कृषिगत आधारभूत अवसंरचना

वाटरशेड मैनेजमेंट
वाटरशेड मैनेजमेंट

प्रधानमंत्री 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लिये कृषि क्षेत्र में आधारभूत अवसंरचना के विकास पर बल दे रहे हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष में सरकार ने किसानों को लागत मूल्य की डेढ़ गुना कीमत प्रदान करने के लिये खरीफ की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृद्धि कर दी है। किसानों को उपज का सही मूल्य दिलाने और बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करने के लिये राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) और ‘ग्रामीण कृषि बाजार’ की स्थापना की गई है। साथ ही, किसानों की आमदनी में वृद्धि करने के लिये खेती को ‘उद्यम’ रूप में विकसित किया जा रहा है।

ग्रामीण क्षेत्र की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अर्थोपार्जन के लिये कृषि अथवा कृषि सम्बन्धित उपागम पर आश्रित है। कृषि को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। स्वतंत्रता के पश्चात सभी सरकारों ने कृषि सम्बन्धी सुधार के अनेक प्रयास किये हैं। हरितक्रान्ति के परिणामस्वरूप देश अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर तो बन गया लेकिन बढ़ती जनसंख्या और कमरतोड़ महंगाई के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति में कुछ खास सुधार नहीं हो सका।

किसानों द्वारा खेती की लागत मूल्य निकाल पाना चुनौतीपूर्ण है। प्रधानमंत्री 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लिये कृषि क्षेत्र में आधारभूत अवसंरचना के विकास पर बल दे रहे हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष में सरकार ने किसानों की लागत मूल्य की डेढ़ गुना कीमत प्रदान करने के लिये खरीफ की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृद्धि कर दी है।

वैज्ञानिक व तकनीकी विकास के बावजूद देश में आज भी 40 से 50 फीसदी कृषि प्रणाली मानसून (भगवान) के भरोसे है। जिस वर्ष प्रकृति साथ देती है, उस वर्ष तो देश में बड़े पैमाने पर खाद्यान्न उत्पादन होता है परन्तु प्रकृति के कुपित होने की स्थिति में खाने के भी लाले पड़ जाते हैं। इसी कारण देश की कृषि अर्थव्यवस्था को मानसून आधारित जुआ कहा जाता है। कर्ज तले दबा किसान अगली फसल के लिये फिर से कर्ज लेने को मजबूर हो जाता है।

विगत वर्षों में कर्ज के जाल में उलझे अनेक किसानों ने कर्ज से मुक्ति प्राप्त करने के लिये स्वयं मौत का आलिंगन कर लिया। प्राकृतिक निर्भरता को कम करने और किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिये कृषि क्षेत्र में आधारभूत अवसंरचना के विकास पर जोर दिया जा रहा है।

सूखे के प्रकोप से बचने के लिये सिंचाई सुविधाओं के विस्तार पर बल दिया जा रहा है। वर्षाजल के संग्रहण हेतु ‘वाटरशेड परियोजना’ के अन्तर्गत बड़े पैमाने पर तालाबों का निर्माण किया जा रहा है। नदियों के जल को देश के दूसरे क्षेत्रों में ले जाने हेतु नहरों के निर्माण एवं उनकी नियमित साफ-सफाई की जा रही है। अच्छे वाटर लेवल वाले क्षेत्रों में नलकूप लगाए जा रहे हैं। नदियों के जल को संग्रहित व नियंत्रित करने और बाढ़ से बचाव के लिये बाँध व तटबंधों का निर्मण किया जा रहा है।

किसानों को समय से पर्याप्त मात्रा में उन्नत किस्म के बीज मुहैया कराने के लिये ब्लॉक स्तर पर बीज संसाधन केन्द्रों की स्थापना की गई है। मृदा भूमि परीक्षण द्वारा किसानों को ‘मृदा स्वास्थ्य प्रमाणपत्र’ उपलब्ध कराया जा रहा है जिससे किसानों को मृदा में मौजूद पोषक तत्वों की जानकारी प्राप्त हो सके और किसान भू-आवश्यकतानुरूप उर्वरकों का प्रयोग कर सकें। उर्वरकों की कमी की समस्या से निपटने के लिये भारत सरकार किसानों को पर्याप्त मात्रा में नीम कोटेड यूरिया की उपलब्धता भी सुनिश्चित कर रही है।

किसानों को आधुनिक कृषि संयंत्र खरीदने एवं अन्य कृषि जरूरतों की पूर्ति हेतु सस्ती दर पर पर्याप्त मात्रा में कृषि ऋण की व्यवस्था की गई है। खाद्यान्नों के संरक्षण हेतु ब्लॉक-स्तर पर गोदामों का निर्माण कराया जा रहा है। इसी तरह फल व सब्जियों को संरक्षित करने हेतु कोल्ड स्टोरेज एवं शीत शृंखला का निर्माण किया जा रहा है। किसानों को उपज का सही मूल्य दिलाने और बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करने के लिये राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) और ‘ग्रामीण कृषि बाजार’ की स्थापना की गई है। साथ ही, किसानों की आमदनी में वृद्धि करने के लिये खेती को ‘उद्यम’ के रूप में विकसित किया जा रहा है।

स्थानीय-स्तर पर किसानों को कृषिगत रोजगार मुहैया कराने और फसल उत्पादों के मूल्य संवर्धन के लिये खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिये देश भर में 42 मेगा फूड पार्कों की स्थापना की जा रही है। ग्रामीण-स्तर पर स्वयंसहायता समूहों के माध्यम से आर्थिक स्वावलम्बन हेतु बैंकों से अनुदान व ऋण सहायता प्रबन्ध किया गया है। कृषि उत्पाद आधारित लघु एवं मध्यम उद्योगों की स्थापना एवं सफल क्रियान्वयन हेतु आर्थिक अनुदान व सहायता की व्यवस्था की गई है।

सिंचाई संसाधनों का विकास

देश की भौगोलिक व प्राकृतिक विविधता के कारण कुछ क्षेत्रों में तो सिंचाई के पर्याप्त साधन हैं, जबकि कुछ क्षेत्रों में पीने के पानी का भी अकाल है। अच्छी पैदावार के लिये समय से पर्याप्त मात्रा में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। फसल की प्रकृति के अनुरूप कम या अधिक पानी की जरूरत पड़ती है।

किसी कारण भौगोलिक संरचना एवं उपलब्ध सिंचाई संसाधनों के आधार पर देश के विभिन्न भागों में फसल उत्पादन में विविधता पाई जाती है। देश की कुल कृषि योग्य भूमि का 48 प्रतिशत भू-भाग ही सिंचित है। जल संसाधनों की उपलब्धता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। देश की बढ़ती आबादी की खाद्य और पेय सम्बन्धी जरूरतों की पूर्ति के लिये निकट भविष्य में बहुत बड़े पैमाने पर जल की आवश्यकता पड़ने वाली है।

कृषि कार्य हेतु देश में मौजूद लगभग 80 प्रतिशत जल-संसाधनों का उपयोग करने के बावजूद कृषि क्षेत्र में जल उपभोग की दक्षता बहुत कम है। जल उपलब्धता की कमी के बावजूद देश में सिंचाई के दौरान बड़े पैमाने पर जल नष्ट हो जाता है। सिंचाई परिवहन प्रणाली में खामियों के कारण फसल उत्पादन में 55 से 60 प्रतिशत जल का ही उपयोग हो पाता है, शेष जल नष्ट हो जाता है।

सरकार किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और ‘हर खेत को पानी’ उपलब्ध कराने के लक्ष्य की पूर्ति के लिये सिंचाई संसाधनोें के आधुनिकीकरण और विस्तार का प्रयास कर रही है। ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ के अन्तर्गत केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों ने आपसी सहयोग से कम लागत पर सम्पूर्ण सिंचाई शृंखला की शुरुआत की है। इससे सूखे की समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सकेगा। इसके अन्तर्गत परम्परागत सिंचाई प्रणाली में विभिन्न प्रकार के सुधार किये जा रहे हैं।

जल परिवहन में दक्षता

सिंचाई के दौरान परिवहन में बड़े पैमाने पर जल बर्बाद हो जाता है। आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल कर जल परिवहन में जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है।

जल उपयोग में दक्षता

‘प्रति बूँद जल का अधिकतम उपयोग’ सिंचाई का 30-40 प्रतिशत जल वाष्पीकृत होकर उड़ जाता है। आधुनिक पद्धति का उपयोग कर सिंचाई के सम्पूर्ण जल का उपयोग फसल पैदावार के लिये किया जा सकता है।

जल संरक्षण

वर्षाजल को नष्ट होने से बचाने के लिये तथा भविष्य में उसका पुनर्उपयोग करने के लिये जल संरक्षण पर बल दिया जा रहा है। इसके लिये सरकार द्वारा वाटरशेड जैसी महत्त्वाकांक्षी परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। स्थानीय-स्तर पर भी गड्ढे और तालाब खोदकर जल एकत्रण का प्रयास किया जा रहा है।

जल वितरण दक्षता

सिंचाई के दौरान जल का एक समान वितरण किया जाना चाहिए। जल का जितना समान वितरण होगा, फसल की पैदावार उतनी ही अच्छी होगी।

इस योजना में तीन मंत्रालय जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय समेकित रूप से कृषि मंत्रालय का सहयोग कर रहे हैं। सूखा प्रभावित इलाकों में जल-संरक्षण और बाँध आधारित बड़ी परियोजनाओं के सहयोग से स्थानीय जरूरतों के मुताबिक जिला-स्तरीय परियोजना के द्वारा सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है।

आधुनिक तकनीक का उपयोग कर ‘प्रति बूँद अधिक फसल उत्पादन’ पर जोर दिया जा रहा है। जल बचत और सटीक सिंचाई प्रणाली द्वारा पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार किया जा रहा है। देश के प्रत्येक खेत में सिंचाई सुविधाओं के लिये जल संरक्षण और अपव्यय को कम करने पर बल दिया जा रहा है। इसके लिये नवीन जलस्रोतों का निर्माण करने के साथ-साथ पुराने जलस्रोतों के जीर्णोंद्धार द्वारा जल संचयन के प्रयास किये जा रहे हैं।

जल के दक्षतापूर्ण परिवहन को बढ़ावा देने के लिये भूमिगत पाइप लाइन प्रणाली, पीवेट, रेनगन और अन्य उपकरणों के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। आधुनिक फव्वारा (स्प्रिंकल) और बूँद-बूँद सिंचाई (ड्रिप इरीगेशन) तकनीकी द्वारा सिंचाई करने से 30 से 40 प्रतिशत अतिरिक्त भू-भाग की सिंचाई की जा सकती है। जल संरक्षण और सिंचाई सुविधाओं के सुदृढ़ीकरण से देश में खाद्यान्न उत्पादन के साथ-साथ किसानों की आय में भी वृद्धि होगी।
 

क्र.सं.

राज्य का नाम

कोल्ड स्टोरेज की संख्या

कुल क्षमता (मीट्रिक टन में)

1

आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना

442

1782561

2

अरुणाचल प्रदेश

2

6000

3

असम

36

157906

4

बिहार

306

1415595

5

छत्तीसगढ़

98

484087

6

दिल्ली

97

129857

7

गोवा

29

7705

8

गुजरात

764

2901807

9

हरियाणा

338

749830

10

हिमाचल प्रदेश

66

131017

11

जम्मू और कश्मीर

38

112516

12

झारखण्ड

58

236680

13

कर्नाटक

198

560178

14

केरल

198

80405

15

मध्य प्रदेश

300

1263665

16

महाराष्ट्र

604

978392

17

मणिपुर

2

5500

18

मेघालय

4

8200

19

मिजोरम

3

4001

20

नागालैंड

4

7350

21

ओड़िशा

171

540141

22

पंजाब

660

2155704

23

राजस्थान

166

555278

24

सिक्किम

2

2100

25

तमिलनाडु

174

337625

26

त्रिपुरा

14

45477

27

उत्तर प्रदेश

2299

14176062

28

उत्तराखण्ड

46

160419

29

पश्चिम बंगाल

512

5947561

30

लक्षद्वीप

1

15

31

पुडुचेरी

3

85

32

चंडीगढ़

7

12462

33

अंडमान व निकोबार द्वीप समूह

3

810

 

कुल

7645

34956991

शीत एवं भण्डारगृहों की स्थापना

देश में रिकॉर्ड फसल उत्पादन के पश्चात कृषि उत्पाद को सुरक्षित रखना सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण है। गैर-सरकारी आँकड़ों के मुताबिक देश में प्रतिवर्ष 670 लाख टन खाद्यान्न नष्ट हो जाते हैं। भारत सरकार के ‘सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट अॉफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी’ के अध्ययन के अनुसार, उचित भण्डारण की कमी के कारण देश में बड़े पैमाने पर खाद्य पदार्थों की बर्बादी होती है जिससे लाखों लोगों की भोजन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है।

खाद्य पदार्थों की बर्बादी के कारण देश में भुखमरी और महंगाई में बढ़ोत्तरी हो रही है। भण्डारण की समुचित व्यवस्था से खाद्यान्न संरक्षण द्वारा किसानों को फसल की समुचित कीमत मिलने के साथ-साथ उपभोक्ताओं को सस्ते दर पर खाद्य पदार्थ मुहैया हो सकता है। कृषि मंत्री स्वयं स्वीकारते हैं कि देश में बड़े पैमाने पर प्याज, टमाटर, आलू इत्यादि खेत से उपभोक्ता तक पहुँचने से पूर्व ही नष्ट हो जाते हैं।

खाद्यान्न को चूहे, कॉकरोच, कीड़े-मकोड़े नमी इत्यादि से बचाकर लम्बे समय तक संरक्षित किया जा सकता है। इसके लिये नियंत्रित तापमान एवं आर्द्रता की आवश्यकता पड़ती है। खाद्यान्नों का संरक्षण भण्डारगृह व गोदाम में और फल व सब्जियों का संरक्षण कोल्ड स्टोरेज में किया जाता है। राज्य भण्डारण निगम ब्लॉक स्तर पर और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) जनपद स्तर पर भण्डारगृहों की स्थापना करते हैं।

खाद्यान्नों के भण्डारण हेतु बड़े पैमाने पर निजी भण्डारगृहों की स्थापना की जा रही है। सरकार निजी भण्डारगृहों की स्थापना हेतु सहायता व अनुदान राशि देती है। देश में एफसीआई की कुल भण्डारण क्षमता 773 लाख टन अनाज रखने की है। इसके बावजूद देश में बड़े पैमाने पर खाद्यान्न नष्ट हो जाते हैं। इसलिये खाद्यान्नों के संरक्षण के लिये अभी और भण्डारगृहों की जरूरत है।

फल और सब्जियों का भण्डारण 2 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान एवं 85 से 95 सापेक्षिक आर्द्रता के नियंत्रित वातावरण में किया जाता है जिससे जीवाणु, कवक एवं सूक्ष्मजीवी का प्रजनन और सक्रियता बहुत कम हो जाती है। नियंत्रित अवस्था में फल व सब्जियों की भौतिक व रासायनिक संरचना में परिवर्तन तथा उपापचय प्रक्रिया मन्द पड़ जाती है जिससे इनका जीवनकाल बढ़ने के साथ-साथ नष्ट व खराब होने की सम्भावनाएँ कम हो जाती हैं।

संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक देश में फल व सब्जियों के उत्पादन का एक तिहाई हिस्सा उपभोक्ता तक पहुँचने से पूर्व ही नष्ट हो जाता है। सरकार देश में बड़े पैमाने पर कोल्ड स्टोरेज खोलने एवं शीत शृंखला स्थापित करने पर जोर दे रही है।

देश में कोल्ड स्टोरेजों की संख्या एवं क्षमता

कृषि मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने दावा किया है कि सरकार जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों के भण्डारण के निर्माण के लिये तेजी से काम कर रही है। परिणामस्वरूप विगत कुछ वर्षों में देश में बड़े पैमाने पर कोल्ड स्टोरेजों की स्थापना हुई है जिससे भारत विश्व में सबसे अधिक शीत-भण्डारण क्षमता स्थापित करने वाला देश बन गया है।

निजी क्षेत्र में शीत शृंखला निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार बड़े पैमाने पर आर्थिक सहायता व सस्ते दर पर ऋण दे रही है। इसके लिये मेगा फूड पार्क के साथ शीत-शृंखला प्रणाली का विकास किया जा रहा है। हंसा रिसर्च ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार देश में 75 फीसदी कोल्ड स्टोरेजों में आलू का संरक्षण किया जाता है।

देश में स्थापित 95 प्रतिशत कोल्ड स्टोरेजों की स्थापना निजी क्षेत्रों द्वारा, 3 प्रतिशत कारपोरेट क्षेत्र के द्वारा और केवल 2 प्रतिशत कोल्ड स्टोरेजों की स्थापना सरकारी क्षेत्रों द्वारा की गई है। वर्ष 2016-17 के आँकड़ों के मुताबिक देश में कुल 7645 कोल्ड स्टोरेज हैं जिनकी कुल क्षमता 34.95 मिलियन मीट्रिक टन है।

कृषि बाजार तंत्र

किसानों के समक्ष खाद्यान्न उत्पादन से बड़ी चुनौती कृषि उत्पाद को बेचकर उचित मूल्य प्राप्त करना है। बाजार-तंत्र पर सेठ, साहूकार और बिचौलियों का कब्जा होने के कारण किसान कृषि उत्पाद औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर होता है। वैसे भी जब फसल तैयार होती है, तो माँग की तुलना में आपूर्ति की अधिकता के कारण फसल उत्पाद की कीमत बहुत कम हो जाती है।

जहाँ बिचौलिए मोटा मुनाफा कमाने के लिये कृषि उत्पाद को कुछ समय तक रोक लेते हैं या देश के अन्य भागों में बेचते हैं वहीं किसान साल भर हाड़-तोड़ मेहनत और प्राकृतिक चुनौतियों से जूझते हुए फसल उत्पादन के लिये उत्पादन के लिये अपना सब कुछ दाँव पर लगा देता है। इसके बावजूद उसे फसल की समुचित कीमत नहीं प्राप्त होती है। यद्यपि सरकार किसानों को फसल के न्यूनतम मूल्य की गारंटी देने के लिये प्रतिवर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है और बड़े पैमाने पर खाद्यान्न की खरीददारी करती है, लेकिन इसके बावजूद कृषि उत्पाद के उपभोक्ता मूल्य और किसानों को प्राप्त कीमत में भारी अन्तर होता है।

मंडी आधारित विपणन प्रणाली को राज्य सरकारों के कृषि व्यवसाय विनिमय प्रक्रिया द्वारा नियंत्रित किया जाता है। राज्य की विभिन्न मंडियों का संचालन अलग-अलग कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) द्वारा किया जाता है। एपीएमसी अधिनियम औपनिवेशिक शासन व्यवस्था की देन है। इसे व्यवसाय विनिमय शुल्क एवं लाइसेंस के माध्यम से संचालित किया जाता है। इसके अन्तर्गत व्यापारी को एक ही राज्य की विभिन्न मंडियों में व्यापार करने के लिये अलग-अलग लाइसेंस लेना पड़ता था। मंडियों में खरीद-बिक्री को नियंत्रित करने के लिये विपणन बोर्ड होता है जोकि मंडियों में आधारभूत ढाँचे का विकास कर किसानों और व्यापारियों की विपणन प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।

एपीएमसी की जटिल प्रक्रिया तथा राजस्व संग्रह के लिये निर्मित कराधान प्रणाली के कारण किसानों को उपज का समुचित मूल्य नहीं प्राप्त हो पाता है।

किसानों को लागत मूल्य निकाल पाना भी भारी पड़ता है। मंडी शुल्क में भिन्नता के कारण, किसानों द्वारा बिना लाभ प्राप्त किये भी कृषि उत्पाद के मूल्य में वृद्धि हो जाती है। इतना ही नहीं एक ही राज्य के अन्दर भी अलग-अलग बाजार होने के कारण एक बाजार से दूसरे बाजार तक कृषि उत्पादों का मुक्त आवागमन नहीं हो पाता है। कई स्तर पर मंडी शुल्क देने पड़ते हैं।

जटिल विपणन प्रणाली के कारण किसान बिचौलियों को कृषि उत्पाद बेचने को मजबूर होता है। विपणन प्रक्रिया की जटिलता को सरल बनाने के लिये व्यापारिक गतिविधियों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने एग्रो ई-ट्रेडिंग प्लेटफार्म के रूप में ‘राष्ट्रीय कृषि बाजार’ (ई-नाम) की शुरुआत की है।

केन्द्र सरकार कृषि विपणन प्रणाली में सुधार करते हुए किसानों को राष्ट्रीय-स्तर पर फसल बेचने के लिये ‘राष्ट्रीय कृषि बाजार’ ई नाम प्रणाली एवं स्थानीय स्तर पर ‘ग्रामीण कृषि बाजार’ की स्थापना कर रही है। ई-नाम एक पैन इण्डिया इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल है जो कृषि सम्बन्धी उपजों के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार का निर्माण करने के लिये मौजूद एपीएमसी मंडी का विस्तार है।

यह पोर्टल समस्त एपीएमसी से सम्बन्धित सूचनाओं व सेवाओं को एक स्थान पर प्रदान कराता है। अखिल भारतीय अॉनलाइन व्यापार मंच द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत कृषि विपणन व्यवस्था लागू होने से उपभोक्ता और किसान के मध्य अॉनलाइन सूचनाओं का संवाद स्थापित हो सकेगा जिससे राष्ट्रीय-स्तर पर माँग व आपूर्ति के आधार पर खाद्य पदार्थों की कीमतों का निर्धारण हो सकेगा। किसानों की पहुँच राष्ट्रीय बाजार व्यवस्था तक हो सकेगी। किसानों को खाद्य उत्पाद की गुणवत्ता के मुताबिक समुचित कीमत तथा उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर बेहतरीन खाद्य उत्पाद प्राप्त हो सकेंगे।

राष्ट्रीय कृषि बाजार एक आभासी (अमूर्त) बाजार है परन्तु इसके पीछे भौतिक (मूर्त) बाजार एपीएमसी का अस्तित्व है। एपीएमसी से सम्बन्धित समस्त जानकारियाँ और सूचनाएँ ई-नाम पोर्टल पर उपलब्ध हैं। ई-नाम योजना के अन्तर्गत ई-मार्केट प्लेटफार्म की स्थापना की गई है।

ई-नाम प्रणाली के क्रियान्वयन हेतु कृषि उत्पाद बाजार समितियों के कानूनों में संशोधन किया जा रहा है ई-नाम के अन्तर्गत एकल लाइसेंस प्रक्रिया शुरू की जा रही है जिससे किसान एकल व्यापार लाइसेंस द्वारा समूचे राज्य में कारोबार कर सकता है। इसके अन्तर्गत एक जींस के थोक व्यापार के लिये एक ही स्थान पर बाजार शुल्क वसूलने की व्यवस्था की गई है। समस्त विपणन प्रणाली को पहले राज्य-स्तर पर फिर पोर्टल के माध्यम से राष्ट्रीय-स्तर पर जोड़ा गया है।

ई-नाम के द्वारा देश की कृषि बाजार प्रणाली को राष्ट्रीय स्तर पर अॉनलाइन मंच से जोड़ा गया है। इससे कृषि जिंसों का अखिल भारतीय व्यापार सम्भव हो सकेगा। इसमें बाजार शुल्क की वसूली एक स्थान पर किसान से पहली बार खरीद के समय की जाएगी। किसान अपने उत्पाद को ई-नाम बाजार में प्रदर्शित करेगा तथा व्यापारी देश के किसी भी स्थान से अॉनलाइन बोली लगा सकेगा।

खुली बोली या प्रतिस्पर्धा के कारण किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त हो सकेगा। ई-नाम पोर्टल हिन्दी और अंग्रेजी के अतिरिक्त क्षेत्रीय भाषाओं गुजराती, तेलुगू, मराठी और बंगाली में उपलब्ध है। गूगल प्ले स्टोर में भी ई-नाम मोबाइल एप लांच किया गया है। किसान मोबाइल एप की सहायत से ई-नाम में पंजीकरण और राज्य-स्तरीय एकल लाइसेंस प्राप्त कर सकता है और कृषि उत्पादों की खरीद व बिक्री कर सकता है।

मोबाइल एप्लीकेशन 5 भाषाओं हिन्दी, मराठी, गुजराती, तेलुगू और उड़िया में शुरू किया गया है। पेमेंट गेटवे को अब राष्ट्रीय कृषि बाजार मंच से एकीकृत किया गया है। इसमें 90 उपजों को व्यापार मानकों के अनुरूप विकसित किया जा रहा है। सरकार किसानों को ई-नाम के अन्तर्गत व्यापारिक हिस्सेदारी सरल बनाने के लिये निशुल्क प्रशिक्षण दे रही है। ई-नाम द्वारा किसानों को स्थानीय मंडी के अतिरिक्त फसल बेचने के अन्य विकल्प उपलब्ध हो सकेंगे जिससे किसानों को उपज का समुचित मूल्य प्राप्त हो सकेगा।

लघु और सीमान्त किसान जो एपीएमसी या अन्य थोक बाजार तक नहीं पहुँच पाता है, को कृषि उत्पाद बेचने हेतु वित्तमंत्री ने बजट 2018-19 में मौजूदा 22000 ग्रामीण हाटों को ‘ग्रामीण कृषि बाजार’ के रूप में विकसित और उन्नत किये जाने का प्रस्ताव रखा है।

इलेक्ट्रॉनिक रूप से ई-नाम से जुड़े तथा एपीएमसी के विनिमय से छूट प्राप्त किये ग्रामीण कृषि बाजार किसानों को उपभोक्ता एवं थोक खरीदारों से सीधे जोड़ेगा जिससे किसानों को अपने उत्पाद बेचने की सुविधा प्राप्त हो सकेगी।

22000 ग्रामीण कृषि बाजार और 585 एपीएमसी में कृषि विपणन अवसंरचना के विकास और उन्नयन के लिये बजट में 2000 करोड़ रुपए की स्थायी निधि के साथ एक ‘कृषि बाजार अवसंरचना कोष’ की स्थापना का प्रस्ताव है। ग्रामीण कृषि बाजारों का विकास करने के लिये मनरेगा व अन्य योजनाओं का उपयोग किया जाएगा। किसानों को खेत से ही कम्पनियों को उपज बेचने की छूट दी जा रही है जिसके लिये कानूनी जटिलताओं को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।

खाद्य प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन

किसान साल में 5-6 महीने तक तो कृषि कार्यों में व्यस्त रहता है जबकि शेष 6 से 7 महीने खाली रहता है। इस दौरान या तो वह महानगरों में जाकर मजदूरी करता है अथवा बेरोजगार रहता है। फलों और सब्जियों की प्रकृति शीघ्रता से विनष्टकारी होने के कारण बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं। इसे लम्बे समय तक संरक्षित रखने के लिये कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है।

देश में कोल्ड स्टोरेजों का अभाव होने के कारण बड़े पैमाने पर फल व सब्जियाँ खराब हो जाती हैं। खाद्य प्रसंस्करण विधि द्वारा जहाँ एक ओर फल व सब्जियों के भौतिक व रासायनिक प्रकृति में परिवर्तन कर सामान्य तापक्रम पर लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर किसानों को स्थानीय-स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं। मोदी सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण की महत्ता को देखते हुए देश में पहली बार खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय का गठन किया है।

खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार ने बजट 2018-19 में खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के लिये 1400 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं। खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिये ‘प्रधानमंत्री कृषि सम्पदा योजना’ आरम्भ की गई है। कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये सभी 42 मेगा फूड पार्क में अत्याधुनिक परीक्षण सुविधा स्थापित की जा रही है।

खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में प्रतिवर्ष औसतन 8 प्रतिशत की दर से विकास हो रहा है। कृषि आय बढ़ाने के लिये डेयरी, पशुपालन, मत्स्य, पोल्ट्री इत्यादि के विकास पर भी जोर दिया जा रहा है। किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा का विस्तार मत्स्य एवं पशुपालन करने वालों तक कर दिया गया है। इसके लिये सरकार में प्रशिक्षण, सहायता और अनुदान देने की व्यवस्था की है। स्वयंसहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वावलम्बी बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

टमाटर, आलू और प्याज जैसी शीघ्र नष्ट होने वाली फसलों की कीमतों को निश्चितता से बचाने के लिये ‘अॉपरेशन फ्लड’ की तर्ज पर ‘अॉपरेशन ग्रीन’ योजना शुरू किया गया है। ‘अॉपरेशन ग्रीन’ के द्वारा किसानों, उत्पादक संगठनों, कृषि संभार तंत्र, प्रसंस्करण सुविधाओं, व्यवसाय प्रबन्धन में सामंजस्य स्थापित किया जाएगा। इसके लिये 500 करोड़ रुपए की निधि स्थापना की घोषणा की गई है।

देश में समावेशी विकास के लिये सेवा और औद्योगिक क्षेत्र की प्रगति के साथ-साथ कृषि क्षेत्र का विकास भी आवश्यक है। देश की लगभग दो तिहाई आबादी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में संलग्न है। कृषि क्षेत्र में बढ़ते जनांकिकी दबाव की चुनौतियों से निपटने के लिये कृषि का औद्योगिकरण किया जा रहा है। इसके लिये सरकार परम्परागत कृषि प्रणाली का आधुनिकीकरण कर, कृषि की आधारभूत अवसंरचना विकास के निवेश पर जोर दे रही है।

किसानों को मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों का परीक्षण कर मृदा स्वास्थ्य प्रमाणपत्र प्रदान किया जा रहा है जिससे किसान आवश्यकतानुसार उर्वरकों का उपयोग कर सकें। इसी प्रकार उर्वरकों की गुणवत्ता बढ़ाने तथा कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने के लिये नीम कोटेड यूरिया के प्रयोग पर बल दिया जा रहा है। असिंचित भू-भाग में सिंचाई सुविधाओं के विस्तार और सिंचित भू-भाग में जल संरक्षण के प्रयास किये जा रहे हैं। आधुनिक कृषि संयंत्रों के निर्माण में सब्सिडी और कर राहत तथा किसानों द्वारा कृषि संयंत्रों को खरीदने के लिये ऋण सहायता प्रदान की जा रही है।

खाद्यान्न और फल-सब्जियों को लम्बे समय तक संरक्षित करने के लिये भण्डारगृहों एवं कोल्ड स्टोरेजों का निर्माण किया जा रहा है, लेकिन अभी इसकी संख्या पर्याप्त नहीं है कृषि उत्पादों की विपणन प्रणाली में सुधार के लिये ई-नाम पोर्टल एवं ‘ग्रामीण कृषि बाजार’ को स्थापित किया जा रहा है जोकि कृषि विपणन प्रणाली की दिशा में एक क्रान्तिकारी कदम है।

स्थानीय-स्तर पर रोजगार के अवसर मुहैया कराने के लिये खाद्य प्रसंस्करण तकनीकी पर जोर दिया जा रहा है। इससे किसान घरेलू स्तर पर उपलब्ध कृषि उत्पाद का मूल्य संवर्धन कर मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। स्वयंसहायता समूह बनाकर खाद्य प्रसंस्करण तकनीकी द्वारा स्थानीय-स्तर पर बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसरों का सृजन किया जा रहा है। सरकार कृषि के उत्थान और किसानों के आर्थिक उन्नयन के लिये अनेक योजनाओं का संचालन कर रही है। जरूरत है कि सरकारी योजनाओं का धरातल पर ईमानदारी से क्रियान्वयन किया जा सके।

सन्दर्भः

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट, खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की रिपोर्ट
http://enam.gov.in/
http://nhb.gov.in
https://www.mygov.in/
http://www.narendramodi.in/
http://agriculture.gov.in/
http://agricoop.nic.in/
(लेखक खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन, हाथरस में अभिहित अधिकारी हैं।)

ई-मेलःdewashishupadhy@gmail.com

TAGS

basic infrastructure development of agriculture, rise in minimum support price, national agriculture market, rural agriculture market, green revolution, sharp rise in food grain production, sky rocketing price of basic commodities, watershed planning to increase groundwater table, examples of agricultural infrastructure, agricultural infrastructure definition, infrastructure required for agriculture, agricultural infrastructure in india, role of infrastructure in agriculture development, what is agriculture infrastructure, impact of rural infrastructure on agricultural production, agriculture infrastructure development in india, role of infrastructure in agriculture development, examples of agricultural infrastructure, agricultural infrastructure definition, infrastructure required for agriculture, agricultural infrastructure in india, impact of rural infrastructure on agricultural production, what is agriculture infrastructure, agriculture infrastructure development in india, national agriculture market scheme the hindu, national agriculture market gktoday, national agriculture market pib, national agriculture market in hindi, national agriculture market upsc, electronic national agriculture market is funded by, e-nam app, e-nam website, rural and agricultural marketing notes, types of agricultural marketing, rural and agricultural marketing pdf, importance of agricultural marketing, process of agricultural marketing, nature of agricultural marketing, advantages of agricultural marketing, features of agricultural marketing, green revolution india, impact of green revolution, importance of green revolution, benefits of green revolution, green revolution essay, short note on green revolution, effects of green revolution, father of green revolution, food grain production in india statistics, food grain production in india 2016-17, total food grain production in india 2017-18, food grain production in india from 1950 to 2016, year wise food grain production in india, table of food grain production in india, food production and consumption trends in india 2017, food grain production in india from 1950 to 2012, watershed management, types of watershed management, methods of watershed management, rain water harvesting and watershed management in india, groundwater and watershed management mppsc, watershed structure, water conservation rain water harvesting watershed management pdf, rainwater harvesting and watershed management pdf.

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading