कराह रहा बुंदेलखंड, सुध लेने वाला कोई नहीं

28 Apr 2014
0 mins read
बुंदेलखंड के इतिहास पर नजर डालें तो इस क्षेत्र में हर पांच साल में दो से तीन बार गंभीर सूखा पड़ता है और बीच में बारी बारिश आती है। ऐसे में इस क्षेत्र के लिए तदर्थ पैकेज की नहीं बल्कि संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की दरकार है जिसमें पानी की बर्बादी रोकना, जल संचय की व्यवस्था, कम पानी वाली फसलों को बढ़ावा देना और लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर होने से बचाना शामिल है। झांसी, 27 अप्रैल (भाषा)। बुंदेलखंड की सूखती नदियां, बर्बाद होते तालाब व किसानों की मौत की खबरों के बीच इन्हें बचाने का विषय अहम चुनावी मुद्दा बना हुआ है। केंद्र में सत्ता पाने की इच्छा लिए राजनीतिक दल भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। कभी सूखा, कभी बारिश तो कभी ओलावृष्टि के कारण बुंदेलखंड क्षेत्र के लोगों की परेशानियां जारी रहने के बीच पैकेज पर राजनीति भी जारी है।

नेशनल रेनफेड एरिया अथोरिटी (एनआरएए) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेएस सामरा ने कहा कि बुंदेलखंड में अभी 7600 करोड़ रुपए का सूखा पैकेज चल रहा है। केंद्र ने विशेष बुंदेलखंड पैकेज को 2017 तक जारी रखने का फैसला किया है। लेकिन उत्तर प्रदेश में इसके तहत जारी धनराशि का 59 फीसद और मध्य प्रदेश में 80 फीसद ही खर्च हो पाया है। किसानों को उम्मीद थी कि इस बार इतनी पैदावार हो जाएगी कि उन्हें साल भर भोजन नसीब हो जाएगा, थोड़ा कर्ज भी चुका सकेंगे। बारिश का दौर आया तो किसानों की उम्मीदों को पंख लग गए। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन कायम नहीं रही। ओलावृष्टि ने सब मिट्टी में मिला दिया। लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच बुंदेलखंड एक बार फिर कराह रहा है, किसानों की आत्महत्या की खबरें भी आ रही हैं।

झांसी से भाजपा उम्मीदवार उमा भारती ने कांग्रेस व प्रदेश की सपा सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि मैंने इस क्षेत्र क सैकड़ों गांवों का दौरा किया, लेकिन किसी व्यक्ति के चेहरे पर खुशी नहीं दिखाई दी।

पैकेज का पैसा कहां गया? भाजपा सरकार आई तो इसका पता लगाएंगे। झांसी के सामाजिक कार्यकर्ता व शोधकर्ता आशीष सागर ने कहा कि झांसी और ललितपुर की पथरीली जमीन हो या जालौर, बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा क्षेत्र का ऊबड़-खाबड़ इलाका, हर जगह गरीबी है। यह क्यों है, कब तक रहेगी और इसका उपचार क्या है, यह बताने वाला कोई नहीं है। सागर ने कहा कि 2003 से 2006 के बीच बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर और महोबा क्षेत्र में आत्महत्या के 1040 मामले सामने आए हैं। इनमें पारिवारिक तनाव से 459, गरीबी से 122, बीमारी से 86 और अज्ञात कारणों से 371 मौतें शामिल हैं। उन्होंने कहा- इन आंकड़ों के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि गरीबी और परिवार की खराब हालत व बंटवारे के कारण 20 से 40 साल के वयस्क सर्वाधिक आत्महत्या कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों में किसानों की आत्महत्या की बात सीधे तौर पर नहीं कही जा रही है।

एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि आत्महत्याओं की संख्या अप्रैल से जून और उसके बाद अक्तूबर से दिसंबर में सर्वाधिक पाई गई है। अप्रैल से जून रबी फसलों का समय होता है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि फसल खेत से घर तक लाने के सिलसिले में किसान साल भर योजना बनाता है। इससे होने वाली आय से वह बच्चों को पढ़ने के लिए पैसे देगा, बिटिया की शादी करेगा, पुराना कर्ज उतारेगा लेकिन खेती प्रकृति पर इस कदर निर्भर है कि बार-बार किसानों के सपने धरे के धरे रह जाते हैं। बुंदेलखंड में हाल में हुई ओलावृष्टि में 40 हजार हेक्टेयर भूमि पर फसल बर्बाद हो गई है।

बुंदेलखंड नदी-तालाब अभियान के संयोजक सुरेश रैकवार ने कहा कि बुंदेलखंड में किसान, मजदूर और क्षेत्र के लोगों को पानी की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। तालाब बर्बाद हो रहे हैं। नदियां सूख रही हैं। प्रदूषण बढ़ रहा है और इसकी कोई सुध लेने वाला नहीं है। हमारी मांग है कि नदी, झील, तालाब, जंगल व जंगली जीवों के संरक्षण व पेयजल सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाया जाए।

बुंदेलखंड के लोगों के समक्ष पेश आ रही इन समस्याओं और वैकल्पिक रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं होने की वजह से काफी लोग दूसरे प्रदेशों में पलायन कर रहे हैं। आशीष सागर ने कहा कि सरकारी आंकड़ों में पिछले चार साल में बांदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट में 13894 परिवारों के 69470 लोगों के पलायन कर दूसरे स्थानों पर जाने की बात सामने आई है। जबकि वास्तविक संख्या इससे काफी अधिक है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल में विधानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि बुंदेलखंड में 29928 किसानों का 62 करोड़ 82 लाख 74 हजार रुपए का कर्ज माफ किया गया और किसानों ने कर्ज से आत्महत्या नहीं की। दूसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि किसान बड़ी मात्रा में साहूकारों और राष्ट्रीयकृत बैंकों से कर्ज लेते हैं। जबकि प्रदेश सरकार ने सहकारी बैंक से लिया कर्ज माफ किया है। ऐसे में बड़ी संख्या में किसानों को कर्ज माफी योजना का कोई लाभ नहीं मिल रहा है।

समाज शास्त्रियों के अनुसार बुंदेलखंड के इतिहास पर नजर डालें तो इस क्षेत्र में हर पांच साल में दो से तीन बार गंभीर सूखा पड़ता है और बीच में बारी बारिश आती है। ऐसे में इस क्षेत्र के लिए तदर्थ पैकेज की नहीं बल्कि संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की दरकार है जिसमें पानी की बर्बादी रोकना, जल संचय की व्यवस्था, कम पानी वाली फसलों को बढ़ावा देना और लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर होने से बचाना शामिल है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading