कृषि संकट : ठोस नीतिगत प्रयास की दरकार

17 Jun 2017
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किसानों के लिये बीमा सम्बंधी नीतियाँ ऐसी बनें कि उन्हें होने वाले नुकसान की सरकार की तरफ से भरपाई हो जाए। जरूरी है कि उन्हें वित्तीय मदद की जाए ताकि आत्महत्या करने की नौबत ही न आए। इन प्रयासों से उनकी क्रयशक्ति बढ़ेगी जिससे परोक्ष रूप से समूची अर्थव्यवस्था और कृषि क्षेत्र का भला होगा भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि अर्थव्यवस्था नकदी पर आधारित होती है। इसलिये जरूरी है कि किसानों के लिये ठोस नीतियाँ तैयार की जाएँ। इससे किसानों की आमदनी दोगुना करने सम्बंधी सरकार की नीति में भी सहायता मिलेगी। हाल के दिनों में किसानों में खासा असंतोष देखने को मिला। तमिलनाडु, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसान उपज के वाजिब दाम और कृषि ऋण माफ करने की मांग कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा किसानों के 36,000 करोड़ रुपये के कर्ज माफ करने की घोषणा के बाद इन मांगों में तेजी आई है। हाल में महाराष्ट्र सरकार ने भी करीब 30,500 करोड़ रुपये के कर्ज की सशर्त माफी की घोषणा की है।

ज्यादातर कृषि कारोबार नकदी से चलता है। इसमें भी ज्यादातर धन खाता विहीन और उधारी का होता है। बाजार में कम नकदी होने के कारण व्यापारियों के सामने तरल संपत्तियों का अभाव हो जाता है, जिससे वे जोखिम लेने की स्थिति में नहीं रह जाते। इसलिये कुछ स्थानों पर नकद भुगतान करने के लिये कुछ कटौती की कोशिश करते हैं। इस साल मजदूरी, उर्वरक, कीटनाशक आदि के दामों में वृद्धि हुई है। पहले ही नकदी के संकट का सामना कर रहे किसानों की दिक्कतों में इस कारण से इजाफा हुआ है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र, दोनों कृषि संकट से घिरे हुए हैं। बीते एक साल में विभिन्न राज्यों में अनेक किसानों ने आत्महत्या की हैं। इन आत्महत्याओं के पीछे के कारणों में किसानों पर कर्ज और कृषि लागतों में इजाफा होना प्रमुख कारण हैं। लेकिन आत्महत्याओं के ज्यादातर मामले कम बारिश वाले और कम सिंचित क्षेत्रों में हुए हैं। और जनसंख्या के एक बेहद छोटे हिस्से में ही होते हैं। इन घटनाओं ने उन क्षेत्रों में कहर बरपा दिया है, जहाँ कृषि अर्थव्यवस्था की प्रधानता है।

कर्ज माफी का संजाल


कुछ राज्यों द्वारा छोटे और सीमांत किसानों के कर्ज माफ किए गए हैं। ये राज्य कर्ज माफी की प्रक्रिया में संलग्न हैं, तो अन्य राज्यों पर कर्ज माफ करने का दबाव बढ़ने से दिक्कतें हो जाने वाली हैं क्योंकि उनके यहाँ भी यह मांग उठने लगी तो उनका वित्तीय घाटा बढ़ने की आशंका उठ खड़ी होगी। कर्ज माफी की उम्मीद से ऋण चुकाने में चूक करने की समस्या बढ़ेगी। नतीजतन, ऋण संस्कृति में बिगाड़ आएगा। किसानों में भविष्य में कर्ज माफी की उम्मीद की प्रवृत्ति घर कर लेगी। किसान कर्जों से मुक्ति की तो मांग कर रहे हैं, लेकिन यह किसी एक बार का ही सवाल नहीं है। जरूरी है कि कृषि नीति में गंभीर किस्म के बदलाव लाए जाएं जिससे किसानों के लिये कृषि लाभ का सौदा बन जाए। ऐसा जिससे कि उनके कर्ज के बोझ तले दबने की नौबत ही न आने पाए।

जरूरी है कि सरकार ऐसी ठोस नीतियाँ बनाए जो किसानोन्मुख हों। कर्ज माफी से भारतीय कृषि को दरपेश ढाँचागत समस्याओं से निजात नहीं मिलने वाला। कर्ज माफी केवल कुछ समय के लिये तो राहत दे सकती है, लेकिन कृषि के लिये यह कोई स्थायी किस्म का उपाय नहीं कही जा सकती। भारतीय कृषि की सबसे बड़ी समस्या है कि यह बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार तो देती है, लेकिन इसमें से अधिकांश प्रछन्न बेरोजगारी हैं। जरूरी है कि खेती से लोगों को अर्ध-दक्ष और अल्प-दक्ष नौकरियों में स्थानांतरित किया जाए। आवासन, निर्माण तथा खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रों में उन्हें खपाया जा सकता है। सरकार कृषि मशीनरी और कृषि में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल पर सब्सिडी मुहैया कराए।

नई तकनीक की पहुँच उन तक सुनिश्चित करे। किसान विभिन्न आर्थिक प्रति-प्रभावों का सामना कर रहे हैं। जैसे कि उपज को जल्द बेचने के फेर में उन्हें काफी सस्ते में अपना उत्पादन बेचना पड़ जाता है। कृषि उत्पादन देश में विनिर्माण उद्योग के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह उपज कृषि और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में कच्ची सामग्री के रूप में इस्तेमाल होती है। उत्पादन प्रचुर हुआ है लेकिन प्याज, आलू आदि उपजों के दाम खासे कम हैं। किसानों को अपनी पैदावार न्यूनतम समर्थन मूल्य से थोड़ा ज्यादा पर बेचने की अनुमति होनी चाहिए। समूचे देश में किसानों के संकट का प्रमुख कारण उपज के दाम और कर्ज ही हैं।

जैविक खेती को प्रोत्साहन जरूरी


किसानों को जैविक खेती करने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिसमें कम से कम रासायनों का इस्तेमाल होता हो। हालाँकि इससे लागत थोड़ी बढ़ेगी जरूर लेकिन उपज की गुणवत्ता बेहतर होगी। कई बार ऐसा होता है कि किसानों को विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं से झटका लगता है, जिससे उन्हें खासी आर्थिक क्षति होती है। इन नुकसान से निजात दिलाने के लिये सरकार को उन्हें बाजार मूल्य पर पूरी क्षति-पूर्ति करने के प्रयास करना चाहिए। हम कैबिनेट द्वारा लाए गए सुधारों का स्वागत करते हैं। नुकसान होने की सूरत में ब्याज अनुदान दिए जाने चाहिए। देश के अनेक भागों में विरोध प्रदर्शनों के उपरांत ये दिए भी जाते हैं। मध्य प्रदेश में अभी ऐसा देखा भी गया। कर्ज देने वाले संस्थान अल्पकालिक अवधि के सालाना 7 प्रतिशत की दर से ऋण मुहैया कराते हैं, एक फसली सीजन में ही ऋण लौटा देने (जो प्राय: छह माह तक की अवधि हो सकती है) वालों को 3 प्रतिशत सालाना का अतिरिक्त ब्याज अनुदान दिया जाता है।

कृषि में शोधों को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। इससे किसानों को ज्यादा पैदावार देने वाले बीजों का उपयोग करने में मदद मिलेगी और कृषि उत्पादन और उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होगी। किसानों के लिये बीमा सम्बंधी नीतियों इस प्रकार से तैयार की जानी चाहिए कि किसान को होने वाले नुकसान की सरकार की तरफ से पूरी तरह से भरपाई हो जाए। जरूरी है कि उन्हें वित्तीय मदद की जाए ताकि उनके आत्महत्या करने की नौबत ही न आए। इन प्रयासों से उनकी क्रयशक्ति बढ़ेगी जिससे परोक्ष रूप से समूची अर्थव्यवस्था और कृषि क्षेत्र का भला होगा। चूँकि भारत कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है, कृषि क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किए जाने से देश को लंबे समय तक फायदे की उम्मीद की जा सकती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीणों के जीवन की गुणवत्ता में भी इससे सुधार होगा। परिणामोन्मुख नीतियों से किसानों की आमदनी में कई गुणा इजाफा संभव है। घरेलू मांग पूरा करने की इस क्षेत्र की क्षमता में इजाफा करने में सहायक होगा। लेकिन अन्तरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने के लिये इस क्षेत्र का विकास सहायक होगा। विश्व आर्थिक प्रणाली में कृषि क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम हो सकेगा।

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