानी के मइरे में, राम की का थराई

25. चित्रा बरसे तीन गये, कोदों तिली कपास।
चित्रा बरस तीन भये, गेहूं शक्कर मास।

26. पानी को धन पानी में,
नाक कटे बेईमानी में।

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