कुख्यात चंबल घाटी होगी विख्यात

5 Jul 2011
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बीहड़ की ऐसी बलखाती वादियां समूची पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं नहीं देखी जा सकतीं हैं। अटेर का अपना एक अलग इतिहास है और किले की प्राचीर से बलखाती गुजरती चंबल नदी किसी समुद्री बीच से किसी मामले में भी कमतर नहीं है। जिला प्रशासन अपने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के प्रति जिस प्रकार से उत्साहित है वहीं अटेर की ओर जाने वाले रास्ते इस प्रोजेक्ट की सफलता में बाधक साबित हो सकते हैं।

दस्यु संरक्षण के लिए कुख्यात रहीं चंबल की वादी की तस्वीर बदलने के लिए की जा रही कवायद का एक हिस्सा बनाने का प्रयास किया जा रहा है। प्रकृति की तमाम अद्भुत धरोहरों को अपने आगोश में समाने वाली इन्हीं वादियों के प्रति राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने आने वाले देशी व विदेशी सैलानियों के अंतःमन में रम चुकी कुख्यात चंबल घाटी को अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात करने का प्रयास मध्य प्रदेश के भिंड जिला प्रशासन ने कर दी है। चंबल चैलेंज नाम से तैयार कराए गए इस प्रोजेक्ट में पर्यटक चंबल की घाटी में संरक्षित दुर्लभ प्रजाति के जलीय जीवों के दीदार तो कर ही सकेंगें अपितु मिट्टी के पहाड़ों पर रोमांचक खेलों का आनंद भी उठा सकेंगें। देश में पहली मर्तबा होने जा रहे राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन चंबल की घाटी की तस्वीर भी बदल सकते हैं। भिंड के युवा जिलाधिकारी रघुराज राजेंद्रन ने इसके लिए अपने प्रोजेक्ट पर काम करना भी शुरू कर दिया है। जिलाधिकारी का यह प्रयास इसलिए भी काफी मायने रखता है कि अभी तक इस प्रोजेक्ट के लिए न तो मध्य प्रदेश के टूरिस्ट विभाग ने मंजूरी दी है और न ही राज्य सरकार ने। हालांकि इसके बावजूद भी भिंड प्रशासन ने अटेर के किले के ऐतिहासिक स्वरूप एवं किले के नजदीक से इठलाती होकर गुजरती नीले पानी वाली चंबल नदी के आर्कषण को चंबल घाटी के स्वरूप को बदलने में लाभ उठाने का फैसला लिया है।

यह वह स्थान है जहां से चंद मिनट की दूरी पर ही चंबल में अठखेलियां करतीं डॉल्फिन को सैलानी बेखौफ होकर निहार सकेंगें। ढलते सूरज की लाल किरणों के मध्य चंबल में लहराता नीला पानी किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकेगा। यहीं पास में ही नदगवां में घड़ियालों के दुर्लभ नजारों को सैलानी देख सकेंगें। भिंड जिला प्रशासन की मंशा यह है कि चंबल के इस नजारे को गोवा के किसी दर्शनीय बीच की भांति संवारा जाए। इसके लिए भिंड प्रशासन पूरी तन्मयता से जुट गया है। दिल्ली में होने जा रहे कॉमनवेल्थ गेम्स के साथ ही बटेश्वर के ऐतिहासिक शिव मंदिर पर लगने वाले विशाल मेले में भाग लेने आने वाले सैलानियों को प्रकृति के इन अद्भुत नजारों को दिखाने के लिए प्रशासन ने क्षेत्रीय गाइडों को प्रशिक्षण देना भी आरंभ कर दिया है। चूंकि यह आयोजन 11 से 16 अक्टूबर, 2010 में किया जाना प्रस्तावित है तो इस मौसम में सैलानी माइग्रेड वर्ड जो साइबेरिया, यूके एवं ऑस्ट्रेलिया से स्वतः आतीं है उनके साथ ही आनंद उठा सकेंगें। गौरतलब है कि चंबल के इस सफारी क्षेत्र में 280 प्रजाति की विभिन्न प्रवासी पक्षी सर्दियों के मौसम भ्रमण करने आते रहे हैं।

यहां सैलानी प्राकृतिक धरोहरों का लुफ्त तो उठाएंगे इसके साथ ही यहां रोमांचक खेलों का आयोजन उन्हें पर्वतीय स्थलों का अहसास कराएंगे। प्रशासन ने इसके लिए उत्तराखंड के ट्रैनरों से रैकी ही नहीं करा ली है बल्कि अटेर के ऐतिहासिक किले पर रस्सी के सहारे चढ़ने और उतरने का अभ्यास भी करा लिया है। इस प्रोजेक्ट को सफल स्वरूप देने के लिए ही यहां ट्रेजर हंट्स एवं एडवेंचर गेम के आयोजनों के साथ ही चंबल ट्रेजर हंट, वाटर राइट्स, बनाना राइड, एलिगेटर एवं डॉल्फिन स्पॉटिंग, पैरासाइलिंग, हॉट एअर बैलूनिंग, रॉक क्लाइविंग एवं जॉर्बो वॉल जैसे भी आयोजन कराए जाएंगें। सैलानियों के इन सबसे हटके दस्यु जीवन छोड़कर सामाजिक जीवन में रच बसे पूर्व दस्यु सम्राट मोहर सिंह एवं मलखान जैसे डकैतों से भी रूबरू होने का मौका मिल जाएगा। मध्य प्रदेश के भिंड जिले के अपर जिलाधिकारी छोटे सिंह ने बताते हैं कि अत्याधुनिक जीवन शैली में रचे बसे यहां आने वाले सैलानियों के रहने के लिए किले से सटकर ही दस टैंट लगवाएं जाएंगे।

यह बाहरी तौर पर बेशक टैंट का स्वरूप होगा, परंतु इसके अंदर सैलानियों को पांच सितारा जैसी प्रत्येक सुविधा मुहैया कराई जाएगी। दस गुणा बारह के आकार वाले प्रत्येक टैंट की लागत तकरीबन साठ हजार रुपये अनुमानित है। इस प्रोजेक्ट की सफलता के उपरांत इस प्रकार के चार सौ टैंट लगाया जाना प्रस्तावित है और इसके लिए इस प्रोजेक्ट के लिए बारह करोड़ रुपये का प्रस्ताव शासन को बनाकर भेजा भी गया है। इस प्रोजेक्ट की कामयाबी के लिए प्रशासन के आला अधिकारी आगरा, ग्वालियर जैसे ऐसे स्थानों पर जहां सैलानियों की संख्या अधिक रहती है, वहां के टूर ऑपरेटर्स एवं पर्यटन विभाग से भी संपर्क किया गया है। फिलहाल प्रशासन को जिस प्रकार से पर्यटन से जुड़े लोगों का सहयोग मिल रहा है उससे उम्मीद है कि वह अपने इस मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर लेगा। इस आयोजन के दौरान सैलानियों को चंबल में घूमने के लिए जहां आठ मोटर बोटें प्रयोग में लाई जाएंगीं। प्रशासन का अटेर के मूल रूप से रहने वाले विदेश मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव डॉ. आर. के. दीक्षित ने भी पूरा सहयोग देने का भरोसा जताया है।

चंबल में बदलाव की यह बयार यदि कामयाब हो जाती है तो इसका न सिर्फ भिंड बल्कि इटावा, आगरा, मुरैना, धौलपुर की चंबल सफारी भी पर्यटन के लिए खुल सकेगी। अपर जिलाधिकारी बताते हैं कि यूं तो चंबल घाटी वर्तमान में दस्यु विहीन है और सुरक्षा का कोई खतरा नहीं है। इसके बावजूद सैलानियों की सुरक्षा का पूरा प्रबंध किया जाएगा। प्रशासन प्रत्येक प्वॉइंट पर अंतर-प्रांतीय स्तर की सैलानियों को सुरक्षा देगा और सुरक्षा में मध्य प्रदेश के स्टेट आर्म्स फोर्स का सहयोग लिया जाएगा। चंबल सेंचुरी पर्यटन काउंसिल के सदस्य एवं डीआरडीए के परियोजना प्रबंधक अमित मिश्रा बताते हैं कि इस आयोजन के दौरान चंबल एवं मध्य प्रदेश की समृद्धि संस्कृति से भी सैलानियों को रूबरू कराया जाएगा। यहां के लोक गायन मसलन बड़बोला, आल्हा, लांगुरिया जैसे गीतों के साथ ही यहां की संस्कृति के वाहन नृत्यों के आयोजन भी पर्यटकों को खासा भाएंगे। इसके लिए फिलहाल भारतीय पुरातत्व विभाग को पत्र लिखकर किले में आयोजन कराने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसा न हो पाने की स्थिति में फिर चंबल नदी के किनारे संध्याकाल में यह आयोजन होंगें। पर्यटकों के खान-पान की ओर ध्यान देते हुए इस प्रोजेक्ट में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कंपनियों को यहां स्टॉल लगवाने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। इस प्रयास से क्षेत्रीय लोगों के रोजगार की भी संभावनाएं बढ़ जाएंगी और वह अपना रोजगार पा सकेंगें।

अपर जिलाधिकारी छोटे सिंह बताते हैं कि चंबल के इस क्षेत्र के नौजवानों का देश की सुरक्षा में सदैव ही योगदान रहा है। यहां के लोगों में जहां बल है तो बुद्धि भी है। बस इसी को संवारने की कोशिश है। पीले फूलों के लिए ख्याति प्राप्त रही यह वादी उत्तराखंड की पर्वतीय वादियों से कहीं कमतर नहीं है। अंतर सिर्फ इतना है कि वहां पत्थरों के पहाड़ हैं तो यहां मिट्टी के पहाड़ है। बीहड़ की ऐसी बलखाती वादियां समूची पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं नहीं देखी जा सकतीं हैं। अटेर का अपना एक अलग इतिहास है और किले की प्राचीर से बलखाती गुजरती चंबल नदी किसी समुद्री बीच से किसी मामले में भी कमतर नहीं है। जिला प्रशासन अपने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के प्रति जिस प्रकार से उत्साहित है वहीं अटेर की ओर जाने वाले रास्ते इस प्रोजेक्ट की सफलता में बाधक साबित हो सकते हैं। भिंड से अटेर तक के तीस किमी की यह दूरी सैलानियों को खासा परेशान कर सकतीं हैं। ग्वालियर की ओर से आने वाले पर्यटक इसी एकमात्र रास्ते का प्रयोग करेंगें। यह मार्ग जहां संकरा तो है ही बल्कि जगह-जगह गड्ढे और अनावश्यक बने स्पीड ब्रेकर टूरिस्टों के वाहन में परेशानियों की दीवारें खड़ी करेंगें।

चंबल नदीचंबल नदीचंबल की जिन वादियों में पर्यटकों को भ्रमण कराने की भिंड प्रशासन ने जो प्रोजेक्ट तैयार किया है उसका अतीत काफी खौफनाक रहा है। यह सही है कि अब चंबल की यह वादियां दस्यु समस्या से पूरी तरह से अप्रभावित है, परंतु चंबल की इस घाटी के इतिहास के इस कदर खूंखार डकैतों का बोलबाला रहा है जिनके आगे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान जैसे प्रांतों का सुरक्षा तंत्र पूरी तरह से असहाय नजर आता था। एक के बाद एक जघन्य आपराधिक वारदातों को अंजाम देने वाले इन दस्यु सरगनाओं एवं उनके गिरोह के सदस्यों को इन्हीं बीहड़ों की खारें अपने आगोश में छिपा लिया करतीं थीं। यदि इसी अटेर के ऐतिहासिक किले की बात की जाए तो वर्ष 1907 का मंजर बरबस ही जेहन में उबर आता है जब 21 पुलिसकर्मियों को उनके परिवारों सहित चंबल की वादियों में रहने वाले दस्यु सरगना ने मौत के घाट उतार दिया। यह तो सिर्फ बानगी भर थी यही कारण था कि प्रकृति की इस अद्भुत घाटी को दुनिया भर के लोग सिर्फ और सिर्फ डकैतों की वजह से ही जानती है। यही कारण रहा कि चंबल की इन वादियों के प्रति बॉलीबुड भी मुंबई की रंगीनियों से हटकर इन वादियों की ओर आकर्षित हुए और डकैत, मुझे जीने दो, चंबल की कसम, डाकू पुतलीबाई जैसी फिल्मों ने दुनिया भर के दर्शकों का मनोरंजन किया।

इन डकैतों की गतिविधियों में प्रकृति द्वारा प्रदत्त की गई यह वादियां इस कदर कुख्यात हो गईं कि क्षेत्रीय लोग भी इसमें जाने का साहस नहीं जुटा सकते थे जबकि वास्तविकता यह है कि पूरी तरह से प्रदूषण रहित चंबल की नदी के पानी को गंगाजल से भी अधिक शुद्ध और स्वच्छ माना जाता है। चंबल की इन वादियों में अनगिनत ऐसी औषधियां भी समाहित है जो जीवनदान दे सकतीं हैं। अब जबकि भिंड जिला प्रशासन ने एक पहल शुरू की है और यदि इसी प्रकार चंबल सफारी क्षेत्र से सटे अन्य प्रांत और जनपदों का प्रशासन सबक लेते हुए ऐसे ही कार्यक्रम तैयार करता है तो यकीनन इन वादियों के इर्द-गिर्द रहने वाले युवकों को रोजगार तो मिलेगा ही बल्कि वादियों की दस्यु समस्या को भी सदा-सदा के लिए दूर किया जा सकेगा और चंबल की यह घाटी समृद्धि होकर विश्व पर्यटन के मानचित्र पर अपना नाम दर्ज कर सकेगी।
 

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