किसान भुइयांदीन का अपना तालाब

किसान भुइयांदीन का अपना तालाब
किसान भुइयांदीन का अपना तालाब
भुइयांदीन को अपने जीवन में परिवार की रोटी के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। पुरखों की जमीन-और रिहायशी मकान का लालच भुइयांदीन को बाहर जाने के लिए बाधक रहा। जब भी भुइयांदीन परदेश जाने की बात सोचता तो अपनी खेती घर-बार बर्बाद होने का भय सामने आ खड़ा होता। भुइयांदीन ने अपने परिवार को रोटी-कपड़ा मुहैया कराने के लिए क्या-क्या नहीं किया। अपने गांव से लेकर शहर में जाकर खाली पेट दिन-दिन भर मजदूरी का ही तो असर है कि पचपन की उम्र में भी आंखों की रोशनी जाती रही। 16 जनवरी/2014/ बुंदेलखंड में जनपद महोबा के चिचारा गांव में किसान भुइयांदीन का अपना तालाब बन गया है। अब वह पहले की तरह गुमसुम होकर खेत की मेड़ में नहीं,बल्कि खेत में अपनी लाठी के सहारे घूम-घूम कर अपनी हरी-भरी फसल को देखकर खुश होता है। भुइयांदीन ने अपने जीवन की बहुत बरसाते देखी हैं, जिसके पानी से उसका खेत पानीमय हो जाता था। होता क्यों नहीं, खेत के पूर्वी किनारे में एक बड़ी बन्धी जो सरकार ने डलवाई थी। बन्धी से खेत में नमी पर्याप्त रहती थी और कुंआर के महीने में उस पानी को नाले में बहाकर फसल की बोआई आसानी से हो जाती रही है। पर फसल की कटाई करके जब भी भुइयांदीन घर पर लाता तो निराशा ही हाथ लगती। भुइयांदीन भी यह सोच कर सब्र कर लेता कि मैं अकेला किसान तो नहीं जिसके खेत में फसल कम हुई। भुइयांदीन को अपने गांव के दर्जनों किसानों की उपज का हाल पता था। कि किसके खेत में कितना अनाज पैदा हुआ है।

किसान भुइयांदीन को अपने दो एकड़ खेत में कभी भी लागत और मेहनत से अधिक उपज नहीं मिल पाई। ऊंची बन्धी के नीचे अपने खेत होने का फक्र जरूर था, पर महज कुछ ही बरस तक। जब उत्पादन में कोई इज़ाफा नहीं दिखा तो बन्धी-बन्धान किसान होने की खुशी भी जाती रही। अपने खेत में भुइयांदीन दो-तीन कुन्तल अनाज की उपज ले पाता था। अच्छी फसल हुई तो चार-पांच कुन्तल गेहूं-चना (बेर्रा) मिलाकर दो एकड़ खेत अक्सर तो इतनी भी फसल नहीं हो सकी जिससे लागत ही हाथ लग पाती।

भुइयांदीन को अपने जीवन में परिवार की रोटी के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। पुरखों की जमीन-और रिहायशी मकान का लालच भुइयांदीन को बाहर जाने के लिए बाधक रहा। जब भी भुइयांदीन परदेश जाने की बात सोचता तो अपनी खेती घर-बार बर्बाद होने का भय सामने आ खड़ा होता। भुइयांदीन ने अपने परिवार को रोटी-कपड़ा मुहैया कराने के लिए क्या-क्या नहीं किया। अपने गांव से लेकर शहर में जाकर खाली पेट दिन-दिन भर मजदूरी का ही तो असर है कि पचपन की उम्र में भी आंखों की रोशनी जाती रही। अब तो आंखों की टिमटिमाती रोशनी के सहारे लाठी के जरिये खेत तक जाने में भी कठिनाई होती है। भुइयांदीन को चिंता होने लगी थी कि इस खेत के भरोसे परिवार का गुजर-बसर कैसे होगा। उसे अपनी आंखों की रोशनी की कमी से मजदूरी भी नहीं मिलती। भुइयांदीन की पत्नी और बच्चे कभी-कभी मजदूरी से कुछ कमा लाते। कभी-गांव में कुछ काम मिलता तो उसे कर लेते।

ऊहा-पोह में फंसी जिंदगी के चलते अचानक उसके खेत में तालाब बनाने वाले पहुंच कर तालाब के फायदे समझाए तो आसानी से बात समझ में आ गई । 2013 मई-जून में भुइयांदीन की हामी के साथ तालाब बनकर तैयार हो गया। 20x20x3 मीटर के निर्मित तालाब में वर्षा में ऊपर तक पानी भरकर हिलकोरे मारने लगा तो किसान भुइयांदीन के मन में अपने भविष्य की खुशहाली नजर आने लगी। अब बन्धी-बन्धान वाले किसान भुइयांदीन अपना तालाब बनाने वाले किसान बन गए हैं। जिनके खेत पर बोई फसलों को दो पानी देने की अहमियत भरा उसका तालाब आंखों के सामने टिमटिमाती रेाशनी में भी नजर आने लगा था। किसान भुइयांदीन के परिवार को भी खुशहाली की आस बनी है।

डूबते को तिनके का सहारा -बना अपना तालाब

किसान भुइयांदीन के परिवार को अब तालाब डूबते में तिनके का सहारा नजर आ रहा है। वर्षा का एकत्र पानी उनके दो एकड़ खेत की फसल को पहली बार पानी दे रहा था तो पूरा परिवार को अपने किसान होने का बेहतर अहसास करा रहा था। उन्हें इस बात का पता है। कि इस मिट्टी में फसल को एक पानी देने पर उसका उत्पादन दो-तीन गुना बढ़ जाता है। खेत पर ही आलू-बैगन का भरता कण्डे की आग में पकी आँगकड़ी खाकर बच्चों को खेलते देख भुइयांदीन को अपना बचपन याद आ गया। जब अपने पिता के साथ बोवाई के समय खेत पर माँ खिलाती थी। भुइयांदीन बताते हैं कि तालाब के पानी से हमें पहली बार कई तरह के फायदे दिख रहे हैं। इस पानी से अब हम अपने परिवार की जरूरत वाली फसलें पैदाकर रोटी का इंतज़ाम कर सकेंगे। भुइयांदीन को पहले कभी तालाब से होने वाले बदलाव का न तो पता था न देखा था। जो आज अपने तालाब के होने पर पता चल रहा है। भुइयांदीन ने कुछ वर्ष पहले एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर खेत में ठहरने का मन बनाया था। पर यह स्वप्न पानी के बिना अधूरा ही रहा। पर अब वह अपने खेत पर रहने का इंतज़ाम कर अपनी फसलों की देख-रेख करने लिए प्रयासरत है।

किसान का मानना है कि खेत पर रहने से धरती माता को भी अपने सपूत पर तरस आता है। जिससे भरपूर फसलें देती है। इस भावना के पीछे का विज्ञान यह है कि किसान का एक-एक पल अपनी खेती में संचित होता है। हर फसल उसकी नजरों के सामने उगती-बढ़ती है। फसल को कब-क्या जरूरत है किसान को पता होता है। जिसे वह समय पर दे पाता है। ऐसी स्थिति मे वाजिब सी बात है कि खेत की फसल से तृप्ति मिलती है। अपनी हर एक मेहनत के साथ-साथ उत्पादन का एक-एक दाना जुड़ता है। किसान के खेत पर रहने से फसलों के उत्पादन में इजाफा के साथ घरेलू, कूड़ा-करकट, चूल्हे की राख, पशुओं का गोबर, बचा हुआ चारा, भूसा खेत को मिलता है तो मिट्टी की उर्वरा में भी गुणात्मक वृद्धि होती है। जो समृद्धि का सूचक है। खेत पर उगने वाली घास का हर हिस्सा किसान के पशुओं की पहुंच में होने से पशुओं का स्वास्थ्य भी अच्छा, निरोगी रहता है। जरूरत को दूध और श्रम की उपलब्धता संपन्नता रहती है।

किसान- भुइयांदीन
ग्राम- चिचारा
विकासखण्ड-कबरई
जनपद-महोबा,बुन्देलखंड उ.प्र.

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