कृषि नीतियों पर किसानों व विशेषज्ञों ने चिंता जताई

16 Mar 2013
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कृषि नीतियों पर विशेषज्ञों द्वार विचार विमर्श
कृषि नीतियों पर विशेषज्ञों द्वार विचार विमर्श
देश के विभिन्न भागों से आए किसानों, विशेषज्ञों और नीति-निर्माताओं ने सरकार के जलवायु परिवर्तन और कृषि की नीति पर चिंता व्यक्त की, और कहा कि सरकार हरित क्रांति की ग़लतियों से सबक नहीं ले पा रही है। सरकारी नीति कृषि मशीनीकरण और जीन प्रौद्योगिकी पर आधारित है। हमारे योजनाकारों ने जीन प्रौद्योगिकी को कृषि से संबंधित सभी समस्याओं का रामबाण इलाज माना है। दुखद पहलू यह है कि सरकार किसानों की आत्महत्याओं से सबक न लेकर उन्हीं नीतियों को वर्षा सिंचित क्षेत्रों में भी दोहरा रही है। यह बात सतत कृषि के राष्ट्रीय मिशन पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में कही गई। सम्मेलन में बढ़ते बाज़ारीकरण और सरकार द्वारा सतत् कृषि को प्राथमिकता न देने की वजह से कृषि पर पड़ रहे प्रभावों पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई। सम्मेलन में वक्ताओं ने माना की प्रखंड स्तर पर नीतियों के विकेंद्रीकरण के बिना सतत कृषि के लक्ष्य को पाना चुनौती भरा होगा। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन से कृषि पर पढ़ रहे प्रभावों पर भी चर्चा की गई, और किसान प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में जोर देकर परांरागत खेती को बढ़ावा देने की बात कही।

सम्मेलन का आयोजन पैरवी, ऑक्सफेम इंडिया के संयुक्त तत्वाधान में कॉन्सटिट्यूशन क्लब में किया गया। सम्मेलन में राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल और पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन में डॉ. अजय कुमार (सांसद लोक सभा, जेवीएम), प्रो. एस के सैदुल हक़ (सांसद लोक सभा, सीपीएम), श्री के एन बालगोपाल (सांसद राज्य सभा, सीपीएम), युद्धवीर सिंह (भारतीय किसान यूनियन), प्रो. अरुन कुमार (जेएनयू), डॉ. पी के अग्रवाल (आई डब्लू एम ए), राजेश्वरी रैना (निस्टेड्स), अतुल कुमार अंजान (सीपीआई), डॉ. सुनिलम मिश्रा (पूर्व विधायक, म.प्र), डॉ. सुरजीत सिंह (विकास अध्ययन संस्थान, जयपुर) और वनिता सुनेजा (ऑक्सफेम इंडिया) ने अपने विचार प्रकट किए।

डॉ. अजय कुमार ने कहा कि कृषि को विकसित करने के लिए सिंचाई पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए लघु सिंचाई परियोजनाओं के बजाय परंपरागत जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। वहीं प्रो. सैदुल हक ने कहा कि टिकाऊ खेती के लिए दीर्घकालिक योजना की जरूरत है, जिससे की किसानों को लाभ पहुंचे। श्री के एन बालगोपाल ने कहा कि कृषि पर बाजार का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। बाज़ारीकरण और उदारीकरण की नीतियों के कारण किसानों पर भारी बोझ पड़ रहा है, और किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं।

राजेश्वरी रैना ने कहा कि एनएमएसए में कृषि पारिस्थितिकी और किसानों पर ध्यान देने की बजाय उत्पादन के अधिकतमकरण को प्रोत्साहित किया जा रहा है, और यही घातक दृष्टिकोण हरित क्रांति में भी अपनाया गया था। उन्होंने कहा कि एनएमएसए में किसानों के क्षमता वर्द्धन के लिए अपर्याप्त आवंटन है और मशीनीकरण पर अधिक जोर दिया गया है। डॉ. पी के अग्रवाल और प्रो. सुरजीत सिंह ने कहा कि विकेंद्रित नियोजन की प्रक्रिया जिला और प्रखंड स्तर पर होनी चाहिए जिससे लोगों की भागीदारी सुनिश्चित हो सके। वहीं प्रो. अरुण कुमार ने कहा कि मौजूदा सरकार केवल आपूर्ति पर जोर दे रही है, जबकि कृषि और सामाजिक क्षेत्र में निवेश को भी बढ़ावा देना चाहिए। कृषि अनुसंधान की प्रक्रिया को चुनौती देते हुए युद्धवीर सिंह ने कहा कि अनुसंधान का लाभ किसानों तक नहीं पहुंच रहा है, और सरकार की “लैब टु लैंण्ड” योजना एक तरफ़ा है। वनीता सुनेजा ने कहा कि एनएमएसए योजना पूर्णतः तकनीक आधारित है। उन्होंने कहा कि महिला किसानों को सामाजिक मान्यता मिलनी चाहिए और साथ ही उनका क्षमता वर्द्धन भी होना चाहिए जिससे कि कृषि क्षेत्र में उनकी भागीदारी बढ़ सके। पैरवी से अजय कुमार झा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अनुमान से अधिक हो रहा है इसलिए सामान्य रूप से काम करने के बजाय छोटे किसानों की अनुकूलन क्षमता को मजबूत करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राज्य कार्य योजनाओं में संभावित ख़तरों को अच्छी तरह उजागर किया गया है लेकिन नीतियों में इसको कार्य रूप नहीं दिया गया है।

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