कृषि क्षेत्र पर अधिक ध्यान जरूरी

किसानों को अपेक्षा है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में नई जान फूँकने के लिये बजट में अपनी मुट्ठी अवश्य खोलेंगे


पिछले दो साल से कृषि क्षेत्र काफी गम्भीर समस्या का सामना कर रहा है। इन दो सालों में देश ने सूखा देखा है, और बेमौसमी बरसात भी देखी है। वस्तुत: यह लगातार तीसरा वर्ष है, जब गेहूँ और प्रमुख रबी फसलों का बुआई क्षेत्र कमजोर रहा है। बीते छह सालों में प्रतिवर्ष फसल मौसम नमी में कमी आई है। वर्ष 2015-16 में फसल मौसम सबसे गर्म रहा है। मौसम का साथ न मिलने के कारण रबी की फसलें प्रभावित हुई हैं। इस बार रबी सीजन में करीब 18 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई कम हुई है। अब जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में कृषि को नकारना सम्भव नहीं है। ऐसे में कृषि क्षेत्र को बजट के केन्द्र बिन्दु में लाना होगा और कृषि क्षेत्र में सुधारों को आगे बढ़ाना होगा। यकीनन देश के कृषि क्षेत्र का संकट 2016 में और गहराने की आशंका बढ़ गई है। नियंत्रण स्तर पर जिस बाजार के असामान्य तरीके से व्यवहार और नियंत्रण जिस कीमतों में गिरावट ने देश के कृषि क्षेत्र के समक्ष संकट खड़ा कर दिया है। पिछले दो साल से कृषि क्षेत्र काफी गम्भीर समस्या का सामना कर रहा है। इन दो सालों में देश ने सूखा देखा है और बेमौसमी बरसात भी देखी है देश में किसानों और कृषि क्षेत्र की हालत अच्छी नहीं है।

ग्रामीण इलाकों में खपत में कमी और देहातों में बढ़ती परेशानी देशभर की चिन्ता का विषय है। ऐसे में किसानों को सहारा देने के लिये कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में नई जान फूँकने के लिये वित्त मंत्री अरुण जेटली से अपेक्षा की जा रही है कि वह वर्ष 2016-17 के बजट में प्रधानमंत्री कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और अगले तीन साल में सभी 14 करोड़ किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराने जैसी प्रमुख सरकारी योजनाओं के लिये बजट में अच्छी खासी रकम आवंटित करें।

इसके अलावा, कृषि शिक्षा, कृषि शोध एवं विकास और फसल तैयार होने के बाद की गतिविधियों में सुधार करने के लिये निवेश बढ़ाए जाने की आवश्यकता भी अनुभव की जा रही है। किसानों को 4 प्रतिशत की ब्याज दर पर 5 लाख रुपए तक का ऋण उपलब्ध कराने, फसलों के लिये अधिक समर्थन मूल्य दिये जाने, फसल बीमा का दायरा बढ़ाए जाने, कृषिगत पदार्थों के लिये टिकाऊ निर्यात नीति बनाए जाने के साथ-साथ किसानों को यूरिया सब्सिडी के प्रत्यक्ष हस्तान्तरण की व्यवस्था को लागू करने की जरूरत भी महसूस की जा रही है।

गौरतलब है कि देश के कृषि क्षेत्र का संकट 2016 में और गहराने की आशंका बढ़ गई है। नियंत्रण स्तर पर जिस बाजार के असामान्य तरीके से व्यवहार और नियंत्रण जिस कीमतों में गिरावट ने देश के कृषि क्षेत्र के समक्ष संकट खड़ा कर दिया है। पिछले दो साल से कृषि क्षेत्र काफी गम्भीर समस्या का सामना कर रहा है। इन दो सालों में देश ने सूखा देखा है, और बेमौसमी बरसात भी देखी है। वस्तुत: यह लगातार तीसरा वर्ष है, जब गेहूँ और प्रमुख रबी फसलों का बुआई क्षेत्र कमजोर रहा है।

बीते छह सालों में प्रतिवर्ष फसल मौसम नमी में कमी आई है। वर्ष 2015-16 में फसल मौसम सबसे गर्म रहा है। मौसम का साथ न मिलने के कारण रबी की फसलें प्रभावित हुई हैं। इस बार रबी सीजन में करीब 18 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई कम हुई है। अब जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में कृषि को नकारना सम्भव नहीं है। ऐसे में कृषि क्षेत्र को बजट के केन्द्र बिन्दु में लाना होगा और कृषि क्षेत्र में सुधारों को आगे बढ़ाना होगा।

कृषि को प्राथमिकता जरूरी


वर्ष 2016-17 के नए बजट में कृषि को प्राथमिकता दिया जाना इसलिये जरूरी है क्योंकि देश में अच्छी बारिश होती है तो सब कुछ ठीक रहता है तथा मौद्रिक नीति भी कारगर साबित होती है। किन्तु अच्छी बारिश नहीं होती है, तो महंगाई, विकास दर जैसी चिन्ताएँ दिखाई देने लगती हैं। यद्यपि वर्तमान में भारतीय कृषि राष्ट्रीय आय में केवल 18 फीसदी का ही योगदान करती है। लेकिन कृषि उत्पादन में कोई भी गिरावट विकास दर को भी मुख्य रूप से प्रभावित करती है।

कृषि क्षेत्र की घटी हुई विकास दर न केवल खेती पर निर्भर देश के 14 करोड़ से अधिक परिवारों को प्रभावित करती है, बल्कि आम आदमी भी महंगाई से परेशान दिखाई देता है। चूँकि देश की 60 फीसदी आबादी रोजगार के लिये खेती-किसानी से जुड़ी हुई है, इसलिये कृषि में किसी भी प्रकार की गिरावट मानव संकट को बढ़ा सकती है। राष्ट्रीय न्यार्दा सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) का कहना है कि 40 प्रतिशत किसान खेती को बेहद जोखिम भरा और दुखदायी पेशा मानते हुए इसे छोड़ना चाहते हैं।

वर्तमान परिदृश्य में किसानों द्वारा खेती छोड़ने की इच्छा स्वाभाविक है। संसद की कृषि पर स्थायी समिति का यह निष्कर्ष भी चिन्ताजनक है कि देश के 90 प्रतिशत किसानों को कृषि सब्सिडी का लाभ नहीं पहुँचता है और छोटे किसानों की जिन्दगी मुश्किलों से भरी हुई रहती है। यद्यपि हमारे छोटे-छोटे किसान कृषि की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये उधार लेकर पूँजी लगाते जा रहे हैं, लेकिन कृषि उत्पादों से किसानों को उपयुक्त कीमत नहीं मिलने से वे खुशहाली से दूर हैं।

अतएव अब नए बजट के तहत देश की विकास दर बढ़ाने के परिप्रेक्ष्य में कृषि से जुड़ी विभिन्न समस्याओं के समाधान पर ध्यान देना जरूरी है। देश में विकास दर बढ़ाने के मद्देनजर एक ओर कृषि क्षेत्र के विकास के लिये तात्कालिक कदमों के साथ-साथ दूसरी ओर खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के दीर्घकालीन उपायों पर भी ध्यान देना जरूरी है। सरकार द्वारा जोरदार प्रयास किये जाने होंगे ताकि देश की कृषि मानसून का जुआ ही न बनी रहे।

देश की अर्थव्यवस्था को मानसून से सुरक्षित बनाने के लिये पाँच प्रमुख बातों पर प्रमुख रूप से ध्यान दिया जाना होगा। एक किसानों को कृषि से सम्बन्धित नकद सब्सिडी दी जाये और उसे सीधे किसानों के बैंक खाते में हस्तान्तरित भेजी जाये। दो, कृषि उत्पादकता बढ़े। तीन, फसल बीमा आम किसान तक पहुँचे। चार, संस्थागत ऋण किसानों के दरवाजे तक पहुँचे और पाँच, कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जाकरण को नीतिगत लक्ष्य बनाया जाये। निश्चित रूप से जिस तरह घरेलू उपयोग के गैस पर नगद सब्सिडी बैंकों में जमा किये जाने के बाद गैस सब्सिडी का दुरुपयोग रुका है, उसी तरह कृषि सब्सिडी का सदुपयोग हो सकेगा।

कृषि में निवेश बढ़ाना जरूरी


उल्लेखनीय है कि सरकार ने कृषि क्षेत्र में 4 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने का लक्ष्य रखा है और इसके लिये कृषि क्षेत्र में सम्बन्धित मौजूदा विभिन्न योजनाओं में निकट तालमेल से कृषि क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहन देने का प्रयास किया जा रहा है। कृषि क्षेत्र में ऊँची वृद्धि हासिल करने के लिये सार्वजनिक और निजी निवेश बढ़ाने की जरूरत है।

सरकारी आँकड़ों के अनुसार 2004-05 से 2012-13 के दौरान कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की वृद्धि दर 11.42 प्रतिशत रही है, जबकि इस दौरान निजी निवेश की वृद्धि दर 19.81 प्रतिशत रही। निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने, जमीन पट्टा नीति में सुधार, आसान बाजार पहुँच एवं किसानों में कुशलता विकास एवं प्रशिक्षण पर ध्यान दिये जाने से कृषि क्षेत्र के बाहर भी रोजगार निर्मित हो सकते हैं। यदि नए बजट के तहत वित्त मंत्री द्वारा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिये वर्ष 2015-16 की बजट आवंटन राशि 15,100 करोड़ रुपए में इजाफा किया जाएगा तो मार्च 2019 तक 1.78 लाख से अधिक ग्रामीण ठिकानों को हर मौसम में इस्तेमाल लायक सड़कों से जोड़ने के मकसद को पूरा किया जा सकेगा।

यदि मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का विलय राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में करके बजट आवंटन में उपयुक्त वृद्धि की जाती है, तो यह कृषि विकास के लिये लाभप्रद होगा। चालू वित्त वर्ष के बजट में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिये 4,000 करोड़ रुपए रखे गए थे, लेकिन अगले वित्त वर्ष के लिये इसे बढ़ाकर 19,000 करोड़ रुपए किया जाना चाहिए। वित्त वर्ष 2016-17 के लिये प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई विकास योजना हेतु आवंटन भी बढ़ाया जाना चाहिए। 2015-16 में इस कार्यक्रम के लिये 5,300 करोड़ रुपए आवंटित हुए थे।

कृषि सिंचाई योजना में तीन केन्द्र प्रायोजित कार्यक्रम शामिल हैं। इनमें जल संसाधन मंत्रालय का त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, ग्रामीण विकास मंत्रालय का इंटीग्रेटेड वाटरोड मैनेजमेंट प्रोग्राम और कृषि मंत्रालय का खेतों में जल प्रबन्धन का कार्यक्रम शामिल है। बजट के तहत नई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिये पर्याप्त प्रावधान जरूरी होंगे। मौसम की भविष्यवाणी करने वाली निजी क्षेत्र की एजेंसी स्काईमेट के साथ उद्योग संगठन एसोचैम की ओर से किये गए एक अध्ययन के मुताबिक भारत के करीब 14 करोड़ किसान परिवारों में से 20 प्रतिशत से भी कम फसल बीमा कराते हैं, यही वजह है कि मौसम की मार पड़ने पर उनकी स्थिति खराब हो जाती है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत सभी खरीफ फसलों का बीमा बीमित रकम के 2 प्रतिशत प्रीमियम और रबी की सभी फसलों का बीमा 1.5 प्रतिशत प्रीमियम पर किया जाएगा। ऐसे में फसल बीमा की कम प्रीमियम बड़ी संख्या में किसानों को फसल बीमा की ओर आकर्षित कर सकती है। चूँकि देश के किसान चिन्ताग्रस्त हैं और कृषि चक्रव्यूह में फँसी हुई है, अतएव हम आशा करें कि सरकार किसानों के चेहरों पर मुस्कराहट लाने के लिये बजट में कृषि क्षेत्र पर सबसे अधिक ध्यान रहेगा। (ज.ला.भं)

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