क्या 20 साल में खत्म हो जाएगी भोपाल की बड़ी झील

16 Oct 2016
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भोपाल लेक
भोपाल लेक

यह सुनकर हर कोई स्तब्ध है कि अपनी बेमिसाल खूबसूरती और भीमकाय आकार जैसी खासियतों वाला एशिया के बड़े जलस्रोतों में पहचाना जाने वाला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर के बीचोंबीच स्थित बड़ी झील 20 साल बाद शायद ही बच सके। यह कोई कल्पना नहीं है, बल्कि जल संसाधनों का गहराई से अध्ययन करने वाले एक बड़े वैज्ञानिक ने इसका दावा किया है।

करीब एक हजार साल पहले बनाए गए दुनिया भर में अपनी अप्रतिम पहचान रखने वाला 31 किमी क्षेत्रफल में फैले इस बड़े ताल के आसपास पूरा भोपाल शहर बसा है। शहर के बीचोंबीच जब इसका नीला पानी ठाठे मारता है तो पूरे शहर के बाशिन्दे अपना तनाव भूलकर इसकी ऊँची-ऊँची लहरों को उठते-गिरते टकटकी लगाए देखने लगते हैं।

हर शाम इसके किनारों पर शहर के हजारों लोग सैलानियों की तरह जुटते हैं। यह झील शहर की करीब आधी आबादी को रोज पीने के लिये 30 मिलियन गैलन पानी देती है। लेकिन यह भी अब तेजी से प्रदूषित होता जा रहा है। इसे लेकर बीते दिनों नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने गहरी नाराजगी जताई है।

सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी सेप्ट के प्रो सारस्वत बन्दोपाध्याय ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि तालाब के प्राकृतिक तंत्र को बीते सालों में काफी नुकसान पहुँचा है। इसके आसपास स्थित खेतों में रासायनिक घातक कीटनाशकों और उर्वरकों के बेतहाशा उपयोग तथा जलग्रहण क्षेत्र में धड़ल्ले से हो रहे निर्माण कार्यों ने झील की सेहत बिगाड़ कर रख दी है। इससे आने वाले 20 सालों में तालाब का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। उन्होंने विस्तार से इसके कारण भी गिनाए हैं।

उन्होंने भोपाल में पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि पिछले 20 सालों में इस बड़े ताल की उस तरह से देखभाल नहीं कि गई है, जैसी होनी चाहिए थी। तालाब का जलग्रहण क्षेत्र ही घटकर आधा रह गया है। अब अगले 20 सालों में यह पूरी तरह खत्म हो जाएगा।

स्मार्ट एंड रिसीलेंट सिटीज इंटीग्रेटिंग एपरोचेस फॉर अरबन डेवलपमेंट विषय पर हुए एक सेमिनार में शामिल होने आये प्रो बन्दोपाध्याय ने बताया कि 2010 से 2013 के बीच बड़े तालाब के लिये बनाए गए मास्टर प्लान उन्होंने खुद तैयार करवाया था। उन दिनों वे खुद यहाँ कई दिनों तक रहे और बारीकी से तालाब के प्राकृतिक तंत्र का तकनीकी अध्ययन भी किया। लेकिन उसके बाद से अब तक इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

उन्होंने कहा कि सरकार को अपने जल संसाधनों को बचाने के लिये साफगोई से काम करना चाहिए। यदि सरकार की अब भी इसे बचाने की इच्छा हो तो स्मार्ट सिटी फंड की तरह अपर लेक फंड बनाना होगा। इस तालाब से सरकार को कोई कमाई नहीं होती पर यह शहर की पहचान है। हमें अपने पर्यावरण से जोड़ता है।

सरकार और समाज को अपने जल धरोहरों को बचाने के लिये आगे आना होगा। दुःख इस बात का है कि अब तक इस पर शिद्दत से कभी सोचा ही नहीं गया। सरकार ने कभी इसके लिये अलग से कोई फंड ही नहीं बनाया। यहाँ आसपास खेती करने वालों को कभी रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से रोका-टोका नहीं गया।

जब आसपास के खेतों से रासायनिक पदार्थों से दूषित बारिश का पानी तालाब में आकर मिलता है तो वह साफ-शुद्ध पानी को भी प्रदूषित कर देता है। फिलहाल इसका पानी बी ग्रेड का है, लेकिन खेतों के पानी के आने से यह घटकर-सी या डी ग्रेड का हो जाता है।

यह तालाब इतना बड़ा है कि प्रदेश के दो जिलों में इसका फैलाव है। भोपाल और उसके पड़ोसी जिले सीहोर में इसके किनारे पर कई एकड़ के खेत हैं, जिनका सिंचाई का पूरा दारोमदार इसी बड़ी झील (अपर लेक) पर ही है। इससे एक बड़े क्षेत्र में जलस्तर बनाए रखने में मदद मिलती है। सीहोर जिले में इसका जल ग्रहण क्षेत्र और भोपाल जिले में खासकर एफटीएल (फुल टैंक लेवल) है।

भोपाल के लोगों को यह झील पीने का पानी देती है, इसलिये यहाँ के लोगों का इससे भावनात्मक जुड़ाव है पर सीहोर जिले के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के साथ ऐसा नहीं है। वे लोग तालाब के लिये अपनी खेती और मकान निर्माण को छोड़ नहीं सकते। पूरा जल ग्रहण क्षेत्र सीहोर जिले में ही फैला है। वहाँ के खेतों से रसायन तालाब में आ रहे हैं। यहाँ कई स्थानों पर जलग्रहण और प्रवाह क्षेत्र में भराव करके पक्के निर्माण कर लिये गए हैं। पानी का रास्ता रोक दिया गया है।

हैरत यह है कि सरकार अब भी इसके प्रति उतनी गम्भीर नहीं है। इतनी बारीकी से किये गए तकनीकी अध्ययन के बाद जारी की गई अनुशंसाओं को लेकर अब तक कोई कवायद नहीं हुई है। पाँच साल बीत जाने पर भी अब तक मास्टर प्लान में इन अनुशंसाओं को शामिल नहीं किया गया है।

अब यदि इसे लागू करने में और भी देर की गई तो 2036 तक यह तालाब उजड़ जाएगा। सबसे बड़ा खतरा जलग्रहण और प्रवाह क्षेत्र में हो रहे पक्के अतिक्रमण से है, अभी तो असर कम नजर आ रहा है पर आने वाले पाँच सालों में इसका बड़ा असर देखने को मिलेगा। बढ़ते अतिक्रमण से तालाब को भरने के लिये जरूरी पानी ही यहाँ तक नहीं पहुँच सकेगा तो वह भरेगा कैसे। पानी कम आने से धीरे-धीरे तालाब का एफटीएल कम होता जाएगा और इससे जलग्रहण क्षेत्र भी सिकुड़ता जाएगा।

प्रो बन्दोपाध्याय ने इसके लिये अपनी ओर से कुछ अहम सुझाव भी सरकार को दिये हैं। इनमें से कुछ इस तरह है-

1. तालाब के फुल टैंक लेवल और कैचमेंट से रासायनिक खेती खत्म की जाये।
2. फुल टैंक लेवल से 300 मीटर तक सभी तरह के निर्माण रोके जाएँ।
3. कैचमेंट और फुल टैंक लेवल पर 50 मीटर के दायरे में ग्रीन बेल्ट बने।
4. आसपास के भौंरी, बकानिया, मीरपुर और फंदा आदि क्षेत्रों में हाउसिंग, कमर्शियल और अन्य प्रोजेक्ट्स पर प्रतिबन्ध।
5. कैचमेंट के 361 वर्ग किमी क्षेत्र में फार्म हाउस की अनुमति भी शर्तों के साथ।
6. वीआईपी रोड पर खानूगाँव से बैरागढ़ तक बॉटेनिकल गार्डन, अर्बन पार्क विकसित करना।
7. पुराने याट क्लब का रिनोवेशन कर यहाँ नया बोट क्लब बनाना।
8. वन विहार वाले क्षेत्र में गाड़ियाँ प्रतिबन्धित कर यहाँ इको टूरिज्म को बढ़ावा देना।
9. स्मार्ट सिटी फंड की तरह अपर लेक फंड बनाइए।
10. कैचमेंट में पानी का प्राकृतिक बहाव सिमट रहा है, इसे बढ़ाने का जतन होना चाहिए।
11. बेहिसाब पक्के अतिक्रमण निर्माण का असर पाँच साल में दिखेगा, अतिक्रमण पर तत्काल सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए।


भोपाल के लोगों को यह झील पीने का पानी देती है, इसलिये यहाँ के लोगों का इससे भावनात्मक जुड़ाव है पर सीहोर जिले के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के साथ ऐसा नहीं है। वे लोग तालाब के लिये अपनी खेती और मकान निर्माण को छोड़ नहीं सकते। पूरा जल ग्रहण क्षेत्र सीहोर जिले में ही फैला है। वहाँ के खेतों से रसायन तालाब में आ रहे हैं। यहाँ कई स्थानों पर जलग्रहण और प्रवाह क्षेत्र में भराव करके पक्के निर्माण कर लिये गए हैं। पानी का रास्ता रोक दिया गया है। गौरतलब है कि एक हजार साल पहले परमार वंश के राजा भोज ने इसे बनवाया था। तब से अब तक यह हर साल अथाह जलराशि समेटे इसी तरह लोगों को लुभाता रहा है। लेकिन अब नए दौर के चलन के साथ हम इसे गन्दा करते जा रहे हैं, जिससे अब इसके वजूद पर ही सवाल खड़े हो गए हैं।

बीते दिनों केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के दल ने भी मुआयने के बाद इसके प्रदूषित होते जाने पर गहरी चिन्ता जताई है। मण्डल ने कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर किये हैं। इसकी रिपोर्ट कहती है कि बड़ी झील के नजदीक बसे 88 गाँवों सहित बैरागढ़ इलाके के करीब तीन हजार से ज्यादा घरों की गन्दगी सीधे तौर पर तालाब में मिल रही है। इनमें कई कल-कारखाने भी शामिल हैं जिनका अपशिष्ट रसायन भी इसमें मिल रहा है।

बड़ी तादाद में गन्दगी मिलने से तालाब के इस हिस्से के पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा भी कम होती जा रही है। बैरागढ़ इलाके में सरकार ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाया है पर यह ऊँट के मुँह में जीरा है। हालात इतने बुरे हैं कि यह प्लांट केवल 20 प्रतिशत ही गन्दगी को साफ कर पा रहा है, बाकी 80 प्रतिशत गन्दगी बिना किसी रोक-टोक के तालाब में मिल रही है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अधिकारियों ने प्लांट की स्थिति पर चिन्ता जताते हुए निर्देश दिये हैं कि सीवेज पानी का क्लोरिन और ओजोन से ट्रीटमेंट किया जाये। हर दिन 285 एमएलडी सीवेज (गन्दा पानी) तालाब की ओर आता है, इसमें से केवल 40 एमएलडी पानी ही ट्रीट हो पाता है बाकी का 245 एमएलडी पानी बिना किसी ट्रीटमेंट के हर दिन बड़े तालाब के पानी में मिलकर उसे भी प्रदूषित कर रहा है।

बैरागढ़ इलाके के पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा दस साल पहले तक 8 मिलीग्राम प्रति लीटर थी जो अब घटकर केवल 4.8 मिलीग्राम प्रति लीटर रह गई है। यहाँ बायोलोजिकल ऑक्सीजन डिमांड 2.6 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर 8.9 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गई है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसकी अधिकतम मात्रा 5 मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए।

कभी यह तालाब 31 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ था लेकिन अब जलग्रहण घटकर महज 10 से 20 किलोमीटर ही रह गया है। बड़े और छोटे तालाब को जोड़कर पूरे जलक्षेत्र को भोज वेटलैंड कहा जाता है।

20 साल पहले मध्य प्रदेश सरकार ने इसे भोज वेटलैंड घोषित कर इसे संरक्षित करने और इसके कैचमेंट क्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त रखने और साफ-सुथरा बनाने के लिये करीब 300 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि खर्च की पर भोपाल के लोग बताते हैं कि तालाब के आसपास मात्र सौन्दर्यीकरण के अलावा जलग्रहण बढ़ाने और उसे साफ बनाने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। भोज वेटलैंड को अन्तरराष्ट्रीय रामसर सम्मलेन के घोषणापत्र में भी सम्मिलित किया गया लेकिन अब फिर वही ढर्रा...

इसमें कोई शक नहीं कि बड़ा तालाब उन दिनों की बेहतरीन जल अभियांत्रिकी का बेजोड़ नमूना तो है ही, तब के लोगों में पानी के सदुपयोग की प्रवृत्ति को भी इंगित करता है। हमारी खुशकिस्मती है कि हमारी पुरानी पीढ़ी ने 1000 साल पहले पानी का मोल समझा और एशिया के बड़े जलस्रोतों में से एक यह ताल हमें धरोहर के रूप में सौंपा पर आज हम क्या कर रहे हैं। गर्मी के दिनों में बूँद-बूँद तरसते मध्य प्रदेश की इस सबसे बड़ी धरोहर को सहेजने और संवर्धित करने की जगह हम उसे गन्दगी और गाद से पाटने को आमादा हैं।


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