क्या पानी के कारोबार को संस्कारित करने की जरूरत है

KG Vyas
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दृश्य एक

हाल ही में खबर आई है कि अमेरिका के सेनफ्रांसिको शहर के लोगों ने नौ माह की बहस के बाद निर्णय लिया है कि नागरिक मुफ्त पानी उपलब्ध कराने वाले प्वाइंट से अपनी बोतल में पानी ले सकते हैं। सेनफ्रांसिको शहर में बोतलबन्द पानी की बिक्री बन्द कर दी गई है। उनका मानना है कि पानी जीवन के लिये प्रकृति प्रदत्त आवश्यकता है। उसका बाजारीकरण नहीं किया जाना चाहिए। लगता है अमेरिका को भारतीय मूल्य और संस्कार प्रभावित कर रहे हैं।

भारत संस्कारों का देश रहा है। दया, करुणा और अच्छे काम नागरिकों के संस्कारों का हिस्सा है। इन संस्कारों को आने वाली पीढ़ियों ने आगे बढ़ाया है। इसका एक छोटा सा उदाहरण प्याऊ व्यवस्था है। यह व्यवस्था अपने आप गर्मी के दिनों में अस्तित्त्व में आती है और पूरे भारत के लगभग हर गाँव और कस्बों में प्यासों को पानी उपलब्ध कराती है। सदियों से इस व्यवस्था को पुण्य का काम माना जाता है। सम्पन्न लोग उसे निभाते रहे हैं। आज भी यह व्यवस्था अनेक कस्बों में दिखाई देती है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत कस्बे के भीड़-भाड़ वाले इलाके में घने वृक्ष की छाँव में अस्थाई शेड के अन्दर बैठा आदमी बिना भेद-भाव के प्यासे लोगों को ठण्डा पानी पिलाता है। पानी के लिए कोई ताम-झाम नहीं होता। पानी को छान कर मिट्टी के घड़ों में रखा जाता है। गर्म हवा उसे शीतल बनाती है।

दृश्य दो
राष्ट्रीय जल नीति के पैरा 3.1 में उल्लेख है कि केन्द्र, राज्यों और स्थानीय निकायों को उनके सभी नागरिकों को आवश्यक स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए सुरक्षित पानी को न्यूनतम मात्रा की उपलब्धता सुनिश्चित करना चाहिए जिसे परिवार आसानी से प्राप्त कर सके। बोतलबन्द पानी घोषित रुप में सुरक्षित पानी की श्रेणी में आता है और कम से कम राष्ट्रीय जल नीति के पैरा 3.1 में सुरक्षित पानी उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी कारोबारियों को सौंपने की बात नहीं कही गई है।

दृश्य तीन
भारत में बोतलबन्द पानी का कारोबार तेजी से परवान चढ़ रहा है। अनुमान है, यह कारोबार लगभग 1000 करोड़ के सालाना आँकड़े को पार कर चुका है और लगभग 40 से 50 प्रतिशत की दर से हर साल बढ़ रहा है। देश में 100 से अधिक नामी कम्पनी बोतलबन्द पानी का कारोबार करती है। व्यापार को ऊँचाई प्रदान करने के लिए आकर्षक विज्ञापनों की मदद लेती है और उनके बोतलबन्द पानी की गुणवत्ता का भरोसा दिलाती है। अकेले ब्रान्डेड कम्पनियों के ही देश भर में 1200 से अधिक प्लांट हैं। बोतलबन्द पानी का कारोबार पूरे 12 माह चलता है। संस्कार तथा सेवाभाव का ग्लोबलाईजेशन हो गया है। आउटलेट पर पैसा चुकाइये, बोतलबन्द पानी हर जगह उपलब्ध है।

बोतलबन्द पानी के सभी कारोबारी लोगों को शुद्ध पानी उपलब्ध कराने का वायदा करते हैं। लोग कह सकते हैं कि शुद्ध पानी उपलब्ध कराने का वायदा तो सरकार को करना चाहिए। यह अपेक्षित है क्योंकि राष्ट्रीय जल नीति के पैरा 1.3 (ट) में सरकार ने कहा है कि सुरक्षित और साफ पानी (Portable & Safe Water) एवं स्वच्छता को जीवन का अधिकार माना जाना चाहिए। चूँकि संविधान के आर्टीकल 21 में लोगों के जीवन के अधिकार की सुरक्षा का प्रावधान है इसलिए इस महत्त्वपूर्ण वायदे को पूरी जिम्मेदारी से निभाने का सीधा-सीधा दायित्व सरकार का बनता है।

बोतलबन्द पानी पर एक्सपायरी तिथि सहित उसकी शुद्धता की पूरी जानकारी भारत सरकार द्वारा निर्धारित पेयजल मानकों के अनुसार अंकित होना चाहिए। बोतलबन्द पानी चूँकि प्लास्टिक की बोतल में बिकता है इसलिए उस पर प्लास्टिक के बुरे असर का भी जिक्र होना चाहिए। विश्व का हर छटवाँ व्यक्ति सुरक्षित और शुद्ध पानी से वंचित है। भारत में हर साल लगभग छः लाख लोग असुरक्षित तथा अशुद्ध पानी से होने वाली बीमारियों के कारण मरते हैं।

अशुद्ध पानी से होने वाली बीमारिओं तथा मृत्यु के कारण जल नीति और संविधान की उपर्युक्त अपेक्षाओं का पालन करना आवश्यक हो जाता है इसलिए उसे अपनी जिम्मेदारी बोतलबन्द पानी कारोबारियों और वाटर-प्यूरिफायर बनाने वाली कम्पनियों के हाथ में सौंपना सही नहीं लगता है। अन्य प्रश्न कीमतों को लेकर है। बोतलबन्द पानी और आयातित तकनीकों पर निर्मित मँहगे उपकरण गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों की क्रय शक्ति के लगभग बाहर हैं। इसके बावजूद बोतलबन्द पानी वह सार्वजनिक कार्यक्रमों, विवाह समारोहों और सामान्य आयोजनों की अनिवार्य आवश्यकता है।

सेन्टर फॉर साइंस एण्ड एन्वायरमेंट (सीएसई), नई दिल्ली ने लगभग 12 साल पहले सन 2003 में ही बोतलबन्द पानी का सघन परीक्षण कर कतिपय ब्रान्ड उत्पादकों के पानी में कीटनाशकों की मौजूदगी की जानकारी दी थी। सीएसई की रिपोर्ट बताती है कि बोतलबन्द पानी के कुछ नमूनों में प्रतिबन्धित कुछ कीटनाषक (DDT, Organochlorines, Organophosphorous, Chlorpyrifors and Malathion) मौजूद हैं। दिल्ली में लिए कुछ नमूनों में उनकी मात्रा 36.4 गुना अधिक पाई गई थी। वहीं मुम्बई में यह मात्रा 7.2 गुना अधिक थी। पिछले साल भी इसी प्रकार की खबरें अखबारों की सुर्खियों में थी। उपर्युक्त कीटनाशकों के कारण कैंसर, नर्वस सिस्टम को नुकसान और अन्य घातक बीमारियों का खतरा है।

पानी का कारोबारी, समाज की आवश्यकताओं की अनदेखी कर जमीन के नीचे से बड़ी मात्रा में पानी खींच रहा है। दोहन पर अंकुश के अभाव में कहीं-कहीं अतिदोहन के हालात बन रहे हैं। इसके अतिरिक्त दोहन के पर्यावर्णी प्रभाव, गुणवत्ता, खाद्यान्न उत्पादन तथा आजीविका पर प्रतिकूल असर का अध्ययन बहुत कम स्थानों पर हुआ है। निराकरण की दिशा में चेतना तथा प्रयासों का लगभग अभाव है।

हाल ही में खबर आई है कि अमेरिका के सेनफ्रांसिको शहर के लोगों ने नौ माह की बहस के बाद निर्णय लिया है कि नागरिक मुफ्त पानी उपलब्ध कराने वाले प्वाइंट से अपनी बोतल में पानी ले सकते हैं। सेनफ्रांसिको शहर में बोतलबन्द पानी की बिक्री बन्द कर दी गई है। उनका मानना है कि पानी जीवन के लिये प्रकृति प्रदत्त आवश्यकता है। उसका बाजारीकरण नहीं किया जाना चाहिए। लगता है अमेरिका को भारतीय मूल्य और संस्कार प्रभावित कर रहे हैं। क्या उपर्युक्त सांकेतिक जानकारी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में भी पानी के कारोबार को संस्कारित करने की आवश्यकता है या वैश्वीकरण के दौर में यह सवाल अनावश्यक है?

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