कठोर चट्टानी भूजलधारक क्षेत्र में बोरवेल पूलिंग द्वारा पानी का प्रबन्धन

30 Mar 2018
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अकाल की चरम स्थिति के दौरान नुकसान कम करने के साथ-साथ भूजल तालिकाओं के स्तर को सुधारने और संसाधनों का सामूहिक स्वामित्व तैयार करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा यह किसानों को सही और उचित निर्णय लेने में मदद करता है कि ऋतु में कौन सी फसल बोई जाए ताकि सिंचाई के अभाव में फसल के नुकसान के खतरे को कम किया जा सके। साथ ही उन्हें अपनी लागत, समय और मेहनत को भी नियमित करने का अवसर मिलता है जिससे फसलों को और भी सुरक्षित रखा जा सके। भारत की भौगोलिक रचना का 65% हिस्सा कठोर चट्टानों से बना है जिनमें से 40% से भी अधिक भाग अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है। इन क्षेत्रों में पाई जाने वाली जलधारक चट्टानों में आमतौर पर काफी कम मात्रा में जल रखने और देने की क्षमता है। इस परिप्रेक्ष्य से देखा जाए तो सिंचाई हेतु किये गए अत्यधिक दोहन के कारण भूजल का स्तर घटता जा रहा है।

बरसात के बदलते चक्र ने परिस्थिति को और भी गम्भीर बना दिया है। वर्षा और तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण आने वाली अस्थिरता के चलते पिछले दशक में सूखे या अकाल जैसी स्थिति बनी रहती है और साथ ही कृषि उत्पादन पर इसका काफी बुरा असर पड़ा है। परिणामस्वरूप, आजीविका और रोजगार के अन्य साधनों पर निर्भर किसान शहरों में पलायन कर रहे हैं। उत्पादन में लगातार गिरावट और किसानों के सर पर बढ़ता कर्ज कृषि को प्रभावित कर रहा है।

क़र्ज़ या ऋण चुकाने में असमर्थ किसान दुर्भाग्य से आत्महत्या का सहारा ले रहे है साथ ही, भूमि के विखंडित परिदृश्य के कारण भूजल संसाधनों पर अधिकार के लिये संघर्ष और प्रतियोगिता दिन-ब-दिन बढ़ रही है। इन बढ़ती समस्याओं के चलते मानव जीवन के पाँचों दीर्घकालिक आधारस्तंभ- प्राकृतिक, सामाजिक, मानवीय, आर्थिक और भौतिक संसाधन प्रभावित हो रहे है।

केंद्रीय और राज्य स्तर की सूखा राहत योजनाएँ या फिर क़र्ज़-माफ़ी योजनाएँ, भूजल और भूजल संसाधनों के बेहतर प्रबन्धन के लिये किसानों को प्रोत्साहित करने में असमर्थ रही हैं। इस स्थिति में, अच्छी बारिश भी किसानों को ऋण-मुक्त करने के लिये सक्षम नहीं है।

अकाल की पुनरावृति ने कृषि-समुदायों की कमर ही तोड़ दी है और उसे सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं के प्रति संवेदनशील बना दिया है। फलस्वरूप, किसान खेतों की अच्छी सिंचाई की आशा रखते हुए क़र्ज़ लेकर कठोर क्रिस्टलीय चट्टानों में और भी अधिक गहराई तक बोरवेल करा रहे हैं। हालांकि इस ड्रिलिंग के बावजूद अच्छे जल-भंडार या कुएँ मिलने में वे अधिकतर असफल ही हैं।

असफल बोरवेल्स की संख्या बढ़ना तेलंगाना में एक आम बात हो गई है। आमतौर पर पुरानी बोरवेल्स से 5 मीटर से भी कम दूरी पर नई बोरवेल्स बनाई जा रही हैं। जिससे कुएँ प्रभावित हो रहे हैं। इससे भूजल संसाधनों पर दबाव भी बढ़ रहा है और किसान अधिक निवेश हेतु पुनः कर्ज लेने के लिये मजबूर हो रहे हैं। इस दबाव के तहत, कभी-कभी किसान आत्महत्या तक कर लेते हैं।

एक ही भूजल धारक से पानी पम्प करने वाले कई कुओं के परिणामस्वरूप पानी के स्तर में होने वाली गिरावट मौजूदा भूजल संसाधनों को समाप्त भी कर सकती है। कठोर चट्टानों वाली भूमि में चट्टानों के जलवाही स्तर एक दूसरे के जलवहन की क्षमता में बाधा डाल सकते हैं, जिससे भूजल स्तर में और भी गिरावट आ सकती है और भूजल के पुनर्भरण की क्षमता कम होती जाती है।

कृषि समुदाय की आजीविका और बेहतरी को ध्यान में रखते हुए भूजल का इस्तेमाल सामूहिक सहभागिता के साथ होना चाहिए। इसके लिये जरूरी है भूजल का पुनर्भरण एवं एकत्रित संसाधनों के सामूहिक उपयोग में निवेश। कठोर चट्टानों के क्षेत्रों में किसानों द्वारा भूजल का एकत्रीकरण ही घटते भूजल संसाधनों को पुन: उबारने का विकल्प हो सकता है। यह भूजल “पूलिंग” शहरों के “कारपूलिंग” के समान है जहाँ लोग सड़कों पर भीड़ कम करने और हवा में कार्बन के प्रमाण को कम करने हेतु एक ही कार में साथ सफर करते हैं।

बोरवेल पूलिंग कुओं के नियमन में मदद करने, स्पर्धात्मक ड्रिलिंग को कम करने, अकाल की चरम स्थिति के दौरान नुकसान कम करने के साथ-साथ भूजल तालिकाओं के स्तर को सुधारने और संसाधनों का सामूहिक स्वामित्व तैयार करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा यह किसानों को सही और उचित निर्णय लेने में मदद करता है कि ऋतु में कौन सी फसल बोई जाए ताकि सिंचाई के अभाव में फसल के नुकसान के खतरे को कम किया जा सके। साथ ही उन्हें अपनी लागत, समय और मेहनत को भी नियमित करने का अवसर मिलता है जिससे फसलों को और भी सुरक्षित रखा जा सके।

सफलता की कुछ कहानियाँ


अर्ध-शुष्क क्षेत्र में कृषि समुदायों की प्राकृतिक एवं आर्थिक सम्पदा के सुरक्षा हेतु , तेलंगाना में WOTR टीम ने भूजल एकत्रीकरण योजना अंतर्गत रंगारेड्डी जिले के तालकोंडापल्ली ब्लॉक के 4 गाँवों के किसान समूहों को एक साथ लाने का प्रयास किया है। हालांकि ऐसे कई भूजल एकत्रीकरण (पूलिंग) मॉडल पूरे भारत में मौजूद हैं, मगर यह मॉडल एक विशिष्ट रूप से तैयार टपक सिंचाई प्रणाली के अनोखे माध्यम से बोरवेल्स को जोड़ता है जिससे भूजल प्रबन्धन एवं उसके उपयोग को सुनिश्चित किया जा सके।

भूजल-एकत्रीकरण (पूलिंग) को और अधिक व्यावहारिक बनाने के लिये और कृषि समुदायों की क्षमता बढ़ाने के लिये कठोर प्रयास किए गए हैं। इनमें जल-विज्ञान और भूजल की उपलब्धता पर जानकारी, ​​पुनर्भरण क्षेत्रों को पहचानने के लिये भूजल स्तर की जाँच, और पानी के स्तर में हो रहे बदलावों का बेहतर मूल्यांकन करने के तरीकों का समावेश है। इसके अतिरिक्त, ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के आयोजन में, फसलों में बढ़ोतरी की प्रणाली में (सिस्टम ऑफ़ क्रॉप इंटेंसिफिकेशन - एस.सी.आई), जैविक खाद के उत्पादन में, और पुनर्भरण हेतु बनाए गए मेड़ों और बाँधों के निर्माण में भी सहायता प्रदान की गई है।

यह सारे प्रयास ग्रामीण समुदायों को, एकत्रित या साझे संसाधनों की सिंचाई योजना और उसके लाभों के प्रति जागरूक करने में मदद कर रहे हैं जिनके आधार पर ही भूजल एकत्रीकरण की रुपरेखा तैयार की गई है । कुछ ही किसान समूहों के साथ शुरू हुई इस योजना में अब अधिक किसान समूह शामिल हो रहे हैं क्योंकि अब उन्हें भूजल के साझे उपयोग से मिलने वाले लाभ का एहसास है। आज 73 किसान इस नए प्रयोग से जुड़े हैं और कुछ किसान इसे अपनाने के लिये तैयार हैं।

भूजल एकत्रीकरण कठोर चट्टानों के एक्विफर्स के स्तर में बढ़ोतरी करता है। इस एकत्रीकरण या साझे दृष्टिकोण का अनुकरण करने वाले अधिकाधिक किसान समूहों के साथ, इस मॉडल में भूजल संसाधनों के प्रबन्धन सम्बन्धी एक प्रभावी रणनीति बनने की क्षमता है। इसलिये, ऐसे मॉडल को प्रोत्साहन देना जरूरी है जहाँ किसान समूह एकत्रित हों और अपनी प्राकृतिक पूँजी का बेहतर ढंग से प्रबंधन करें। विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच संसाधनों का व्यापक एकत्रीकरण और उसी के सुरक्षात्मक आधार पर इसका उपयोग अकालग्रस्त भूमि पर भी खेती करने और खाद्य उत्पादन को सुनिश्चित करने के लिये किया जा सकता है।

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