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क्या है कार्बन ट्रेडिंग

क्योटो प्रोटोकॉल में प्रदूषण कम करने के दो तरीके सुझाए गए थे। इस कमी को कार्बन क्रेडिट की यूनिट में नापा जाना था। एक कार्बन यूनिट एक टन कार्बन के बराबर है। इन तरीकों में पहला था कि अमीर देश क्लीन डिवेलपमेंट मैकेनिजम में पैसे लगाएं या फिर, बाजार से कार्बन क्रेडिट खरीद लें। मतलब अगर विकसित देशों की कंपनियां खुद ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी न ला सकें तो विकासशील देशों से कार्बन क्रेडिट खरीद लें। चूंकि भारत और चीन जैसे देश में इन गैसों का उत्सर्जन कम होता है इसलिए यहां कार्बन क्रेडिट का बाजार काफी बड़ा है।

कार्बन क्रेडिट पाने के लिए कंपनियां ऐसे प्रोजेक्ट लगाती हैं जिनसे हवा में मौजूद कार्बन डाइ ऑक्साइड में कमी आए या फिर क्लीन डिवेलपमेंट मिकेनिजम के इस्तेमाल से कम से कम कार्बन उत्सजिर्त हो। इसके तहत पेड़ लगाना, कचरे से एनर्जी बनाना, वेस्ट मैनेजमेंट, वॉटर मैनेजमेंट या रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट लगाना वगैरह शामिल हैं।

क्योटो प्रोटोकॉल का ककहरा
क्योटो प्रोटोकॉल के तहत 40 औद्योगिक देशों को अलग सूची एनेक्स 1 में रखा गया।
प्रोटोकॉल के पांच अहम सिद्धांत :
1. ग्रीन हाउस गैसों में कमी लाने की प्रतिबद्धता जो एनेक्स 1 में शामिल देशों के लिए बाध्यकारी है।

2. प्रोटोकॉल के लक्ष्यों को पूरा करने पर कार्बन क्रेडिट दिए जाने की व्यवस्था।

3. विकासशील देशों को कम नुकसान हो, इसके लिए एक फंड बनाया जाए।

4. प्रोटोकॉल की समग्रता बनाए रखने के लिए लगातार समीक्षा।

5. प्रोटोकॉल की प्रतिबद्धता लागू कराने के लिए एक अनुपालन समिति का गठन।

कुछ अहम एनवायरनमेंटल एजेंसियां
- इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी): 1988 में वर्ल्ड मिटियोरॉलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन और युनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम द्वारा स्थापित यह संस्था इंसानी गतिविधियों द्वारा मौसम में होने वाले खतरनाक बदलावों का मूल्यांकन करती है।

- यूरोपियन एनवायरनमेंट एजेंसी (ईईए) : यह यूरोपियन यूनियन की एजेंसी है जिसका काम यूरोप के वातावरण की लगातार निगरानी करना है।

- यूएन एनवायरनमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी): युनाइटेड नेशंस की यह संस्था बेहतर एनवायरनमेंटल पॉलिसी लागू करने में विकासशील देशों की मदद करती है।

एनवायरनमेंट से जुड़ी अहम समस्याएं
ओजोन परत में छेद : धरती के वातावरण में मौजूद ओजोन की परत सूरज से आने वाली खतरनाक अल्ट्रा वॉयलट किरणों से बचाती है। लेकिन हवाई ईंधन और रेफ्रिजेशन इंडस्ट्री से निकलने वाले क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सीएफसी) से धरती के वातावरण में मौजूद ओजोन की सुरक्षा छतरी में छेद हो गए हैं। इससे स्किन कैंसर और आंखों की बीमारियां बढ़ी हैं।

ग्लोबल वॉर्मिंग : कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन चार प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें हैं जिनके चलते धरती का तापमान बढ़ रहा है।

समुद्र स्तर में बढ़ोतरी : ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिसके चलते समुद स्तर में तेजी से वृद्धि हो रही है। आशंका है कि मालदीव जैसे देशों का नामोनिशान तक मिट सकता है।

ग्राउंड वॉटर का विषैलापन : बढ़ता समुद्री जल तटीय इलाकों में मौजूद ग्राउंड वॉटर को खारा और विषैला कर रहा है।

जंगलों में कमी : बदलते मौसम और अंधाधुंध कटाई की वजह से धरती पर मौजूद जंगलों में काफी कमी आई है। आशंका है कि 2030 तक महज 10 फीसदी जंगल बचेंगे।

धुवों की बर्फ का पिघलना : ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पृथ्वी के धुवों की बर्फ पिघल रही है। इससे समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी तो हो ही रही है धुवीय भालू जैसे जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।

लुप्त होते जीव : इन तमाम समस्याओं की वजह से धरती पर मौजूद पौधों की 56 हजार प्रजातियां और जीवों की 3700 नस्लें खत्म होने की कगार पर हैं।

अन्य स्रोतों से:

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बाहरी कड़ियाँ:

विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia):

संदर्भ: