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क्योटो प्रोटोकॉल

क्योटो प्रोटोकॉल आवहवा परिवर्तन पर हुए संयुक्त राष्ट्र के प्रारूप सम्मलेन (United nations Framework Convention on Climate Change/UNECCC or FCCC) का एक संग्लेख है।यह एक अनतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि है जो संकुक्त राष्ट्र के संधि सम्मलेन में रचा गया था। इस प्रोटोकॉल का उद्देश है 'वायुमंडल में ग्रीनहॉउस गैस का घनात्वा ऐसे मात्रा पे स्थितिशील रखना जिससे मनुष्य जीवन द्वारा आवहवा प्रणाली में कोई हानिकारक रुकावट न पड़े।' क्योटो प्रोटोकोल के अनुसार 'अन्नेक्स 1' (औद्योगिक) राष्ट्रों द्वारा उत्पन्न चार ग्रीनहॉउस गैस (कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर हेक्साफ्लोरैद) व दो समूह के गैस (ह्य्द्रोफ़्लुरोकर्बोन और पेर्फ़्लुरोकर्बोन)को कानूनी तौर पे कटौती करना आवश्यक है, इसके अलावा बाकि सारे सदस्य राष्ट्र साधारण अंगीकार में बंधे है। 183 समुदाय ने इस प्रोटोकोल की पुष्टि की है। इसे 11 दिसम्बर 1997 में जापान के क्योटो में ग्रहण किया गया और 16 फरवरी 2005 में अमल किया गया। क्योटो के तहत औद्योगिक देश वर्ष 1990 की तुलना में उनके सामूहिक GHG उत्सर्जन को 5.2 % कम करने पर सहमत हुए। कटौती के राष्ट्रीय सीमाओं को अनुसार यूरोपीय संघ के लिए 8% संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए 7%, जापान के लिए 6%, और रूस के लिए 0% तक का है लक्ष्य है संधि आस्ट्रेलिया को 8% और आइसलैंड को 10% GHG उत्सर्जन की बढ़ौती की अनुमति देता है।

क्योटो के अर्न्तगत कुछ लचीले तरीके है जैसे उत्सर्जन व्यापार, स्वच्छ विकास तंत्र और संयुक्त कार्यान्वयन जो की अनेक्स 1 के राष्ट्रों को जी.एइच.जी (GHG) उत्सर्जन कटौती क्रेडिट क्रय द्वारा अपने ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने की आज्ञा देती है। यह क्रेडिट, दुसरे अनेक्स 1 देशों से और अधिक छुट पाने वाले अनेक्स 1 देशो से अर्थकारी लेनदेन द्वारा अथवा उत्सर्जन घटाने वाले परियोजना के माध्यम से खरीदी जा सकती है। इसका वास्तव अर्थ यह है कि गैर अनुलग्नक अर्थव्यवस्थाओं के लिए कोई GHG उत्सर्जन प्रतिबंध नही है, बल्कि उन देशों के लिए इस बात की वित्तीय प्रोत्साहन है की उत्सर्जन घटने वाले परियोजनाएं बढ़ने से वे अनेक्स 1 राष्ट्रों को 'कार्बन क्रेडिट' बेच सकते हैं। यह स्थितिशील उन्नयन को प्रोत्साहन देती है। इसके अलावा यह लचीले कार्यविधि इस बात की भी अनुमति देती है की जिन अनेक्स 1 देशों की GHG उत्सर्जन कम है और पर्यावरण के प्रचलित मापदंड उच्च है, वह देश घरेलु उत्सर्जन कम करने के बजाय विश्व बाज़ार से कार्बन क्रेडिट खरीद सकते है। जबकि गैर अनुलग्नक संस्थाओं उनके घरेलू ग्रीनहाउस गैस परियोजनाओं से उत्पन्न कार्बन क्रेडिट का मूल्य अधिकतम करना चाहते है, वही अनुलग्नक राष्ट्र सस्ते में कार्बन क्रेडिट प्राप्त करना चाहते हैं।

इस अनुलग्नक के सारे संधि-बंध देशों ने अपने ग्रीनहाउस गैस के पोर्टफोलियो का प्रबंधन करने के लिए राष्ट्रीय प्राधिकरण की स्थापना की है, जापान, तथ्य वांछित जापान, कनाडा, तथ्य वांछित इटली सहित नीदरलैंड, जर्मनी, फ्रांस, तथ्य वांछित स्पेन और दूसरों देशों ने सक्रिय रूप से कार्बन कोष बढ़ा दिए हैं। इसके फलस्वरूप बहुपक्षीय कार्बन कोष अव्हिप्राय को समर्थन मिली, के वे नॉन अनेक्स देशों से कार्बन क्रेडिट खरीद सके। इस उद्देश्य को सामने रखते हुए यह सारे देश घनिष्ठ रूप में अपने उपयोगिता, शक्ति, तेल और गैस एवं रासायनिक जुट को एकत्रित करते हुए सस्ते में ग्रीनहाउस गैस सनद प्राप्त किए। वस्तुतः सभी गैर अनुलग्नक देशों ने क्योटो प्रक्रिया का प्रबंधन करने के लिए, विशेष कर सी.डी.एम. प्रक्रिया को प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय प्राधिकरण की स्थापना की है। सी.डी.एम. प्रक्रिया यह निर्धारित करती है, किस जी.एच.जी. परियोजना को निर्वाही समिति में प्रस्तावित करना है।

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