किसानों की बंजर भूमि से अफसरों की जेब हरी
3 September 2011


दुमका। गरीबों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार कई योजनाएं बनाती है लेकिन नौकरशाही के रवैये की वजह से ये योजनाएं आमतौर पर मिट्टी में मिल जाती हैं। गरीब-अनजान लोग जब अपने हक के लिए आवाज उठाते हैं तो नौकरशाही उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ती। झारखंड के किसानों के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। सिटिज़न जर्नलिस्ट अभिजीत ने एक ऐसा मैदान दिखाया जहां 2 साल पहले वन विभाग ने 17000 से भी ज्यादा पेड़ लगाए थे। ये पेड़ अब मर चुके हैं और साथ ही मर गए हैं वो सपने जो किसानों को कभी दिखाए गए थे।

दुमका में पिछले साल वन विभाग ने नरेगा के तहत 'बंजर-भूमि फलदार वृक्ष योजना' शुरू की। जिले के तकरीबन 70 किसानों से वन विभाग ने 124 एकड़ बंजर जमीन लेकर उस पर कई किस्म के पेड़ लगाए। जमीन देते समय वन विभाग ने किसानों को ये आश्वासन दिया था कि 2011 में हरे भरे पेड़ों के साथ उनकी जमीन उनको वापस कर दी जाएगी। पेड़ तो ज़रूर लगाए गए लेकिन उसके बाद उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। पहले किसान अपनी इन बंजर जमीनों पर साल भर कड़ी मेहनत से खेती कर कुछ पैसे कमा लेते थे, लेकिन वन विभाग को अपनी जमीन देने के बाद ये उस कमाई से भी हाथ धो बैठे हैं।

किसी योजना के तहत पैसा पास करवा लेना और फिर योजना का काम अधूरा छोड़ पैसा डकार जाना अब नौकरशाही की आदत हो गयी है 1 करोड़ 77 लाख की लागत से लगाए गए इन पेड़ों के रखरखाव में जो पैसा खर्च होना था वो हड़प लिया गया। 2011 में ये जमीन हरे-भरे पेड़ों के साथ वापस दी जानी थी लेकिन वक्त से पहले ही वो उजड़ चुकी है।

अभिजीत ने पेड़ों की ऐसी हालत के बारे में कई बार वन विभाग सहित कई अधिकारियों को पत्र लिखे। लेकिन कोई जवाब नहीं आया। प्रशासन का ये रवैया देख उन्होंने सूचना अधिकार अधिनियम के तहत योजना में खर्च होने वाले रुपयों के बारे में जानकारी मांगी, लेकिन पोल खुल जाने के डर से अधिकारियों द्वारा आज तक उनके पास इसका जवाब नहीं आया। हर तरफ से निराश होकर उन्होंने न्याय के लिए लोक अदालत का दरवाजा खटखटाया। लोक अदालत ने उनके आवेदन पर तुरंत कार्रवाई करते हुए वन विभाग को आदेश दिया कि वो जल्द ही अदालत को अपने काम की प्रगति रिपोर्ट सौंपे।

कोर्ट तक मामला पहुंचने के बाद वन विभाग के अधिकारियों ने अभिजीत को परेशान करना शुरू कर दिया है। साथ ही उन्हें हफ्ता वसूलने के मामले में फंसा देने की धमकियां भी दी जाती हैं, लेकिन अभिजीत डरने वाले नहीं हैं। वो कहते हैं कि मैं अपनी लड़ाई जारी रखूंगा जब तक हमें अपना हक नहीं मिल जाता।
 

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