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Kalayat lake in Hindi

नरवाना-कैथल मार्ग पर जींद से 55 कि.मी. दूर कलायत नामक स्थान अपने आप में अनेकों ऐतिहासिक स्थलों और पौराणिक प्रसंगों को समेटे हुए है। यहां कपिल मुनि का आश्रम और सुंदर आकर्षक झील है। कहा जाता है इसी झील के मध्य में कपिल मुनि ने तपस्या की थी और सांख्य शास्त्र की रचना की थी। सांख्य शास्त्र सर्वप्रथम अपनी मां देवाहुति को समझाया था। देवाहुति कर्दम ऋषि की पत्नि थीं। मां के आग्रह करने पर उन्होंने उन्हें सृष्टि एवं प्रकृति के 24 तत्वों का ज्ञान दिया था। इस झील से संबंधित कथा यह है कि किसी ऋषि के शाप के कारण महाराजा शालिवाहन का पूरा शरीर प्रतिदिन सूरज डूबते ही बेजान हो जाता था। एक दिन शिकार खेलते-खेलते शालिवाहन कपिल मुनि की झील के किनारे पहुंच गये और शिकार करने के लिए वनचर पर तीर चलाया। तीर प्राणी पर न लग कर झील के दूसरे किनारे पर गिरा। राजा ने दूसरे किनारे पहुंच कर तीर उठाया तो तीर के साथ झील की मिट्टी उनके अंगूठे में लग गई। रात में जब राजा का शरीर बेजान हुआ तो रानी ने देखा राजा के अंगुली और अंगूठे में जहां मिट्टी लगी थी वह स्थान यथावत् है। प्रातः राजा को रानी ने बताया तो राजा को एहसास हुआ कि कपिल मुनि के आश्रम के पास की मिट्टी लगी थी। वे उसी दिन गये और सम्पूर्ण शरीर पर मिट्टी मल-मल कर झील में स्नान किया और शाप मुक्त हो गये।

कहते हैं इस झील में स्नान करने से पापों की मुक्ति हो जाती है। राजा शालिवाहन ने कपिल मुनि की श्रद्धा में भव्य मंदिर का निर्माण कराया। इस झील के किनारे जलकुंड नामक स्थान पर एक पुराना कंदू जाति का वृक्ष है। यह सदैव हरा-भरा रहता है, पर इसमें फल नहीं लगते। जनश्रुति है कि इसे कपिल मुनि का शाप लगा था। एक बार कपिल मुनि यहां तपस्या कर रहे थे, ऊपर से इस वृक्ष का फल उनके सिर पर गिरा। उनकी तपस्या भंग हो गई, क्रोधवश उन्होंने श्राप दिया कि उस वृक्ष पर कभी फूल-फल नहीं लगेंगे। तब से अब तक उक्त वृक्ष ऋषि के शाप से मुक्त नहीं हो सका है। इस झील पर हजारों प्रवासी पक्षी शीत ऋतु में आते हैं।

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