किसान, कारपोरेट और बाँस क्रान्ति

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मध्य प्रदेश में पर्यावरण और किसानों के लिये एक अच्छी खबर है! म.प्र. शासन के बाँस मिशन को और मजबूती प्रदान करते हुए कारपोरेट सेक्टर ने नई पहल की है। खेतों में, मेढ़ों पर, परती जमीन, नदी-नालों के किनारे और पहाड़ों पर बड़े पैमाने पर बाँस रोपने में निजी क्षेत्र अगुवाई कर रहा है। इससे मिट्टी और पानी रोकने में जहाँ मदद मिलेगी वहीं किसानों को अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त होगी। प्रदेश के नदी-नालों को पुनर्जीवित होने में भी मदद मिलेगी।

''रुके खेत में मिट्टी पानी, कम हो खेती की परेशानी, बाँस भिर्रों से बड़े कमाई, आओ बाँस लगाओ भाई” के नारों के साथ किसानों को बाँस रोपने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रदेश में बाँस उत्पादों की एक एक्सपोर्ट यूनिट स्थापित होने जा रही है जो अन्तरराष्ट्रीय बाजार में 'मां नर्मदे’ ब्राण्ड के साथ प्रदेश के बाँस से बने उत्पादों को बेचेगी। इसके अलावा अनेक स्थानों पर प्रोसेसिंग कारखानों की भी स्थापना होगी जिससे स्थानीय स्तर पर रोज़गार भी मिलेगा।

पिछले कुछ अर्से से मध्य प्रदेश के पर्यावरण और बाँस उत्पादन को लेकर सक्रिय उद्योगपति देव मुखर्जी कहते हैं - मध्य प्रदेश बाँस उत्पादन के लिये अनुकूल पर्यावरण रखता है। यदि यहाँ खेतों की मेढ़ों, पहाड़ों, नदी, नालों के किनारों पर किसान बाँस उत्पादन करते हैं तो इससे समग्र पर्यावरण संरक्षण होगा तथा किसानों को अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त होने लगेगी। इन बाँसों को हमारा कारखाना खरीदेगा। किसानों को बाँस का बाजार अब तैयार मिलेगा।

मोटे तौर पर चार-से-पाँच साल के दरमियान बाँस कटने की स्थिति में आ जाता है। प्रति एकड़ हर किसान सालाना साढ़े तीन लाख रुपए तक कमा सकता है। एक बार बाँस रोपने पर यह आमदनी आगामी 35-40 सालों तक प्राप्त हो सकती है। बाँस गन्ने के भाव खरीदा जाएगा। बाँस रोपण से मिट्टी और पानी संरक्षण के जो फायदे होंगे वह अलग। मुखर्जी कहते हैं- बाँस एक तरह से खेती का 'सुरक्षा कवच’ है कभी सूखा, कभी अतिवर्षा, कभी ओला वृष्टि से सदा फसलें नष्ट होने का भय बना रहता है। बाँस मौसम की हर मार को आसानी से सहन कर लेता है। इससे होने वाली आमदनी आड़े वक्त खेती-किसानी में काम आती है।

 

किसानों को लाभांश में भी हिस्सेदारी


मध्य प्रदेश में अमूल की तर्ज पर बाँस उत्पादन मिशन में रणनीति बनाई जा रही है। इंडस्ट्री, बाँस उत्पादों से मिलने वाले लाभांश में भी किसानों को भागीदार बनाने जा रही है। उच्च गुणवत्ता वाले पौधे भी किसानों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं। हर क्षेत्र में किसान समूहों द्वारा संचालित बाँस खरीदी केन्द्र भी स्थापित किए जाएँगे।

 

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