क्युमुलोनिंबस बादल फटने से मचती है तबाही

12 Sep 2017
0 mins read
disaster
disaster

हमारे देश में हर साल मानसून के समय पानी से भरे हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, जिनके लिये हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में आता है। इसीलिये बादल फटने की ज्यादातर घटनाएँ पहाड़ों में ही होती है। इसके अतिरिक्त, ये बादल जरा सी भी गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाते। यदि गर्म हवा का झोंका उन्हें छू जाये, तो उनके फट पड़ने की आशंका बन जाती है।

Cumulonimbus clouds erupt with cloudburst

उत्तराखण्ड में आपदा ने 1998, 2006, 2010, और 2013 के घाव फिर से हरे कर दिये हैं। मालपा में तो आपदा ने 1998, 2006 के दुःखद हादसों की यादें दुबारा ताजा कर दी है। पिथौरागढ़ जिले के कैलास मानसरोवर मार्ग पर तवाघाट के माँगती नाले और मालपा में 14 अगस्त की अलसुबह दो बजे के करीब बादल फटने की घटना हुई।

अपुष्ट सूत्रों के अनुसार घटना में अब तक 17 लोगों के शव बरामद किये जा चुके हैं। पिथौरागढ़ के जिला आपातकालीन परिचालन केन्द्र के अनुसार माँगती नाले में एक व्यक्ति की मृत्यु हुई है, जबकि पाँच सैनिकों, एक जेसीओ व दो स्थानीय लोगों के लापता होने, तीन सैनिकों व एक जेसीओ के घायल होने, सेना के दो वाहनों व तीन सेना के टेंटों के क्षतिग्रस्त होने के साथ ही 24 खच्चरों व 16 बकरियों की मौत होने की पुष्टि की गई है। हाल ही में प्रशासन ने मालपा में चार लोगों की मौत, दो के लापता होने व एक महिला के घायल होने के साथ चार होटल व दुकानों के क्षतिग्रस्त होने की पुष्टि की है। हादसे में पूर्व में सेना के सात जवान लापता बताए गए थे। उनमें से चार को सकुशल बचा लिया गया है।

मुकद्दर का खेल ऐसा कि वहीं एक महिला काली नदी में बहते हुए नेपाल की तरफ सुरक्षित पहुँची है। दूसरी ओर माँगती में दो और सिमखोला में एक पुल क्षतिग्रस्त हुआ है और ऐलगाड़ में मुख्य मार्ग अवरुद्ध है। इसके अलावा दर्जनों की संख्या में लोग घायल तथा लगभग 30 लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि सेना के तीन ट्रक भी नाले में बह गए हैं। हालांकि मौके पर आपदा प्रबन्धन और पुलिस की टीमें मौजूद हैं। सेना भी मौके पर सहायता करने के लिये पहुँची है। मालपा में जमींदोज घर से छह लोगों के शव निकाल लिये गए हैं। इनमें गब्र्यांग गाँव के पाँच पुरुष व बूँदी निवासी एक महिला बताई जा रही है।

आफत की बारिश में मालपा में तीन मकान ध्वस्त हुए। माँगती नाले ने सिमखोला में पैदल पुल को बहा ले गया। माँगती नाले के समीप से 3 कुमाऊँ रेजीमेंट का एक जवान अभी लापता चल रहा है। बादल फटने की घटना को देखते हुए शासन स्तर से रेस्क्यू के लिये हेलीकॉप्टर भेजे गए हैं। आपदा को देखते हुए यह हेलीकॉप्टर धारचूला में ही तैनात रहेंगे। जहाँ से रेस्क्यू कर आपदा में फँसे लोगों को निकाला जाएगा। हादसे के बाद से ही आईटीबीपी, एसएसबी, सेना, एनडीआरएफ की टीम बचाव राहत कार्य में जुट गई है।

धारचूला (पिथौरागढ़) में बादल फटने की घटना में तबाह हुए मालपा व माँगती घटियाबगड़ में एक सप्ताह और खोज अभियान चलाया जाएगा। इसके लिये शासन ने 25 करोड़ रुपए जारी किये हैं। इस आपदा में 30 लोगों के मरने की आशंका जताई जा रही है। अभी तक महज 12 शव ही बरामद हो सके हैं। लापता लोगों में सेना के जेसीओ समेत छह जवान शामिल हैं। एसडीआरएफ की डॉग स्क्वायड टीम भी खोज अभियान में जुटी है। इधर सेना के जवानों ने लापता अपने जेसीओ व छह जवानों की खोज के लिये काली नदी के किनारे 28 किमी तक खोज अभियान चलाया लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।

बुधवार को ढुंगातोली के पास काली नदी में मिले शव की शिनाख्त नेपाली मजदूर के रूप में हुई है। इधर हेलीकॉप्टरों से उच्च हिमालय में फँसे प्रभावित क्षेत्र के लोगों को धारचूला लाया जा रहा है। प्रशासन की तरफ से मुख्य विकास अधिकारी आशीष चौहान और एसडीएम आरके पांडेय मालपा में डेरा डाले हुए हैं। अधिकारियों का भी मानना है कि अब शवों के मिलने की सम्भावना न के बराबर है। मुख्य सचिव ने वीडियो कांफ्रेसिंग से अभी एक सप्ताह और खोज एवं बचाव का कार्य चलाने के निर्देश दिये हैं। जिलाधिकारी सी रविशंकर का कहना है कि अभी तक आठ शव मिले हैं। जिनकी मौत की पुष्टि हो चुकी है। लापता लोगों की तलाशी का कार्य जारी रहेगा। बरामद चार अन्य शवों के बारे में प्रशासन कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। समझा जा रहा है कि ये शव नेपाली मजदूरों के हो सकते हैं। अलबत्ता प्रशासन अब स्वीकार कर रहा है कि 12 नेपाली मजदूरों सहित 25 लोग लापता हैं।

जबकि इधर कैलाश मानसरोवर यात्रा पर इस आपदा से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। फिर भी प्रशासन की संवेदनशीलता को देखते हुए उच्च हिमालयी क्षेत्र में आपदा से मार्ग बन्द होने के बाद भी कैलास मानसरोवर यात्रा जारी रखी गई है। कैलास यात्रा से लौटने पर गुंजी में फँसे 13वें दल के 35 कैलास यात्रियों को एयर लिफ्ट कर धारचूला पहुँचाया गया। अभी इस दल के 13 यात्री गुंजी में ही फँसे हैं। इधर यात्रा के लिये धारचूला पहुँचे 16वें दल के 47 यात्रियों को गुंजी व बूँदी में हेलीकॉप्टर से पहुँचाया गया। इसमें मौसम साफ रहने तक 34 यात्री गुंजी पहुँचा दिये गए थे। इसके बाद हेलीकॉप्टर ने 13 यात्रियों को बूँदी के पड़ाव पर उतारा।

क्युमुलोनिंबस बादल फटने से मचती है तबाही


आखिर वह बाधा कौन सी है, जिसके कारण बादल अचानक फट पड़ते हैं? मौसम विज्ञानी बताते हैं कि हमारे देश में हर साल मानसून के समय पानी से भरे हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, जिनके लिये हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में आता है। इसीलिये बादल फटने की ज्यादातर घटनाएँ पहाड़ों में ही होती है। इसके अतिरिक्त, ये बादल जरा सी भी गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाते। यदि गर्म हवा का झोंका उन्हें छू जाये, तो उनके फट पड़ने की आशंका बन जाती है। ऐसा ही मुम्बई में 26 जुलाई 2005 को हुआ था, जब बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं, बल्कि गर्म हवा से टकराए थे।

मौसम विज्ञानियों के अनुसार बादलों की आकृति और उनकी पृथ्वी से ऊँचाई के आधार पर इन्हें कई वर्ग में बाँटा गया है। पहले वर्ग में आते हैं, लो क्लाउड्स, यानी ये पृथ्वी से ज्यादा नजदीक होते हैं। इनकी ऊँचाई लगभग ढाई किलोमीटर तक होती है। इनमें एक जैसे दिखने वाले भूरे रंग के बादल, कपास के ढेर जैसे कपासी, गरजने वाले काले रंग के रुई जैसे भूरे-काले रंग के, वर्षा वाले स्ट्रेट बादल, और भूरे-सफेद रंग के स्ट्रेट-कपास जैसे बादल आते हैं।

बादलों में दूसरा वर्ग है मध्य ऊँचाई वाले बादलों का। इनकी ऊँचाई ढाई से साढ़े चार किलोमीटर तक होती है। इस वर्ग में दो तरह के बादल हैं आल्टोस्ट्राटस और आल्टोक्युमुलस। तीसरा वर्ग है उच्च मेघों का। इनकी ऊँचाई साढ़े चार किलोमीटर से ज्यादा रहती है। इस वर्ग में सफेद रंग के छोटे-छोटे साइरस बादल, लहरदार साइरोक्युमुलस और पारदर्शक रेशेयुक्त साइरोस्ट्राटस बादल आते हैं। इन तमाम बादलों में कुछ हमारे लिये फायदेमन्द हैं, तो कुछ डिजास्टर बनकर आते हैं। बादल फटने की घटना के लिये क्युमुलोनिंबस बादल जिम्मेदार हैं। इन बादलों को गौर से देखो तो ये बड़े खूबसूरत लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे आकाश में कोई बहुत बड़ा गोभी का फूल तैर रहा हो। इनकी लम्बाई 14 किलोमीटर तक होती है। आखिर इतने सुन्दर बादल तबाही क्यों ले आते हैं।

दरअसल जब क्युमुलोनिंबस बादलों में एकाएक नमी पहुँचनी बन्द हो जाती है या कोई हवा का झोंका उनमें प्रवेश कर जाता है तो ये सफेद बादल गहरे काले रंग में परिवर्तित हो जाते हैं और तेज गरज के साथ पूरी शक्ति के साथ बरस पड़ते हैं। क्युमुलोनिंबस बादलों के बरसने की रफ्तार इतनी तेज होती है कि मानो आसमान से पूरी नदी उतर आई हो। यहाँ मौसम विज्ञानी और पर्यावरणीय विज्ञानियों की बातों में दम है। पर्यावरण विज्ञानी बताते हैं कि यह मध्य हिमालय अभी शैशवकाल में है जिसकी ऊँचाई बढ़ रही है। दूसरी ओर मौसम विज्ञानी बता रहे हैं ऐसे क्युमुलोनिंबस बादलों के तैरने में जब बाधा आती है तो वे फट जाते हैं। निश्चित तौर पर हिमालय की ऊँचाई बढ़ रही है, बादल फटने की घटनाएँ भी बढ़ रही है। सरकारों को इसका उपाय वैज्ञानिक विधि से ही करना होगा।

गंगा-अवतरण की पौराणिक कथा में जब गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये भगीरथ ने भगवान शिव का सहारा लिया था, जिन्होंने अपनी एक लट के सहारे गंगा को पृथ्वी पर उतारा था। सोचो, यदि गंगा एक साथ पृथ्वी पर बह जातीं, तो कितनी तबाही मच जाती। इसी तरह बादल फटने पर भी बादलों का पूरा पानी एक साथ पृथ्वी पर गिर पड़ता है। बादल फटने के कारण होने वाली वर्षा लगभग 100 मिलीमीटर प्रतिघंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में दो सेंटीमीटर से अधिक वर्षा हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है।

ट्रॉली व फोल्डिंग पुल स्वीकृत - श्री पन्त


वित्त मंत्री प्रकाश पन्त ने बताया कि शासन ने आपदा प्रभावित क्षेत्र में आवाजाही सुचारु करने के लिये तात्कालिक व्यवस्था के तहत दो ट्रॉली और दो फोल्डिंग पुल स्वीकृत किये हैं। स्वीकृत दो ट्रॉली पुल निर्माण होने तक एक ट्रॉली नजंग में और एक ट्रॉली मालपा में लगाई जाएगी। आवागमन हेतु नालों पर फोल्डिंग पुल लगाए जाएँगे। इसके अलावा सरकार ने अहतियात के तौर पर 25 करोड़ रुपए स्वीकृत किये हैं ताकि आपदा राहत में कोई कमी ना रहे।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading