क्या जल संकट वाले देश कोरोना को फैलने से रोक सकते हैं ?

18 Apr 2020
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क्या जल संकट वाले देश कोरोना को फैलने रोक सकते हैं ?
क्या जल संकट वाले देश कोरोना को फैलने रोक सकते हैं ?

कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैल चुका है। 1 लाख 10 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन फिर भी फिलहाल इसके थमने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। कोरोना के संक्रमण ने विकसित देशों की कमर तोड़ दी है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिसाल माने जाने वाले इटली जैसे देशों ने संक्रमण के सामने घुटने टेक दिए हैं। अमेरिका भी भयावह स्थिति से गुजर रहा है, जहां मौत का आंकड़ा 30 हजार पहुंचने वाला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को कम करने के लिए नियमित तौर पर स्वच्छता अपनाना बेहद जरूरी है, जिसके लिए साबुन और पानी से हाथों को 20 सेकंड तक धोना है। इससे कोरोना वायरस ने आज पूरी दुनिया को स्वच्छता और साफ पानी का महत्व पता चला है, लेकिन इन परिस्थितियों में उन देशों के लिए स्वच्छता बनाए रखना चुनौती है, जहां न तो स्वच्छता की पर्याप्त सुविधा है और न ही साफ पानी की पहुंच। ऐसे में क्या जल संकट और स्वच्छता सुविधाओं के अभाव में ये देश कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोक पाएंगे ? 

कोरोना वायरस या अन्य प्रकार की बीमारियों के प्रसार को कम करने में साफ पानी और पर्याप्त स्वच्छता उपायों से काफी सहायता मिलती है, लेकिन वैश्विक सांख्यिकी 2017 के अनुसार दुनिया के 2.2 बिलियन लोगों तक साफ पानी की पहुंच नहीं है। यानी भारत और चीन की जनसंख्या के बराबर आबादी दुनिया भर में दूषित पानी पी रही है। निम्न विकसित देशों में लगभग 22 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाओं तक जल की बुनियादी सेवाओं की पहुंच नहीं है। ऐसे में खराब स्वच्छता और हैंडवाॅशिंग सुविधाओं के अभाव के कारण विश्व में हर साल लगभग 15 लाख लोगों की मौत हो जाती है। डायरिया भी गंदे पानी के कारण ही होता है। वर्ष 2016 में 5 साल से कम उम्र के 72 प्रतिशत बच्चों को डायरिया गंदे पानी के कारण ही हुआ था, इनमें अधिकांश मामले दक्षिण अफ्रीका के बाढ़ प्रभावित इलाकों के हैं। वर्ष 2017 में सब-सहारा अफ्रीका और साउथ एशिया में डायरिया के कारण मृत्युदर सबसे ज्यादा थी। ऐसे में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए विभिन्न देशों में लाॅकडान है। लोग घरों में कैद हैं। जिस कारण पानी की समस्या उन देशों के लिए भी खड़ी हो सकती है, जहां पर्याप्त रूप से साफ पानी की सप्लाई की जाती है। क्योंकि कोरोना ने पानी की मांग को बढ़ा दिया हैं

कोरोना संक्रमण के बीच पानी की मांग लाॅकडाउन के कारण नहीं, बल्कि स्वच्छता उपायों को अपनाने और बार बार हाथ धोने के कारण बढ़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने शुरुआत में ही संक्रमण को रोकने के लिए हैंडवाॅश करने और पर्याप्त स्वच्छता बनाए रखने की गाइडलाइन जारी कर दी थी। सभी देश विभिन्न माध्यमों से जनता को हाथ धोने के लिए बार बार याद भी दिला रहे हैं। ऐसे में पानी की खपत बढ़ गई है, क्योंकि लगभग हर व्यक्ति हाथ धोने लगा है। इससे पानी की मांग बढ़ी है। जाॅर्डन में जहां 93 प्रतिशत लोगों को साफ पानी की सप्लाई की जाती थी, वहां हाल ही में  सरकार ने कहा है कि जब से लाॅकडाउन किया गया है, पानी की मांग 40 प्रतिशत तक बढ़ गई है। ऐसा केवल जाॅर्डन में ही नहीं, बल्कि अधिकांश देशों में हुआ है, लेकिन फिलहाल परेशानी उन इलाकों के लिए है, जहां साफ पानी और स्वच्छता की सुविधा नहीं है। इन देशों में भारत भी शामिल है। ऐसे में सुविधाओं से वंचित इन इलाकों या देशों में कोरोना फैलता है, तो संक्रमितों की संख्या में कई गुना इजाफा हो सकता है। जिस कारण कोरोना से निपटना काफी मुश्किल हो सकता है। इसलिए अन्य वक्त की अपेक्षा इस समय जल संकट से निपटना बेहद जरूरी है, इसके लिए हर किसी को एक साथ सामूहिक रूप से कार्य करना होगा।

वास्तव में, कोरोना संक्रमण ने पूरे विश्व का ध्यान जल संकट की ओर खींचा और साफ जल के महत्व से पूरी दुनिया को परिचित करवाया है, लेकिन जल संकट से इतर ‘जलवायु परिवर्तन’ की चर्चा ज्यादा हो रही है। क्योंकि जल संकट गहराने के मुख्य कारणों में जलवायु परिवर्तन शीर्ष पर है। जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा और बाढ़ जैसी घटनाएं तेजी से हो रही हैं। भूमि मरुस्थल में बदल रही है। ऐसे में समय भले ही कोरोना लोगों की जान ले रहा है, लेकिन इसने हमें भविष्य की राह दिखाई है, कि पर्यावरण और जल संरक्षण क्यों जरूरी है। इसके लिए हमें अभी से नीतियों पर काम करने की आवश्यकता है और पर्यावरण संरक्षण आधारित विकास पर जोर देना जरूरी है। जिसमें स्वच्छता के उपायों की भी व्यवस्था की जाए। क्योंकि यदि हम आज भी जल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के प्रति जागरुक नहीं हुए, तो भविष्य में इस प्रकार की बीमारियों को रोक पाना मुश्किल होगा। 


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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