कैच दी रेन अभियान 

कैच  दी रेन अभियान 
कैच दी रेन अभियान 


गहराते जल संकट से निजात दिलाने के लिए, नेशनल वाटर मिशन (एन.डब्ल्यू.एम.) ने कैच  दी रेन अभियान, अभियान का आगाज किया है। उसका बीज वाक्य है - बरसात का पानी, जब भी, जहाँ भी, गिरे, उसे वहीं थाम लो अर्थात उसे आगे मत जाने दो (Catch the rain, where it falls, when it falls)। वह बीज वाक्य राज्यों तथा हितग्राही समाज से अपील करता है कि वे आने वाली बरसात के पहले, धरती के चरित्र और स्थानीय मौसम को ध्यान में रखकर वर्षा जल के संरक्षण हेतु उपयुक्त जल संरचनाओं का निर्माण करेंगे। यह अभियान वहुआयामी है। उसके आयाम हैं-नई जल संचय संरचनाओं का निर्माण, छत के पानी को धरती में उतारना, तालाबों की मूल जल भंडारण क्षमता की बहाली एवं उनके जल मार्गों को अवरोध मुक्त करना, बावडियों का सुधार, एक्वीफरों को रीचार्ज करने के लिए अप्रयुक्त कुओं और नलकूपों का उपयोग। यह अभियान, समाज की सक्रिय भागीदारी से किया जाए। यही अभियान की फिलासफी का केन्द्र बिन्दु है। यह अभियान 22 मार्च से 30 नवम्बर के बीच, देश भर के ग्रामीण और शहरी इलाकों में चलाया जावेगा।    


नेशनल वाटर मिशन (एन.डब्ल्यू.एम.) ने राज्यों से अनुरोध किया है कि वे, इस अभियान कोे कारगर तरीके से संचालित करने के लिए जिला स्तर पर रेन-सेंटर की स्थापना करें। ये सेन्टर कलेक्टर कार्यालय, नगर निकायों या ग्राम पंचायतों में स्थापित किए जावेंगे। नेशनल वाटर मिशन के अनुसार हर रेन-सेंटर पर प्रशिक्षित अमला पदस्थ होगा और उससे सम्पर्क करने के लिए मोबाईल नम्बर होगा। रेन-सेंटर की भूमिका ऐसे तकनीकी मार्गदर्शक की होगी जो जिले में उपयुक्त तथा असरकारी संरचनाओं के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगा और सुनिश्चित करेगा कि बरसाती पानी जहाँ और जब बरसता है, उसे, समाज की भागीदारी से वहीं संचित किया जाए। 
अभियान के अन्तर्गत छत के पानी को धरती में उतारने के लिए जिले के सभी मकानों पर व्यवस्था कायम की जावे। साथ ही भवनों के आहातों आहातों से पानी की न्यूनतम निकासी सुनिश्चित करने के लिए उस पर बरसे पानी की अधिकतम मात्रा का भी संचय किया जाए। नेशनल वाटर मिशन का मानना है कि कैच  दी रेन अभियान को सही तरीके से क्रियान्वित करने से मिट्टी में नमी का स्तर सुधरेगा और भूजल स्तर की बहाली में मदद मिलेगी। इस व्यवस्था से बरसात के दिनों में नगरों की सडकों का कटाव घटेगा, जल जमाव कम होगा तथा बाढ़ रुकेगी। इसके अलावा जिले में स्थित समस्त जल संरचनाओं का राजस्व विभाग के रिकार्ड से मिलान किया जाए। यह जानकारी मानीटरिंग के दौरान काम आवेगी।
केच दी रेन अभियान के अन्तर्गत सभी जिला कलेक्टरों , समस्त शिक्षण संस्थाओं, (यथा आईआईएम, आईआईटी, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों, प्रायवेट विश्वविद्यालयों) एवं रेलवे चेयरमेन, एयरपोर्ट अथार्टी, पीएसयू, डीजी आफ सेन्ट्रल आर्मड पुलिस इत्यादि) जिनके पास विपुल मात्रा में जमीन उपलब्ध है, से इस दिशा में, उचित कदम उठाने के लिए कहा गया है। 


साल-दर-साल गहराते जल संकट की पृष्टभूमि में यह अभियान आशा की किरण जगाता है लेकिन उसकी स्थायी सफलता तभी संभव हो सकती है जब प्रत्येक संरचना नुस्खा पद्धति के स्थान पर पुराने अनुभवों की सघन समीक्षा पर आधारित होगीे। बनाने वाला अमला समझदार होगा। उसे स्थानीय मौसम, धरती के भूगोल और विशिष्टताओं की सही-सही समझ के अलावा समाज की सहभागिता से काम करने का अनुभव होगा। यह अभियान एक या दो साल की रस्म अदायगी का अभियान नहीं है। लम्बा चलने वाला अभियान है।
विदित हो, सन 2000-01 और 2001-02 में मध्यप्रदेश सरकार ने जल संकट और सूखे से निपटने के लिए पानी रोको अभियान संचालित किया था। मध्यप्रदेश सरकार ने इस अभियान की बागडोर जिला प्रशासन को सौंपी थी वहीं राज्य स्तर पर, मार्गदर्शन के लिए राजीव गान्धी वाटरशेड मिशन नोडल संस्था थी। पानी रोकने के लिए, खेत का पानी खेत में: गांव का पानी गांव में, की फिलासफी के आधार पर फार्म पौंड, डबरा-डबरी, कुण्डी-कुइया, कन्टूर-टेंªच, मिट्टी के छोटे-छोटे बांध, निस्तार तालाब और परकोलेशन तालाब बनाए गए थे। इस काम को करने की जिम्मेदारी ग्राम स्तरीय समितियों को सौंपी गई थी।इस अभियान से समाज और जनप्रतिनिधियों को भी जोडा गया था। दूसरे साल सरकार ने जल संरक्षण के काम को स्थानीय जरुरतों से जोडने का प्रयास किया था। पानी रोको अभियान ने दो सालों की अवधि में लगभग 800 करोड की राशि व्यय की थी। इस काम में जनता की भागीदारी लगभग 150 करोड थी। दो साल के बाद यह अभियान बन्द कर दिया गया था। लगभग दो साल तक लेखक को इस अभियान की रणनीति तय करने का अवसर मिला था। 

लेखक का सुझाव है कि कैच  दी रेन अभियान को परिणाम मूलक बनाने के लिए निम्नानुसार रणनीति अपनाने की आवश्यकता है - 

  • कैच  दी रेन अभियान के लिए राज्य स्तर पर नोडल विभाग निर्धारित किया जाना चाहिए। राज्य स्तर पर एक अधिकारी को नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाना चाहिए। यह अधिकारी नोडल विभाग का अतिरिक्त सचिव होना चाहिए। उसकी जिम्मेदारी जिलों से समन्वय और समस्याओं का समाधान होना चाहिए। राज्य स्तर पर समीक्षा के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित होना चाहिए। प्रदेश के मुख्य मंत्री को अभियान का संरक्षक बनाया जाना चाहिए। 
  • जिला स्तर पर कैच  दी रेन अभियान का नियंत्रण कलेक्टर को सौंपा जाना चाहिए। उसे जिले के विभिन्न अधिकारियों से समन्वय कायम रख लक्ष्य हासिल करना चाहिए। उसे अभियान की समीक्षा करना चाहिए तथा राज्य स्तरीय के नोडल अधिकारी को विस्तृत प्रतिवेदन भेजना चाहिए। 
  • कैच दी रेन अभियान के लिए सरकार से प्राप्त धन के अलावा सांसद एवं विधायक निधि का भी उपयोग किया जाना चाहिए। जन भागीदारी एवं स्वेच्छिक श्रमदान से भी काम सम्पन्न किए जाना चाहिए।
  • जल संकट और जल स्रोतों की हालत को ध्यान में रख केच दी रेन अभियान को स्थिति सामान्य होने तक संचालित करना चाहिए। उसकी निगरानी के लिए निगरानी तंत्र स्थापित करना चाहिए। यह अभियान पानी के विकेन्द्रीकृत माडल पर आधारित है। उसको क्रियान्वित कर जल स्वराज लाया जा सकता है।  
  • पानी रोको अभियान और देश के अन्य इलाकों के क्षेत्रवार पुराने अनुभवों तथा प्रयोगों का अध्ययन किया जाना चाहिए। अभियान के तकनीकी पक्ष अर्थात उपयूक्त संरचना चयन तथा निर्माण पक्ष को परिमार्जित कर परिणाममूलक बनाने की आवश्यकता है। यह काम देश की विभिन्न भूवैज्ञानिक परिस्थितियों तथा भूगोल को ध्यान में रख करना चाहिए।
  • माईक्रो प्लानिंग करना चाहिए। प्लानिंग का आधार पानी की मांग और उसकी स्वस्थाने पूर्ति होना चाहिए। प्रत्येक इकाई के लिए जल बजट बनाया जाना चाहिए।
  • जल संकट के टिकाऊ हल के लिए सतही जल संरक्षण और भूजल रीचार्ज के लिए माईक्रो स्तर पर, एकल प्रयासों के स्थान पर, एक दूसरे के पूरक, प्रयास करना चाहिए। छत के पानी को जमीन में उतारने के स्थान पर भूमिगत टांकों में जमा करना चाहिए। हाईराइज बिल्डिंग में कार पार्किग की तर्ज पर विशाल टांकों में जल संचय करना चाहिए। नगरी क्षेत्र में प्रत्येक पार्क की भूमि का 25 प्रतिशत हिस्सा रीचार्ज-सह-जल संचय के लिए अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
  • पानी की मांग और उसकी पूर्ति को ध्यान में रख, माईक्रो स्तर पर, बरसाती पानी का वांछित मात्रा में जमीन के ऊपर तथा जमीन के नीचे एक्वीफरों में जमा करना चाहिए।
  • बरसाती पानी के स्वस्थाने संरक्षण और स्वस्थाने रीचार्ज हेतु पानी की मांग और उसकी स्वस्थाने पूर्ति के आधार पर उपयुक्त संभावित संरचनाओं का निर्माण करना चाहिए। इसे रणनीति का आधार बनाना होगा। 
  • भूजल रीचार्ज की मात्रा को मौजूदा दोहन का लगभग 70 प्रतिशत तक लाया जाना चाहिए। जल संचय तथा रीचार्ज की सकल मात्रा के योग को सालाना उपयोग की मात्रा से अधिक होना चाहिए। 
  • हर बसाहट में जितना पानी बरसता है, उसे पेयजल एवं बुनियादी आवश्यकताओं तथा गरीब लोगों आवश्यकता की आपूर्ति के उपरान्त ही अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आगे जाने देना चाहिए। 
  • पानी रोको अभियान और देश के अन्य इलाकों के क्षेत्रवार पुराने अनुभवों का अध्ययन किया जाना चाहिए। अभियान के तकनीकी पक्ष अर्थात उपयूक्त संरचना चयन को परिमार्जित तथा परिणाममूलक बनाने की आवश्यकता है। 
  • संरचना की उपयोगी आयु के पक्ष को बेहतर बनाने के लिए तकनीकी सुधार, कानूनी एवं सामाजिक मुद्दों को जोडना आवश्यक है। 
  • आम आदमी की जिन्दगी पर असर डालने वाली सभी समस्याओं को घ्यान में रखकर नए सिरे से पानी के बंटवारे की प्लानिंग करना चाहिए। प्लानिंग का चेहरा मानवीय होना चाहिए अर्थात उसे जल स्वराज की अवधारणा पर आधारित होना चाहिए। अन्य जो समय समय पर आवश्यक प्रतीत हो। 


 

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