कीटनाशकों का नया जाल

28 Jan 2013
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कीटनाशकों एवं अन्य रसायनों की वजह से अब मानव समाज भोजन संबंधी विकारों या एलर्जी का शिकार होने लगा है। साफ-सफाई में भी रसायनों का अत्यधिक इस्तेमाल हमारे लिए नित नए खतरे पैदा करता जा रहा है। लेकिन विज्ञापन की दुनिया हमें सपने दिखाकर हमारे जीवन में अंधियारा भर रही है। नलों से प्रदान होने वाले पानी में मिली क्लोरीन और भोजन में कीटनाशकों की मौजूदगी से लोग खाने की एलर्जी के शिकार हो रहे हैं। अमेरिका के एक अध्ययन में पाया गया है कि क्लोरिन युक्त रसायन डिक्लोरोफेनाल से दध से लेकर खीरे या ककड़ी तक के खाद्य पदार्थों में (भोजन से) एलर्जी के तत्व तीव्रता पा सकते हैं। दिसंबर में प्रकाशित एनल्स आफ एलर्जी, अस्थमा एण्ड इम्यूनोलॉजी (वार्षिक वृतांत) में इस बात की पहचान की गई है कि क्लोरिन युक्त पीने का पानी एवं कीटनाशक से उपचारित फल एवं सब्जियां इस रसायन का मुख्य स्रोत हैं। वैसे लोगों का इससे साबका फिनायल की गोलियों एवं पेशाबघरों की सफाई सामग्री के माध्यम से भी पड़ता है।

विश्वभर में कमोबेश 50 करोड़ व्यक्ति किसी न किसी खाद्य पदार्थ के पति सहिष्णु (एलर्जिक) हैं। ये एलर्जी तब होती है जब किसी व्यक्ति की पतिरोधक प्रणाली अत्यधिक सक्रिय होती है और इसके परिणामस्वरूप सामान्यतया अहानिकारक पदार्थ के प्रति भी विपरीत किया दिखाई पड़ती है। इस रिर्पोट की प्रमख लेखक एवं न्यूयार्क स्थित अल्बर्ट आइंस्टीन कालेज ऑफ मेडिसिन की ईलिना जेर्शको का कहना है “पूर्व के अध्ययनों ने दर्शाया था कि अमेरिका में भोजन से होने वाली एलर्जी एवं पर्यावरणीय प्रदूषण दोनों में ही वृद्धि हो रही है। हमारा अध्ययन बताता है कि यह प्रवृत्ति भी आपस में जुड़ी हो सकती हैं लेकिन इसी के साथ कीटनाशकों एवं अन्य रसायनों का बढ़ता प्रयोग भी बढ़ती भोजन एलर्जी से जुड़ा हो सकता है।

जेर्शको और उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन में सन् 2005-2006 के अमेरिका राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं पोषण परीक्षण सर्वक्षण में भागीदारी करने वाले 2211 व्यक्तियों को शामिल किया था। इनमें से 411 विशिष्ट किस्म के भोजनों जैसे झींगा (मछली) या मूंगफली के प्रति और 1016 पर्यावरणीय पदूषण जैसे बिल्ली या कुत्ते के बालों से एलर्जिक थे। भागीदारों को अध्ययन के पूर्व पिछले सात दिनों के दौरान कीटनाशकों से पाला पड़ने संबंधित प्रश्नावली दी गई थी एवं डिक्लोरोफेनाल हेतु उनके मूत्र का परीक्षण किया गया था। शोधकर्ताओं ने पाया कि एलर्जी वाले भागीदारों के मूत्र में डिक्लोरोफेनाल आधारित रसायनों की मात्रा अमेरिका पर्यावरणीय सुरक्षा एजेंसी द्वारा निर्धारित मापदण्डों से बहुत अधिक थी। इन प्रतिभागियों के रक्त में इम्मयूनोग्लोबुलिन -ई का स्तर भी बहुत अधिक पाया गया। ऐसे ये तत्व हैं जो कि स्तनधारियों में संक्रमण एवं एलर्जियों से निपटने हेतु पाए जाते हैं। ऐसे व्यक्ति जिनमें एलर्जी पाई गई उनमें इनकी मात्रा 0.35 किलो इकाई प्रति लीटर या इससे भी ज्यादा थी।

पूर्व के अध्ययनों में व्यक्ति के व्यवसाय को कीटनाशकों एवं एलर्जी से जोड़ा गया था। वर्ष 2009 मंा अमेरिका के उत्तरी केरोलिना स्थित राष्ट्रीय पर्यावरणीय स्वास्थ्य विज्ञान संस्थान की जेनी होपिंस ने अपने लेख में बताया था कि ऐसे किसान जो अपने खेतों में कीटनाशकों का उपयोग करते हैं उनमें अस्थमा जिसमें कि एलर्जिक अस्थमा भी शामिल हैं से पीड़ित होने का जोखिम बहुत बढ़ जाता है। इसके भी बहुत पहले सन् 1998 में विल्मन डोंग ने पाया था कि जब चूहों को कीटनाशक ‘कार्बारिल’ के सपर्क में लाया गया तो वे लगातार एलर्जी के शिकार होने लगे।

जेर्शकों का अध्ययन बताता है कि केवल व्यावसायिक रूप से कीटनाशक के संपर्क में आने से ही एलर्जी नहीं होती बल्कि इस तरह के रसायन युक्त भोजन सामग्री के उपयोग से भी एलर्जी हो सकती है। जेर्शको ने यह भी स्पष्ट किया है कि अध्ययन से पता चला है कि क्लोरिन युक्त नल का पानी डिक्लोरोफिनाल का प्राथमिक स्रोत है लेकिन कोई व्यक्ति पूर्णतया बोतलबंद पानी पर भी भरोसा नहीं कर सकता क्योंकि अनेक अध्ययनों से यह सामने आया है कि बोतलबंद पानी भी कीटनाशकों से पूर्णतया मुक्त नहीं है।

आंध्र प्रदेश के पटानचेरू स्थित अन्तरराष्ट्रीय अर्धऊसर क्षेत्र फसल शोध संस्थान (इंटरनेशनल काप रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ समी अरिड ट्रापिक्स) के प्रमुख वैज्ञानिक ओम रूपला का कहना है “मैं इस खोज से सहमत हूं। मैं इस बात से भी अचंभित हूं कि पानी के उपचार हेतु कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। “टेमेकास” जिसका उपयोग मच्छरों को अंडा़ देने से रोकने के लिए किया जाता है का मानव पर घातक प्रभाव पड़ता है। हालांकि यह अत्यधिक कम मात्रा में प्रयोग में लाया जाता है लेकिन इसके बावजूद इसके उपयोग को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।”

जेर्शको का कहना है “हालांकि कीटनाशकों एवं एलर्जी के बीच निकट का संबंध मिलता है लेकिन भविष्य में होने वाले अध्ययनों में इसके आकस्मिक या अनियमित संबंधों पर भी विचार करना आवश्यक है। वही होपिन का कहना है कि भविष्य में होने वाले अध्ययनों को व्यक्तियों में कीटनाशकों के संपर्क में आने के पूर्व एलर्जी की प्रवृत्ति विकसित होने पर केंद्रित होना होगा।

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