कृष्णा से मिली गोदावरी, साकार हुआ वाजपेयी का सपना

29 Oct 2015
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Godavari River
Godavari River

नदियों को जोड़ो भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। पाँच दशक पहले दक्षिण भारत के प्रमुख अभियन्ता और पूर्व सिंचाई मन्त्री डॉ. के.एल राव ने नेशनल वॉटर ग्रिड का प्रस्ताव रखा था। लेकिन बदलती सरकारों ने इस अति महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव को ठण्डे बस्ते में डाल दिया। फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने नदियों को जोड़ने की परियोजना को शुरू करने की पहल की। लेकिन सरकार बदलने और कुछ पर्यावरणविदों के विरोध के चलते परियोजना फिर अधर में लटक गई। लेकिन 16 सितम्बर को आंध्र प्रदेश के मुख्यमन्त्री चन्द्रबाबू नायडु ने इस परियोजना का शुभारम्भ कर वाजपेयी का सपना साकार किया है।

विजयवाड़ा के समीप 16 सितम्बर को जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमन्त्री एन. चन्द्रबाबू नायडु ने वैदिक मन्त्रोच्चार के बीच नारियल फोड़कर पट्टीसीमा लिफ्ट इरिगेशन प्रोजेक्ट का शुभारम्भ किया तो उस वक्त उनके चेहरे का भाव देखने लायक था। उक्त अवसर को ऐतिहासिक बताते हुए नायडू ने कहा कि आज जितनी खुशी उन्हें मिल रही है, वैसी पहले कभी नहीं मिली थी। नायडु के शब्द बताने के लिए काफी हैं कि प्रायद्वीपीय भारत की दो प्रमुख नदियों के मिलने के मायने क्या हैं। वैसे भी गोदावरी को कृष्णा से मिलाने का काम कोई नया और आसान नहीं था। लेकिन सीएम को संतोष इस बात से था कि वे रिकॉर्ड समय में इस परियोजना को पूरा करा सके और इस तरह नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना में आंध्र प्रदेश को पहले पायदान पर लाने में कामयाब हुए।

दक्षिण की गंगा कही जाने वाली गोदावरी नदी 174 किलोमीटर की यात्रा कर आखिरकर कृष्णा नदी से मिल गई। इसे भारत में नदियों को जोड़ने की दिशा में ऐतिहासिक पहल और भारत में नेशनल वॉटर ग्रिड बनाने की दिशा में पहला कदम बताया जा रहा है। अब दिसम्बर में इस चरण का दूसरा ऐतिहासिक काम होगा जब मध्य प्रदेश की केन और उत्तर प्रदेश की बेतवा नदी का मिलन होगा।

पट्टीसीमा प्रोजेक्ट के तहत गोदावरी के पानी को पोलावरम साउथ नहर के जरिये विजयवाड़ा के समीप कृष्णा नदी में पहुँचाया गया। उद्घाटन के दिन नहर के आस-पास बसे गाँवों में मेले सा माहौल दिखा। जगह-जगह लोग नदी के जल में डुबकी लगाते और जल में पुष्प-दीप अर्पित करते नजर आए। संयोग देखिए कि गोदावरी का कृष्णा से मिलन ऐसे वक्त हुआ जब नासिक में इसी पावन नदी के किनारे सिंहस्थ कुम्भ लगा है और पिछले महीने ही आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में गोदावरी पुष्करालु नामक 12 साल पर होने वाला धार्मिक आयोजन पूर्ण हुआ है।

गोदावरी और कृष्णा के इस जुड़ाव से आंध्र प्रदेश के सूखाग्रस्त कहे जाने वाले रायलसीमा इलाके को ज्यादा फायदा होगा। योजना के मुताबिक 80 टीएमसी पानी पम्प के जरिये दक्षिण पोलावरण नहर में छोड़ा जाएगा। साथ ही रास्ते में बरसाती नदी नालों से 40 टीएमसी फीट पानी का जुगाड़ किया जायेगा। इससे कृष्णा, गुंटूर, चित्तूर, अनंतपुर, कडपा और प्रकाशम जिले के लोगों को खासी राहत मिलेगी।

बीते एक दशक से इस इलाके के लोग पानी की भारी कमी से परेशान रहे हैं। सिंचाई और पीने के पानी के लिए भी हाहाकार सा मचा रहता है। अब समुद्र में बेकार जाने वाले गोदावरी नदी के 3,000 टीएमसी फीट बाढ़ के पानी को राज्य में सूखा प्रभावित क्षेत्र की तरफ मोड़ा जाएगा। इस परियोजना से 17 लाख एकड़ जमीन पर होने वाली खेती को पानी मिल सकेगा, जिसे कृष्णा डेल्टा एरिया के नाम से जाना जाता है। साथ ही नहर किनारे बसे सैकड़ों गाँवों में पेयजल की सप्लाई भी हो पाएगी। तकरीबन 1,300 करोड़ रुपए की लागत वाली ये परियोजना रिकॉर्ड आठ महीने में पूरी हुई। इसके साथ ही आंध्र प्रदेश की चारों प्रमुख नदियाँ- कृष्णा-पेन्नार, गोदावरी-कृष्णा और पेन्नार-तुंगभद्रा एक-दूसरे से जुड़ गई हैं।

दरअसल ये परियोजना उस अति महत्वाकांक्षी पोलावरम जल-विद्युत परियोजना का एक भाग है, जिसे लेकर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच लम्बे समय से विवाद चला आ रहा है। नतीजा है कि राष्ट्रीय महत्व की परियोजना घोषित होने के बावजूद पोलावरम परियोजना अधूरी पड़ी है।

परियोजना लोकार्पण के मौके पर कृष्णा नदी के तट पर बसे मछुआरों के गाँव फेरी में मुख्यमन्त्री चन्द्रबाबू नायडु ने कहा कि अगले साल से हमारे किसानों की मॉनसून पर निर्भरता पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी। वे साल में दो फसलें उगा सकेंगे। इसके लिए उन्हें सितम्बर महीने तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। परियोजना को लेकर बेहद आशान्वित नायडु ने कहा कि आने वाले वर्षों में आंध्र प्रदेश सूखे की समस्या से निजात पाने में कामयाब होगा।

अभी भी योजना के तहत 24 मोटर पम्पों के जरिये गोदावरी से कृष्णा में पानी भेजा जाएगा। जिस इब्राहिमपटनम के पास दोनों नदियों का संगम हो रहा है, उस स्थान को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाएगा।

करीब 200 साल पहले ब्रिटिश इंजीनियर सर आर्थर कॉटन ने भारत में नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव तैयार किया था। सबसे पहले उन्होंने गोदावरी और कृष्णा नदी को जोड़ने का खाका तैयार किया। लेकिन इसके बाद यह मामला ठण्डे बस्ते में चला गया। पाँच दशक पहले दक्षिण भारत के प्रमुख अभियन्ता और पूर्व सिंचाई मन्त्री डॉ. के. एल राव ने नेशनल वॉटर ग्रिड का प्रस्ताव रखा था। लेकिन बदलती सरकारों ने इस अति महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव को ठण्डे बस्ते में डाल दिया। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने नदियों को जोड़ने की परियोजना को शुरू करने की पहल की। लेकिन सरकार बदलने और कुछ पर्यावरणविदों के विरोध के चलते परियोजना फिर अधर में लटक गई। साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर जल संसाधन मन्त्रालय को इस परियोजना को लेकर झकझोरता रहा।

एक तरफ इस परियोजना के फायदे गिनाते आंध्र प्रदेश की टीडीपी सरकार नहीं थक रही है और इलाके के किसान भी बेहद आशान्वित हैं। लेकिन विरोधी दल के नेता अपनी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं। विपक्षी दल वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी ने नायडु पर इस परियोजना का अकेले क्रेडिट लेने का आरोप मढ़ दिया है। जगन का कहना है कि उनके दिवंगत पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने और उसे संशोधित नेशनल वाटर ग्रिड प्रोजेक्ट से जोड़ने की पहल की थी।

कुछ पर्यावरणवादी इस परियोजना से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिन्ता जता रहे हैं। उनका कहना है कि दोनों नदियों को जोड़ने से दो तरह के पानी का मिलन होगा, जो जलीय जीवों के लिए परेशानी पैदा करेगा। दूसरी ओर नहर में सालों भर पानी आने से इलाके का भूजल स्तर असामान्य तरीके से ऊपर आएगा, जो बड़े पेड़ों और पौधों के जड़ को प्रभावित करेगा। ये नहर बुडमेरू नदी से जुड़ेगी। यदि उसमें बाढ़ आती है तो विजयवाड़ा सहित कृष्णा जिले और वेस्ट गोदावरी जिले के बड़े हिस्से प्रभावित होंगे। वेस्ट गोदावरी के किसान इस बात से चिन्तित हो रहे हैं कि गोदावरी का पानी कृष्णा में भेजे जाने पर गोदावरी डेल्टा में पानी के बहाव में कमी आएगी।

वैसे भी गोदावरी दक्षिण भारत की एक प्रमुख नदी है। इसकी उत्पत्ति पश्चिमी घाट के पहाड़ से हुई है जो त्रयम्बकेश्वर (नासिक) के समीप है। नदी की लम्बाई लगभग 1450 किलोमीटर है और इसका पाट भी बहुत बड़ा है। गोदावरी नदी महाराष्ट्र, तेलंगाना से बहती हुई आंध्र प्रदेश राजमुन्द्री शहर के समीप बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है।

इसी तरह कृष्णा भी प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। इसका उद्गम महाराष्ट्र का महाबलेश्वर है। ये नदी महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं। कृष्णा नदी में भीमा और तुंगभद्रा नामक दो बड़ी सहायक नदियाँ और लगभग आधे दर्जन उप-नदियाँ गिरती हैं।

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